वैसे तो टीवी डिबेट्स हमेशा ही ब्लड प्रेशर बढ़ाने वाली होती हैं लेकिन इन दिनों तो चैनल स्टूडियोज में जो माहौल है वो तो ये दायरा भी पार करता जा रहा है. हिन्दू-मुस्लिम के मुद्दे को ज्यादा से ज्यादा गर्माने के मामले में नेताओं और न्यूज चैनल एंकर के बीच का फर्क काफी हद तक खत्म हो गया है. क्योंकि इन दोनों ही क्षेत्रों के महारथियों में होड़ मची है कि कौन इस मुद्दे को ज्यादा हवा दे पाता है. लिहाजा टेलीविजन की इन चीखती बहसों के बीच देश के सबसे भारी उपग्रह जीसैट-11 के लॉन्च की आवाज तो दब ही गई, जिससे इंटरनेट की स्पीड की बढ़ाने में खासी मदद मिलेगी और हर आमो-खास की जिंदगी में कुछ आसानी आएगी. अब कुछ लोग तो इस पर ये तर्क भी दे सकते हैं कि आज तक के हल्ला बोल कार्यक्रम में भाजपा प्रवक्ता का राहुल गांधी को ‘दुर्लभ मूर्ख’ कहा जाना अधिक श्रवणीय है या फिर इसरो के चेयरमेन के सिवन का ये कमेंट कि ‘यह उपग्रह अंतरिक्ष में भारत की सबसे बड़ी संपत्ति है’. जाहिर इसरो की कामयाबी की इस खबर से ना तो किसी को वोट मिलेंगे और ना ही रात में गर्म बहसों का इंतजार करते श्रोताओं को इसमें मजा आएगा.
इसी तरह 4 दिसंबर को आज तक के दंगल कार्यक्रम में बुलंदशहर की घटना म़ुद्दा बना. होना तो ये चाहिए था कि इस घटना के पीछे जिन युवा लड़कों की भीड़ का इस्तेमाल किया, उनके पीछे के सरगनाओं को ढूंढा जाता. लेकिन चैनल ने उस घटना को गाय केन्द्रित बना दिया. बार-बार गोवंश को काटने, फेंकने से जुड़े वीडियो दिखाए गए. इसी की उत्तेजक बातें बार-बार दोहराई गईं. अब कोई इनसे पूछे कि क्या गोवंश के टुकड़ों के ये विजुअल्स को दिखाकर लोगों को भड़काकर कौनसी देशभक्ति निभा रहे हैं?
अब देश के मशहूर एंकर अर्णव गोस्वामी की बहसों पर एक नजर डालते हैं. 4 तारीख को रिपब्लिक वर्ल्ड चैनल पर दो बड़ी डिबेट हुईं. एक रात नौ बजे और दूसरी रात दस बजे. पहला मुद्दा था कि राहुल और मोदी में कौन अच्छा हिन्दू है और दूसरा योगी-ओवैसी के बीच चल रहे बयानयुद्ध से जुड़ा था, जिसमें ओवैसी ने अपने भाषण में मोदी को चायवाले का ताना मारकर खूब तालियां बटोरी थीं. अर्णव गोस्वामी ने बहस शुरुआत ही इस बात से की वोटर्स हमारे नेताओं से ज्यादा उम्मीदें न पालें क्योंकि वो तो सिर्फ हिन्दू कार्ड पर खेलना चाहते हैं. अब जरा इनसे कोई पूछे कि यदि नेता हिन्दू कार्ड खेलकर गलत कर रहे हैं तो क्या इनका चैनल उस हिन्दू कार्ड पर दो-दो प्राइम टाइम बहस करके अच्छा काम कर रहे हैं. उन्होंने इस बहस में एक कमाल का सवाल पूछा कि यदि राहुल राम में भरोसा नहीं करते तो उन्हें ये कहने का कोई हक नहीं है कि वो एक अच्छे हिन्दू हैं. क्योंकि ऐसा व्यक्ति अच्छा हिन्दू नहीं हो सकता जो राम में भरोसा नहीं करता. अब ऐसे सवाल-जबाव होते देख कम्युनिस्ट नेता सुनीत चोपड़ा ने जब हिन्दू कार्ड से हटकर रोजी-रोटी, विकास और रोजगार के मुद्दे पर बात करने को कहा तो उन्हें याद दिलाया गया कि मुद्दा हिन्दू कार्ड है उसी पर बात करें. इससे तो बेहतर यही होता कि स्टुडियो के बाहर बोर्ड लगा देते कि यहां कोई भी बुद्धिमत्ता वाली या देश के आमजनों से जुड़ी समस्याओं पर बात करना प्रतिबंधित है.
4 दिसंबर को ही हल्ला बोल में अंजना ओम कश्यप ने राहुल गांधी की मोदी को दी गई भारत माता की जय न बोलने की सलाह को मुद़्दा बनाया. कांग्रेस प्रवक्ता रोहन गुप्ता ने तर्क दिया कि यदि मोदी इस सलाह को फतवा मानकर भारत माता का जयघोष् करना बंद कर रहे हैं तो बाकी सलाह भी मानकर नीरव मोदी, विजय माल्या की जय बोलना क्यों नहीं शुरू कर देते? ऐसी बहसों को सुनकर समझ नहीं आता कि किस की ज्यादा तारीफ की जाए. चैनलों द्वारा चुने जा रहे मुद्दों की, एंकर्स के सवालों की या प्रवक्ताओं के जबावों की. खैर बहस आगे बढ़कर फतवा शब्द पर पहुंची कि मोदी ने राहुल की सलाह को फतवा करार क्यों दिया? इसके बाद तो दोनों प्रवक्ताओं में ये बताने की जंग छिड़ गई कि कब-कब किस नेता ने भाष्णों में इससे बुरे शब्दों का इस्तेमाल किया है. भाषणों पर चर्चा आगे बढ़ी अंजना ओम कश्यप ने कांग्रेस प्रवक्ता से पूछा कि 6 दशकों में किसान के लिए पॉलिसी क्यों नहीं बनाई गई अब सभी राज्यों में कांग्रेस किसानों को कर्जमाफी की लॉलीपॉप क्यों दे रही है? अब इसे मानवीय भूल कहें या प्रो-बीजेपी एजेंडा कि वो ये तो भूल ही गईं कि मध्यप्रदेश में जहां 15 साल से भाजपा की सरकार है वहां के मुख्यमंत्री कर्जमाफी के साथ-साथ किसानों के खातों में पैसे बांट-बांटकर ही तो लोकप्रिय हुए हैं. इस कमाल की बहस में ऐसा भी एक पल आया जब राहुल को दुर्लभ मूर्ख करार दिया गया. बताने की जरूरत तो नहीं है कि ऐसी बहसों और इनके पीछे छुपे एजेंडो से असली मूर्ख कौन बन रहा है?