अमित शाह के एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते ही उत्तर प्रदेश के नए अध्यक्ष और आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा के संभावित चेहरे को लेकर चर्चाएं तेज हो गईं हैं. कभी पिछड़ा प्रदेश अध्यक्ष बन रहा है तो कभी दलित. कभी पिछड़ा चेहरा मुख्यमंत्री के तौर पर पेश हो रहा है तो कभी राजपूत, तो कभी ब्राह्मण. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के रूप में डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेयी, धर्मपाल सिंह और स्वतंत्र देव सिंह का नाम चर्चा में है तो कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह और वरुण गांधी का नाम भावी मुख्यमंत्री के लिए हो रही बहस में शामिल है.
यह सही है कि दिल्ली और बिहार के विधानसभा चुनावों में पार्टी की दुर्गति को देखते हुए भाजपा आलाकमान ऊहापोह की स्थिति में तो है ही. साथ ही उत्तर प्रदेश में भाजपा न तो दिल्ली जैसा प्रयोग कर सकती है और न बिहार वाला प्रयोग दोहरा सकती है. बाहर से लीडर लाकर थोपने से क्या दशा होती है, यह पार्टी दिल्ली में देख चुकी है.मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं कर चुनाव लड़ने का नतीजा क्या होता है पार्टी बिहार में इसे भोग चुकी है. लिहाजा, ये दोनों प्रयोग इस बार उत्तर प्रदेश में नहीं होंगे.
ये बात पार्टी के वरिष्ठ नेता-कार्यकर्ता भी मानते हैं. यही वजह है कि स्मृति इरानी का नाम तो चला, लेकिन चेहरा बनाने के नाम पर पार्टी ने किनारा कर लिया और स्मृति से ही कहलवा दिया कि उनकी सक्रियता केवल अमेठी संसदीय क्षेत्र तक सीमित है. वे तो उत्तर प्रदेश की हैं भी नहीं, इसलिए ऐसे कयासों की कोई ठोस जमीन नहीं है. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व राजस्थान के मौजूदा राज्यपाल कल्याण सिंह के नाम की चर्चा अचानक उनके जन्मदिन के बाद परवान चढ़ गई. कल्याण सिंह को अगर उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा का चेहरा बनाने के बारे में सोचा गया तो धर्मपाल सिंह का प्रदेश अध्यक्ष बनना असंभव होगा.
धर्मपाल सिंह भी लोध हैं और कल्याण सिंह भी लोध हैं. अध्यक्ष और मुख्यमंत्री के तौर पर पेश होने वाले दोनों चुनावी चेहरे एक ही जाति के नहीं होंगे. अगर भाजपा आलाकमान ने राजनाथ सिंह को चुनावी चेहरा बनाने का निर्णय लिया तो धर्मपाल सिंह प्रदेश अध्यक्ष बन सकते हैं. यानी, अब जो भी प्रदेश अध्यक्ष चुना जाएगा, उसी आधार पर चुनावी चेहरे के बारे में आंकलन हो जाएगा.
जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव का समय नजदीक आता जा रहा है, वैसे-वैसे पार्टी नेतृत्व को यह समझ में आ रहा है कि अगर पार्टी का चेहरा मजबूत नहीं हुआ तो यूपी भी हाथ से निकल जाएगा, और अगर यूपी हाथ से निकला तो पार्टी के ताकतवर होने की सारी संभावनाएं चौपट हो जाएंगी. दिल्ली और बिहार के परिणाम के बाद भाजपा नेतृत्व चुनावी-चेहरे पर कोई जोखिम उठाने के लिए तैयार नहीं है. खास तौर पर बिहार चुनाव के बाद पार्टी के भीतर यह मांग पुरजोर उठी है कि उत्तर प्रदेश में चुनाव में उतरने के पहले पार्टी नेतृत्व स्थानीय और दमदार मुख्यमंत्री के चेहरे की घोषणा करे.
लिहाजा, इस बात की संभावना बन रही है कि राजनाथ सिंह को दिल्ली छोड़ कर उत्तर प्रदेश के चुनाव में बीड़ा संभालने के लिए कहा जाए. सबको याद है कि नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तावित करने का जोखिम भी राजनाथ सिंह ने ही उठाया था. चुनावी चेहरे के रूप में वरुण गांधी के नाम की भी चर्चा है. वरुण की हाल ही में राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से हुई मुलाकात से भी इस चर्चा को बल मिला है.
पार्टी का एक बड़ा खेमा डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेयी को प्रदेश अध्यक्ष के रूप में नियमित रखने की मांग पर डटा हुआ है. इस खेमे में ब्राह्मणों के अलावा राजपूत और अन्य जातियों के नेता भी शामिल हैं. उनका कहना है कि अगर किसी गैर ब्राह्मण नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया तो ब्राह्मण समुदाय के लोग खिसक कर बसपा की तरफ चले जाएंगे. बसपा पहले से ही ब्राह्मणों के स्वागत के लिए माला लिए तैयार बैठी है.
उल्लेखनीय है कि डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेयी मई 2012 में उत्तर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष उस वक्त बने थे, जब विधानसभा चुनाव हारने के बाद सूर्य प्रताप शाही ने प्रदेश अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया था. दिसंबर, 2012 में बाजपेयी बाकायदा प्रदेश अध्यक्ष चुने गए थे. बाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा ने नगर निगम चुनावों में बेहतर प्रदर्शन किया. उपचुनावों में हार मिली, तो लोकसभा में भाजपा ने रिकॉर्डतोड़ प्रदर्शन किया, लेकिन पंचायत चुनावों में पार्टी की हालत फिर खराब हो गई. पार्टी में दो बार अध्यक्ष होने की परंपरा चल रही है.
कल्याण सिंह को चुनावी चेहरा बनाए जाने की चर्चा पांच जनवरी को लखनऊ में मनाए गए उनके जन्मदिवस समारोह में खूब परवान चढ़ी. एक खेमा उसी समय से पुरजोर तरीके से इस चर्चा में लगा है कि कल्याण के नेतृत्व में ही पार्टी इस बार विधानसभा चुनाव लड़े. राम मंदिर प्रकरण में कल्याण सिंह का नाम केंद्र में रहा है, भाजपा नेतृत्व कल्याण की उस छवि और लोध समुदाय के लोगों पर उनकी पकड़ का फायदा उठाने के बारे में सोच सकता है. कल्याण ने भी इस चर्चा में अपने द्वइर्थी वक्तव्यों से दम भर दिया. कल्याण ने कहा कि जो पार्टी का फैसला होगा, वही उनका भी फैसला होगा.
उन्होंने जुमला उछाला, पार्टी चॉयस इज माइ चॉयस. कल्याण बोले कि हमेशा से पार्टी ने उनकी भूमिका तय की है. आगे भी पार्टी जो रोल उन्हें देगी, वह उनके लिए सर्वोपरि होगा. उन्होंने इससे भी इन्कार किया कि भाजपा में उपयुक्त चेहरे का कोई संकट है. उन्होंने कहा कि प्रदेश में पार्टी के पास एक से बढ़कर एक चेहरे हैं, लेकिन किसी का नाम नहीं लिया. भाजपा के महामंत्री सुनील बंसल और कल्याण सिंह के बीच हुई घंटे भर की गुफ्तगू के कारण भी कल्याण सिंह को लेकर चर्चा तेज हुई.
बंसल और कल्याण के बीच एकांत में लगभग घंटे भर बातचीत हुई थी, बाद में भाजपा के प्रदेश चुनाव अधिकारी डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय ने भी कल्याण से मुलाकात की. इस वजह से पार्टी नेताओं को यह लग रहा है कि अंदर ही अंदर कोई खिचड़ी पक रही है. भाजपा के वरिष्ठ नेता लालजी टंडन ने भी कल्याण से मुलाकात करके इस चर्चा को और हवा दे दी. कल्याण के जन्मदिन पर खूब नारे
गूंजे-यूपी का नेता कैसा हो, कल्याण सिंह जैसा हो. केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेयी, वरिष्ठ नेता लालजी टंडन, विनय कटियार जैसे बड़े नेता बधाई देने पहुंचें तो चर्चा का गर्म होना स्वाभाविक है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह जैसे तमाम नेताओं ने उन्हें फोन पर बधाई देकर सियासी माहौल गर्मा दिया. कल्याण भी उत्साह में आ गए और ऐलान ही कर दिया कि 2017 में यूपी में सपा और बसपा की सरकार नहीं बनने वाली. यह भी कह दिया कि यूपी का अगला मुख्यमंत्री भाजपा का ही होगा.
वरिष्ठ राजनीतिक समीक्षक यह भी मानते हैं कि कल्याण सिंह के जन्मदिवस समारोह को बड़े ही नियोजित तरीके से पॉलिटिकल हाइप दी गई. इरादा ही था कि कल्याण सिंह के नाम को लेकर प्रदेश में सरगर्मियां पैदा हों. इसके पीछे पार्टी नेतृत्व की मंशा क्या थी, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन प्रदेश भाजपा के एक कद्दावर नेता ने कहा कि इसके पीछे की मंशा अगर राजनाथ सिंह को काटने की थी, तो शायद पार्टी इस बार के चुनाव में भी अपना नुकसान करने का ही रास्ता प्रशस्त कर रही है. कल्याण सिंह की उम्र, गिरते स्वास्थ्य और क्षीर्ण होती स्मरणशक्ति के बारे में पार्टी आलाकमान को अच्छी तरह पता है.
पार्टी के लोग ही कहते हैं कि स्मरण शक्ति खोने वाले नेताओं में पहला नाम अटल जी का, दूसरा नाम नारायण दत्त तिवारी का, तीसरा नाम कल्याण का और चौथा नाम मुलायम सिंह यादव का है. जन्मदिवस समारोह में जिन लोगों ने कल्याण को नजदीक से देखा, वे सब कल्याण की ऐसी ही स्थिति की तस्दीक करते हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पार्टी कल्याण के नाम का इस्तेमाल कर सकती है, क्योंकि राम मंदिर का मसला उछालने के पीछे पार्टी की यही इच्छा रही है कि बाबरी मस्जिद विध्वंस को लेकर केंद्र में रहे कल्याण का नाम वोटों के ध्रुवीकरण में काम आ जाए.
चर्चा में राजनाथ और दिनेश भी पीछे नहीं…
कल्याण सिंह को लेकर चल रही चर्चाओं के बावजूद केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह का नाम कहीं हल्का नहीं है. केंद्र की राजनीति में अहम रोल अदा कर रहे राजनाथ सिंह को केवल चुनाव तक यूपी में उतारने और चुनाव बाद फिर केंद्र में वापस बुला लेने के नाम पर मनाया जा सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लखनऊ यात्रा में हर जगह राजनाथ सिंह की प्रभावी मौजूदगी और पिछले दिनों हुई मोदी-राजनाथ वार्ता के गहरे निहितार्थ हैं.
इससे चर्चा भी बढ़ी कि उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में उतरने के लिए भाजपा का चेहरा कहीं राजनाथ सिंह ही तो नहीं हो रहे! लखनऊ के मेयर और साफ-सुथरी छवि के दिनेश शर्मा का भी नाम चर्चाओं में है. दिनेश शर्मा ब्राह्मण चेहरा भी हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चहेते भी हैं. उन्हें अभी कुछ ही अर्सा पहले पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और गुजरात का प्रभारी बनाया गया था. दिनेश शर्मा को आगे करने से भी ब्राह्मणों की नाराजगी कम हो सकती है.
राम का नाम लेकर चुनाव में उतरेगीं सपा और भाजपा
उत्तर प्रदेश में आने वाला विधानसभा चुनाव राम के नाम पर होगा. राम का नाम लेकर ही भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी चुनाव में उतरेगी. यह अभी से सामने आने लगा है. भाजपा ने चुनाव के काफी पहले से ही राम मंदिर की चर्चा शुरू कर दी है. मंदिर के लिए पत्थर मंगाने और तराशने की बातें फैला कर भाजपा ने राजनीति तराशने का काम पहले ही शुरू कर दिया है. लिहाजा, समाजवादी पार्टी ने भी राम का नाम लेना शुरू कर दिया है. सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने तभी यह कहा कि राम मंदिर समर्थकों पर गोली चलवाने का उन्हें अफसोस तो है, लेकिन बाबरी मस्जिद बचाने के लिए गोलियां चलवाना उचित था.
मुलायम ने ऐसा कह कर एक बार फिर मुस्लिम समुदाय के लोगों के मन में बाबरी मस्जिद विध्वंस और मुलायम द्वारा गोली चलवाए जाने की घटना की याद ताजा कर दी. बहुत संभव है कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में एक तरफ कल्याण सिंह की अगुवाई में राम मंदिर बनवाने वाले खड़े हों तो दूसरी तरफ मुलायम के नेतृत्व में बाबरी मस्जिद विध्वंस की चोट खाए मुसलमान फिर से एकजुट हो जाएं. कल्याण सिंह के जन्मदिन को लेकर फैलाई गई सियासी हवाबाजी के पीछे भाजपा नेतृत्व का यह इरादा भी हो सकता है.
जाति का फैक्टर भी पार्टी आलाकमान के विचार में है. वोटों के धार्मिक ध्रुवीकरण के अलावा जातीय ध्रुवीकरण को लेकर भी पार्टी कल्याण के नाम का इस्तेमाल कर सकती है. कल्याण सिंह पिछड़े वर्ग के साथ-साथ हिंदूवादी चेहरा भी हैं. लोध बिरादरी प्रदेश के तकरीबन 60 विधानसभा क्षेत्रों में ठोस स्थिति में है और इस समुदाय पर कल्याण की मजबूत पकड़ है. लोध के रिश्ते निषादों में होने के कारण प्रभाव दोधारी हो सकता है.