मोदी के कारिंदे दिखा रहे… भ्रष्टाचार का कौशल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वपूर्ण योजनाओं में प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) शामिल है. कौशल विकास योजना को लेकर बड़ी-बड़ी बातें की जा रही हैं, लेकिन इससे कुछ हासिल नहीं हो रहा है. प्रधानमंत्री की इस महत्वाकांक्षी योजना की सफलता में किसी तरह की बाधा न आए, इसके लिए सरकार ने विश्व बैंक से तकरीबन 25 करोड़ डॉलर का कर्ज ले रखा है.
देश के युवक कौशल हासिल कर कुशल बन सकें और देश को आर्थिक दिशा में गतिशील बनाने का कार्य करें, इसी सोच के तहत विश्व बैंक ने बिना किसी लेट-लतीफी के सरकार को इस योजना के लिए इतना बड़ा कर्ज दे दिया. याद रहे, इस योजना के लोकार्पण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारत विश्व में मानव संसाधन प्रदान करने का स्त्रोत बन सकता है. प्रधानमंत्री की इस बात को तमाम देशों ने गंभीरता से लिया होगा, लेकिन जमीनी हकीकत यही है कि प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना समेत ऐसी तमाम योजनाएं भीषण भ्रष्टाचार के चंगुल में फंसी हैं और घपले-घोटालों का स्त्रोत बनी हुई हैं.
मोदी सरकार ने इस योजना की जमीनी हकीकत जानने के लिए सर्वेक्षण कराया तो बेहद चिंताजनक स्थिति सामने आई. कौशल विकास योजना को संचालित करने वाले मंत्रालय की आंतरिक सर्वे रिपोर्ट कहती है कि सरकार द्वारा अनुदानित तकरीबन आठ फीसदी संस्थान सिर्फ कागज पर चल रहे हैं. इसके अलावा तकरीबन 24 फीसदी संस्थान ऐसे हैं, जिनमें प्रशिक्षण के लिए बेसिक संसाधन तक नहीं हैं. सर्वे के दौरान सर्वेयर को अनेक स्थानों पर प्रशिक्षण केंद्रों की जगह मैरिज-हॉल तो कहीं छात्रावास मिले. अप्रशिक्षित युवाओं को हुनरमंद बनाने वाली प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी कौशल विकास योजना शुरुआती दौर से ही फिसड्डी साबित हो रही है. प्रधानमंत्री ने बड़े उत्साह और विश्वास के साथ देश के युवाओं में कौशल विकास पैदा कर उन्हें हुनरमंद बनाने और उनके स्वरोजगारों के लिए स्किल-इंडिया अभियान की शुरुआत की थी.
परंतु आज भी यह धरातल पर उतरने के बजाए हवा-हवाई ही साबित हो रहा है. कौशल विकास योजना के संचालन की कारगुजारियों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अगर स्थिति ऐसी ही रही तो देश मानव-संसाधन का स्त्रोत बनने के बजाय भ्रष्टाचार के गर्त में धंसता चला जाएगा. अब तक इस योजना का लाभ कितने युवक-युवतियों को मिला और इसका संचालन कैसे हो रहा है, इसकी जमीनी हकीकत जानने के लिए इस संवाददाता ने उत्तर प्रदेश के जनपद सीतापुर में प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना में हिस्सेदार महेंद्रा ग्रुप द्वारा संचालित प्रधानमंत्री कौशल विकास केंद्र पर जाकर खुफिया छानबीन की तो पाया कि वहां पर प्रशिक्षित बच्चों की जो परीक्षाएं संचालित हो रही थीं, उसमें महज 12 छात्र-छात्राएं शामिल थीं.
उसमें से चार लड़के दूसरे छात्रों के स्थान पर अवैध रूप से परीक्षा दे रहे थे. उनसे नाम और पता पूछा गया तो वे टालते दिखे. उनके पास रखे पहचान-पत्र भी फर्जी पाए गए. प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के द्वारा ऐसे अधिकांश प्रशिक्षण केंद्र पूरे देशभर में जिलों-जिलों में संचालित हैं. केंद्रों पर कार्रवाई संभव इसलिए नहीं होती, क्योंकि संबंधित अफसरों की सहमति के बिना ऐसा घालमेल संभव नहीं. ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों के कारण ही सरकारी योजनाओं का देश और प्रदेश में बेड़ा गर्क हो रहा है.
सैद्धांतिक पक्ष यह है कि प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना देश के 40 करोड़ युवाओं का भाग्य बदल सकती है. लेकिन इसका व्यवहारिक पक्ष यही है कि यह भीषण भ्रष्टाचार के चंगुल में है. ऑस्ट्रेलिया के थिंक-टैंक इंस्टीट्यूट एआईआई ने कहा था कि वह कौशल विकास के लिए भारत की मदद कर सकता है, लेकिन मौजूदा प्रशिक्षण व्यवस्थाओं पर मूलभूत शोध करने की जरूरत है. साथ ही योजना को भारत की दीर्घकालीन आर्थिक रणनीति के अनुरूप ढालना होगा. एआईआई ने यह कहकर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया कि सरकार की यह योजना सैद्धांतिक तौर पर तो अच्छी है, लेकिन प्रयत्न दृढ़ और नेक नहीं है.
परीक्षक के बयान से योजना पर लगा प्रश्नचिन्ह
नगर के नवीन चौक पर संचालित हो रहे प्रधानमंत्री कौशल विकास केंद्र में परीक्षा लेने बिहार से आए पर्यवेक्षक मोहम्मद कैफ से परीक्षा कक्ष में उपस्थित फर्जी छात्रों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘मुझे इस बात की जानकारी नहीं है कि यहां पर फर्जी छात्र-छात्राएं मौजूद हैं. आपके आने के बाद मुझे पता चला कि यहां परीक्षा दे रहे छात्रों में कुछ फर्जी भी हैं. मैंने इस बात की जानकारी अपने सीनियर को दे दी है.
फर्जी कैंडिडेट्स की परीक्षा रद्द कर दी जाएगी.’ मोहम्मद कैफ ने कौशल विकास योजना में होने वाली परीक्षाओं के बारे में एक ससनीखेज खुलासा भी कर दिया. उन्होंने कहा, ‘मुझे तमाम जिलों के केंद्रों पर परीक्षा लेने जाना पड़ता है. कई जिलों में तो केंद्र संचालक डरा-धमका कर मनमाने तरीके से परीक्षा दिलवाते हैं.’ मुजफ्फरनगर के परीक्षा केंद्र में तो भ्रष्टाचार और गुंडागर्दी की हद हो गई, जब वहां हमारे सामने पिस्टल निकालकर रख दी गई और हथियार के बल पर वे परीक्षा देते रहे.
केंद्र संचालक की भूमिका संदिग्ध पाई गई
सीतापुर में प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत महेंद्रा ग्रुप द्वारा संचालित केंद्र के प्रभारी अनुज कुमार वहां हो रही परीक्षा में गड़बड़ी से अनजान बनकर इधर-उधर की बातें करते रहे. इसी मौके का फायदा उठा कर उन्होंने कुछ फर्जी छात्रों को केंद्र से भगा भी दिया. उन फर्जी छात्रों के बारे में जानकारी मांगने पर उन्होंने कहा, ‘बच्चे लंच करने गए हैं.’ भागे हुए फर्जी बच्चे काफी इंतजार के बावजूद वापस लौटकर नहीं आए.
फर्ज़ी आधार कार्ड भी बनाते हैं ये धंधेबाज़
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना को केंद्रों के माध्यम से संचालित करने वाले लोग पैसों के लोभ में इस कदर अंधे हो चुके हैं कि उन्हें नकली प्रमाणपत्र बनाने जैसा अपराधिक कृत्य करने से भी कोई गुरेज नहीं है. सीतापुर में महेंद्रा ग्रुप द्वारा संचालित प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना में फर्जी छात्रों को परीक्षा देते हुए पाया गया, लेकिन यह मामला तब और सनसनीखेज हो गया, जब उन छात्र-छात्राओं के परिचय-पत्र की सनद के रूप में रखे गए आधार-कार्ड ही नकली साबित हुए. जानकारी लेने पर पता चला कि ये आधार-कार्ड प्रधानमंत्री कौशल विकास केंद्र द्वारा ही मुहैया कराए गए थे.
हुनरमंद बनाना नहीं, धन उगाही है मुख्य धंधा
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत कार्य कर रहे लोगों के लिए यह योजना सोने का अंडा देने वाली मुर्गी साबित हो रही है. इस योजना से जुड़े तमाम लोग और जिम्मेदार दिन पर दिन धनवान होते चले जा रहे हैं. सरकारी धन का वारा-न्यारा करने में लगे हैं. योजना के तहत देश के नौजवानों को हुनरमंद बनाने के बजाए, इसे अवैध धंधे में तब्दील कर दिया गया है. प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी कौशल विकास योजना को लागू करने के बाद इसे देश के प्रत्येक नगरों में केंद्रों के रूप में संचालित किया जा रहा है.
इन्हीं केंद्रों की क्षमता के हिसाब से इन्हें छात्र-छात्राओं की संख्या का लक्ष्य मिलता है. प्रत्येक छात्र के लिए 1500 से 1700 रुपए तक सरकार द्वारा भुगतान किया जाता है. केंद्रों के मेधावी छात्रों को पुरस्कृत भी किया जाता है. केंद्र में छात्रों की तादाद के हिसाब से शिक्षकों का भी चयन किया जाता है. नियम और शर्तों के मुताबिक, उत्तीर्ण छात्रों को ही भुगतान करना होता है. यही शर्त भ्रष्टाचार का स्त्रोत साबित हो रही है. लूट का गणित इस तरह समझें कि अगर किसी केंद्र को तीन हजार छात्रों का ठेका मिलता है और उसमें एक हजार छात्रों ने ही दाखिला कराया तो दो हजार फर्जी तौर पर दाखिल करा दिए जाते हैं, ताकि केंद्र की मान्यता खतरे में न पड़ जाए और गिनती के हिसाब से भुगतान भी हो जाए.
ये दो हजार फर्जी छात्रों का भुगतान योजना के कर्ता-धर्ताओं की जेब में चला जाता है, यानि प्रति छात्र 1700 रुपए के हिसाब से तीन करोड़ चालीख लाख रुपए हड़पायनमः हो जाते हैं. सरकारी धन की इस सामूहिक लूट में प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना की साझीदार महेंद्रा ग्रुप शामिल है. इस ग्रुप का सीतापुर जिले में नवीन चौक पर संचालित केंद्र भीषण घालमेल का माध्यम बना हुआ है. केंद्र में पिछले वर्ष छात्र-छात्राओं की संख्या तकरीबन तीन हजार थी. इस वर्ष अभी तक 600 ही हो पाई है. इसीलिए संख्या पूर्ण करने में फर्जी संसाधन का उपयोग हो रहा है. केंद्र के संचालकों द्वारा सरकारी धन की लूट और देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ जारी है.
कौशल विकास के नाम पर बुंदेलखंड में भी अखंड भ्रष्टाचार
उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों में भी प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना भ्रष्टाचार का जरिया बनी हुई है. योजना भ्रष्टों और दलालों के कब्जे में है. झूठे सर्टिफिकेट से अंधाधुंध कमाई चल रही है. कपड़ा मंत्रालय का इंटिग्रेटेड स्किल डेवलपमेंट स्कीम (आईएसडीएस) प्रोजेक्ट पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप यानि पीपीपी मॉडल पर चलता है. इसमें काम करने वाली एजेंसियों को प्रति उम्मीदवार 10 हजार रुपए की तय राशि की 75 फीसदी सरकारी सब्सिडी से मिलती है. जांच-पड़ताल में पता चला कि जिनको फायदा मिलना था, वे भ्रष्ट बिचौलियों के धोखे का शिकार हुए. केंद्रीय कौशल विकास मंत्री धर्मेंद्र प्रधान चाहे जितना कहते रहें कि मामले की जांच की जाएगी, दोषियों पर सख्त कार्रवाई होगी, यह सब खोखली जुमलेबाजी ही साबित हो रही है.
उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके के दूरदराज वाले गांव चौकिन पुरवा में आईएसडी योजना में फायदा पाने वालों की लिस्ट के मुताबिक, ताराचंद्र एक प्रशिक्षित दर्जी हैं, जिन्होंने मॉडर्न एडुकेशन सोसायटी में सिलाई का प्रशिक्षण लिया है. इसके लिए उन्हें कपड़ा मंत्रालय की ओर से 23 सितम्बर, 2017 को सर्टिफिकेट (नम्बर 17210867803) भी दिया गया. यह विचित्र विडंबना है कि खुद ताराचंद्र कहते हैं कि वे कभी-भी उस केंद्र पर गए ही नहीं. ताराचंद्र के अलावा राकेश को भी सिलाई में प्रशिक्षण के लिए इसी सोसायटी से कपड़ा मंत्रालय की ओर से सर्टिफिकेट (नम्बर 1507398) हासिल हुआ है.
आईएसडीएस की वेबसाइट पर 5 फरवरी 2018 को राकेश को रोजगार पाने वालों में दिखाया गया है. वेबसाइट के मुताबिक, राकेश की 6500 रुपए माहवार की कमाई होती है. लेकिन राकेश का कहना है कि वे किसी ट्रेनिंग के लिए कभी कहीं नहीं गए. अनिता देवी का भी यही हाल है. उन्हें 23 सितम्बर 2017 को जारी सर्टिफिकेट (नम्बर 17210867810) दिया गया. इनका भी नाम आईएसडीएस के फायदेमंद लोगों की सूची में शामिल है. जबकि वह भी फर्जी है. बुंदेलखंड के दूसरे गांवों का भी यही हाल है. चौकिन पुरवा के पास ही अतर्रा गांव में भी यही गड़बड़झाला है.
इस गांव के रामानुज को भी आईएसडीएस के तहत दर्जी होने का सर्टिफिकेट मिल गया है. इन्हें महाराष्ट्र एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग एडुकेशन एंड रिसर्च (माईर) की तरफ से सर्टिफिकेट (नम्बर 17130665810) मिला है, लेकिन रामानुज को पता ही नहीं है कि 2016 में महाराष्ट्र स्थित माईर में उसने ट्रेनिंग कब ले ली. क्योंकि वह कभी बुंदेलखंड से बाहर ही नहीं गया. यह पता चला कि छेदीलाल नाम के एक बिचौलिए ने रामनुज को बेवकूफ बनाया. उसी दलाल ने रामानुज का आधार कार्ड भी ले लिया था.
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के नाम पर फ्रॉड की इंतिहा है, ‘अल फिजा’ नामक सामाजिक संस्था के साथ हुआ अजीबो-गरीब वाकया. बुंदेलखंड के बांदा जिले के अलीगंज स्थित यह संस्था उपेक्षित-वंचित समुदाय के लोगों को व्यवसायिक प्रशिक्षण देती है. कपड़ा मंत्रालय से जुड़े सोनीपत के एक संगठन मॉडर्न एडुकेशन सोसायटी ने इस संस्था को आईएसडीएस कार्यक्रम के तहत पिछले साल 150 महिलाओं को सिलाई में ट्रेनिंग देने के लिए चुना था. ट्रेनिंग क्लास शुरू हुई.
पहले तो लगा कि सब ठीक-ठाक है, लेकिन अचानक मॉडर्न एडुकेशन सोसायटी के इंस्पेक्टरों ने संस्था में आना बंद कर दिया. जानकारी हासिल करने पर पता चला कि है ‘अल फिजा’ संस्था से 146 महिलाओं को पहले ही ट्रेनिंग मिल चुकी है. उनमें 95 महिलाओं को काम भी मिल गया. संस्था का कहना है कि वहां ट्रेनिंग लेने वालों को न तो कोई कोर्स सर्टिफिकेट मिला और न प्रोग्राम कराने के लिए उन्हें कोई भुगतान ही दिया गया. जबकि सोनीपत के मॉडर्न एडुकेशन सोसायटी ने एक करोड़ 12 लाख रुपए का भुगतान भी सरकार से प्राप्त कर लिया. भ्रष्टाचारियों ने बुंदेलखंड जैसे पिछड़े इलाके को कौशल विकास योजना के नाम पर शिकारगाह बना कर रख दिया है. लोगों का कहना है कि व्यावसायिक प्रशिक्षण का झूठा भरोसा देकर बिचौलिए और दलाल गांव वालों के आधार कार्ड इकट्ठा कर ले जाते हैं. लेकिन गांव वालों को धोखे के अलावा कुछ नहीं मिलता.