अपने गठन के बाद से ही झारखंड राजनीतिक भ्रष्टाचार को लेकर सुर्खियों में रहा है. यहां के मंत्रियों-विधायकों की संपत्ति में बेतहाशा वृद्धि देखने को मिली है. जिनके पास लाख रुपए नहीं थे, वे भी आज अरबों के मालिक बने बैठे हैं. राज्य के विकास से ज्यादा यहां नेताओं का अपनी संपत्ति बढ़ाने पर जोर रहा. यहां के नेताओं की औसत सम्पत्ति में एक दो सौ प्रतिशत नहीं, बल्कि लाख प्रतिशत से ज्यादा का इजाफा हुआ है. इन पैसों को अब नेता चुनाव जीतने में लगा रहे हैं.
एक विधानसभा प्रत्याशी करोड़ों रुपए खर्च कर चुनाव जीतता है. कुछ क्षेत्रों में नेता चुनाव जीतने के लिए अपराधियों और नक्सलियों का भी सहारा लेते हैं. अधिकांश दागी और आपराधिक छवि के नेता ही चुनाव जीतने में सफल होते रहे हैं. चुनाव जीतने के लिए अपराधियों और नक्सलियों को संरक्षण देना तो यहां मामूली बात है. झारखंड के दो पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन एवं मधु कोड़ा पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं. शिबू सोरेन तो अपने आप्त सचिव शषिनाथ झा हत्याकांड के मामले में आरोपी हैं और इस मामले में जेल भी जा चुके हैं. पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा भी भ्रष्टाचार के आरोप में सजायाफ्ता हैं. मधु कोड़ा पर विकास के बहाने 6 हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा की राशि के लूट का आरोप है.
झारखंड के आधा दर्जन पूर्व मंत्रियों पर भी हत्या एवं भ्रष्टाचार जैसे गंभीर मामले दर्ज हैं और इन मामलों में इनमें से कई जेल के भीतर हैं. भय, भूख और भ्रष्टाचार के खिलाफ नारा देकर भारतीय जनता पार्टी के नेता जनता के बीच अपनी छवि को स्वच्छ बनाने में सफल रहे, लेकिन झारखंड में भाजपा के ही सबसे ज्यादा दागी विधायक एवं सांसद हैं. 1353 विधायकों पर 13680 मुकदमे चल रहे हैं. इस मामले में झारखंड पूरे देश में अव्वल है. झारखंड के 64 प्रतिशत विधायकों ने अपने खिलाफ दर्ज मामलों की घोषणा चुनावी हलफनामे में की है. भाजपा के 37 विधायकों में से 22 विधायकों पर अपराधिक मुकदमे दर्ज हैं, जबकि 15 विधायकों पर गंभीर अपराधिक मामले चल रहे हैं. इस मामले में झारखंड मुक्ति मोर्चा भी भाजपा से पीछे नहीं है.
इसके 19 में से 13 विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जबकि इनमें से 12 पर तो गंभीर अपराध के आरोप हैं. अगर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन हुआ तो झारखंड विधानसभा के 81 में से 52 विधायकों की सदस्यता समाप्त हो सकती है. उच्चतम न्यायालय ने दागी सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित अपराधिक मुकदमों को जल्द निबटाने के लिए विषेष अदालतों के गठन का आदेश दिया है. इस आदेश में कहा गया है कि ऐसे मामलों को एक साल के भीतर निबटाया जाय. अगर ऐसा हुआ तो झारखंड विधानसभा के अधिकांश माननीयों की सदस्यता रद्द हो सकती है. उच्चतम न्यायालय के इस आदेश से दागी विधायकों के होश उड़ गए हैं. झारखंड के 14 सांसदों में से पांच सांसदों पर भी अपराधिक मामला दर्ज है, इनमें चार सांसद भाजपा के ही हैं, जिनमें से दो तो गंभीर आपराधिक मामलों के आरोपी हैं.
इस हमाम में सब नंगे हैं
राजनीति के अपराधीकरण या अपराधियों को राजनीति से जोड़ने में भी झारखंड का स्थान अव्वल है. पहले राजनेता अपराधियों को संरक्षण इसलिए देते थे, ताकि चुनाव के समय इन अपराधियों की मदद से चुनाव जीता जा सके. लेकिन जब अपराधियों को अपनी ताकत का अहसास हुआ, तो वे स्वयं चुनाव मैदान में कूदने लगे. एक तरह से राजनीति का ही अपराधीकरण हो गया. राजनीतिक दलों ने भी अपराधियों को पाल-पोसकर नीति-निर्माता बनने का अवसर प्रदान किया. यही कारण भी है कि जनप्रतिनिधि बनने वाले आधे से अधिक नेता दागी ही होते हैं. चुनाव में धन, बल और अपराध की अहम् भूमिका हो गई है.
इसकी एक बानगी यह है कि पिछले चुनावों में उम्मीदवारी पेश करने वालों की घोषित औसत संपत्ति 1.37 करोड़ थी, चुनाव जीतने वालों की औसत संपत्ति 3.8 करोड़, दूसरे स्थान पर रहने वाले उम्मीदवारों की औसत संपत्ति 2.47 करोड़ और तीसरे स्थान पर रहने वाले उम्मीदवारों की औसत संपत्ति 2.03 करोड़ थी. सीधा-सीधा समझा जा सकता है कि धनी उम्मीदवार ही चुनाव जीतने में ज्यादा सफल रहे. पिछले दस वर्षों के आंकड़े देखें, तो अपराधिक मामलों वाले विजेता उम्मीदवारों की औसत सम्पत्ति 4.27 करोड़ और गंभीर अपराध वाले विजेता उम्मीदवारों की औसत सम्पत्ति 4.38 करोड़ थी. दागी उम्मीदवारों के आंकड़े तो और भी चौंकाने वाले हैं. चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, 62,800 से अधिक उम्मीदवारों में से 11030 पर 27 हजार से अधिक आपराधिक मामले दर्ज थे, जिनमें से 5238 उम्मीदवारों पर तो गंभीर आपराधिक मामले दर्ज थे. गौर करने वाली बात यह भी है कि चुनाव जीतने वालों में से 28.4 प्रतिशत पर आपराधिक मामले लंबित थे.
सुप्रीम कोर्ट की पहल
अब सुप्रीम कोर्ट ने एक सार्थक पहल की है और दागी नेताओं के मामलों की स्पीडी ट्रायल के जरिए सुनवाई करने का आदेश दिया है. यह राजनीतिक सुधार की ओर एक बड़ा कदम है. राजनीतिक दलों ने अपने स्तर पर तो इस ओर कोई कदम नहीं उठाया और दागी प्रत्याशियों को संरक्षण देने का ही काम किया, लेकिन देश के उच्चतम न्यायालय ने राजनीति की सफाई के लिए बड़ा कदम उठाया है. झारखंड में उच्च न्यायालय के आदेश पर लंबित मामलों का स्पीडी ट्रायल शुरू हो चुका है. स्पीडी ट्रायल के तहत पहले चरण में लिए गए आधे से अधिक कांडों का निष्पादन कर दिया गया है और शेष बचे मामलों के लिए 15 मार्च तक की अवधि निर्धारित की गई है.
अब स्पीडी ट्रायल के तहत दूसरे फेज के लिए 500 केस लेने की तैयारी शुरू कर दी गई है. दूसरे फेज का ट्रायल मार्च के अंतिम सप्ताह से शुरू होगा. लंबे समय तक ठंढे बस्ते में पड़े रहने वाले जनप्रतिनिधियों से जुड़े मामलों के स्पीडी ट्रायल से दागी विधायकों एवं मंत्रियों की नींद उड़ी हुई है. कोयला चोरी के मामले में योगेंद्र प्रसाद पर तो आरोप भी तय हो चुका है और उनकी विधानसभा की सदस्यता समाप्त करने को लेकर कार्रवाई शुरू हो चुकी है. वहीं बड़कागांव की कांग्रेस विधायक निर्मला देवी पर भी जल्द ही फैसला आने वाला है. इनके पति पूर्व मंत्री योगेंद्र साव को सजा हो चुकी है और उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगी हुई है.
एक दर्जन विधायकों के मामले में भी जल्द ही फैसला आने वाला है. इससे पूर्व लोहरदगा के विधायक कमल किशोर भगत की सदस्यता समाप्त की जा चुकी है. भगत पर रांची के प्रख्यात चिकित्सक डॉ केके सिन्हा के साथ मारपीट करने एवं रंगदारी मांगने का आरोप है. फिलहाल, फास्ट ट्रैक कोर्ट में 52 विधायकों के मामले में सुनवाई होनी है. 52 विधायकों में से 41 विधायकों पर गंभीर अपराध का मामला दर्ज है. इसमें भाजपा के सर्वाधिक विधायक हैं. भाजपा के 37 में से 22 पर आपराधिक मामला है. वहीं झामुमो के 19 में से 13 विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं.
झारखंड विकास मोर्चा से जीते पांच विधायक एवं कांग्रेस के 7 में से 4 विधायकों पर भी आपराधिक मामले हैं. सत्ता पक्ष और विपक्ष के विधायक इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं. ये लोग नहीं चाहते कि राजनेताओं के खिलाफ दर्ज मामलों की सुनवाई स्पीडी ट्रायल से हो. सत्ता और विपक्ष के जिन विधायकों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं, उनमें प्रदीप यादव, अमित कुमार, राजकुमार यादव कुशवाहा, शिवपूजन, फुलचंद मंडल, पौलुस सुरीन, गणेश गंझू, भानु प्रताप शाही, एनोस एक्का, ढुलू महतो, दशरथ गगराई एवं चमरा लिंडा प्रमुख हैं. अच्छी बात यह है कि स्पीडी ट्रायल को लेकर पूरा का पूरा सरकारी महकमा गंभीर है. मुख्य सचिव के स्तर से हर सप्ताह मामलों की नियमित समीक्षा भी की जा रही है. कुल मिलाकर स्पीडी ट्रायल में पूरा तंत्र एक सिस्टम के तहत काम कर रहा है और यही कारण है कि इतने कम समय में परिणाम भी सामने आ रहा है.
अगर उच्चतम न्यायालय के आदेशों पर सकारात्मक अमल हुआ, तो अब राजनीति बाहुबल और धनबल मुक्त होने की दिशा में आगे बढ़ेगी. यह सार्थक पहल कितना रंग लाएगा, यह तो वक्त ही बताएगा. एडीआर राजनीति और नेताओं से जुड़े विभिन्न मामलों का अध्ययन करता रहता है. राजनीति के अपराधीकरण को लेकर एडीआर के सह संस्थापक जगदीप चोेकर का कहना है कि हमारे राजनीतिक वर्ग ने खुद को भ्रष्टाचार मुक्त करने के लिए पिछले बीस साल से कोई कदम नहीं उठाया है. बीते बीस सालों में अगर राजनीति को शुद्ध करने के लिए किसी ने कुछ करने की कोशिश भी की, तो उसका राजनीतिक दलों ने न सिर्फ जमकर विरोध किया, बल्कि उसे हर तरह से प्रताड़ित करने का काम किया गया. उन्होंने व्यंगात्मक लहजे में कहा कि यह बहुत ही अफसोस की बात है कि देश की जनता और सुप्रीम कोर्ट दोनों मिलकर राजनीति को शुद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं. इस सार्थक पहल में हमारे राजनीतिक दल और नेता कितना सहयोग देते हैं, यह देखने वाली बात होगी, क्योंकि ऐसे मसलों पर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही एकजुट हो जाते हैं.
इन विधायकों के ़िखला़फ हैं गंभीर मुक़दमे
प्रदीप यादव (पोड़ैयाहाट, गोड्डा), अमित कुमार महतो (सिल्ली, रांची), राजकुमार यादव (धनवार, गिरिडीह), कुशवाहा शिवपूजन मेहता (हुसैनाबाद, पलामू), फुलचंद मंडल (सिंदरी, धनबाद), पॉलुस सुरीन (तोरपा, खूंटी), गणेश गंझू (सिमरिया, चतरा), भानु प्रताप शाही (भवनाथपुर, गढ़वा), एनोस एक्का (कोलेबिरा, सिमडेगा), ढुलू महतो (बाघमारा, धनबाद), दशरथ गगराई (खरसांवा, सरायकेला), चमरा लिंडा (बिशुनपुर, गुमला), निर्मला देवी (बड़कागांव) व जगरनाथ महतो (डुमरी).