पंजाब में पिछले तीन दशक से आर्थिक विकास की एक आंधी चली है. पंजाब के किसानों ने हरित क्रांति को अपनाकर विकास तो किया, लेकिन इसकी कीमत अब लोगों को चुकानी पड़ रही है. जल, जंगल, जमीन और हवा का तालमेल बिगड़ने से संकट और ज्यादा गहराया है. पिछले तीन दशकों से रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशक दवाओं का इतना अधिक इस्तेमाल हुआ कि पूरी धरती ही जहरीली हो गयी है. विशेषज्ञों ने विदेशी कंपनियों के साथ सांठ-गांठकर यहां की हरियाली को ही दांव पर लगा दिया है.
यहां नए बीज, नई फसलें, किस्म-किस्म के रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक दवाइयां तथा अंधाधुंध मशीनीकरण तथा लुभावने प्रचार ने किसानों के भविष्य को अंधेरे में झोंक डाला. हरित क्रांति के फलस्वरूप देश के नीति निर्धारकों ने एक ऐसी कृषि प्रणाली को बढ़ावा दिया, जिसमें रासायनिक खादों, कीटनाशक दवाइयों के अतिरिक्त पानी की खपत अधिक होती है.
पिछले तीस-चालीस साल में जहरीले कीटनाशकों तथा रासायनिक उवर्रकों के अंधाधुंध इस्तेमाल के कारण धरती की बिगड़ती सेहत की परवाह किसी ने नहीं की. मुनाफा केन्द्रित और लालच पर आधारित किसानी के कारण लोकजीवन का ताना-बाना बिगड़ गया. धान कभी पंजाब की फसल नहीं रही है. चावल पंजाबी लोकजीवन का स्वाभाविक खुराक भी नहीं था. पैसे की भूख और अधिक चावल बेचने की चाहत के कारण फसल चक्र उलट गया. धान के उत्पादन में लगातार इजाफा होता गया, लेकिन वह इतना बढ़ा कि सड़ने लगा. सरकारी गोदामों में धान को सड़ाने के लिए खास तौर पर समरसिवल लगाए गए.
हरित क्रांति के कारण 75 फीसदी भूमि धान के फसल के नीचे दबती चली गयी. देखते-देखते पंजाब के 12,644 गांवों में 15 लाख समरर्सिवल पंप गड़वा दिए. नतीजतन भूजल 20 फीट से 200 फीट नीचे चला गया. इन पंपों के लिए जहां कुछ वर्ष पहले पांच हॉर्स पावर की मोटर काम करती थी, वहीं आज 15 से 20 हॉर्स पावर का मोटर जरूरी हो गया है.
हरित क्रांति, शहरीकरण और अब वैश्वीकरण ने पंजाब को प्रभावित किया है. पंजाब दुनिया का शायद पहला राज्य होगा, जहां से कैंसर एक्सप्रेस नामक ट्रेन चलती है. पड़ोसी राज्य राजस्थान के साथ पंजाब पानी बांटने को तैयार नहीं है, लेकिन पंजाब के सभी कैंसर मरीजों को राजस्थान का बीकानेर अस्पताल इलाज की सहूलियत देता है. इस ट्रेन से प्रतिदिन सौ से डेढ़ सौ मरीजों के जाने का सिलसिला जारी है. पंजाब के भटिंडा, फरीदकोट मोगा, मुक्तसर, फिरोजपुर संगरूर और मानसा जिलों में बड़ी तादाद में किसान कैंसर के शिकार हो रहे हैं.
आंकड़ों के मुताबिक भटिंडा में 942, फिरोजपुर में 473, मुक्तसर में 667, बरनाला में 679, फरीदकोट में 441, संगरूर में 383, मानसा में 443 और पटियाला में 426 कैंसर के मरीज हैं. देश के अन्य राज्यों की तुलना में पंजाब में कीटनाशक दवाइयों तथा रासायनिक उर्वरकों की खपत ज्यादा है. इन उर्वरकों तथा कीटनाशकों का बड़ा हिस्सा जलस्रोतों में पहुंचकर भूजल को जहरीला बना रहा है. इतना ही नहीं, ये रसायन नदियों तथा तालाबों में पहुंचकर पानी को जहरीला बनाने के साथ-साथ पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं. इन फसलों के सेवन का प्रतिकूल असर किस कदर सेहत पर पड़ रहा है, इसका नतीजा सामने है.
पंजाब का तलबंडी हरित क्रांति की प्रयोगशाला रही है. भूमि में अत्यधिक रासायनिक खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल से पूरी जमीन जहरीली हो गई है. दलित दास्तां विरोधी आंदोलन के जगबीर सिंह बताते हैं कि इस क्षेत्र मेंे औसतन दस से पंद्रह लोग हर गांव में कैंसर के मरीज हैं. जहरीले रसायनों से पेयजल पूरी तरह से प्रदूषित हो चुकी है. कैंसर के साथ-साथ विगत वर्षों में कई अन्य रोगों का प्रकोप बढ़ा है. झझल गांव के दर्शन सिंह बताते हैं कि यहां दस वर्षों के अंतराल में 21 लोगों की कैंसर से मौत हो चुकी है.
सरकार द्वारा पेयजल की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है. ग्रामवासियों के सामाजिक तथा आर्थिक पुनर्वास की दिशा में पहल होनी चाहिए. कैंसर के एक रोगी के इलाज के लिये औसतन कम से कम चार से छह लाख रुपये खर्च करने के बाद भी किसी रोगी को बचाया नहीं जा सका है. ग्राम सेखों के एक निवासी बताते हैं कि पिछले पांच वर्षों में कैंसर से उनके गांव में बारह लोगों की मौत हो चुकी है. ग्यारह अन्य लोगों का इलाज राजस्थान के कैंसर अस्पताल में चल रहा है.
पंजाब में 2000 से अब तक जिन 6 हजार किसानों ने आत्महत्या की है, उनमें आधे लोग भटिंडा तथा संगरूर के हैं. असाध्य रोग से जूझते किसान अपने परिवार को आर्थिक तंगी से बचाने के लिए मौत को गले लगा रहे हैं. कैंसर के साथ- साथ गुर्दा, जिगर रोगों की भयावहता बढ़ती जा रही है.
चंडीगढ़ विश्वविद्यालय के पूर्व प्राध्यापक डॉ. गोपाल अय्यर के मुताबिक कई चिकित्सा दलों द्वारा सर्वेक्षण करके बताया गया कि इस क्षेत्र के भूजल में पारे की मात्रा अत्यधिक बढ़ चुकी है, जो कैंसर की एक बड़ी वजह है. विज्ञान एवं पर्यावरण केन्द्र चंडीगढ़, पीजीआई और पंजाब विश्वविद्यालय समेत सरकार की ओर से कराए गए अध्ययनों से इन तथ्यों का खुलासा हो चुका है कि कीटनाशकों तथा रासायनिक खादों के ज्यादा इस्तेमाल की वजह से कैंसर का फैलाव खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है.
इतना ही नहीं, पंजाब में पानी के 1686 नमूनों में 261 नमूनों में परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड ने तय सीमा से अधिक यूरोनियम पाया है. पंजाब में ऐसे कई जिले हैं जहां देश में सबसे ज्यादा कैंसर पीड़ित हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि इसका प्रमुख कारण भूजल में यूरोनियम का अधिक होना है. पानी में यूरोनियम की जांच के लिए अमेरिकी वैज्ञानिकों की टीम पंजाब आयी थी. स्वीकृत सीमा से अधिक यूरेनियम पानी में पाये जाने की वजह से यह पानी इंसानों के पीने लायक नहीं है. संगरूर जिले में 140 जल नमूनों में से 14 नमूनों में स्वीकृत सीमा से यूरोनियम अधिक पाये गये. मोहाली स्थित पंजाब वॉयोटेक्नोलॉजी इन्वयूवेटर को पानी के 981 नमूनों में भारी धातु स्वीकृत सीमा से अधिक मिले.
खेती में कीटनाशक तथा रासायनिक खाद के अंधाधुंध इस्तेमाल पर रोक लगाने की आवश्यकता लंबे अरसे से महसूस की जा रही है. इसके मद्देनजर कुुछ कीटनाशकों के दुष्परिणाम को देखते हुए प्रतिबंंधित भी किया गया. इन दुष्परिणामों के बावजूद सरकार में यह इच्छाशक्ति तनिक भी नहीं दिखाई देती है कि वह कीटनाशकों के इस्तेमाल को नियंत्रित करने की दिशा में खास कदम उठाए. जब भी इसके इस्तेमाल के दुष्परिणाम और इससे पैदा होनेवाले स्वास्थ्य संबंधी खतरों की बात उठती है तो दलील दी जाती है कि इससे फसल उत्पादन कम होगी और खाद्य सुरक्षा प्रभावित होंगे. सवाल यह उठता है कि इंसानी जिन्दगी को खतरे में ढकेल कर खाद्या सुरक्षा की दुहाई देना कहां की बुद्धिमानी है. खाद्य सुरक्षा का तात्पर्य सिर्फ उत्पादन बढ़ाना नहीं बल्कि सेहत के अनुकूल होना चाहिए.
हरित क्रांति के मॉडल को लेकर देश में एक नई बहस की जरूरत है, ताकि पंजाब से बाहर दूसरे राज्यों में जहां इस मॉडल के आधार पर खेती की जा रही है, वहां के किसान इसके दुष्परिणामों को समझ सकें.