संघ परिवार के एक रंग में रंगने की निति के कारण आज हमारे देश के सभी तरह के अल्पसंख्यक समुदाय के लोग जिसमें नंबर एक मुस्लिम, ख्रिच्चन, सिख, बुद्धिष्ट तथा सभी तरह के आदिवासी, घुमंतू तथा विभिन्न जनजातियों के लोगों को हमारे संविधान में अलग-अलग प्रावधानों की अनदेखी कर के और मूल निवासियों की संकल्पना को जड से खत्म करने की साजिश के तहत तथाकथित विकास के नाम पर उनकी पहचान के साथ उनका अस्तित्व ही समाप्त करने के कारण, आज सुरजगढ पहाड़ी को काटा जा रहा है ! और उसी तरह के कश्मीर से लेकर उत्तरपूर्व के सभी अनुसूचित जनजातियो के लोगों को जड से खत्म करने की साजिश के तहत यह सब चल रहा है !
मावा नाटे मावा राज – अबूझमाड़(छत्तीसगढ़) के आदिवासी योके जनआंदोलन से निकल कर इस घोषणा ने समस्त आदिवासी क्षेत्रों को अपने संविधान दत्त अधिकारोकी याद दिलाने का काम किया है ! लेकिन आज आदिवासियों, ग्राम सभाओ को उनके संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों से वंचित रखने का ! आजादी के पचहत्तर साल के बावजूद सरकार का सबसे हैरानी वाला काम, महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के सुरजगढ खदानों का खनन स्थानीय आदिवासियों के विरोध के बावजूद लगातार जारी है !
आदिवासियों के संरक्षण के लिए पाचवी और छठवी अनुसूचि की अनदेखी कर के,ग्राम सभा की अनदेखी कर के ! सुरजगढ पहाड़ी पर लोह उत्खनन के लिए लाॅयडस एंड मेटल्स कंपनी को लिज प्रदान की गई है ! और वर्तमान में त्रिवेणी अर्थ मूवर्स कंपनी द्वारा लौह उत्पादन का काम जारी है ! सैकडों की संख्या में बाहरी क्षेत्र के मजदूरों व मशीनों के माध्यम से पहाड़ी को काटा जा रहा है ! कच्चा माल बाहर निकालने के लिए वनों की कटाई भी धडल्ले से जारी है ! वर्तमान में सुरजगढ पहाड़ी का अधिकांश हिस्सा पूरी तरह कट गया है ! आदिवासियों का जीवन भी वनों और पहाड़ीयो के उपर निर्भर होने के कारण ग्राम सभाओ के माध्यम से आदिवासी नागरिकों का लगातार सुरजगढ माइनिंग का विरोध कर रहे हैं !
और कश्मीर या उत्तरपूर्व के प्रदेश की तरह कानून और व्यवस्था के आडमे विभिन्न तरह की सेना जिसमें स्थानीय पुलिस के अलावा, सेंट्रल रिझर्व फोर्स, और भारत की सभी तरह की पैरामिलिट्री तैनात करके विभिन्न बहुराष्ट्रीय कंपनियों को संपूर्ण जंगल, जल, और जमीन सौपी जा रहीं हैं ! और समस्त उत्तरपूर्व, आदिवासी बहुल झारखंड,ओरिसा, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले से लेकर गोंदिया, भंडारा, चंद्रपूर, मध्यप्रदेश लगभग भारत का एक चौथाई इलाके को डिस्टर्ब एरिया ऐलान कर दिया है ! क्या यही हमारी आजादी की पचहत्तर साल के बाद की उपलब्धि है?
सुरजगढ माइनिंग बंद करने की मांग को लेकर लगातार तीन दिनों से ग्राम सभा और आदिवासी समुदाय द्वारा जारी ठिय्या आंदोलन के चलते ,महाराष्ट्र के आदिवासी विभाग के राज्यमंत्री श्री प्राजक्त तनपूरे ने कहा कि आदिवासीयो पर किसी भी तरह का अन्याय नहीं होने दिया जाएगा ! लेकिन आज सुरजगढ माइनिंग बंद करने की मांग का क्या ?
हमारे राजनेता दलित, आदिवासी, महिला और गरीब को लेकर पचहत्तर साल से अपनी चुनावी राजनीति में खुब भुनाते रहते हैं ! लेकिन उस चुनाव के लिए धन देने वाले धन्ना शेठो के खनन का काम हो या जंगल कटाई के तथा अन्य परियोजनाओं का काम बदस्तूर जारी रखते हैं ! और भारत की कुल आबादी के साडेआठ से नौ प्रतिशत की आदिवासी आबादी का 75% विस्थापन ! फिर वह खनन का काम हो या बांध परियोजना हो या ज्यादातर विकास के नाम पर चल रहे परियोजनाओ के सबसे बडी विस्थापन की शिकार आदिवासी लोग है ! और गढ़चिरौली जिले के सुरजगढ खदानों का खनन स्थानीय आदिवासियों के विरोध के बावजूद लगातार जारी है !
एक तरफ शैड्यूल एरिया के अंदर कोई भी परियोजनाओं को जब तक स्थानीय ग्राम सभा की इजाजत नहीं मिलती है तो कोई भी काम शुरू नहीं होना चाहिए ! लेकिन वर्तमान समय में देश की सत्ता की बागडोर संभालने वाले दल ने अपने मातृसंगठन संघ परिवार के अजेंडा के अनुसार हमारे संविधान की अनदेखी करने से लेकर दलितों, आदिवासीयो के लिए सभी संविधानिक प्रावधानों की अनदेखी कर के एक देश, एक विधान, एक निशाण, एक भाषा जैसे अपने एक रंग में रंगने की निति के कारण आज हमारे सभी तरह के संविधानिकप्रावधानों की जगह अपने मातृसंगठन संघ परिवार के अजेंडा के अनुसार सब कुछ गत साडेसात साल से फिर वह नागरिकता कानून की बात हो या कश्मीर से 370 का प्रावधान खत्म करने की बात हो या कृषी के नये कानूनों को लेकर एक साल से जारी किसानो के आंदोलन की अनदेखी कर के तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को औने-पौने दामों में बेचकर मजदूरों के विरोध के बावजूद लगातार जारी है ! आज सुरजगढ माइनिंग का काम भी उनके उसी निती के कारण बदस्तूर जारी है ! और आदिवासी को वनवासी बोलना भी उनके नीतिगत फैसले के कारण उनके अस्तित्व को नकार कर उन्हें बेदखल करने की साजिश है !
आजसे पाचसौ साल पहले अमेरिका में भी यही गोरों ने मुल निवासी रेड इंडियन जमात के साथ यही व्यवहार किया इसलिए सिएटल चीफ का 1854 का तत्कालीनराष्ट्रपति को लिखा पत्र का एक छोटा अंश कोट कर रहा हूँ ! खुले आसमान और ज़मीन की उष्मा को खरीद-फरोख्त आप कैसे कर सकते हैं ? हमारे लिए इसका सोंच ही अजूबा है ! अगर हवा की ताजगी और पानी की झिलमिल चमक पर हमारी मिलकियत नहीं है तो उसे आप खरीद कैसें सकते हो ? हमारे लोगों के लिए इस पृथ्वी का हर हिस्सा पवित्र है ! चमकने वाली हर सूचिका, पानी का हर किनारा, अंधियारे वनों में घिरता कुहासा वलय, उनका हर अंतराल और गुनगुनाते कीट-पतंग हमारे लोगों की स्मृति और अनुमति के लिए पावन है!
परंतु अगर हम तुम्हें अपनी जमीन बेचते हैं, तो तुम यह अवश्य ध्यान रखना कि वायु हमारे लिए मूल्यवान है, तो हर तरह के जीवन का आधार है, उनकीं चेतना मे सहभागी है ! वह हवा जो हमारे पितामह की पहली सांस के रूप में आती है, उसके अंतिम उछवास में विलीन हो जाती है ! और यदि हम तुम्हें अपनी जमीन बेचते हैं तो तुम उसमें उस स्थान को विलग और पवित्र मानना जहाँ पहुँच कर गोरा आदमी भी हमारी झाडियों के फूलों की मीठी सुगंध से लदी वायु का आस्वादन कर सकें सिएटल के चीफ द्वारा अमेरिका के राष्ट्रपति को सन 1854 में लिखीं चिठ्ठी से !
एक तरफ शैड्यूल एरिया के कारण हमारे संविधान निर्माताओं ने पांचवी और छठवी अनुसूचि बना कर भारत के समस्त आदिवासी क्षेत्रों को सुरक्षित रखने के लिए विशेष प्रावधानों की व्यवस्था करने के बावजूद किसी भी परियोजनाओं का काम बदस्तूर जारी है ! वर्तमान सुरजगढ पहाड़ी को काटा जा रहा है लेकिन हमारे राजनेता सिर्फ आदिवासी समुदाय को आश्वासन देने के अलावा और कुछ नहीं कर रहे हैं ! जो की वह आदिवासी विभाग के मंत्री होने के नाते उन्हें सबसे पहले सुरजगढ माइनिंग बंद करने के लिए आदेश जारी करने की जगह सिर्फ आदिवासी समुदाय के ऊपर अन्याय नहीं होने दिया जाएगा ! जैसे हवाई बाते करने का क्या मतलब है ?
कुछ दिन पहले नागपुर प्रेस क्लब में एक परिचर्चा में मुझे शामिल होने का मौका मिला था ! और तत्कालीन वनमंत्री हमारे देश के जंगलों के कारण विकास करने में बहुत बड़ी बाधा निर्माण हो रही है ! जैसे बात करते हुए देखकर मैंने कहा कि आपकों वनमंत्री की जगह वननष्ट मंत्री बनाया जाना चाहिए ! आज भारत के वनों की कटाई भी धडल्ले होने के कारण हमारे पर्यावरण को भयानक संकट के दौर से गुजरना पड रहा है ! और वनों के संरक्षण के लिए ही वनमंत्री का पद निर्माण किया है ! और एक आप हो कि वनों के कारण विकास करने में बहुत बड़ी बाधा निर्माण हो रही है ! जैसे आपके अपने ही विभाग के खिलाफ बोल रहे हो !
यही बात मैंने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री के द्वारा सुनी है ! और मैंने उन्हें भी कहा था कि 1970 के दशक में जिनेवा कन्वेंशन के बाद प्रथम बार भारत में पर्यावरण मंत्रालय का निर्माण किया है ! तो आपके मंत्रालय का काम भारत के पर्यावरण संरक्षण का है ! और आप आपही के मंत्रालय के खिलाफ बोल रहे हो ! यह इनकी गलती नहीं है ! मंत्रालय तो इन्हें सिर्फ बंदरबाट करने के कारण मिला है ! और इनकी विकास की अवधारणा अपने अज्ञानी होने के कारण वही बनी हुई है ! जो काफी लोगों को लगता है कि विकास यानी जबरदस्त औद्योगीकरण आठ लेन के सिमेंटेड हाई वे, बुलेट ट्रेन, और समस्त जंगलों को नष्ट कर के तथाकथित विकास के नाम पर बांध, बिजली, औद्योगीकरण करने की मानसिकता के कारण वह मंत्री यह भी नहीं जानते कि उनके मंत्रालय का काम क्या है ?
डॉ बी डी शर्माजी की टूटे वायदो का अनटूटा इतिहास-भारतीय राज्य और आदिवासी लोग नाम की आजसे ग्यारह साल के भी पहले की उनके अपने ही सहयोग प्रकाशन की 232 पन्ने की हिंदी मे लिखी किताब है ! डॉ बी डी शर्माजी खुद 1956 के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे हैं और 1991 मे आदिवासी सवाल को लेकर ही तत्कालीन सरकार के साथ नीतिगत मतभेदों के कारण उन्होंने अपने पद का त्याग किया है ! और उसीके बाद उन्हें भारत की अनुसूचित जाति और जनजातियों के आयुक्त के पदपर नियुक्त किया गया था और 28 वी रिपोर्ट आज भी संपूर्ण देश के आदिवासीयो के लिए ऐतिहासिक कृती मानी जाती है ! और शर्मा नाम होने के बावजूद जीवन का महत्वपूर्णयोगदान आदिवासियों के हक के लिए दिया है ! यह उनकी किताब की प्रस्तावना से कुछ कोट कर रहा हूँ !
आज हमारे देश में आदिवासी लोग और उनके देस या इलाकों के बारे में भारी बहस छिड़ी हुई है ! राष्ट्रीय स्तर पर सबसे बडी चिंता उन्हें उस दानविय ताकतों से मुक्ति दिलाने की है जो इन इलाकों पर लगभग दशकों से छाये हुए हैं ! सबसे मजेदार बात तो यह है कि उस राज्य को, जो आज उनके बारे में इतना चिंतित हैं और संविधान के तहत उनके संरक्षण और उनके हितों के संवर्धन के लिए आज्ञापित है ! इतना तक नहीं मालूम है कि इस बीच कितने आदिवासी विस्थापित हुए ! सुनहरी लुट की भागम-भाग में कितनी बस्तियों पर कब्जा किया है ? और कितनी उजाडी गई है ? जैसे अभी सुरजगढ की बात है ! कानून की आडमे किस तरह की और जालसाजी या हुई और कितनी छोटी-छोटी आदिम जनजातिको ताकतवर समूहों ने बिडार दिया या खत्म कर दिया है ! जैसे पाचसौ साल पहले अमेरिका के गोरों ने स्थानीय आदिवासियों जिन्हें रेड इंडियन जमात भी कहा जाता है ! दो करोड़ की शुरुआत में ही एक बीमारी के जंतुओं द्वारा मारने का इतिहास है !
इन तमाम भूलों के बावजूद आदिवासी समाज विशेषाधिकार संपन्न रहा आया है ! उनके लिए पंचशील के रूप में( दशक 1950) अभूतपूर्व सदिच्छा का भंडार है, आदिवासी उपयोजना के रूप में( दशक 1970) कार्य-योजना के रूप में दशक 1990और 1996 श्रेष्ठतम प्रस्तुति और पंचायत उपबंध अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार अधिनियम पेसा कानून के रूप में स्वशासी व्यवस्था की अनूठी दुनिया है ! हमारे गाँव में हमारे ही राज की घोषणा इसी कानून की घोषणा की उपज है ! मानो तो धरती पर स्वर्ग के साकार होने जैसा लगने लगा और समय के साथ यह भव्य चमत्कार मृग मरीचिका बन कर रह गया ! लघु वनोपज पर इसे इकठ्ठा करने वाले की मिलकियत वगैरा-वगैरा सुन रहा था (1976,1996,2006) लेकिन आठ साल के बाद आई बीजेपी की सरकार ने साफ-साफ बोल दिया है कि पाँचवी और छठवी अनुसूचि असंवैधानिक है ! हालाँकि संघ खुद हमारे संविधान की घोषणा होने के दूसरे ही दिन संविधान को नकार चुका है लेकिन सत्ता में आने के बाद चतुराई से संविधान की शपथ लेकर ही संविधान को खत्म करने की नीति के तहत आदिवासियों को दियें विशेषाधिकार पाँचवी और छठवी अनुसूचि असंवैधानिक करार दिया है ! और उसीके बाद कश्मीर का 370 खत्म करने के बाद अब उत्तरपूर्व का 371 भी खत्म करने की साजिश है ! क्योंकि एक राष्ट्र, एक विधान, एक निशाण की घोषणा जो है ! और इस तरह एकता में अखंडता की जगह संपूर्ण भारत को हिंदू राष्ट्रवाद की आडमे विविधता को खत्म करने की कडी मे अल्पसंख्यकों से लेकर दलित, आदिवासी तथा और भी विभिन्न घुमंतू जनजातियों के अस्तित्व को नकार कर उन्हें बेदखल करने की साजिश है !