राहुल गांधी की देश दुनिया में भूरि भूरि तारीफ हो रही है । कमाल का काम किया है। असंभव को संभव बना कर हर किसी को चौंका दिया है। कौन है जो नहीं चौंका होगा। किसी दल का कोई सदस्य नहीं जो चौंक न गया हो । बीजेपी को राहुल गांधी ने न केवल परेशान किया है बल्कि इस दौरान यह भी साबित हो गया कि बीजेपी आईटी सेल टुच्चों की जमात है।
राहुल गांधी ने दरअसल भारतीय राजनीति में नया मील का पत्थर गाड़ दिया है। शायद ही कोई और ऐसा करिश्मा कर पाये। यह तो हड्डी गलाने वाली ठंड में एवरेस्ट पर चढ़ने जैसा हुआ। अब राहुल गांधी राजनीति के धुरंधर हों या न हों इतिहास तो लिख ही दिया । बीजेपी इस कदर परेशान है कि राहुल गांधी को नफरत फैलाने वाला तक बता दिया। बीजेपी के वरिष्ठ मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा दिया कि राहुल गांधी नफ़रत फैला रहे हैं। राजनाथ सिंह मोदी मंत्रिमंडल में वरिष्ठ मंत्री हैं। पर सब जानते हैं कि इस मंत्रिमंडल में वरिष्ठ सब नाम के हैं फिर भी हर किसी को अपने नंबर ऊंचे रखने हैं। सो उन्होंने कह दिया। गनीमत है कि राहुल गांधी को पप्पू के बाद ‘पागल’ नहीं कहा गया। कह सकते थे। लाल सिंह चड्ढा दौड़ता है तो दौड़ता जाता है। राहुल गांधी चलता है तो चलता जाता है। पागल कहीं का। इसका तो कोई तोड़ पवन खेड़ा या सुप्रिया श्रीनेत के पास नहीं होता। क्योंकि अजूबा कर दिखाने वाले अक्सर सामान्य व्यक्ति नहीं होते । एक पागल व्यक्ति ही समाज परिवर्तन के लिए निकलता है। राहुल गांधी से समाज परिवर्तन की तो उम्मीद मत कीजिए पर हां कांग्रेसियों में उत्साह और जुनून की उम्मीद जरूर पाल सकते हैं। बीजेपी का दरअसल सारा डर यही है। बीजेपी को राहुल गांधी से किसी तरह का डर नहीं है। वह चाहे तो फिर से पप्पू साबित करने का प्रयोजन चला सकती है। क्योंकि बीजेपी के धुर दक्षिणपंथी भाईबंध राहुल की यात्रा को बेहद उपेक्षित भाव से देख रहे हैं । उनका मानना है कि वह चाहे जो कर ले , रहेगा तो पप्पू ही । भाजपाई ऐसा क्यों सोचते हैं यह भी समझने की जरूरत है। वे मोदी को सर्वेसर्वा मान कर इस सरकार को ‘अपने फायदे के लिए’ गिरने नहीं देना चाहते सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि इसलिए भी कि राहुल गांधी ने खुद को अभी राजनीति का धुरंधर साबित नहीं किया है। उनके हिसाब से राजनीति उसकी फितरत में ही नहीं । इसलिए वे राहुल गांधी को कतई भाव नहीं देते । उनकी और उनसे ज्यादा आज की सत्ता को इस बात की चिंता ज्यादा है कि इस यात्रा के परिणाम से कांग्रेस देश भर में उनके खिलाफ खड़ी हो गई तो क्या होगा। यह चिंता नाहक नहीं है । हालांकि अभी इसके संकेत ज्यादा नहीं दिखाई दे रहे पर आज के सत्ताधीशों के लिए ‘पागल’ क्या कुछ न कर दे । और ये जड़ कांग्रेसी (हालांकि संसद में भाजपाई भी सारे जड़ ही हैं) राहुल को नेता मान उसके पीछे खड़े हो जाएं तो !! यही बड़ी चिंता भाजपाइयों को सता रही है और उसके शीर्ष नेताओं को भी । हम यह तो नहीं कहते कि राहुल गांधी को अपनी राजनीतिक कूव्वत का भान नहीं है। वे अच्छी तरह जानते हैं कि वे सत्ता की राजनीति के लिए कांग्रेस की चाबी हो सकते हैं या नहीं। अधिकांश मोदी विरोधियों में भी इस बात को लेकर कोई शंका नहीं है। अब यह आने वाला वक्त ही तय करेगा कि इस यात्रा से देश की राजनीति कितनी पलटेगी।
राहुल गांधी ने अभी अपनी शारीरिक ताकत का प्रदर्शन करके अपनी छवि और खुद पर लगे पप्पू के टैग को ही दूर किया है। उनका उद्देश्य क्या है कांग्रेस को जिलाना ? तो यह काबिलेतारिफ है। इसके अलावा तो हमें नहीं लगता कि वे स्वयं को प्रधानमंत्री के पद पर देखना चाहते हैं। सच तो यह है कि उन्हें अपनी राजनैतिक हैसियत का पूरी तरह से इल्म है। पर चारण वंदन में लगे कांग्रेसियों की क्या कही जाए। यात्रा की शुरुआत सात सितंबर से अब तक राहुल गांधी के जनता में दिये भाषण और प्रैस कांफ्रेंस आदि पर नजर दौड़ाइए आपको हर बार बदलते राहुल गांधी नजर आएंगे। वजह कि वे सलाहकारों की सलाह पर चल रहे हैं। कहीं आक्रामक हो जाएंगे तो कहीं शांत , सीधे और सरल । गुजरात चुनाव के दौरान वहां दिये गये उनके मात्र दो भाषणों को सुनिए। 2019 के चुनावों वाले राहुल गांधी दिखे ही नहीं । पूछा गया कि आखिर राहुल गांधी करने क्या गये थे। चुनाव का तो कोई आव्हान किया ही नहीं गया था। इसी तरह इस यात्रा के दौरान जनसभाओं में दिये उनके भाषणों को सुनिए। पहले भाषण में जो बात जिस अंदाज में कही गयी अंत तक वहीं बात उसी अंदाज में । तोता रटंत या रोबोट । एक उदाहरण लीजिए अपने देश के लिए उन्हें हमेशा ‘हिंदुस्तान’ शब्द का ही प्रयोग करना आता है । वे कभी ‘भारत’ नहीं बोलते। उनके किसी सलाहकार ने उन्हें इस बाबत समझाया भी नहीं कि कभी भारत बोलिए कभी हिंदुस्तान में की जगह इस देश में बोलिए। हमें तो लगता है इस ओर हमारे धुरंधरों ने भी कभी गौर नहीं किया। इस सबसे पता चलता है कि राहुल गांधी वाकपटुता में कितने पीछे हैं । उन्हें हिंदी भाषा, शैली, मुहावरों आदि का कोई ज्ञान नहीं। आज के समय में अच्छे और कुशल नेता के लिए अच्छा वक्ता होना बहुत जरूरी है। फिर चाहे आप अपनी वक्तृत्व कला या चतुराई में कितना ही झूठ बोल जाएं। क्या फर्क पड़ता है । जनता लच्छेदार भाषा सुनना चाहती है। और आप लकीर के फकीर की तरह बोलते हैं । इसलिए जब मोदी से राहुल गांधी की तुलना की जाती है वे बहुत ज्यादा पिछड़ जाते हैं। फिर सवाल यह है कि कांग्रेस में राहुल गांधी नहीं तो फिर कौन । इस पहेली का हल ढूंढ़ने के लिए फिलहाल कुछ वक्त बाकी है । एक विचार यह भी है कि कोई क्षत्रप जिसे कांग्रेस पूरी शिद्दत से सपोर्ट करे और राहुल देश भर में कांग्रेस को मजबूत और पुनर्जीवित करने के प्रयोजन में जुट जाएं। यह समझ लें कि भारत में लोकतंत्र को जीवित रखने का यह अंतिम मौका है । विपक्ष ने अगर अपनी मूर्खताओं से 2024 को गंवा दिया तो आगे सिर्फ स्वप्न ही स्वप्न रह जाएंगे। 2024 को किसी भी हाल में बचाना एकमात्र लक्ष्य होना चाहिए। चाहे समझौता किसी भी क्षत्रप पर किया जाए। वरना आप समझिए कि आप चारों तरफ से घेरे जा चुके हैं। सोशल मीडिया पर लगाम लगाने के लिए ‘पीआईबी फैक्ट चैक यूनिट’ बना दी गयी है। ‘वायर’ हो, ‘सत्य हिंदी’ हो या कोई और शिकंजा कसा ही जाना है । गोकि इन चैनलों की बहुत ज्यादा पहुंच नहीं । वे वहीं पहुंचते हैं जहां समझे और सुलझे लोग हैं। मोदी के वोटरों तक न तो इनकी पहुंच है और न इन्हें वहां कोई जानता है। लेकिन मोदी हर चुनाव में डरे होते हैं इसलिए कहीं कोई कसर छोड़ते नहीं । इसलिए कांग्रेस का भविष्य ही देश का भविष्य तय करेगा। ट्रैफिक के नियमों में एक जुमला चलता है ‘सावधानी हटी, दुर्घटना घटी’ । इस जुमले से भी राजनीति को चला कर देखा जाए इस बार तो कैसा रहे।
मित्रों, मुझे सर्दी की एलर्जी है । इसलिए आज बेहद कष्ट में लिखा गया है लंबा भी हुआ है लिहाजा बाकी सब इस बार छोड़ना पड़ रहा है । लिखना तो कई चीजों पर था । बहरहाल, इस बार इतना ही। भाषा की त्रुटियां हों तो सम्भाल लें।