प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राफेल सौदे के निर्णय पर भारत में कयासों का दौर जारी है. लोगों का कहना है कि यह निर्णय अचानक नहीं लिया गया, जैसा कि दिखाई दे रहा है. इस निर्णय तक पहुंचने से पहले भारतीय अधिकारियों और उनके फ्रांस के समकक्षों के बीच गुपचुप बैठकें भी हुईं, ताकि प्रधानमंत्री मोदी सार्वजनिक तौर पर इस सौदे के लिए घोषणा कर सकें. यह भी सा़फ है कि इस सौदे का निर्णय मोदी का था और प्रधानमंत्री कार्यालय इस मुद्दे पर अपनी पकड़ बनाए हुए था. सूत्रों का मानना है कि जब उच्च स्तर पर इस सौदे का निर्णय हो गया, तो इसमें रुचि लेने वाले लोग धराशायी हो गए. रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और रक्षा सचिव आरके माथुर ने पहले ही इस बात का संकेत दिया था कि वे राफेल समझौते का गतिरोध समाप्त होने तक रूसी सू-30 जहाज को अपग्रेड करने के विरोध में नहीं थे. राजनीतिक नेतृत्व और कुछ नए आइडिया वाले बाबुओं के कारण इस सौदे का मार्ग प्रशस्त हुआ.
सफलता के मायने
दिल्ली के बाबुओं की सूची में मुख्य आर्थिक सलाहकार काफी अच्छे और सम्मानजनक स्थान पर हैं. वह अपने सहयोगियों के साथ वार्षिक आर्थिक सर्वेक्षण और आर्थिक अपडेट्स तैयार कर रहे हैं, जिन्हें संसद में प्रस्तुत करना है. यह हाई प्रोफाइल और काफी ज़िम्मेदारी वाला काम है. मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम, जिन्हें मोदी अमेरिका से लाए थे, ने बैंक स्टूडेंट्स के एक ग्रुप के सामने यह स्वीकार किया कि वह आईएएस परीक्षा में असफल हो गए थे. उन्होंने बताया कि सफल व्यक्तियों के लिए ज़िंदगी की राहें हमेशा आसान नहीं होतीं. उन्होंने कहा कि मध्य वर्ग के लोगों के लिए आईएएस परीक्षा उत्तीर्ण करना सपने जैसा होता है, लेकिन यह सफलता का एकमात्र सूचक नहीं है.
पीएमओ सर्वोपरि!
यह दिल्ली के लिए उचित नहीं है कि मोदी सरकार में पीएमओ एकमात्र पॉवर हाउस है, लेकिन यह भी सत्य है कि पीएमओ इस बात को सुनना पसंद नहीं करता. इसके कई उदाहरण हैं कि सरकार के सभी कार्य पीएमओ द्वारा नियंत्रित किए जा रहे हैं. बाबुओं की शिकायतों से संबंधित 6,000 से अधिक फाइलें पीएमओ की स्वीकृति के इंतज़ार में लंबित हैं, जबकि उक्त फाइलें जल्द निपटाने के लिए विभागीय मंत्रियों एवं अधिकारियों ने प्रार्थना भी की है. जब कांग्रेस के नेता शशि थरूर ने पीएमओ के इस रवैये को पॉलिसी पैरालाइज कहकर ट्वीट किया, तो पीएमओ सजग हुआ. अतिरिक्त मुख्य सचिव पीके मिश्रा ने ऐसे किसी मामले से इंकार कर दिया है. उनका कहना है कि फाइलों पर सुचारू रूप से काम हो रहा है और निर्णय को लेकर पीएमओ पर केंद्रीयकरण का आरोप लगाकर मोदी की आलोचना जायज नहीं है. हालांकि, मिश्रा का यह बयान लोगों के अंदर उठने वाली चिंताएं शांत नहीं कर सकता.