दक्षिण अफ्रीका से जब गांधी जी भारत लौटे थे तब उनके गुरु गोपाल कृष्ण गोखले ने उन्हें सुझाव दिया था कि भारत को पूरी तरह जानने और समझने के लिए सबसे पहले वे मौन भाव से समूचे भारत का भ्रमण करें। गांधी जी ने लगभग गुरु का आदेश मान कर इसे स्वीकार किया और भारत को समझने निकल गये। यह सुझाव लाख टके का है हर उस आदमी के लिए जो भारत के लिए सद्भावना के साथ स्वयं को अर्पित कर देना चाहता है। राहुल गांधी का सम्पूर्ण व्यक्तित्व देखिए। उनका स्वभाव व आदतें। क्या ही अच्छा होता उन्हें पांच साल दिये जाते भारत को पूरी तरह से जानने और समझने के लिए। उसमें से जो राहुल गांधी तप कर निकलते वे आज के राहुल गांधी से ज्यादा आत्मविश्वास से भरे होते। राहुल गांधी का व्यक्तित्व जितना अच्छा हो सकता है उनकी खामियां उससे ज्यादा परेशान करने वाली होती हैं। फिर भी आजकल हमारे पत्रकारों को राहुल गांधी अचानक से बड़े काम के नजर आने लगे हैं। जो पत्रकार कहते थे कि जब तक राहुल गांधी के हाथ पैर नहीं टूटेंगे तब तक वे मंझे हुए राजनीतिज्ञ बन ही नहीं सकते। वे ही आजकल राहुल पर धड़ाधड़ प्रोग्राम कर रहे हैं। जो राहुल गांधी को पानी पी पी कर कोसते थे वे आज कह रहे हैं कि ऐसा कौन सा काम है जो राहुल गांधी ने नहीं किया।
राहुल गांधी को लेकर लाख टके का सवाल आज भी मुंह बाये खड़ा है कि क्या राहुल गांधी देश की राजनीति के लिए, विपक्ष के लिए या सत्ता के लिए, मैच्योर (परिपक्व) हुए हैं। हमारा तो मानना है कि बिल्कुल नहीं हुए हैं। इतने महीनों या वर्षों बाद भी राहुल गांधी कांग्रेस में क्या हैं ?कुछ नहीं होते हुए भी सब कुछ होने का मतलब क्या है ? इसका एक जवाब है कि कांग्रेस के शीर्ष पर बैठे लोगों में राजनीतिक समझ, दूरदृष्टि और आत्मविश्वास का सरासर अभाव। इसके बावजूद राहुल गांधी आज की तारीख में सबको क्यों अच्छे लगने लगे हैं। उसके दो तीन साफ से कारण हैं एक, वे लंबे समय से ट्वीट के जरिए सरकार को चेतावनी रहे हैं। दो, कि विपक्ष में अकेले वे ही हैं जो मोदी सरकार के सामने कैसे न कैसे डटे हैं। दरअसल उन्हें समझा दिया गया है कि मोदी सरकार अपने ही बोझ के तले दब रही है इसलिए आपके वार लगातार होते रहने चाहिए। तीसरा, वे विपक्ष की एकता में कांग्रेस की भूमिका से निरंतर आशंकाओं में हैं, गोकि कांग्रेस के बिना कोई विपक्षी एकता के मायने नहीं हैं फिर भी वे बड़ी और छोटी भूमिकाओं से चिंतित लगते हैं। कहा जा सकता है जबसे ममता बनर्जी ने दिल्ली आकर विपक्षी एकता का अलख जगाया है तभी से राहुल गांधी कुछ ज्यादा ही सक्रिय हो उठे हैं। साइकिल से संसद आना।
उससे भी पहले ट्रेक्टर से संसद की ओर कूच करना आदि आदि। राहुल गांधी को लेकर आशंकित रहने वाले लोग दो चीजों से हमेशा परेशान दिखते हैं एक तो वे कितने ‘सीरीयस’ हैं यानि कब छोड़ कर इटली या विदेश चल देंगे और दूसरा कि चौबीस ×7 की राजनीति करेंगे या नहीं। मुझे लगता है अब राहुल गांधी को, वे जो कर रहे हैं, उसमें आनंद आ रहा है। दूसरा शब्द लें तो ‘मजा’ आ रहा है। इसलिए भागेंगे तो नहीं। क्योंकि वे समझ रहे हैं बकौल विनोद दुआ कि यह सरकार खुद ब खुद गिर जाएगी और सत्ता थाली में सज कर हमारे पास ही आएगी। अगर इस बात को हर कोई जानता है कि बीजेपी का राष्ट्रीय विकल्प कोई है तो वह कांग्रेस ही है तो कांग्रेस को जिंदा रखने में उनके प्रवक्ताओं का बड़ा हाथ है जो रोज गोदी मीडिया के चैनलों पर बैठते हैं और लाजवाब तरीकों से सत्ता पक्ष की बोलती बंद करने का काम करते हैं। दूसरा यूथ कांग्रेस और उसके अध्यक्ष श्रीनिवासन को कतई नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। तो आज जिस कांग्रेस को हम मोटे तौर पर देख रहे हैं वह उसके प्रवक्ता, यूथ कांग्रेस की भूमिका और राहुल गांधी की ट्विटर से नीचे उतर कर सड़क की हल्की फुल्की राजनीति। अब इसको एक ओर करके समूची कांग्रेस के भीतर बाहर नजर डालिए। आपको सरासर खोखलापन नजर आएगा। यह किस बात का सूचक है। कि गांधी परिवार के पास न कोई नीति है, न कार्यक्रम है, न संगठन और नेताओं को साधने का हुनर है, न विपक्ष में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करने का माद्दा है, न बीजेपी के साम दाम दंड भेद की नीति से लड़ने का कोई तरीका है, न राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन करने का कोई मंत्र है, न प्रियंका को छोड़ मां बेटे के पास स्पष्ट और धाराप्रवाह प्रभावित करने वाली हिंदी की वाक पटुता है, न राज्य स्तर पर संगठन और सरकारों के लोगों के भीतर फैलते असंतोष को शांत करने के नुस्खे हैं।
तो गाड़ी कहां अटकती है। दरअसल कांग्रेस की गाड़ी हर स्टेशन पर अटकती है। राहुल गांधी अगर सबको आज अच्छे लगने लगे है तो यह पत्रकारों के हल्की सोच और व्यक्तित्व का सूचक भी हो सकता है। हर क्षेत्र में गिरावट आयी है। दिग्गज पत्रकार भी हैं कहां। वे सोचते रहें। जो अपने भीतर की पार्टी को नहीं सम्भाल सकते वे राजनीति के ‘टोकनिज्म’ से ऊपर नहीं उठ सकते। काश राहुल गांधी राजनीति को लेकर शुरू से सक्रिय और सीरियस होते और देश का भ्रमण उसी तरीके से किया होता जैसे महात्मा गांधी ने किसी वक्त किया था तो शायद आज राहुल गांधी आत्मविश्वास से भरे देश के सर्वमान्य नेता होते। यह सच है कि उनके पिता को अचानक सहानुभूति की लहर पर सत्ता मिल गयी थी और राहुल गांधी उसके लिए स्वप्न पाले हुए हैं लेकिन सत्ता लेकर वे करेंगे क्या इसकी कोई रूपरेखा और चिंतन मनन उनके दिमाग में नहीं है। जब सत्ता आएगी तब देखा जाएगा। ऐसे ही राजनीति को हांकने वाले अर्जुन हैं राहुल गांधी।
सुना है आरफा खानम शेरवानी कृष्ण के भजन बहुत सुरीली आवाज में गाती हैं। जब से जाना है तब से सुनने की उत्कंठा है मन में। कल संतोष भारतीय के साथ अभय कुमार दुबे का शो ‘लाउड इंडिया टीवी’ पर देखा। विपक्षी एकता को लेकर था। ‘पैगासस’ का मुद्दा सबसे बड़ा मुद्दा होकर भी देश के लिए कोई मुद्दा नहीं है। इस मुद्दे पर संसद में विपक्षी एकता के बहाने अभय दुबे ने कहा कि पैगासस और राजीव गांधी के समय के बोफोर्स के मुद्दे में बुनियादी फर्क है। यह मुद्दा जनता को आंदोलित नहीं कर सकता। वे शायद इस मुद्दे को उठाने के तरीकों पर बात कर रहे थे। हमारा मानना है कि पैगासस को पैगासस न कह कर जासूसी कांड कहते हुए जनता में इसे समझाया जाए तो यह बड़ा आक्रामक मुद्दा बन सकता है। संतोष भारतीय की पुस्तक की इन दिनों बड़ी चर्चा है। उस पुस्तक में वीपी सिंह न केवल नायक के रूप में प्रस्तुत हैं बल्कि एक राजनीतिक संत के रूप में भी प्रस्तुत होते हैं। उन्हीं संदर्भों के साथ विपक्षी एकता के लिए उनके प्रयासों की चर्चा करते हुए अभय दुबे ने आज की विपक्षी एकता को आंकने की कोशिश की। अभय जी की एक बात मायने रखती है कि यदि ममता बनर्जी और शरद पवार आज के समय में कोई मंच बनाते हैं और कांग्रेस उसमें भागीदार होती है तो यह बहुत कारगर हो सकता है। उनका मानना है कि यदि ऐसा कोई मंच बनता और सफल होता है तो अंततः फायदा कांग्रेस को ही होगा। यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि मोदी ने राजनीति को चुनावी वर्चस्व की शक्ल दे दी है। ऐसा अभय जी का आकलन है जिससे कतई असहमत नहीं हुआ जा सकता।
सोशल मीडिया पर इस सरकार या सत्ता के खिलाफ बैचेनी स्पष्ट नजर आ रही है। पर कहीं ऊटपटांग तरीकों से कहीं सधे हुए नजरिए से। एक कोई चैनल है ‘4 पीएम’ ।उसके संचालक संजय शर्मा को आशुतोष भी अपने यहां खूब बुलाते हैं।एक तो उन भाईसाहब की चीखने चिल्लाने वाली आवाज।दूसरा उनकी समझ। एक बड़े ही बेतुके मुद्दे पर पर उन्होंने अभय दुबे को बुलाया और परिचय में बताया कि वे CNDS से हैं। दो बार कहा तो हमें यकीन हो गया कि उन्हें CSDS की कोई जानकारी नहीं है। तो ऐसे लोग भी खूब चर्चित हैं। बहरहाल, नीलू व्यास ने ‘सत्य हिंदी’ के लिए अपूर्वानंद और गौहर रजा से बात की। अपूर्वानंद से बात करते हुए वे उनके विचारों में खोती सी नजर आयीं। बढ़िया इंटरव्यू लगा। उधर भाषा सिंह खूब सक्रिय हैं। न्यूज़ क्लिक पर विश्व भर की खबरों का उनका कार्यक्रम ‘राउंड अप’ भी सराहनीय है ,जिसमें उनके सवालों का जवाब प्रबीर पुरकायस्थ देते हैं। पुण्य प्रसून वाजपेयी को सुनते जाइए। हमें लगता है वे हौले हौले अपनी बात कहें तो कई उन लोगों से बेहतर कार्यक्रम होगा जो घटनाओं पर सिर्फ अपनी टीका करते हैं।
बहरहाल, राहुल गांधी की बात आजकल बहुत लोग करने लगे हैं। आरफा और रवीश कुमार तो राहुल को सबसे ज्यादा स्पेस देते ही हैं। वजह है राहुल की मोदी को सीधी चुनौतियां। लेकिन ऊपर जो विश्लेषण हुआ है उसके मद्देनजर भी इन सब चीजों को देखा जाए तो ज्यादा उपयोगी हो। दरअसल आज राहुल को स्वयं अपने लिए किसी द्रोण या किसी भीष्म पितामह की जरूरत है। आज के समय में तो प्रशांत किशोर जैसे ही उभर कर आ रहे हैं जिन्हें अपने भविष्य का ही कुछ समझ नहीं आ रहा है। राहुल का भविष्य किसके हाथ में है यह अटल प्रश्न है।