सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में माना है कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है और यह संविधान के आर्टिकल 21 (जीने के अधिकार) के तहत आता है. जाहिर है ये फैसला केन्द्र सरकार की रुख के उलट है. केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा था कि निजता मौलिक अधिकार नहीं है. अब इस फैसले का सीधा असर आधार कार्ड और दूसरी सरकारी योजनाओं के अमल पर होगा. बहरहाल, अदालत इसके बाद अब आधार पर अलग से सुनवाई करेगी.
कर्नाटक हाई कोर्ट के पूर्व जज केएस पुत्तास्वामी ने 2012 में आधार स्कीम को चुनौती देते हुए याचिका दाखिल की थी. पुत्तास्वामी ने कहा था कि इस स्कीम से इंसान के निजता और समानता के मौलिक अधिकार का हनन होता है. सुप्रीम कोर्ट ने 20 से ज्यादा आधार से संबंधित केसों को इस मुख्य मामले से जोड़ दिया. याचिकाकर्ताओं में बी विल्सन, अरुणा रॉय और निखिल डे भी शामिल हैं. याचिका में आधार कार्ड की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने सरकार द्वारा तमाम प्राइवेट डेटा लिए जाने पर सवाल उठाए थे. याचिककर्ता ने कहा था कि यह आम आदमी के निजता के अधिकार में दखल है. आधार स्कीम पूरी तरह से मूल अधिकार में दखल है.
सुनवाई के दौरान जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि निजता के तीन जोन हैं. पहला है आंतरिक जोन, जैसे शादी, बच्चे पैदा करना आदि. दूसरा है प्राइवेट जोन, जहां हम अपनी निजता को किसी और से शेयर नहीं करना चाहते. जैसे अगर बैंक में हम अपना डेटा देते हैं तो हम चाहते हैं कि बैंक ने जिस उद्देश्य से डेटा लिया है, उसी उद्देश्य से उसका इस्तेमाल करे. किसी और को डेटा न दे. वहीं, तीसरा है पब्लिक जोन. इस दायरे में निजता का संरक्षण न्यूनतम होता है, फिर भी मानसिक और शारीरिक निजता बरकरार रहती है. वहीं, चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने टिप्पणी की थी कि अगर किसी से कोई ऐसा सवाल पूछा जाता है, जो उसके प्रतिष्ठा और मान-सम्मान को ठेस पहुंचाता है तो वह निजता का मामला है. चीफ जस्टिस के मुताबिक, दरअसल स्वतंत्रता के अधिकार, मान-सम्मान के अधिकार और निजता के मामले को एक साथ कदम दर कदम देखना होगा. स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में मान-सम्मान का अधिकार है और मान सम्मान के दायरे में निजता का मामला है.
चौथी दुनिया अपने स्टोरीज के जरिए पाठकों को आधार डेटा के खतरे से आगाह करता रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने भी कभी आधार कार्ड अनिवार्य नहीं किया और सरकार से कहा कि आधार कार्ड को सबके लिए अनिवार्य बनाने का आदेश तुरंत वापस ले. न्यायालय ने भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण को भी निर्देश दिया कि वह बायोमैट्रिक डाटा किसी दूसरी संस्था को नहीं दे. सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे उच्च न्यायालय के उस फैसले पर भी रोक लगा दी, जिसके तहत आतंकवाद और बलात्कार के मामलों में यह डाटा साझा करने की छूट दी गई है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि आधार कार्ड न होने से किसी भी व्यक्ति को सरकारी सेवा हासिल करने से वंचित न किया जाए. इसका मतलब यह है कि चाहे रसोई गैस हो या कोई और सेवा, अब बिना आधार कार्ड के भी आप इन सेवाओं को ले सकते हैं.