आपका एन डी टी.वी पर महात्मा गांधी को लेकर जो इंटरव्यू मैंने देखा, तभी सोच लिया था कि जिस तरह आप चुनाव प्रचार में बोल रहे हैं ! यह भी उसी तरह की बात है ! और कोई जरूरत नहीं है, कि आपकी हर टिप्पणी पर कुछ प्रतिक्रिया देनी चाहिए ! इसलिए मैंने पूरा मन बना लिया था कि आपको इग्नोर ही करेंगे ! लेकिन ग्वालियर की आईटीएम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आलोक वाजपेयी का सुबह फोन आया ! और उन्होंने कहा कि “आप ने इस विषय पर रोशनी डालनी चाहिए ! क्योंकि इस देश में एक वर्ग है जो नरेंद्र मोदी के कहने पर विश्वास रखते हैं ! और मुख्यतः नई पीढ़ी को वास्तविकता क्या है ? यह पता होना चाहिए इसलिए आपको लिखने की आवश्यकता है !”
तो एक तरह से यह पोस्ट लिखने का श्रेय प्रोफेसर अलोक वाजपेयीजी को ही जाता है !
1982 में पडदे पर आई हुई रिचर्ड एटंनबरो की गांधी फिल्म मुखतः एक अमेरिकी पत्रकार लुई फिशर जो अमेरिका के फिलाडेल्फिया में 1896 में जन्मे, शुरू में शिक्षक और बाद में पत्रकार ‘न्यूयार्क इव्हिनिंग पोस्ट’ ने 1921 में दुसरे महायुद्ध की शुरुआत हो चुकी थी! तो उन्हें जर्मनी भेज दिया था ! उसके बाद उन्होंने ‘द नेशन’ नाम के अखबार में काम किया ! और पच्चीस साल युरोपीय देशों में, और एशियाई देशों में ! वह दुसरे महायुद्ध के शुरू होने के समय फ्रांस में थे ! उसी दौरान उन्होंने पॅरिस और लंदन के बीच काफी चक्कर काटें है ! युद्ध के बाद भारत के साथ ही लगभग पूरी दुनिया में ही उन्होंने आना-जाना किया है ! ‘मेन एण्ड पॉलिटिक्स’ इस किताब से वह बहुत मशहूर हुए हैं ! और उसके बाद महात्मा गाँधी के चरित्र ‘MAHATMA GANDHI : HIS LIFE AND TIMES’ – LOUIS FISCHER. 750 पन्नों का उन्होंने 1950 में लिखकर पूरी की है ! ! जिसके ऊपर यह फिल्म बनाई गई है !
इसके पीछे की कहानी यह है कि अक्तुबर 1961 में मोतीलाल कोठारी और लॉर्ड मांऊटबॅटन ने लुई फिशर के साथ संपर्क किया ! और कहा कि “आपकी गांधी के उपर लिखि किताब पर एक फिल्म बननी चाहिए ! तो लुई फिशर खुशी से तैयार होकर बोले कि ” मैं यह किताब फिल्म के लिए मुफ्त में देना चाहता हूँ !” 1962 में मोतीलाल कोठारी ने रिचर्ड एटंनबरो को पुछा की आप यह फिल्म बनाने के लिए तैयार हो ? तो वह खुशी-खुशी तैयार हो गए ! और उन्होंने तत्काल लॉर्ड मांऊटबॅटन को विनती की कि वह जवाहरलाल नेहरू के साथ इस प्रोजेक्ट को लेकर बात करें तो अच्छा होगा ! तो जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि यह फिल्म सचमुच ही महात्मा गाँधी जी को लेकर बहुत ही एकाग्रता से बननी चाहिए !
एटंनबरो 1963 में भारत में इस फिल्म के तैयारी के लिए आए ! और जवाहरलाल नेहरू के साथ काफी विस्तार से बातचीत हुई ! और नेहरू ने फिर से एटंनबरो को आगाह किया कि ” इस फिल्म में गांधी जी को पौराणिक कथाओं के पात्रों के जैसे बढ़ा-चढ़ाकर मत पेश किजिए ! महात्मा गाँधी के मानवतावादी दृष्टिकोण को लेकर बनाने की कोशिश किजिये !”
जवाहरलाल नेहरू ने इस प्रोजेक्ट को पूरा सपोर्ट देने का अभिवचन दिया ! और आगे की सरकारों ने भी जिसमें श्रीमती इंदिरा गाँधी जब 1980 में दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद, उन्होंने इस फिल्म को नॅशनल फिल्म डेव्हलपमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (NFDC) को प्रड्यूसर के रूप में रखा ! और भारत सरकारने 22 करोड रुपये की आर्थिक मदद की है ! और बीस साल के जद्दोजहद के बाद यह फिल्म 1982 में पडदे पर आई ! और यह फिल्म मोतीलाल कोठारी और जवाहरलाल नेहरू के बारे में शुरू में ही पडदे पर हेडलाईन आती है कि “WITHOUT WHOSE INSPIRATION, UNFAILING ADVOCACY AND FAITH IT WOULD NEVER HAVE BEEN MADE ”
और सबसे हैरानी की बात जिन मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला ने खुद को “महात्मा गांधी के कदमों पर हम चल रहे हैं !” यह कहा होने के बावजूद, नरेंद्र मोदीजी आप उनके साथ गांधी जी की तुलना कर रहे हो ?
आइनस्टाइनने गांधी की हत्या के बाद कहा कि “यह एक हाड़मांस का कोई महात्मा गाँधी इस दुनिया में होकर गया था ! यह विश्वास हमारे नई पीढ़ी को नहीं होगा ! और सबसे बड़ी बात उनका चरित्र सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका के फादर डोक ने उनके उम्र के तीस सालों के भीतर ही लिखा है और वह कॉपी टॉलस्टॉय के पास पहुंचने के बाद टॉलस्टॉय और गांधी का पत्राचार हुआ है और उस समय वह सिर्फ बैरिस्टर एम के गांधी ही थे यह महात्मा गाँधी होने के बहुत ही पहले की बात है वैसे ही रोमा रोला ने भी गांधीजी की जीवनी लिखि है और उसिको पढकर मीराबेन एक अंग्रेज एडमिरल की बेटी अपने जीवन के सभी ऐश्वर्य का त्याग करके गांधी के साथ शामिल हो गई थी ! और दक्षिण अफ्रीका के दोनों आश्रम ( फिनिक्स और टॉलस्टॉय ) 1915 के पहले विश्व के विभिन्न देशों के आश्रमवासी थे कोई कॅलनबाथ जर्मन था तो कोई श्लेशिन पोलिश जू तो कोई ब्रुस एंड्रयूज ब्रिटिश क्वेकर और भारत के विभिन्न प्रांतों के लोगों के साथ ही उनके सार्वजनिक क्षेत्र की शुरुआत हुई हैं ! और यह सभी आश्रमवासी शरीरश्रम में पाखाना साफ-सफाई से लेकर खेती तथा छपाई करने से लेकर खाना बनाने से लेकर बच्चों को पढ़ाने के लिए सतत तैयार रहते थे !
कम-से-कम आपको अगर किसी महत्वपूर्ण विषय पर बोलते हुए कुछ तो होमवर्क करके बोलना चाहिए ना ? आप 140 करोड़ आबादी के विश्व के लोकतांत्रिक देश के प्रधानमंत्री हो ! आपके पास सूचना प्राप्त करने के लिए कौन सी सुविधाओं की कमी है ? शेकडो लोग आपकी सुरक्षा व्यवस्था से लेकर, आपके खान-पान तथा कपड़े, बालों की बनावट से लेकर, हर बात के लिए आपको सुविधाओं के रहते हुए, भाषणों में सिकंदर से लेकर जिलों की राजधानियों की बात करते हो ?
तो आपने इस इंटरव्यू में कहा कि “मैं पूरी दुनिया में गया हूँ, और मैंने देखा कि महात्मा गाँधी के बारे में कोई जानकारी नहीं है !” दुनिया को बहुत अच्छी तरह से जानकारी है ! एक आप ही हो जिसे गलत जानकारियां है ! और इसकी वजह आप बचपन से ही, जिस रेजिमेंटेड ( राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में जाने की वजह से !) संघठन में गए हो ! यह उसके कारण है ! संघ की शाखा में बच्चों को गांधीजी से लेकर जवाहरलाल नेहरू के बारे में क्या कहा जाता है ? मैं खुद बचपन में संघ में थोड़ा समय के लिए गया हूँ ! इस लिए अपने अनुभव से ही लिख रहा हूँ ! कि संघ की शाखा में बचपन से ही गाँधी – नेहरू के बारे में जहरीला प्रचार- प्रसार किया जाता है ! और इसिलिये नथूराम गोडसे तैयार हुआ है ! और आप भी अपने ताजा – ताजा चुनाव प्रचार के भाषणों को पुनः दोबारा देख लिजिए ! की 140 करोड़ आबादी के देश के प्रधानमंत्री को इस तरह के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने के भाषण करना! हमारे चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन है ! लेकिन संपूर्ण चुनाव आयोग को ही आपने न्यायालय से लेकर मिडिया, ईडी, सीबीआई, आईबी, पार्लियामेंट सभी संविधानिक संस्थान आपने अपने दल की ईकाई में तब्दील कर के रख दिया है ! तो महात्मा गाँधी की क्या स्थिति रही ?
इस परिप्रेक्ष्य में नरेंद्र मोदीजी आप दस सालों से सत्ता में आने के बाद महात्मा गाँधी जी के बारे में क्या किए हैं ? सिर्फ स्वच्छ मिशन के नाम पर उनके हाथों में झाड़ू देकर ! और कहा- कहा सिर्फ उनके चष्मे के चित्र छोड़कर, और कौन-सा गांधी प्रोजेक्ट किया है ? उल्टा आपके के दल के संसद सदस्यों से लेकर, कई नेताओं ने गोडसे को महिमामंडित करने के, और कहा – कहा तो उसके मंदिर तक, बनाने के उदाहरण सामने आए हैं ! और एक बार भी नरेंद्र मोदीजी आपने उन्हें रोकने के लिए कोई कदम उठाने की जहमत नही उठाई ! और अब बोल रहे हो कि सत्तर साल में गांधी को मार्केटिंग करने के लिए कोई कोशिश नहीं की गई !
गांधी के मार्केटिंग की बात बोलने वाले आदमी की नियत क्या है ? जिस आदमी की जिंदगी बाजारीकरण के खिलाफ रही हो ! उसे नरेंद्र मोदी आप मार्केटिंग करने की वकालत कर रहे हो ? अरे भाई दस सालों में आपको खुद को ही मार्केटिंग करने से फुर्सत नहीं है ! जिसमें कोरोना जैसे महामारी में भी आपने लाखो लोगों के शवों के उपरांत अपने आप को मार्केटिंग करना नही छोडा ! बाकी अन्य क्षेत्रों की तो बात ही अलग है !
महात्मा गाँधी आज विश्व के 125 देशों के विश्वविद्यालयों में पढाए जा रहे हैं ! और लगभग उतने ही देशों में उनकी मूर्तियां लगी हुई है ! जिसमें चीन और पाकिस्तान भी है ! और विश्व के कितने देशों में जब हम जाते हैं ! और लोग पुछते है कि “कहां से आए हो ?” और हम कहते हैं कि “भारत से” तो वह कहते हैं कि “गांधीज कंट्री ?”
और आखिरी बात आपके पहले भी एक संघ स्वयंसेवक इस देश के प्रधानमंत्री पदपर विराजमान थे ! और वह उसके पहले 1977 में जनता पार्टी की सरकार में विदेश मंत्री थे ! तब की मेरी उनसे व्यक्तिगत बात के हवाले से, मै यह लिख रहा हूँ ! कि वह हमारे संघठन छात्र युवा संघर्ष वाहीनी के सरसेनापती जयप्रकाश नारायण को मिलने के लिए, दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में आए थे ! और बातचीत के बाद वह जाने लगे, तो जयप्रकाशजीने मुझे कहा कि “इन्हें इनके गाड़ी तक छोड़कर आओ !” तो मैंने उन्हें पुछा था कि “अटलजी आप विदेश मंत्री हो, और कई देशों में आपको जाना पड रहा है ! तो आपको कैसा लगता है ?” तो उन्होंने कहा कि “अरे भाई हम तो भारत के विदेश मंत्री के रूप में जाते हैं ! लेकिन जादातर देशों में तो आप गांधी के देश से आए हो ! ” यह कहते है ! हम तो स्तब्ध रह जाते हैं ! कि वह तो पहले से ही विदेशों के लोगों के दिलों – दिमाग में बसे हुए हैं !” और मोदीजी यह वाकया गांधी फिल्म रिलीज होने के पांच साल पहले की बातचीत है ! ( 1977 – 78 ) और गांधी फिल्म 1982 में पूरी होकर पडदे पर आई थी !