संयोगवश इस बार मुंबई में होने के कारण रंगमंच का तीर्थ माने जाने वाले पृथ्वी थियेटर फेस्टिवल के उद्घाटन समारोह (3 नवंबर 2023) में जाना हुआ। मैं पिछले 25 सालों से जिस भारतीय रंगमंच से दर्शक और समीक्षक के रूप में जुड़ा हुआ हूं, यहां आकर लगा कि यह एक दूसरी दुनिया है जहां मैं अजनबी हूं हालांकि मैंने दुनिया के प्रायः: सभी थियेटर फेस्टिवल में भागीदारी की है- न्यूयॉर्क के ब्राडवे, स्काटलैंड के एडिनबरा से लेकर फ्रांस के एविगनान तक। यहां मैंने एक ऐसी एलिट दुनिया देखी जो रट्टा मार अंग्रेजी में खुद को गौरवान्वित महसूस करती है। सभागार में भीतर गया तो वहां शुभा मुद्गल का उपशास्त्रीय संगीत चल रहा था। वे हिंदी उर्दू भोजपुरी अवधी ब्रज में लिखी प्रेम कविताएं गा रही थीं। लेकिन अपनी बात अटक अटकाकर अंग्रेजी में रख रहीं थीं। यदि मैं भूल नहीं रहा हूं तो शुभा मुद्गल इलाहाबाद के खांटी हिंदी परिवार से आती है। यदि उन्हें लगता है कि दर्शक हिंदी में उनकी बात नहीं समझ सकते तो फिर लोक भाषाओं में उनका गायन कैसे समझ सकते हैं।शशि कपूर के बेटे और पृथ्वी थियेटर के संचालक कुणाल कपूर ने भी अपनी बात अंग्रेजी में ही रखी। बाद में शानदार रात्रि भोज के समय मैंने नई पुरानी पीढ़ी के डिजाइनर रंगकर्मियों की बातें सुनी। उनकी बात चीत में देश समाज रंगमंच कला संस्कृति की चर्चा तक नहीं थी।हर कोई अपने आप में और अपने फोन में मशगूल था। मुझे लोगों ने बताया था कि पृथ्वी थियेटर की स्थापना हिंदी रंगमंच को जगह देने के लिए की गई थी।
मुझे समझ में नहीं आता ( बकौल देवेन्द्र राज अंकुर) कि आप नाटक और फिल्में तो हिंदी में करते हैं, पर उसके बारे में बात अंग्रेजी में क्यों करते हैं। ऐसी कौन सी बात है जो दर्शक हिंदी में नहीं समझ सकते? आपका ब्रोश्योर अंग्रेजी में क्यों छपता है? आप अंग्रेजी में क्यों चाहते हैं अपने नाटक की समीक्षा? दुनिया के किसी देश में ऐसी मानसिक गुलामी नहीं देखने को मिलती। और तो और बंगाल, केरल और दूसरे राज्यों में भी ऐसा नहीं होता। मुंबई की सांस्कृतिक दुनिया पर एक नकली, अधकचरी और गलत सलत अंग्रेजी का वर्चस्व बना दिया गया है। भाषा अपने साथ एक संस्कृति भी लाती है। मुंबई ने भाषा तो रट ली पर संस्कृति को भूल गए। देश को आजाद हुए 75 साल हो गए पर अंग्रेजी भाषा की गुलामी अभी भी जारी है।
पिछले दिनों सेंट एंड्रयूज सभागार में अतुल सत्य कौशिक के नाटक चक्रव्यूह का सौंवां शो देखने गया। महाभारत सीरीयल के नीतीश भारद्वाज श्रीकृष्ण की भूमिका में थे। पूरा नाटक हिंदी में था। नाटक के बाद मैं डर गया। नीतीश भारद्वाज धाराप्रवाह अंग्रेजी में दर्शकों को संबोधित कर रहे थे। जब हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को हिंदी मराठी गुजराती बोलने में कोई शर्म नहीं है तो हे मुंबई के डिजाइनर रंगकर्मियों, आपको क्यों अपनी मातृभाषा बोलने में समस्या है? आपने तो अंग्रेजी में एम ए, पीएचडी भी नहीं की है। दृष्टि संस्थान के विकास दिव्यकीर्ति बताते हैं कि 2011 के सेंसस में देश में पहली भाषा के रूप में अंग्रेजी बोलने वाले लोग केवल दो लाख सत्तर हजार है।
पिछले दिनों मैं ओम कटारे के साथ रविन्द्र नाट्य मंदिर प्रभादेवी में इप्टा मुंबई के एक भव्य समारोह में गया जो इंटर कॉलेज नाट्य प्रतियोगिता का अंतिम राउंड था। यह देखकर खुशी हुई कि वहां सबकुछ हिंदी मराठी में हो रहा था। इतना ही नहीं हर विचारधारा के रंगकर्मियों को आमंत्रित किया गया था। इस उदारता से इप्टा की दूसरी इकाईयों को सीखना चाहिए जिन्होंने इस सांस्कृतिक संस्था को केवल पार्टी पालिटिक्स में उलझा रखा है।
मेरी एक और जिज्ञासा है। पिछले 75 सालों में जबसे देश आजाद हुआ मैं भारतीय भाषाओं के सैकड़ों महान नाटकों और फिल्मों का नाम गिना सकता हूं पर अपवाद छोड़कर आप मुझे अंग्रेजी के केवल दस महत्वपूर्ण नाटक और फिल्मों के नाम बता दीजिए जो घासीराम कोतवाल, अंधा युग, तुगलक या आधे अधूरे के पासंग में भी हो। यहीं हाल फिल्मों का है। मुझे अंग्रेजी से कोई विरोध नहीं है पर उसके नकली और अन्यायपूर्ण वर्चस्व से विरोध है। हमारे मन में पृथ्वी थियेटर के प्रति अगाध सम्मान है, इसलिए यह सब लिख रहा हूं। वरिष्ठ रंगकर्मी ओम कटारे, वामन केंद्रे, मकरंद देशपांडे, नागेश भोसले, जयंत देशमुख, रमेश तलवार आदि भी इस बात को लेकर चिंतित रहते हैं कि आखिर हम अपनी मातृभाषा में दर्शकों से संवाद क्यों नहीं कर सकते? बाकी जश्न बहुत शानदार था। बहुत सारे मित्रों से जमाने के बाद मुलाकात हुई।
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