वाशिंद्र मिश्र
दुनिया ने अब तक कई तानाशाह देखे हैं … कुछ ऐसे तानाशाह हैं जिन्हें उनकी क्रूरता की वजह से पूरी दुनिया जानती है .. कुछ ऐसे तानाशाह हैं जिनकी वजह से लाखों लोगों की जानें गईं और इस तरह उन्होंने इतिहास में अपनी जगह बना ली…. वहीं कुछ ऐसे तानाशाह हुए हैं जिनके फैसले की वजह से उनके देश की कई पीढियों ने सज़ा पाई है …एक ऐसा ही तानाशाह हुआ है सपरमूरत नियाजोव
सोवियत युनियन से अलग होने के बाद तुर्कमेनिस्तान का पहला राष्ट्रपति बना था सपरमूरत नियाजोव….लेकिन बहुत जल्द उसने खुद को प्रेसीडेंट ऑफ लाइफ अनाउंस कर दिया…. देश के राष्ट्रपति रहते हुए नियाजोव ने ना सिर्फ खुद के लिए अपना असीमित प्यार लोगों को दिखाया बल्कि उनके रहन-सहन के लिए भी नियम कायदे बना दिए … ये एक तानाशाह था जिसने ये भी तय किया कि लोग पढेंगे क्या ..
सपरमूरत नियाजोव का जन्म 1940 में तुर्कमेनिस्तान की राजधानी एशगैबैट के महज 10 किलोमीटर दूर किपचक नाम की जगह पर हुआ था … उस वक्त तुर्कमेनिस्तान सोवियत संघ का हिस्सा था .. सपरमूरत नियाजोव के पिता स्कूल शिक्षक थे लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने सोवियत संघ की रेड आर्मी ज्वाइन कर ली थी… कहते हैं कि युद्ध के दौरान उन्होंने भागने की कोशिश की जिसके बाद मिलिट्री कोर्ट ने उन्हें मौत की सज़ा दी थी .. हालांकि सपरमूरत नियाजोव की आधिकारिक बायोग्राफी में उनके युद्ध के दौरान शहीद होने की बात कही गई है … कहते हैं कि नियाजोव की पूरी फैमिली 1948 में एशगैबैट में आए एक भयानक भूकंप में मारी गई थी …महज 8 साल की उम्र में अनाथ हुआ नियाजोव कुछ दिन तक अनाथालय में रहा बाद मे सरकार ने उसकी कस्टडी दूर के रिश्तेदार को सौंप दी ..
बड़े होने पर नियाजोव ने लेनिनग्राड पॉलीटेक्नीक स्कूल से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा हासिल कर आगे की बढ़ाई के लिए रूस चला गया .. हालांकि बहुत नियाजोव पढ़ाई में काफी कमजोर होने की वजह से बाहर कर दिया गया … शायद यहीं से नियाजोव के तानाशाह बनने कहानी शुरू हुई …
नियाजोव ने 1961 में कम्युनिस्ट पार्टी ज्वाइन कर ली थी .. बहुत जल्द उसे एशगैबैट सिटी कमिटी का सेक्रेटरी बना दिया गया … 1985 आते आते राजनीति में नियाजोव ने कितनी शक्ति हासिल कर ली थी इसका अंदाजा इस घटना से लगाया जा सकता है कि सोवियत संघ के जेनरल सेक्रेटरी रहे मिखाइल गोर्बाचोव ने तुर्कमेनिस्तान के कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव गापुरोव को भ्रष्टाचार के पद से हटाया तो इस पद पर नियाजोव की नियुक्ति की.. 1990 आते आते नियाजोव इस पार्टी का चेयरमैन बन चुका था … 1991 में नियाजोव ने इस पार्टी का नाम बदलकर डेमोक्रैटिक पार्टी ऑफ तुर्कमेनिस्तान कर दिया था … ये वही साल था जिसमें सोवियत संघ का विघटन हुआ … इस विघटन में नियाजोव भी गोर्बाचोव के खिलाफ रहे सोवियत संघ के नेताओं में शुमार था.. इसके बाद आजाद हुए तुर्कमेनिस्तान पर खुद को कम्युनिस्ट विचारधारा से जोड़ने वाली नियाजोव की डेमोक्रैटिक पार्टी ऑफ तुर्कमेनिस्तान ने सत्ता हासल कर ली और नियाजोव देश का राष्ट्रपति बन गया ..अगले साल देश में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हुए … इस चुनाव में नियाजोव अकेला उम्मीदवार था लिहाजा वो लोकतांत्रिक तरीके से चुना गया राष्ट्रपति बन गया जिसे 99 फीसदी से ज्यादा वोट मिले… बहुत जल्द नियाजोव ने खुद को तुर्कमेनबाशी यानि लीडर ऑफ ऑल तुर्कमेनिया घोषित कर दिया था .. 1994 में कथित तौर पर एक जनमत संग्रह के जरिए नियाजोव ने अपना कार्यकाल 2002 तक बढ़ा लिया था … सपरमूरत नियाजोव उर्फ तुर्कमेनबाशी ने सत्ता हासिल करने के बाद कभी भी तुर्कमेनिस्तान में स्वतंत्र चुनाव नहीं होने दिया … 1999 में चुनाव के वक्त नियाजोव ने सारे उम्मीदवार खुद तय किए थे लेकिन इसके कुछ दिनों बाद ही नियाजोव ने संसद से खुद को प्रेसीडेंट ऑफ लाइफ घोषित करवा लिया … इसके साथ ही उसने भविष्य़ में मिलने वाली किसी भी चुनौती को खत्म कर लिया था … यहां से देश में उसकी मनमानी चलने वाली थी … बहुत जल्द नियाजोव ने खुद को तानाशाह की तरह स्थापित कर लिया था …. धीरे-धीरे लोगों से मानवाधिकार छिनने लगे ..
देश में प्रेस और धर्म की स्वतंत्रता पर सवाल खड़े होने लगे थे… देश में मौजूद सभी मीडिया हाउस पर तुर्कमेनिस्तान की सरकार का कब्जा हो चुका था … 1994 आते आते नियाजोव ने रूहनामा से एक किताब लिखी थी .. ये किताब दरअसल नियाजोव की अपनी नैतिक और आध्यात्मिक विचारधारा थी जिसे देश के हर धर्म के लोगों के ऊपर थोप दिया गया …यहां तक कि स्कूल में बच्चों को रूहनामा पढ़ाना ज़रूरी कर दिया गया था … कहते हैं कि इस किताब के जरिए नियाजोव अपने देश की अलग संस्कृति बनाना चाहता था …. कहते हैं कि अपनी विचारधारा वाली इस किताब के लिए नियाजोव इतना सनकी था कि 2006 में उसने ये दावा किया कि इस किताब को 3 बार पढ़ने वाले छात्र को जन्नत नसीब होगी … नियाजोव के कार्यकाल में तुर्कमेनिस्तान की राजधानी में ये किताब एक स्मारक के रूप में भी बनाई गई …. 2002 में तुर्कमेनिस्तान में सितंबर के महीने का नाम रूहनामा रखा गया और 2005 में इस नाम से एक युनिवर्सिटी का निर्माण शुरू कर दिया गया था हालांकि इसके अगले साल ही नियाजोव की मौत हो गई थी …
नियाजोव ने राष्ट्रपति रहते हुए कई तरह के बदलाव करने शुरू कर दिए थे .. वो खुद से बहुत प्रभावित था .. उसने जगह जगह अपनी प्रतिमाएं बनवानी शुरू कर दीं .. देश के हर कोने में या तो नियाजोव की प्रतिमा या फिर उसकी विशालकाय तस्वीरें दिखने लगीं … तुर्केमेनिस्तान की राजधानी एशगैबैट में नियाजोव में अपनी 15 मीटर ऊंची सोने की परत चढ़ी प्रतिमा बनवाई जिसमें उसका चेहरा सूरज की दिशा के मुताबिक घूमता रहता था .. इस प्रतिमा को आर्क ऑफ न्यूट्रैलिटी का नाम दिया गया ..
तुर्कमेनिस्तान की अधिकांश जनता गरीबी में जीवन जी रही थी, लेकिन नियाजोव ने राजधानी में एक बर्फ का महल बनवाया और कारा कुम रेगिस्तान के बीचों बीच झील बनाने का भी आदेश दिया ….इतना ही नहीं उसने रेगिस्तान की जलवायु बदलने के लिए एक विशाल जंगल बनाने के भी आदेश दिए .. उसने अपने नाम पर शहर और पार्क बनवाए…. यहां तक कि उसने जनवरी महीने का नाम बदलकर अपने नाम पर कर दिया..और अप्रैल महीने का नाम नियाजोव ने अपनी मां के नाम पर रखा था… अपने कार्यकाल में नियाजोव ने नाटक, ओपेरा को तो प्रतिबंधित किया ही पुरुषों के लंबे बाल रखने पर भी प्रतिबंध लगाया … 1997 में नियाजोव ने एक सर्जरी के बाद स्मोकिंग छोड़ दी थी इसके बाद उसने अपने सारे मंत्रियों को भी स्मोकिंग छोड़ने पर मजबूर कर दिया.. इसके अलावा सेना में नहीं रहते हुए भी नियाज़ोव के पास मार्शल की रैंक थी और पांच बार उसे तुर्कमेनिस्तान के हीरो की उपाधि से सम्मानित किया गया … खुद को तुर्कमेनबाशी कहने वाले नियाजोव के साथ बैठक के दौरान, अधिकारियों को उनके दाहिने हाथ को चूमना होता था जिसमें वो पन्ना और हीरे जड़ी अंगूठियां पहना करता था..
इसके अलावा भी नियाजोव ने कई अजीबोगरीब फैसले लिए… 2004 में नियाजोव ने एक आदेश दिया जिसके तहत उसके देश में किसी को भी सोने के दांत रखने की इजाज़त नहीं थी .. उसने पुरूषों को गाड़ियों में रेडियो सुनने पर प्रतिबंध लगा दिया था… . उसने शादियों समेत किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रमों में रिकॉर्ड किया गया म्यूजिक बजाने पर पाबंदी लगा दी … नियाजोव ने मध्य एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद बनवाई जिसे स्पिरिट ऑफ तुर्कमेनबाशी कहा जाता है … कहते हैं इसमें 60 मिलियन पाउंड का खर्च आया था ..
नियाजोव अपने खिलाफ आवाज उठाने वाले लोगों को उनके घरों से बाहर नहीं निकलने देता था…. इतना ही नहीं विरोध करने वाले लोगों को हिरासत में ले लिया जाता और उन्हें मेंटल हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया जाता … नियाजोव के कार्यकाल में देश से लोगों के आने जाने पर भी कड़ी नज़र रखी जाती .. नियाजोव लाख कोशिशों के बाद भी तुर्कमेनिस्तान में रहे लोगों की हालत दुनिया से छुपा नहीं पाया था … सारे न्यूजपेपर, रेडियो और टेलीविजन पर कब्जे, साइबर कैफे और इंटरनेट पर नियाजोव की रोक के बावजूद उसकी कारस्तानियां सामने आ रही थीं … नियाजोव ने राजधानी के बाहर सभी लाइब्रेरी पर भी रोक लगा दी उसका मानना था कि तुर्कमेनिस्तान के लोगों को सिर्फ कुरान और रूहनामा पढ़नी चाहिए .. रूहनामा खुद नियाजोव की लिखी हुई किताब थी…
2004 में नियाजोव ने अपने तानाशाही फैसले में 15 हजार हेल्थ वर्कर्स को नौकरी से निकाल दिया था … 2005 आते आते उसने राजधानी के बाहर के सारे अस्पताल बंद करा दिए … और दलील दी कि सभी बीमारों को राजधानी में ही आकर इलाज कराना चाहिए .. एक अखबार की खबर के मुताबिक तुर्कमेनिया में डॉक्टर्स को हिप्पोक्रैटिक ओथ की जगह नियाजोव के नाम की शपथ दिलाई जाती थी ..
नियाजोव के कार्यकाल में देश में मानवाधिकार की हालत एशिया के सभी देशों के मुकाबले सबसे खराब थी … पत्रकारों के लिए ये देश सबसे खतरनाक देशों की सूची में लगातार बना रहा ..
2002 में कथित तौर पर नियाजोव की हत्या की कोशिश की गई थी … नियाजोव के घर से ऑफिस जाते वक्त उसके काफिले पर हमला किया गया .. नियाजोव ने इस हमले को तख्तापलट की साजिश करार दिया … नियाजोव ने अपने दो विरोधियों पर इसके आरोप लगाए जो देश से निकाले जाने की वजह से उस वक्त रूस में रह रहे थे .. हालांकि बाद में इसके बारे में ये तथ्य भी दिए गए कि इस हमले के पीछे खुद नियाजोव था … ताकि इस हमले के आरोप में वो अपने सैकड़ों विरोधियों के खिलाफ कार्रवाई कर सके और दुनिया भर में खुद के लिए सहानुभूति भी जुटा सके … इस बहाने राजधानी एशगैबैट की हर सड़क, हर गली में सीसीटीवी कैमरे लगा दिए गए ताकि भविष्य़ में ऐसी कोई घटना ना हो सके …
आखिरकार 2006 में दिल का दौरा पड़ने से नियाजोव की मौत के बाद ही देश को उससे आजादी मिल पाई .. लोग कहते हैं कि उसके निधन के कई दिनों पर बाद इसकी आधिकारिक सूचना दी गई … इसके बाद देश ने उसका पतन भी देखा .. उसके निधन के बाद देशभर में फैली लगभग 14000 प्रतिमाएं और चित्र हटाने का काम शुरू हुआ .. 2011 आते आते राजधानी एशगैबैट में लगी प्रतिमा आर्क ऑफ न्यूट्रैलिटी को भी हटा दिया .. इसे अब शहर के बाहरी इलाके में लगा दिया गया है लेकिन अब नियाजोव की प्रतिमा घूमती नहीं है … हालांकि अब भी नियाजोव की कुछ प्रतिमाएं एशगैबैट में मौजूद हैं .. और देश में हालात में कुछ ज्यादा बदलाव नहीं आ पाए हैं .. आरोप है कि नियाजोव ने जिस तरह का आदर्श स्थापित किया अब भी वहां की सियासत पर काबिज लोग वही अपना रहे हैं ..