वास्तविकता में यह लेख, गुवाहटी के उर्वशियम सत्याग्रह के 65 साल के ! उपलक्ष्य में डाॅ. राम मनोहर लोहिया रिसर्च फौंडेशन के सौजन्य से प्रकाशित हुई ! स्मारिका के लिए विशेष रूप से लिखा था ! लेकिन स्मारिका के संपादक महोदय ने बताया कि “मेरा लेख कटा हुआ ही प्राप्त हुआ था ! तो हमने उसे उतनाही छापा है !” लगभग आधे से अधिक लेख कटे हुए स्थिति में ! उस स्मारिका में छपने के कारण ! मै इसे पुनः चौथी दुनिया में देने का कष्ट कर रहा हूँ ! मुझे मालूम है ! कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की वकालत करने वाले ! हमारे अपने ही कुछ मित्रों को ! अपनी आत्मालोचना कतई स्वीकार नहीं है ! और वह तुरंत गालिगलौज पर उतारू होकर ! लिखित रूप से अपने असहिष्णुता का परिचय देते हैं ! लेकिन हमारे आने वाले पिढीयो को ! हमारे अपने पुरखों ने भी कुछ ऐतिहासिक गलतीया की है ! जिसे हमने नही दोहराना है ! इसलिए मैंने यह साहस किया है ! और यह जज्बा डॉ. राम मनोहर लोहियाजी से ही सिखा हूँ ! डॉ. राम मनोहर लोहिया का व्यक्तित्वमे मराठी संत तुकाराम महाराज के अभंग में लिखा गया था कि “आपुलाची वाद आपल्याशी !” ( मतलब मेरा ! मेरे साथ ही विवाद ! ) जारी है ! और गौतम बुद्ध से लेकर महावीर और महात्मा गांधी की भी यही पद्धती थी !


भारतीय राजनीति में डाॅ. राममनोहर लोहिया के जैसा ! मुख्यतः मानव अधिकारों, तथा स्वतंत्रता के मुल्यो को लेकर, संवेदनशील नेता दुसरा याद नहीं आता है ! उन्होंने होश संभाला तबसे भारत की आजादी से लेकर गोवा, उत्तर पूर्वी (उर्वशियम), मिसिसिपी(अमेरिकी काले – गोरों के) रंगभेद से लेकर, महात्मा गाँधी जी के सत्याग्रह का सिविल नाफरमानी में ! विस्तार करके आजादी के बाद भी ! भारत में की गैरबराबरी से लेकर ! जाति-धर्म, तथा लिंगनिरपेक्ष ! राजनीतिक गतिविधियों के लिए लिखने बोलने वाला ! और उनके साथ कार्यक्रम करने वाली, और कोई राजनीतिक शख्सियत नही दिखाई देती है ! मराठी में एक कविता है ! जो डॉ राम मनोहर लोहिया के चरित्र से बहुत ही मिलती-जुलती है ! “अन्याय घडो शेजारी कि दुनियेच्या बाजारी धाऊन तेथे ही जाऊ स्वातंत्र्य मंत्र हा गाऊ !” (मतलब अन्याय मेरे पडोस में हो या विश्व के किसी भी कोने में वहां पर दौड़कर जाऊँगा और स्वातंत्र्य मंत्र गाऊँगा !) यह जज्बा डॉ. लोहिया का होने के कारण 1946 में गोवा के मित्र डॉ. मेनेझेस के, स्वास्थ्य लाभ के लिए, निमंत्रण पर गये हुए लोहिया ! गोवा में पुर्तगाली शासन के अत्याचार की घटनाएं सुनने के बाद ! अपने स्वास्थ्य की परवाह किए बिना ! सिधे मडगांव के मुनिसिपल मैदान पर ! दस हजार लोगों की सभा ! पुर्तगाली शासन की मनाही के बावजूद किए हैं ! और गोवा के पुर्तगाली पुलिस अफसर ने ! सभा पर पिस्तौल निकाल कर पोजिशन ली थी ! तो डॉ. लोहिया ने उसका हाथ पकडकर, उसे शांत करने के लिए कहा है “कि तुम्हारे पिस्तौल में कितनी गोलियां है ? दस हजार से अधिक लोग हैं ! अगर वह बेकाबू हो गऐ तो तुम क्या ! तुम्हारे पुरे पुलिस फोर्स का अस्तित्व नहीं रहेगा ! जरा होश में आओ !” डॉ. लोहिया ने पुलिस अधिकारी का पिस्तौल ताने हुए हाथ पकडने की कृती से ! गोवा के लोगों का पुर्तगाली पुलिस के प्रति भय समाप्त हो गया ! पहले डॉ. लोहिया को गोवा छोड़कर जाने का आदेश दिया ! लेकिन वह नहीं माने. ! तो उन्हें जबरन मडगांव से महाराष्ट्र की सिमावर्ति गांव में लाकर, गोवा छोड़कर जाने की कार्यवाही की गई ! इस तरह वह गोवा से निष्कासित कर दिये गऐ ! लेकिन गोवा के आजादी के आंदोलन के सुत्रपात ! और पुलिस के डर से गोवा के लोगों को मुक्त कराने का ! ऐतिहासिक काम करके गऐ है !


वैसे ही अमेरिकी प्रवास के दौरान ! मिसिसिपी के एक होटल में, टेबल को लेकर होटल के स्टाफ ने, उन्हें वह टेबल खाली करने के लिए कहा ! क्योंकि वह टेबल गोरों के लिए आरक्षित था ! तो डॉ. लोहिया ने टेबल छोडने से मना किया ! तो होटल व्यवस्थापकों ने पुलिस को बुलाया ! और डॉ. लोहिया को लेकर पुलिस स्टेशन जाने तक कि बात, अमेरिकी सरकार तक पहुंचने के कारण ! उन्हें छोड़ दिया, और अमेरिका ने माफी मांगी !
वहीं बात आसाम में जाने के लिए ! परमिट की जरुरत, देखने के बाद लोहिया आगबबूला हो गऐ ! और वहीसे उर्वशियम सत्याग्रह का जन्म हुआ ! और भारत सरकार को परमिट पद्धती को रद्द करने के लिए मजबूर किया ! इसी तरह बारह महीनों चौबीसों घण्टे स्वतंत्रता, मानवाधिकार और गैरबराबरी के लिए चौकस रहने वाले ! डाक्टर लोहिया मेरे बचपन के दिनों से हिरो रहे हैं !
और इसी लिए मेरी उम्र के तेरह – चौदह साल के दौरान, आचार्य श्रीपाद केलकर और इंदूताई केलकर,पति-पत्नी से, राष्ट्र सेवा दल के एक शाखा चालक के हैसियत से, मेरा परिचय हुआ ! और वह उनके इस दुनिया से जाने तक ! और भी घनिष्ठ होता गया था ! सत्तर के दशक के शुरू में डाॅ. राम मनोहर लोहिया का मराठी भाषा में पहला चरित्र लेखन, श्रीमती इंदूताई केलकर, और छह किताबों की मराठी अनुवाद की गई सिरिज, आचार्य श्रीपाद केलकर ने इंदूताई की मदद से (1) समाजवादाचे नवदर्शन( 2) जन गण मन (3) ललित लेणी (4) भारतीय फाळणी चे गुन्हेगार (5) अन्तहीन यात्रा (6) इतिहास चक्र इन छह किताबों को ! लोहिया के जाने के दो साल के भीतर ! केळकर पति-पत्नी ने मराठी भाषा में अनुवाद कर के, मेरे जैसे अहिराणी मातृभाषा वाले ! चौदह – पंद्रह साल के विद्यार्थी के लिये बहुत महत्वपूर्ण बात थी ! एक तरह से मेरे जीवन की वैचारिक नींव डालने का काम हुआ है !
क्योंकि मराठी स्कूल में दाखिला लेने के बाद सिखने लगा ! और हिंदी तो राष्ट्र सेवा दल के शिबीरो के कारण, उसी उम्र में जीवन में पहली बार, दस्तानायक – शाखानायक शिबीर के लिए, पूणे में होने के कारण ! वहां से सिधा मध्य प्रदेश के, हरदा, पिपरिया, भोपाल, रिवा इन जगहों पर ! मुझे उम्र के पंद्रह साल से भी पहले ! राष्ट्र सेवा दल के तत्कालीन पदाधिकारियों द्वारा ! जोर-जबरदस्तीसे भेजा गया ! तो ‘सर दिया ओखली’ में वाली कहावत के अनुसार, मुख्य रूप से भोपाल में, श्रीमती सविता वाजपेयी की कृपा से ! 1967 – 68 से, आपातकाल की घोषणा तक ! शायद ही कोई दिपावली या गर्मी की छुट्टियां होंगी ! जो मैंने भोपाल में राष्ट्र सेवा दल के शाखा और शिबीर आयोजित करने के कारण, नही गुजारी होगी ! और सविताजी के लायब्ररी में जयशंकर प्रसाद से लेकर महादेवी वर्मा, यशपाल, अमृतलाल नागर, अज्ञेय, धर्मवीर भारती, शरतचंद्र चॅटर्जी, बिमल मित्र, बंकिम चंद्र, रवींद्रनाथ टैगोर, राही मासुम राजा, हरिशंकर परसाई, कमलेश्वर, क्रिश्नचंदर, अमृता प्रीतम, प्रेमचंद, रामवृक्ष बेनिपूरी, फणीश्वर नाथ रेणु और हां गुलशन नंदा भी ! पॉकेट बुक में एक रूपये या बहुत ज्यादा हुआ तो दो रूपये में, एक उपन्यास मील जाता था ! तो सविताजी के घर, राष्ट्र सेवा दल के काम के अलावा, हिंदी साहित्य तथा पत्र, पत्रिका ! सविता जी के जीवन साथी श्री. बालमुकुंद भारतीजी उर्फ भाईसाहब, भोपाल से नवभारत ग्रुप के, एम पी क्रॉनिकल नाम के अंग्रेजी अखबार के, संपादक होने के कारण ! उनके घर में बनारस के आज से लेकर धर्मयुग, दिनमान, सारिका तथा मध्य प्रदेश के सभी अखबार और पत्रिकाओं का अंबार लगा रहता था !
और मुझे एक अकालग्रस्त के जैसा उन सभी का वाचन करते हुए ही ! थोडी बहुत हिंदी भाषा सीखने का मौका मिला ! अंग्रेजी का हाल पुछीऐ मत ! इसके लिए डॉ. राम मनोहर लोहिया का अंग्रेजी हटाव आंदोलन को हमने अपनी अंग्रेजी न सिखने के लिए बहाने के तौर पर खूब इस्तेमाल किया है !
मुख्य बात मेरे जीवन में डाॅ. राम मनोहर लोहिया को मिलने का मौका कभी नहीं आया ! क्योंकि वह अक्तूबर कि 12 तारीख को 1967 के दिन, दिल्ली के विलिंग्टन हॉस्पिटल में, (वर्तमान में डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल) में प्रोस्टेट के अॉपरेशन में गड़बड़ी होने के कारण मृत्यु हो गई थी ! तब मै सिर्फ चौदह साल का था ! मेरे अपने गांव से बुआ के गांव हायस्कूल की पढाई करने के लिए शिंदखेडा 1965 मे गया था ! और वहीसे पूणे के राष्ट्र सेवा दल के प्रथम दस्तानायक – शाखानायक शिबीर के लिए ! शायद 1966-67 के गर्मी की छुट्टियों में ! हाँ ! ठीक उसी समय पूणे के जिन लोगों के साथ परिचय हुआ ! उनमें केळकर पति-पत्नी थे ! और उन्होंने जो डॉ. राम मनोहर लोहिया के बारे में ! और बाद में मराठी में अनुवाद किया ! वह छह किताबों का खजाना दिया ! जिसे मैं तुरंत पढ तो लिया ! लेकिन काफी कुछ पल्ले नही पडा था ! पंद्रह साल के भीतर शायद मंद बुध्दी का होने का परिणाम होगा ! और अभी भी काफी लोगों को डॉ. लोहिया के बारे में इस तरह के चिकित्सा वाले लेख के कारण मेरे बुद्धि पर तरस आ रहा होगा ! क्योंकि भक्तों को अपने भगवान की आलोचना बहुत नागवार गुजरती है ! भले ही डॉ. लोहिया के ही क्यों ना हो !
अभि भी डॉ. राम मनोहर लोहिया के उर्वशियम के सत्याग्रह के,65 साल के बहाने ! शायद आज सत्तर साल के उम्र लोगों को भी पता नहीं होगा कि ! संपूर्ण उत्तरपूर्व राज्यों में जाने के लिए आजादी के बाद भी परमिट लगता था ! जिसे देखकर डॉ. राम मनोहर लोहिया ने उर्वशियम सत्याग्रह आंदोलन करने की वजह से ही, आज हम आप आसानी से उत्तर पूर्व राज्यों में आ – जा सकते हैं ! और इसी उर्वशियम सत्याग्रह के 65 साल के उपलक्ष्य में इस साल नवंबर में 19 – 20 को उर्वशियम समारोह मनाने की पहल डॉ. राम मनोहर लोहिया रिसर्च फौंडेशन, दिल्ली के सौजन्य से, गुवाहाटी के कॉटन विश्वविद्यालय के सभागार में होने जा रही हैं ! और उस उपलक्ष्य में एक स्मारिका प्रकाशित करने की योजना है ! जिसमें यह लेख छपने की संभावना है !
जैसे पिछले साल डॉ. राम मनोहर लोहिया के गोवा आजादी के पचहत्तर साल के कार्यक्रम का आयोजन, मडगांव गोवा में आयोजित किया गया था ! हालांकि डॉ. राम मनोहर लोहिया रिसर्च फौंडेशन के शुरू होने के सिर्फ तीन साल हो रहे हैं ! लेकिन डॉ. लोहिया के नाम से हमारे देश में कई संस्थाओं को मै कम-से-कम पचास साल से भी अधिक समय से देख रहा हूँ ! लेकिन लोहिया जयंती और पुण्यस्मरण के अलावा, कोई सार्थक कार्यक्रम किसी को नहीं करते हुए देखा हूँ ! हालांकि डॉ. राम मनोहर लोहिया भारत की राजनीति के पहले प्रतिभावान राजनेता हैं ! जिन्होंने महात्मा गाँधी जी के सत्याग्रह का सिविलनाफरनामी में विस्तार किया ! वैसे ही अगडे पिछड़े सिंद्धांतों को सौ में पावे पिछडा साठ, भुमीहीनो के लिए जबरनजोत, योनि सुचिता का सिद्धांत के अनुसार समस्त महिलाओं की मुक्ति का संदेश ! और द्रोपदी – या सावित्री, वशिष्ठ और वाल्मीकि, अंग्रेजी हटाओ – देशी भाषाओं को लाओ, भारत – पाक – बंग्लादेश महासंघ, मर्यादित (राम) , उन्मुक्त (कृष्ण), असिमित (शिव), साधारण निर्गुण और ठोस सगुण, सच, कर्म, प्रतिकार और चरित्र निर्माण :आवाहन,निराशा के कर्तव्यों का पाठ पढ़ाने का कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए ! नये सिरे से परिचय कराने का ! इतिहास दत्त कार्य किया है !


उसी तरह रामायण मेला चित्रकूट में, आयोजित करने की कल्पना ! कामयाब होती, तो पाखंडीयो के हाथ राम आज नहीं लगे होते ! वहीं बात राम, कृष्ण, शिव की ! शायद भारत की राजनीति और समाजनिती में इतने महत्वपूर्ण योगदान देने वाले, महान दार्शनिक की ओर से संघ की कुटीलता गैरबराबरी, जातिवाद और घोर सांप्रदायिकता, पूंजीवाद के समर्थक, भारत के आजादी के आंदोलन के विरोधी और महात्मा गांधी के हत्यारों को समझने में कहा चुक हुई है ?


भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी लड़ाई, हिंदु धर्म में उदारवाद और कट्टरता की लड़ाई, पिछले पांच हजार सालों से भी अधिक समय से चल रही है ! और उसका अंत अभी भी दिखाई नहीं पडता ! इस बात की कोई कोशिश भी नहीं की गई, जो होनी चाहिए थी, कि इस लड़ाई को नजर में रखकर हिंदुस्तान के इतिहास को देखा जाए, लेकिन देश में जो कुछ होता है, उसका बहुत बड़ा हिस्सा इसी के कारण होता है ! यह सब डॉ. राम मनोहर लोहिया ने अपनी ‘हिंदु बनाम हिंदु’ नाम की छोटी सी पुस्तिका में बहुत ही बढिया ढंग से लिखा है ! तो भी हिंदु कट्टरपंथी संघ और जनसंघ के साथ गठबंधन करने की कृती डॉ. राम मनोहर लोहिया के जीवन के बहुमूल्य तत्वों के विरोध में जाने वाली बात मुझे बहुत अखरती है ! क्योंकि भारतीय राजनीति में महात्मा गांधी के बाद डॉ. राम मनोहर लोहिया दुसरे नेता हैं ! जिन्होंने साधन सुचिता का आग्रह किया है ! तो संघ परिवार के साथ जाने की बात कौन-सी साधन सुचिता में आती है ? डॉ. राम मनोहर लोहिया के भक्तों को भी मेरा सवाल है ! क्योंकि वह डॉ. लोहिया की भक्ति में उन्हे चिकित्सा से उपर बैठा चुके हैं ! वह डॉ. राम मनोहर लोहिया को भगवान बना कर सिर्फ उनकी पूजा करना चाहते हैं ! और किसी भी महात्मा को उनके विरोधियों से ज्यादा भक्तों का खतरा ज्यादा रहता है !

वह उसे भगवान बना कर, उसकी पूजा अर्चना करने के कर्मकांड के अलावा अन्य कुछ भी नहीं करना चाहते ! और यही उस महात्मा की समाप्ति की शुरुआत है ! जो अबतक उनके नाम पर, राजनीतिक मुकाम हासिल करने वाले, लोगों ने किया है ! और तथाकथित गैरराजनिति का दावा करने वाले ! सफेद धोती पहनकर विधवा विलाप करने के अलावा ! सिर्फ लोहिया के भजन गाने वाले भी, हम ही लोहिया के असली वारिस कहने वाले ! लोगों की अंधभक्ती के कारण, बचे-खुचे डॉ. राम मनोहर लोहिया की समाप्ति की तैयारियों में लगे हुए हैं !
आजादी के समय हुआ बटवारे ! और उसमे हुए जानमाल का नुकसान ! जो विश्व के इतिहास का सबसे बड़ा विस्थापन ! और सांप्रदायिक हिंसा का तांडव के समय ! डॉ. राम मनोहर लोहिया की उम्र, गिनकर पैतिस से उपर के होने के बावजूद ! और जिस कलकत्ता में वह अपनी कॉलेज की पढाई पूरी करने के कारण उनके बंगाल में कुछ संपर्क होने के कारण , महात्मा गाँधी जी के कहने पर सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ काम करने के लिए ! विशेष रूप से कलकत्ता में ठहरे हुए थे ! और सांप्रदायिक हिंसा करने वाले सरगनाओं से ! अस्र – शस्त्र इकठ्ठा कर के गांधी जी के पास जमा करने वालों में ! शामिल डॉ. राम मनोहर लोहिया ने ! हिंदु या मुसलमान सांप्रदायिक शक्तियों को, बहुत नजदीक से देखा होने के बावजूद ! आजादी के बाद ऐसा क्या कारण है ? कि वह बटवारे के समय की संघ की, सांप्रदायिकता भूल गए ? क्योंकि उसी समय गांधी या जवाहरलाल नेहरू, सभी नेताओं ने संघ की भूमिका की आलोचना की है ! तो लोहिया के नागपुर के संघ मुख्यालय में गोलवलकर के साथ खिलखिलाते हुए, गले मिलने की फोटो देखकर मै हैरान हूँ !


और बाद में जनसंघ के साथ मिलीजुली सरकारों का प्रयोग भी, समझ से परे है ! महात्मा गाँधी जी के हत्यारों के साथ 20 साल के भीतर ! कोई चंद दिनों के भीतर कैसे गलाभेट कर सकता है ? जो डॉ. राम मनोहर लोहिया की भाषा में कट्टरपंथी, संघी लोगों ने भारत के संविधान को तथा तिरंगा झंडा को नकारा है ! और संविधान की जगह, मनुस्मृति का महिमामंडन करने का खुला समर्थन ! अॉर्गनाईजर के माध्यम से गोलवलकर ने किया है ! और यह वही आदमी है ! जिसने संघ को घोर सांप्रदायिक बैठक देने का काम किया है ! यह वही शख्सियत है ! जो संघ के इतिहास में सब से लम्बा संघप्रमुख तीस साल से भी अधिक समय रहे है ! We or our Nationhood Defined 1939 में प्रकाशित किताब में जनतंत्र से लेकर ! अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ ! नाझी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की तर्ज पर ! संघ के संघठन को बढ़ावा देने के लिए, कोशिश करने वाले ! तथा राष्ट्रीय झंडे के बारे में बहुत ही आपत्तिजनक टिप्पणी कीए है ! और शायद इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी को आजादी के पचहत्तर साल के बहाने ! घर-घर तिरंगा की घोषणा करनी पड़ी ! क्योंकि संघ भारतीय राष्ट्रध्वज को नही मानता है ! इस कलंक को पौछने की सोची समझी कृति आजादी के पचहत्तर साल के कार्यक्रम के दौरान घर – घर तिरंगा फहराने का पाखंड करने की आवश्यकता पडी !
श्री गोलवलकर गुरुजिके 14 जुलै 1946 गुरू पोर्णिमा के दिन भाषण में उन्होंने कहा कि “It was the saffron flag which in totality represented Bhartiya (Indian) culture. It was the embodiment of God. We firmly believe that in the end the whole nation will bow before this saffron flag.
The English – Language organ of the RSS Organiser, in its editorial (titled ‘The Nation’s Flag ‘) dated July 17, 1947, while reacting to the news that the committee of the Constituent Assembly of India on the National Flag had decided in favour of the Tricolour as the National Flag since it was acceptable to all parties and communities, wrote :
We do not at all agree that the Flag ‘should be acceptable to all parties and communities in India’. This is sheer nonsense. The Flag represents the nations and there is only one nation in Hindustan, the Hindu Nation, with an unbroken history extending over 5000 years. That is the nation and the flag must symbolize that nation and that nation alone. We cannot possibly choose a flag with a view to satisfy the desires and wishes of all the communities. That is to complicate matters and is unwarranted and entirely unnecessary… We cannot order the choice of a flag as we order a tailor to make a shirt or coat for us… ”


शायद 1967 तक गांधी हत्या के कारण, 1948 से सिर्फ उन्नीस साल ही तो हो रहे थे ! इस कारण से डॉ. राम मनोहर लोहिया की ! संघ का असली रूप जानने समझने में कहीं चुक – भुल अवश्य हुई है ! 11, 12, 14, 15 मार्च 1948 सेवाग्राम वर्धा, महाराष्ट्र के आश्रम में , महात्मा गाँधी जी के हत्या के छ हप्ते के बाद ! हुईं बैठक में, डाॅ. राम मनोहर लोहिया शामिल नहीं हो सके ! इस बात का आमुख में ही उल्लेख किया है ! क्योंकि उस बैठक के उपर तत्कालीन बंगाल के राज्यपाल श्री. गोपाल कृष्ण गांधी ने कल तक बापू थे, आज रहनुमाई कौन करेगा ? ( Gandhi is Gone, Who Will Guide Us Now ? ) इस शिर्षक से एक किताब लिखी है ! और उस किताब की प्रस्तावना में ही ! गोपाल गांधी ने लिखा है “कि काश इस बैठक में डाॅ. राम मनोहर लोहिया शामिल होते !”

उस बैठक में शामिल सभी साथियों ने जिसमें जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, मौलाना आझाद, आचार्य कृपलानी, तुकडोजी महाराज,आचार्य विनोबा भावे, आचार्य दादा धर्माधिकारी, जयप्रकाश नारायण, डॉ. जाकिर हुसैन इत्यादि मान्यवर उपस्थित थे ! उस सभा में आचार्य विनोबा भावे ने कहा कि” मै उस प्रांत का हूँ, जिसमें आर एस एस का जन्म हुआ है ! मै भले ही जात छोडकर बैठा हूँ ! फिर भी यह भूल नहीं सकता कि उसकी ही जाति का हूँ ! जिसके द्वारा यह घटना हुई ! कुमाराप्पांजी और कृपलानी जी ने फौजी बंदोबस्त के खिलाफ परसों सक्त बातें कहीं ! मैं चुप बैठा रहा ! वे दुःख के साथ बोलते थे ! मै दुःख के साथ चुप बैठा था ! न बोलने वाले का दुःख जाहीर नही होता ! मै इसलिये नही बोला कि मुझे दुःख के साथ लज्जा भी थी ! पवनार में मै बरसों से रह रहा हूँ ! वहां पर भी चार पांच आदमियों को गिरफ्तार किया गया है !

बापू की हत्या से किसी न किसी तरह का संबंध होने का उनपर शुबह है ! वर्धा में भी गिरफ्तारियां हुई, नागपुर में हुई, जगह – जगह हो रही है ! यह संघठन इतने बड़े पैमाने पर बड़ी कुशलता के साथ फैलाया गया है ! इसके मुल बहुत गहरे पहुंच चुके हैं ! यह संगठन ठीक फैशिश्ट ढंग का है ! उसमें महाराष्ट्र की बुद्धि का प्रधानतया उपयोग हुआ है ! चाहे वह पंजाब में काम करता हो या मद्रास में ! सब प्रांतों में उसके सालार और मुख्य संचालक अक्सर महाराष्ट्रीयन और अक्सर ब्राम्हण, रहे हैं !

गोलवलकर गुरूजी भी महाराष्ट्रियन ब्राम्हण है ! इस संगठन वाले दुसरो को विस्वास में नहीं लेते हैं ! नियम सत्य का था ! मालूम होता है, इनका नियम असत्य का होना चाहिए ! यह असत्य उनकी टेक्निक – उनके तंत्र – और उनकी फिलॉसफी का हिस्सा है !
एक धार्मिक अखबार में मैंने उनके गुरुजिका एक लेख या भाषण पढा ! उसमे लिखा था ! “कि हिंदु धर्म का उत्तम आदर्श अर्जुन है ! उसे अपने गुरूजनों के लिए आदर और प्रेम था, उसने गुरूजनों को प्रणाम किया ! और उनकी हत्या की ! इस प्रकार की हत्या जो कर सकता है ! वह स्थितप्रज्ञ है ! वे लोग गिता के मुझसे कम उपासक नही है ! वे गिता उतनी ही श्रद्धा से रोज पढते होंगे ! जितनी श्रद्धा मेरे मन में है ! मनुष्य यदि पुज्य गुरुजनों की हत्या कर सके ! तो वह स्थितप्रज्ञ होता है ! यह उनकी गिता का तात्पर्य है ! बेचारी गिता का इसप्रकार उपयोग होता है ! मतलब यह सिर्फ दंगा-फसाद करने वाले उपद्रवकारी जमात नही है ! यह फिलॉसफरो की जमात है ! उनका एक तत्वज्ञान है और उसके अनुसार निश्चय के साथ वे काम करते हैं ! धर्मग्रंथों के अर्थ करने की भी उनकी अपनी खास पद्धति है !
गांधी जी की हत्या के बाद महाराष्ट्र की कुछ अजीब हालत है ! यहां सब कुछ अत्यांतिक रूप में होता है ! गांधी हत्या के बाद गांधीवालो के नाम पर जनता की तरफ से जो प्रतिक्रिया हुई. जैसी पंजाब में पाकिस्तान के निर्माण के वक्त हुई थी !
नागपुर से लेकर कोल्हापूर तक भयानक प्रतिक्रिया हुई ! साने गुरूजी ने मुझे आवाहन किया ! कि मै महाराष्ट्र में घुमु ! जो पवनार को भी सम्हाल नही सका, वर्धा – नागपुर के लोगों पर असर डाल नही सका, वह महाराष्ट्र में घुमकर क्या करता ? मै चुप बैठा रहा !
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कार्यप्रणाली में हमेशा विरोध रहा हैं ! जब हम जेल में जाते थे, उस वक्त उनकी निति फौज और पुलिस में भर्ती करने की होती थी ! कही हिंदु – मुसलमानो के झगड़ा खड़ा होने की संभावना होती, तो यह वहां पहुंच जाते ! उस वक्त की सरकार इन सब बातों को अपने फायदे की समझती थी ! इसलिये उसने भी इनको उत्तेजन दिया !नतीजा हमको भुगतना पड़ रहा है !
आजकी परिस्थिति में मुख्य जिम्मेदारी मेरी है, महाराष्ट्र के लोगों की है ! यह संगठन महाराष्ट्र में पैदा हुआ है ! महाराष्ट्र के लोग ही इसकी जडो. तक पहुंच सकते हैं ! इसलिये आप मुझे सुचना करे, मै अपना दिमाग साफ रखुंगा और अपने तरीके से काम करुंगा ! मैं किसी कमेटी में कमिट नही हुंगा ! आर. एस. एस. से भिन्न, गहरे और दृढ विचार रखने वाले सभी लोगों की मदद लुंगा ! हमारा साधन – शुद्धि का मोर्चा बने! उसमें सोशलिस्ट भी आ सकते हैं ! और दुसरे सभी आ सकते हैं ! हमको ऐसे लोगों की जरूरत है जो अपने को इन्सान समझते हैं !
इन फासीस्ट लोगों का मुकाबला करने के लिए, इकठ्ठा प्रयास करना चाहिए ! ” यह बात आजसे चौहत्तर साल पहले ! आचार्य विनोबा भावे ने कही थी ! लेकिन इस बात का महत्व आज भी आजादी के पचहत्तर साल के पस्चात ! और भी ज्यादा समसामयिक है ! डॉ. राम मनोहर लोहिया रिसर्च फौंडेशन के सौजन्य से स्मारिका, इस अवसर पर प्रकाशित करने का आयोजकों का इरादा है ! और मुझे एक लेख लिखने के लिए गत एक महिना हो गया ! उनका आग्रह होकर ! लेकिन आज मैं उसे लिखने की कोशिश कर रहा हूँ ! पता नहीं आयोजको की कसौटी पर मेरा लेख खरा उतरता है या नहीं ! क्योंकि कुछ लोगों की आलोचना अभिसे शुरू हो गई है ! जिसका मै तहे-दिल से स्वागत करता हूँ !
शुरुआत डॉ. राम मनोहर लोहिया जैसे मानवाधिकारों को लेकर इतने संवेदनशील आदमी ! जो 1929 को अपनी पढ़ाई करने के लिए पहले इंग्लैंड में और इंग्लैंड रास नहीं आया तो ! जर्मनी में ! वह भी हिटलर के उदयकाल के दौरान ! डॉ. लोहिया लगभग बीस साल की उम्र में थे ! मतलब एकदम अपने जीवन के महत्वपूर्ण मोड़ पर ! रहते हुए अपनी पी एच डी की पढाई पूरी की है !
1930-33 और हिटलर ने जर्मनी की सत्ता पर आने वाली तारीख है 30 जनवरी 1933 ! लोहिया को जर्मनी में नाझी प्रचार करने के लिए कहा गया था ! लेकिन लोहिया ने कहा कि “कोई भी जर्मनी के बाहर का आदमी वंशश्रेष्ठता का तत्वज्ञान जिसमें है ! वह बात कैसे मान सकता है ? जिस तत्व- ज्ञान में वैश्विकता वा समानता का अभाव हो ! और आप लोग नॉर्डिक वंश को प्रथम स्थान पर मानते हो ! अॅग्लो सॅक्सन दुसरे नंबर पर ! फ्रेंच, इटालियन, स्पॅनिश, लॅटिनोको तिसरे स्थान पर ! और चीनी, जापानियों को , चौथे स्थान पर ! और निग्रो, हिंदु और अन्य वर्ग संकर वाले लोगों को सब से कनिष्ठ मानते हो ! ऐसे नाझी सिद्धांत को कोई भी मानवतावादी आदमी कैसे मान सकता है ?”इसलिये उन्होंने नाझी प्रचार करने के लिए साफ-साफ मना कर दिया था !
1932 के प्रारंभ में उन्होंने अपने अर्थशास्त्र में डाक्टरेट प्राप्त की है ! उनका विषय ‘नमक कानून और सत्याग्रह’ यह प्रबंध जर्मन भाषा में लिखा था ! 1931 के आखिर में प्रोफेसर शुमाखर ने कहा कि “अब तुम जितना जल्द जर्मनी से जा सकते हो तुम चले जाओ” क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि “डॉ. राम मनोहर लोहिया हिटलर के सत्ता में आने के बाद किसी आफत में नहीं फंस जाऐ !” और इसलिए उन्होंने डॉ. राम मनोहर लोहिया के लिये ! परिक्षा की तारीखो में रद्दोबदल कर के ! उनके डाक्टरेट के डिग्री के लिए विशेष रूप से ! उन्हें जल्द से जल्द जर्मनी के बाहर जाने के लिए विशेष प्रावधान किया गया था ! और उनके कारण डॉ. राम मनोहर लोहिया 1933 के शुरू में ही भारत में आ चुके थे !


भारत में हिटलर और मुसोलीनी को आदर्श मानकर जिस संघठन ने 1925 में अपनी निंव डाली थी ! और उन्हीकी तरफसे 30 जनवरी 1948 के दिन, महात्मा गाँधी जी की हत्या की गई थी ! जिसका डॉ. राम मनोहर लोहिया को सबसे ज्यादा भावनिक तथा मानसिक धक्का बैठा था ! एक तरह से वह अपने जीवन में पहली बार अपने आप को अनाथ महसूस किये हैं !
मेरे लिए यह एक अनबुझी पहेली है ! “कि इतने विलक्षण प्रतिभा के धनी, इतने संवेदनशील और सुसंस्कृत जाति-धर्म, लिंग – रंग, अमिर – गरीबी सभी तरह के गैर बराबरी के खिलाफ ! आदमी ने अपने उम्र के 20 – 23 साल के दौरान, हिटलर – मुसोलीनी जैसे फासीस्टो को यूरोपीय देशों में, उभरते हुए देखने के बावजूद ! और उनके वंशश्रेष्ठत्वकि बात की मुखालफत की है ! वह भी जर्मनी में रहते हुए ! बिल्कुल भारत मे डॉ. हेडगेवार, डॉ. बी जे मुंजे, परांजपे, घटाटे जैसे चंद मराठी ब्राम्हणो ने ! 1 अगस्त 1920 को लोकमान्य टिळक की मृत्यू के बाद ! और महात्मा गांधी जैसे सर्वसमावेशी आदमी को, कांग्रेस का नेतृत्व में देखने के बाद ! नागपुर के महाल के मोहीते वाडा में ! एक फासिस्ट संघठन की स्थापना की है ! जिसका नाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है ! और स्थापना से लेकर अब तक, 98 साल के इतिहास में फॅशिस्मो की तर्ज पर ! अल्पसंख्यक समुदायों को घ्रुणा के पात्र बनाकर ! उन्हें दोयम दर्जे के नागरिक बनाने के लिए ! लगातार प्रचार प्रसार करने वाले संघठन का धोका ! डॉ. राम मनोहर लोहिया जैसे प्रतिभाशाली, संवेदनशील नेता के नजर में नहीं आया होगा, यह मेरे लिए एक पहेली है !


हालांकि डॉ. राम मनोहर लोहिया की ‘हिंदु बनाम हिंदु’ नाम की पुस्तक में “पांच हजार वर्ष से कट्टरपंथी हिंदु धर्म और उदारपंथी हिंदु धर्म के इतिहास के क्रम में चले आ रहे संघर्ष का वर्णन” शायद ही कोई और व्यक्ति या समूह ने कीया होगा ! इतना महत्वपूर्ण तथ्य डॉ. राम मनोहर लोहिया ने लिखने के बावजूद ! घोर सांप्रदायिक तथा जातीयवाद के समर्थक, जनसंघ और उसके मातृ संघठन आर. एस. एस. के साथ ! साठ से सत्तर के दशक में भारत में प्रथम बार, गैरकांग्रेसी सिध्दांत के कारण ! जिसका मधु लिमये और जॉर्ज फर्नाडिस ने 1963 के कलकत्ता के सोशलिस्ट पार्टी के, अधिवेशन में विरोध करने के बावजूद ! डॉ. राम मनोहर लोहिया की कौन-सी मजबूरी रही है ? जिस कारण उन्होने जनसंघ जैसे पूंजीवाद के समर्थक, जमींदार, राजेरजवाडो तथा घोर जाति-धर्म के आधार पर, राजनीति करने वाले ! दल के साथ समझौता करने की कोशिश का समर्थन तब भी ! और आज भी कोई लोहिया का अंधभक्त करते हैं ! तो उन्हें मै मनोरुग्ण के अलावा अन्य कुछ भी नहीं कह सकता हूँ !

और वही गलती जयप्रकाश नारायण ने बिहार आंदोलन और उसके बाद जनता पार्टी के गठन के समय आपातकाल जारी था ! और श्रीमती इंदिरा गांधी ने एन जी गोरे और एस एम जोशी को गिरफ्तार नहीं किया था ! इस कारण मै 1976 के अक्तुबर में जेल जाने के पहले तक विदर्भ में इन दोनों नेताओं के साथ घुमना-फिरना का मुझे अनुभव हुआ है ! उस समय और मै पकडे जाने के बाद, एस एम जोशी के साथ लगातार संपर्क में रहा हूँ ! वह अमरावती जेल में मुझसे मिलने के लिए आकर, जनता पार्टी के गठन के बारे मे उन्होने कहा ! तो मैंने कहा कि जनसंघ एक हिंदुत्ववादी घोर सांप्रदायिक और पूंजीवादी, सेठ – साहुकारों तथा राजेरजवाडे और जमींदारों की मुक्त अर्थव्यवस्था की हिमायती पार्टी है ! उसके साथ समाजवादी पार्टी की कौन सी वैचारिक नजदीकी हो सकती है ? चाहो तो चुनावी गठबंधन हो सकता है ! लेकिन एक पार्टी मुझे लगता है कि समाजवादी पार्टी में बहुत ही घाटे में रहेगी ! क्योंकि जनसंघ आर. एस. एस. की राजनीतिक इकाई है ! और जबतक उसका आर. एस. एस. के साथ संबंध बना रहेगा वह समस्त जनता पार्टी को डॉमिनेट करेंगे ! इस लिए व्यवहारिक रूप से जनसंघ के साथ तालमेल करते हुए चुनाव के लिए गठबंधन कर सकते हैं ! लेकिन एक पार्टी बहुत ही आत्मघाती निर्णय होगा ! एस एम जोशी ने कहा कि मै तुम्हें मिलने के पहले, दिल्ली के तिहाड़ जेल में जॉर्ज फर्नाडिस के साथ मिलकर आ रहा हूँ ! और जॉर्ज की भी राय काफी हदतक तुमसे मिलती – जुलती है ! तो मैंने कहा कि जॉर्ज फर्नाडिस पार्टी के अध्यक्ष हैं ! और मेरे से हर तरह से बडे है ! मै जेल में बंद हुआ (1976) तब तेईस साल की उम्र का था ! और एस एम जोशी ने कहा कि “मै दिल्ली से आने के रास्ते में नरसिंहगढ की जेल में मधु लिमये जी से भी मुलाकात कर उनके भी खयाल तुम्हारे और जॉर्ज जैसे ही हैं ! लेकिन जयप्रकाश की जीद है कि” अगर एक पार्टी नही बनी तो ! मैं अपने घर से बाहर चुनाव प्रचार के लिए नहीं निकलनेवाला !”


एस एम जोशी बोले कि अगर जयप्रकाश चुनाव प्रचार में नही आये, तो इंदिरा गाँधी जीत जायेगी ! इस विचित्र स्थिति में जनता पार्टी बनी ! लेकिन मैं इसमें शामिल नहीं हुआ,! मुझे तो महाराष्ट्र जनता पार्टी के महासचिव के पद पर ! बैठाने की योजना को मैंने ठुकराया ! तथा सिटो के बटवारे के समय, अमरावती लोकसभा मतदारसंघ से एस एम जोशी ने मेरे नाम का आग्रह किया ! और आश्चर्य की बात, मुझे जनसंघ के लोगों का सिर्फ समर्थन ही नहीं ! वह मेरे चुनाव के नॉमिनेशन से लेकर, चुनाव का खर्चा उठाने के लिए भी तैयार थे ! लेकिन मुझे जनता पार्टी ही नहीं टोटल वर्तमान संसदीय पद्धती को लेकर ही रिझर्व्हेशन है ! इस विषय पर फिर कभी लिखूंगा !
मधू लिमये तो 1980 के बाद ही निष्क्रिय हो गये थे ! लेकिन जॉर्ज फर्नाडिस ने समता पार्टी का गठन कर के, और उसके पहले संसद में मुरारजी देसाई के तरफसे, धुवाधार बोलकर तुरंत ही कुछ समय बाद जो पलटी मारी ! वह उनके संसदीय राजनीति के पतन की शुरुआत थी ! और उसके बाद एन. डी. ए. के अध्यक्ष बनने के बाद ! ओरीसा के मनोहरपुकुर कंधमाल के !

फादर ग्रॅहम स्टेन्स और उनके दोनों बच्चों को जलाने की घटना को ! क्लीन चिट चिट गुजरात के दंगों का ट्रेलर था ! और गुजरात दंगों को लेकर ! लोकसभा में जॉर्ज फर्नाडिस के तुलना में ! किसी भी बीजेपी या हिंदुत्ववादीयो की हिम्मत नहीं थी ! जितनी जॉर्ज फर्नाडिस ने कहा कि “कौन से दंगों में बलात्कार नहीं हुऐ ?” और खुद रक्षामंत्री पदपर रहने के बावजूद ! नरेंद्र मोदी ने 27 फेब्रुवारी 2002 के दिन ही भारतीय सेना को गुजरात के दंगों को रोकने के लिए पत्र देकर अपनी खानापूर्ति की ! लेकिन तीन दिन तक सेना को अहमदाबाद एअरपोर्ट के बाहर नहीं निकलने दिया ! और इस बात के प्रत्यक्षदर्शियों में हमारे देश के रक्षा मंत्री खुद ही गुजरात में मौजूद थे ! मुझे लगता है कि “अगर जॉर्ज फर्नाडिस आज जीवित होते तो उनके इस गुनाह की सजा अवश्य दी जाने चाहिए थी !” नरेंद्र मोदी दो नंबर पर आते हैं ! और वह साफ-साफ आर एस एस और उसके राजनीतिक इकाई बीजेपी के मुख्यमंत्री थे !

और गुजरात दंगों के कारण ही उनकी चालीस इंच की छाती छप्पन इंची होकर ! उन्होंने प्रधानमंत्री तक का सफर तय किया है ! उसके लिए समय – समय पर जॉर्ज फर्नाडिस, नितिश कुमार, रामविलास पासवान, सत्यपाल मलीक, हरिवंश और भी छोटे मोटे डॉ. राम मनोहर लोहिया के नाम लेने वाले लोगों ने मिलकर ! नरेंद्र मोदी बीजेपी, और सबसे महत्वपूर्ण संघ का काम बढ़ाने के लिए ! विशेष रूप से मदद की है ! शिवसेना में भी साठ के दशक में सब से पहले ! समाजवादी पार्टी के लोग शामिल हुए ! और पहले विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने वाले ! वामनराव महाडिक ने ही इनिंग सुरू की है ! और आज भी दोनों तीनों शिवसेना के प्रमुख नेता ठाकरे छोड़ कर ! समाजवादी पार्टी के पुराने मित्र हैं ! भारत की राजनीति में जो लोग सिधे – सिधे हिंदुत्व का कार्ड लेकर काम कर रहे हैं ! वह गलत होंगे ! लेकिन खुलकर सांप्रदायिक राजनीति कर रहे हैं !

लेकिन समाजवादी जॉर्ज फर्नाडिस से लेकर, गली मुहल्ले तक, जो लोग आज सांप्रदायिक राजनीति में हावी है ! उनमें समाजवादी लोगों के शामिल होने की बात ! डॉ. राम मनोहर लोहिया के पचपन वे पुण्यस्मरण, 12 अक्तूबर 2022 के दिन अंतर्मुख होकर सोचने की बात है !
क्योंकि आजकल नफरत छोडो – भारत जोडो के अभियान में, उनमें से कुछ लोगों को देखकर मुझे हैरानी हो रही है ! आज 98 सालों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, लगातार नफरत फैलाने का प्रचार प्रसार अपनी शाखाओं में खेल, गाना, बौद्धिक तथा रोजमर्रे के व्यवहार में कदम कदम पर किए जा रहे हैं ! और वर्तमान कांग्रेस के सर्वोच्च नेता ने, उनके ही दल के एक वरिष्ठ नेता को बाकायदा अपने कमरे में बुलाकर कहा “कि आप गाहे-बगाहे संघकी आलोचना क्यों करते हो ? तो उस नेता ने पुछा की क्यो राहूलबाबा ? तो राहूलबाबा ने जवाब दिया कि संघ देशभक्तों का संघठन है !” कांग्रेस की स्थापना के समय से ही पंडित मदन मोहन मालवीय हो या लाला लाजपत राय, गोविंद वल्लभ पंत या पंडित कमलापति त्रिपाठी या उमाशंकर दिक्षित या नरसिंह राव ! और दर्जनों नेता संघी मानसिकता के शिकार हैं ! आपातकाल में संसद के डिबेट में हिस्सा लेते हुए समाजवादी पार्टी के राज्यसभा के सदस्य श्री एन जी गोरे का अप्रकाशित भाषण है ! सेंसरशिप के कारण ! जिसे हम लोगों ने सायक्लोस्टाईल करके बाटने की कोशिश की है ! उसमें संघ की बंदी के बारे में ! गोरे साहब ने श्रीमती गांधी को पुछा है ! “कि नागपुर से चलने वाले संघ पर तो आपने पाबंदी लगा दी है ! लेकिन आपके साथ बैठें हुए कमलापति, उमाशंकर, और सामने वाले बेंचपर बैठे हुए कितने लोग भी संघी मानसिकता के है ! उनका क्या करोगे ?” और यही कारण है कि 2002 के गुजरात के दंगों के बाद कांग्रेस दस साल सत्ता में वापसी की थी ! उसने गुजरात दंगों के तफ्तीश के नाम पर लिपापोती की है ! नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट देने वाले ! रघुरामन गुजरात के टाटा समूह के, नानो प्रोजेक्ट के पेड सलाहकार रहते हुए ! उन्हें एस आय टी का प्रमुख बनाने की वजह क्या है ? आज वह सायप्रस में एंबेसेडर है ! नरेंद्र मोदी के खिलाफ कार्रवाई करने की जगह, उन्हें बेस्ट मुख्यमंत्री का राजीव गांधी पुरस्कार से सम्मानित किया गया ! और हमेशा ही अल्पसंख्यक समुदायों के तरफसे खड़े रहने की जगह ! तथाकथित बहुसंख्यक आबादी के नाराज होने के डर से, अल्पसंख्यक समुदाय को जल्लादो के हवाले कर दिया गया ! और जिस कारण 2014 में बीजेपी सत्ता में आने के बाद ! नब्बे साल पहले जर्मनी के तर्ज पर, मॉब लिंचिग में शेकडो अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों को जान से मारने की कार्यवाही हुईं हैं ! तब एक भी उदाहरण नहीं हैं ! जिसमें कोई नफरत छोडो – भारत जोडो वाले दौड़कर गया होगा ! एक तरह से अल्पसंख्यक समुदायों को बेसहारा छोड़ दिया गया है ! उत्तर प्रदेश के अंदर जिस तरह से पुलिस मामुली सी बातों पर बुलडोजर चलाने से लेकर, उठा कर जेल ले जाते हैं ! तो उन्हें रोकने के लिए कौन जा रहा है ? मेरी समझ से तो संसदीय राजनीति के चक्कर में ! बहुसंख्यक आबादी को नाराज करने के डर से ! अल्पसंख्यक समुदायों को बेसहारा छोड़ दिया है ! एक तरह से संघ के सौ साल के धार्मिक ध्रुवीकरण के कारण ! आज सभी संसदीय राजनीति के क्षेत्र के, फिर वह कम्युनिस्ट पार्टी के हो ! या समाजवादी पार्टी के !

और कांग्रेस की 137 साल की यात्रा में 1915 से 1948, 33 साल का, महात्मा गाँधी जी के समय को छोड़कर ! सभी दौर पॉप्युलर पॉलिटिक्स का होने के कारण ! उनके विश्वसनीयता पर बहुत बड़ा प्रश्न है ! उनकी आपसी लड़ाई में वह और मट्टि पलित कर ले रहे हैं ! और हमारे साथियों को आज अचानक नफरत छोडो – भारत जोडो की याद आई है ! 24 अक्तूबर 1989 को भागलपुर दंगे के बाद से, मै लगातार बत्तीस साल से अधिक समय से कह रहा हूँ “कि भारतीय राजनीति का आनेवाले पचास साल की राजनीति सिर्फ और सिर्फ सांप्रदायिकता के इर्द-गिर्द ही रहेगी ! लेकिन किसी को बांध के विरोध में तो किसी को अपने मजदूरों की युनियनो से, समय नहीं मिल रहा था ! और उसी आंदोलन के लोग आराम से हिंदु – मुसलमानो में बट गऐ ! वहीं हाल तथाकथित संघटित मजदुर आंदोलन, तथा हमारे अपने घर – परिवारों में सांप्रदायिकताका जहर फैल चुका है ! एक प्रतिकात्मक नफरत छोडो – भारत जोडो से क्या होगा ?

1985-86 के दौरान बाबा आमटे ने पहले कन्याकुमारी से कश्मीर ! और दुसरी ऐझवाल से ओखा ! ऐसी संपूर्ण भारत को क्रॉस करने वाली साईकिल यात्रा ! शेकडो युवाओं को लेकर की थी ! और वहीसे सवाल आस्था का है ! कानून का नही है ! जैसे नारे पहले शाहबानो के खिलाफ, मुस्लिम समुदाय के कुछ कट्टरपंथी लोगों ने शुरूआत की थी ! और उसी नारे को कट्टरपंथी हिंदुत्ववादीयो ने, हाईजेक करते हुए रथयात्राओ के द्वारा, मंदिर वहीं बनाएंगे और सवाल आस्था का है कानून का नही ! जैसे नारे देते हुए भागलपुर, गुजरात के दंगों की राजनीति करते हुए ! आजादी के पचहत्तर साल के भीतर हमारे संविधान की ऐसी तैसी करते हुए ! सत्ता में आने वाली घटना समस्त आजादी के आंदोलन से निकले हुए मुल्यो का अपमान है ! हिटलर भी 30 जनवरी 1933 के दिन चुनाव के माध्यम से ही सत्ता पर काबिज किया था ! और वर्तमान भारत की सरकार पहली बार 2014 और दोबारा भी 2019 के चुनाव में खुलकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने के बाद ही सत्ता में आई है !
अभी ताजा गुजरात में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने बीस साल के बाद ! पहली बार सिधा दंगों का महिमामंडन करते हुए ! दंगों में शामिल लोगों को टिकट देकर ! विक्रमी बहुमत से चुनकर आये हैं ! जिसका जिता जागता उदाहरण भोपाल से प्रज्ञा सिंह ठाकुर 2019 के लोकसभा चुनाव से लेकर ! कर्नाटक के शिमोगा में ! तथाकथित किसी हिंदू संगठन के कार्यक्रम में ! खुलेआम बोली है कि “हिंदूओ ने अपने घरों में धारदार हथियार रखने चाहिए !” तथा भोपाल में चुनाव में नाथूराम गोडसे का महिमामंडन किया है ! हेटस्पिच के बील पारित करके ! सिर्फ अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने वाले सरकारों को ! अमित शाह का गुजरात दंगों को चिरशांती के लिए उपाय बताना ! क्या प्रज्ञा के 25 दिसंबर को शिमोगा के भाषण को देश में शांति – सद्भावना के दूत के रूप देखा जा रहा है ?


और सबसे हैरानी की बात ! उनके साथ कभी किसी कारण से ! आप इतने नजदीक आ गये हो ! कि उनमेसे कुछ लोगों को याद करते हुए देखकर ! मै हैरान-परेशान हो रहा हूँ ! जीवन के सफर में अपने जीवन में कई तरह के लोग आते है और जाते है ! हमारे भी जीवन में जयप्रकाश आंदोलन के दौरान ! कुछ जनसंघ के और संघ के लोग आए हैं ! पर आज मै उन्हें याद करके प्रतिष्ठित करने की गलती जाने अनजाने में करता हूँ ! यह बात हम भूल जाते हैं ! व्यक्तिगत मैत्री अपनी जगह पर होनी चाहिए ! किसी के रिश्तेदारों में भी अलग – अलग राजनीतिक दलों के लोग होते हैं ! रिश्तों को आप चुन नही सकते वह एक जैविक अपघात है !
जॉर्ज फर्नाडिस ने तो अपने खुद की राजनीतिक आत्महत्या कर ली ! लेकिन एन. डी. ए. के अध्यक्ष के नाते ! संघ के बौद्धिक प्रमुख जैसा ! गुजरात के दंगों से लेकर, ओरिसा के मनोहरपुकुर में फादर ग्रॅहम स्टेन्स और उनके दोनों बच्चों की जलाने की घटना को जायज ठहराने के तर्क देते हुए देखा गया है ! और उन्हें याद करते हुए वह कितने सेक्युलर थे ? यह महिमामंडन उनके इतने बौद्धिक पतन के बावजूद भी ! कुछ लोग करते हुए देखकर बहुत पीड़ा होती है ! संघ के लोग बचपन से ही सांप्रदायिकता के जहर को घुट्टी में पीकर बडे होते है ! लेकिन हमारे समाजवादी साथियों को क्या हो गया है ? ‘हिंदू बनाम हिंदु’ में डाॅ. राम मनोहर लोहियाजी ने लिखा है ! “कि कट्टरपंथी हिंदु और उदारपंथी हिंदु धर्ममेकी पांच हजार वर्ष पुरानी लड़ाई जारी है ! और कभी उदार पंथ का पलड़ा भारी हो जाता है ! तो कभी कट्टरपंथी भारी हो जाते हैं !” तो आजकल कट्टरपंथी भारी हो गए हैं ! और उन कट्टरपंथी लोगों को ! आज साथ देने के काम में ! सेक्युलर और जनतांत्रिक समाजवाद का मंत्र जपने वाले लोगों को देखते हुए मुझे हैरानी हो रही है !
डॉ. राम मनोहर लोहियाजी ने गैरकांग्रेसी बुखार में रहते हुए, यहीं गलती की है ! आज संघ और उसके राजनीतिक इकाई बीजेपी के अच्छे दिन आने के लिए ! हमारे अपने लोगों के बौद्धिक दिवालिया पन के कारण आज उन्होंने यह मुकाम हासिल किया है ! इसलिए जबतक हमारा अपना घर दुरुस्त नही होता ! तब तक दुसरों की बुराई करने की कवायद करना शुद्ध पाखंड होगा !
डॉ सुरेश खैरनार,27 दिसंबर, 2022, नागपुर

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