मणिपुर की विवस्त्र महिलाओं के वीडियो बनाने वाले को गिरफ्तार किया गया ! यह गृहमंत्री अमित शाह का वक्तव्य देखकर लगता है, कि गुजरात पॅटर्न के अनुसार दंगों के खिलाफ काम करने वाली तिस्ता सेटलवाड को गुजरात की सरकार अपराधी घोषित कर रहा है ! या बी. बी. सी. ने गुजरात दंगों के कवरेज करने की दो घंटों से भी अधिक समय की डाक्यूमेंट्री बनाने के कारण उसके कार्यालय पर ईडी या जांच कराने की कृती या करन थापर जैसे वरिष्ठ पत्रकार ने नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री रहते हुए इंटरव्यू में दंगे के बारे में सवाल पूछे तो उसे जिंदगी भर के लिए बैन कर दिया ! मणिपुर के असली अपराधियों को छोड़कर या गुजरात दंगों के अपराधियों को भी एक – एक करके छोड़कर पिछले बाईस सालों से दंगों के कारणों की जांच या दंगा पिडितो के लिए राहत कार्य करने वाली तिस्ता सेटलवाड के उपरही पुलिस केसेस कराने की बात एक ही है !


मणिपुर के अपराधियों पर कार्रवाई की जगह मणिपुर में क्या हो रहा है ? यह सत्य उजागर करने वाले महिलाओं के संघटन के लोगों के खिलाफ कार्रवाई या गिरफ्तार करने की मानसिकता और दुसरी तरफ 2002 में हुए गुजरात के दंगों के अपराधियों को एक-एक कर के छोडा जा रहा ! (भले ही वह सामुहिक बलात्कार के गुनाहगार क्यों न हो ? ) और गुजरात के दंगों में क्या हुआ था ? यह सत्य उजागर करने वाले लोगों में से एक तिस्ता सेटलवाड को पुरस्कार से सम्मानित करने की जगह उसे बार – बार जेल में बंद करना और जिस आदमी के मुख्यमंत्रि रहते हुए दंगे हुए वह दंगों में कोनसी कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी का निर्वाह कर रहा था ? तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने तक कहा है कि आप ने राजधर्म का पालन नहीं किया है ! और वह आज पुणे से लेकर पॅरिस तक पुरस्कार पा रहा है ! भारत और विश्व के भी लोगों की संवेदनशीलता को लेकर चिंता होती है !
मुझे उसे पुरस्कृत करने वाले लोगों की मानसिकता का रह-रहकर आस्चर्य लग रहा है ! मतलब 30 अप्रैल 1945 के दिन हिटलर ने अपनी कनपटी पर पिस्तौल से गोली मारकर आत्महत्या नही की होती और वह जिंदा रहा होता तो ! उसे भी शायद जर्मनी का महान सुपुत्र के रूप में सन्मानित किया गया होता ! जैसा लगता है ! और सम्मानित करने वाले लोगों की मानसिकता क्या हो सकती है ?


मुझे जहाँ तक याद है टिळक पुरस्कार की शुरूआत की गई थी, तो पहला पुरस्कार मेरे राजनीतिक और सामाजिक पिता जैसे दो लोगों को जिसमें बयालीस के भारत छोडो आंदोलन के हिरो अच्युतराव पटवर्धन को दिया गया है ! उसके बाद एस. एम. जोशी को भी दिया गया है ! यह दोनों मेरे जीवन पर बहुत प्रभाव डालने वाले लोगों में से रहे हैं ! और इस साल नरेंद्र मोदीजी को देकर टिळक पुरस्कार देनेवाले लोगों ने अपनी राजनीतिक और भौतिक स्थिति में कुछ पाया होगा ! लेकिन टिळक पुरस्कार की प्रतिष्ठा कम कर ली है ! नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री है ! यह मेरिट है ! तो अबतक कितने प्रधानमंत्री हो चुके हैं ? और उनमें से कुछ लोग अभी भी जिंदा है !


हालांकि 1916 का लखनऊ के ऐतिहासिक हिंदू – मुस्लिम को राजनीतिक रूप से नजदीक लाने वाले मशहूर लखनऊ अॅग्रिमेंट करने वाले लोकमान्य टिळक और मुस्लिम लीग मे हुआ होगा ! लेकिन व्यक्तिगत जीवन में लोकमान्य हमेशा ही सनातनी रहे हैं ! टिळक परिवार में हमेशा से राजनीतिक और सामाजिक सोच के बारे में परस्परविरोधी लोग रहे हैं ! सबसे पहले लोकमान्य टिळक खुद जातिभेद मानने वाले और ज्योतिबा फुले जैसे समाज सुधार का काम करने वाले लोगों के खिलाफ रहे हैं ! और उन्हीं के सुपुत्र श्रीधर टिळक डॉ. बाबा साहब अंबेडकरजी के अनुयायी रहे हैं ! और उन्हें परिवार में काफी विरोध का सामना करना पड़ा और अंत में उन्होंने निराश होकर आत्महत्या कर ली है ! केसरी अखबार के लंबे समय तक संपादक रहे, न. चि. केळकर हिंदुत्ववादी थे ! और अभी के वर्तमान में टिळक परिवार के वंशज भी हिंदुत्ववादी है !


लोकमान्य टिळक भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के दादाभाई नौरोजी के बाद और महात्मा गाँधी जी के पहले सबसे बडे नेता थे ! और उन्होंने उसके लिए काफी किमत भी चुकाई है ! लेकिन सामाजिक सुधार के बारे में वह शुरू से ही विरोधी रहे हैं ! रानडे और आगरकर के साथ पहले सामाजिक सुधार या राजनीतिक सुधार इस विवाद पर टिळक के मतभेदों की वजह से आगरकर ने टिळक के साथ सभी संबध खत्म कर लिए थे ! यहां तक कि डेक्कन एज्युकेशन सोसायटी से भी अलग हो गए थे !


महात्मा ज्योतिबा फुले की किसी भी गतिविधियों का केसरी अखबार में कभी भी उल्लेख नहीं किया गया ! यहां तक कि महात्मा ज्योतिबा फुले ने पेड विज्ञापन छपने के लिए भेजा तो वह भी वापस किया गया है ! गायकवाडवाडा टिळक का निवासस्थान में वार लगा कर गरीब ब्राम्हण छात्रों को खाना खिलाना या उन्हें कुछ आर्थिक मदद करने के लिए विशेष रूप से लोकमान्य टिळक जाने जाते है ! लेकिन एक भी बहुजन समाज के छात्र को मदद करने का उदाहरण नहीं हैं ! हालांकि लोकमान्य टिळक के चरित्र में तेली – तांबोळी के (बहुजन समाज) नेता उल्लेख है ! लेकिन वास्तव में लोकमान्य टिळक जाति-व्यवस्था के घोर समर्थक रहे हैं ! कोल्हापूर के शाहूमहाराज के साथ भी उनके ऐतिहासिक मतभेद कोर्ट तक जाने की नौबत आई है !


इस संबंध में मुझे आरोप – प्रत्यारोप की जगह कालसापेक्षता का सिद्धांत के अनुसार लोकमान्य पैदा हुए ! वह समय और उनके खुद के परिवार का कोकणस्थ ब्राह्मण होना यह भी कारण है ! हालांकि रानडे, गोखले और आगरकर भी कोकणस्थ ब्राह्मण रहे है ! लेकिन वह उससे उपर उठकर अपने आपको कुछ हदतक डी ब्राम्हण कर सके ! टिळक राजनीतिक व्यक्ति होने की वजह से और उस समय की परिस्थिति के दबाव में अपने आपको कर्मठता से मुक्त नहीं कर सके ! और इस लिए महाराष्ट्र में यह प्रवाह हमेशा से जारी रहा, जिसका प्रतिनिधित्व वर्तमान समय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कर रहा है ! या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना ही इस वजह से हुई है कि 1 अगस्त 1920 को लोकमान्य टिळक की मृत्यू होनेके बाद ! महाराष्ट्र के सनातनी ब्राम्हणों को दिसंबर 1920 के कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में महात्मा गाँधी जी के द्वारा जाती – व्यवस्था के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव को देखते हुए, ब्राम्हणों लगा कि अब कांग्रेस में हमारे लिए कोई जगह नहीं है ! तो नागपुर के मोहिते वाडा में 1925 के दशहरे के दिन संघ की स्थापना की गई है !


आजसे सौ साल पहले राजनीतिक और सामाजिक स्थिति का आकलन करने से लगता है कि ! भले ही हम मंगल ग्रह और चांद पर यान लेजाकर वैज्ञानिक अनुसंधान कर रहे हैं ! लेकिन मानस में पूरा बदलाव नही होने की वजह से मंगल यान के पहले तिरुपति बालाजी मंदिर में पूजा करके यान को उडाने,और हमारे संसद के उद्घाटन समारोह में ब्राह्मणों से पूजा पाठ करने से लेकर सोंगल की प्रतिस्थापना करना, मंदिरों और मस्जिदों की राजनीति पर अपने दल की राजनीति करना ! और पांच जी की तकनीक के समय और अब तो आर्टिफिशियल इंटेलिजन्स के जमाने में मणिपुर, हरियाणा के नूंह, गुडगाँव और राजस्थान के भरतपुर तक सांप्रदायिक हिंसा का तांडव जारी रहना ! कितनी अजिब बातें एक ही समय चलते रहती है ! उल्टा इस टेक्निक का इस्तेमाल कर के उसे और जगह फैलाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है ! भारत के सबसे बड़े राज्य का मुख्यमंत्री मस्जिद के संबंध में कोर्ट में सुनवाई जारी रहते हुए वे कहते हैं कि दिवारें बोल रही है ! मतलब पिछले चालीस सालों से मंदिर – मस्जिद के इर्द-गिर्द राजनीति करने वाले को सम्मानित करना ! और दुसरे तरफ सेक्युलर राजनीतिक दलों के गठबंधन में शामिल होने जैसी पाखंड की भूमिका सिर्फ और सिर्फ शरद पवार और उनके अनुयायियों के द्वारा जारी है ! शरद पवार ने हमेशा ही सत्ताधारी दलों के साथ समझौता करते हुए ही अपनी राजनीतिक यात्रा की है ! और आगे भी जारी रहने वाली है !


सुना है कि नरेंद्र मोदीजी को टिळक पुरस्कार देने की सूचना शरद पवार ने की थी ! और पुरस्कार समिति ने उसे स्वीकार किया है ! और राजनीतिक स्तर पर शरद पवार नरेंद्र मोदी को विरोध करने की भाषा बोलते हैं ! यह शुद्ध पाखंड है ! शरद पवार ने अपने साठ साल से भी अधिक समय से राजनीतिक प्रवास के दौरान इसी तरह की हरकतों से उनकी विस्वसनियता हमेशा संशय के घेरे में रही है ! कभी वह गुगली थी वगैरे कहा करते हैं ! लेकिन उनकी इसी तरह की हरकतों के कारण उनके बारे में हमेशा से संशय के घेरे में रहते आए हैं ! उन्हें लगता होगा कि वह चाणक्य है लेकिन इस तरह के आदमी कभी भी भरोसा रखने के लायक नहीं होते हैं !
आज देश भयंकर संक्रमण काल से गुजर रहा है और पवार अपनी टुच्ची राजनीतिक हरकतों से वर्तमान स्थिति को लेकर चल रहे प्रयासों को कमजोर करने की हरकत कर रहे हैं ! और इसिलिये शरद पवार राष्ट्रीय स्तर के नेता कभी नहीं बन पाये और न ही कभी बनेंगे !
डॉ. सुरेश खैरनार, 2 अगस्त 2023, नागपुर.

 

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