आमतौर पर कांग्रेस को अल्पसंख्यकों और मुस्लिमों की पार्टी माना जाता है और उनके उम्मीदवार मुस्लिम बहुल इलाकों से जीतते भी रहे हैं लेकिन राजस्थान के मामले में ये स्थिति अलग है. राजस्थान में पिछले चार चुनावों में कांग्रेस ने 64 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, जिनमें से 26 उम्मीदवार कामयाब हुए.
वहीं दूसरी तरफ पिछले चार चुनावों में भाजपा ने 14 मुस्लिम उम्मीदवार विधानसभा चुनाव में खड़े किए, जिनमें से छह ने जीत हासिल की. इस तरह मुस्लिम उम्मीदवारों के चुनाव जीतने का प्रतिशत कांग्रेस की बजाय भाजपा में ज्यादा है.
राजस्थान में मतदाताओं के आंकडे देखें तो मुसलमानों की आबादी 10 से 11 प्रतिशत के आसपास है. राजस्थान पहला ऐसा राज्य है, जहां भाजपा ने 2013 के विधानसभा चुनावों में चार मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किए थे, जिनमें से दो चुनाव जीतने में कामयाब भी हुए. कामयाब उम्मीदवारों में से एक, यूनुस खान, मौजूदा सररकार में मंत्री हैं.
मौजूदा विधानसभा की एक और उल्लेखनीय बात यह है कि इसमें कांग्रेस पार्टी से एक भी मुस्लिम विधायक नहीं है, जबकि पार्टी ने 2013 विधानसभा चुनाव में 15 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे थे. कुल मिलाकर देखा जाए, तो राज्य की सियासत में मुलसमानों को नज़रअंदाज़ किया गया है.
इसका अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि राज्य की 200 विधानसभा सीटों में से कम से कम 36 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटरों की अच्छी खासी तादाद है. इन 36 सीटों में से 15 सीटों के नतीजों को मुसलमान वोटर प्रभावित करते हैं. वहीं 8-10 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोट नतीजे तय करते हैं. इसी कारण कांग्रेस और भाजपा दोनों इन सीटों से मुस्लिम उम्मीदवार उतारती हैं.
राजस्थान के कुल सात डिवीज़नों में से चार डिवीज़न (अजमेर, जयपुर, जोधपुर और भरतपुर) ऐसे हैं, जहां अधिकतर मुस्लिम आबादी वाले विधानसभा क्षेत्र आते हैं. इनमें अजमेर डिवीज़न के छह, जयपुर डिवीज़न के सात, जोधपुर डिवीज़न के चार और भरतपुर डिवीज़न के चार विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं. इन्हीं क्षेत्रों से कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियां हमेशा मुस्लिम उम्मीदवार खड़ी करती रही हैं.
राजस्थान की सियासत का एक और दिलचस्प तथ्य यह भी है कि यहां एक मुस्लिम मुख्यमंत्री भी रहा है. कांग्रेस पार्टी ने बरकतुल्लाह खान को दो बार राज्य का मुख्यमंत्री बनाया था. बहरहाल, 2018 के विधानसभा चुनावों में राज्य के मुसलमानों की मांग है कि राजनीतिक दल उन्हें उनकी आबादी के अनुपात में टिकट दें, क्योंकि 2013 के चुनाव में मुस्लिम प्रतिनिधित्व अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया था, जो चिंताजनक है.
इन पंक्तियों के लिखे जाने तक भाजपा और कांग्रेस की ओर से उनके उम्मीदवारों की अंतिम सूची नहीं आई थी, लेकिन इस बीच सोशल डेमोक्रटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया (एसडीपीआई) ने 8 उम्मीदवारों की अपनी पहली सूची जारी की है. इन आठ उम्मीदवारों में से सात मुसलमान हैं. ज़ाहिर सी बात है एसडीपीआई जितने अधिक मुस्लिम उम्मीदवार उतारेगी, उसका फायदा भाजपा को होगा.
इस बार चुनाव पर मॉब लिंचिंग के असर का अनुमाना लगाया जा रहा है. दरअसल इसका संकेत अलवर और अजमेर की दो लोकसभा सीटों और मंडलगढ़ की एक विधानसभा सीट पर इसी वर्ष हुए उपचुनावों से मिल गया था. इन चुनावों से एक और तथ्य का इशारा मिलता है. यदि मंडलगढ़ के साथ अजमेर और अलवर के आठ विधानसभाओं को जोड़ दें, तो कुल 17 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव हुए थे.
अलवर हरियाणा से लगा हुआ है, जबकि अजमेर मध्य राजस्थान में स्थित है और मंडलगढ़ मध्य प्रदश के नज़दीक है. इससे यह नतीजा निकाला जा सकता है कि वोटरों का भाजपा विरोधी रुझान केवल क्षेत्र विशेष तक सीमित नहीं है.