आज की तारीख़ में छत्तीसगढ़ की राजनीति के केंद्र में किसान हैं. किसान आंदोलन के बाद से दो किसानों की आत्महत्या की खबर आई है. मृतक किसानों के परिजनों का कहना है कि किसानों ने आत्महत्या कर्ज़ की वजह से की है, लेकिन प्रशासन का कहना है कि मौत की वजह पारिवारिक कलह थी. इस घटना के बाद ही कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल मृतक किसान के घर मिलने के लिए रवाना हो गए थे. इस पर तंज कसते हुए प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा कि किसान आंदोलन राजनीति से प्रेरित है और विपक्ष इसे भड़काने की कोशिश कर रहा है.
इस बीच प्रशासन ने राजनांदगांव के किसान भूषण गायकवाड़ की मौत की वहज पारिवारिक कलह बताया. इसका कारण बताया गया कि भूषण ने सुसाइड नोट में अपनी प्रॉपर्टी में पत्नी को हिस्सा नहीं देने की बात कही है. इस मामले की जांच कर रहे अशोक साहू से जब चौथी दुनिया ने बात की तो उन्होंने बताया कि यह मामला पूरी तरह से पति-पत्नी के विवाद का है. सुसाइड नोट में कहीं भी आर्थिक कारण का ज़िक्र नहीं किया गया है. न ही किसी परिजन ने अपने बयान में ऐसी कोई बात कही है.
इस मामले में जब भूषण गायकवाड़ के भाई जीवराखन गायकवाड़ से बात की गई, तो उन्होंने बताया कि उनके भाई पर 8-10 लाख रुपए कर्ज था, जिसमें उसके ट्रैक्टर की किस्त और बाज़ार का कर्ज़ भी शामिल है. इसके अलावा केसीसी लोन भी है. कुछ दिन पहले उसकी पिकअप दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी, जिसे बनाने में काफी खर्च आया था. हालांकि पुलिस का कहना है कि भूषण के पिकअप का केवल टायर फटा था.
जीवराखन बताते हैं कि उसकी 10 एकड़ में लगी करेले की फसल खराब हो गई थी, जिसके कारण वो काफी निराश था. हालांकि वे मानते हैं कि भूषण का अपनी पत्नी से अक्सर विवाद रहता था. इसके बावजूद उनका कहना है कि अगर सिर्फ पारिवारिक दबाव का मामला होता, तो भूषण इतना बड़ा कदम नहीं उठाता. आर्थिक कारणों ने उसे अंदर-ही-अंदर तोड़ दिया था. उस पर काफी कर्ज चढ़ गया था. सवाल है कि जो बात किसान के परिजन बता रहे हैं, उसे पुलिस जान-बूझकर झूठ क्यों साबित करना चाहती है?
छत्तीसगढ़ किसान मजदूर महासंघ के प्रतिनिधि राजकुमार गुप्ता भी मौत की वही वजह बता रहे हैं, जो भूषण के भाई जीवराखन गायकवाड़ ने कही है. राजकुमार गुप्ता रविवार को भूषण के घर गए थे. उनका कहना है कि उसके खेतों में चार बोर लगे थे, जिसमें से 2 खराब हो गए थे. गुप्ता का कहना है कि मामला मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह के क्षेत्र का होने के कारण स्थानीय प्रशासन लीपापोती में लगा है. गुप्ता का आरोप है कि राज्य में किसानों की आत्महत्या को पुलिस और प्रशासन तथ्यहीन रिपोर्ट पेश कर दबाना चाहती है.
दुर्ग के किसान कुलेश्वर देवांगन ने 12 जून को खुदकुशी कर ली थी. राजकुमार गुप्ता ने बताया कि प्रशासन ने कुलेश्वर को मानसिक रूप से कमज़ोर बता दिया, जो संविधान के आर्टिकल 21 का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन है. उन्होंने कहा कि बिना किसी मेडिकल जांच के प्रशासन ने कुलेश्वर को मानसिक कमज़ोर कैसे बता दिया? उन्होंने कहा कि इस मामले को वे जल्द मानवाधिकार आयोग लेकर जाएंगे.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, देश में खुदकुशी करने वाले किसानों के साथ आर्थिक परेशानियों के अलावा अन्य वजहें भी जुड़ी रहती हैं. करीब 11.7 प्रतिशत खुदकुशी करने वाले किसान पारिवारिक परेशानियों और 2 प्रतिशत शादी की समस्या से जूझ रहे होते हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ में शासन को जब आत्महत्या करने की दूसरी वजह मिल जाती है, तो पहली ठोस वजह खारिज़ कर दी जाती है.
अगर राजकुमार गुप्ता के आरोप सही हैं, तो फिर सवाल है कि आखिर क्यों पुलिस और प्रशासन किसी भी किसान की खुदकुशी पर पर्दा डालने में जुट जाती है? दरअसल, पूरे देश में किसान आंदोलन को लेकर माहौल गर्म है. मध्यप्रदेश में हालात काफी गंभीर हैं और उसकी आंच छत्तीसगढ़ तक भी पहुंच रही है. कांग्रेस और जेसीसी दोनों ही विरोधी पार्टियों ने इस मुद्दे को मजबूती से पकड़ रखा है. सरकार पहले ही 2100 रुपए धान का समर्थन मूल्य और 300 रुपए बोनस देने का अपना चुनावी वादा नहीं निभा पाई है.
लिहाज़ा किसानों की मौत की सच्चाई सरकार की मुश्किलें और बढ़ा सकती है. सरकार के लिए परेशानी की बात यह है कि किसान लगातार आत्महत्या कर रहे हैं. राजनांदगांव में ही एक और किसान ने खुदकुशी कर ली है. मुख्यमंत्री के गृहक्षेत्र कवर्धा में लोहारा ब्लॉक के 60 साल के किसान रामझूल साहू ने फंदा लगाकर खुदकुशी कर ली है.
हालांकि प्रशासन का कहना है कि उसके मौत की वजह का पता नहीं चला है. पुलिस को आशंका है कि उसने सांस की बीमारी से परेशान होकर खुदकुशी कर ली होगी. सरकार के लिए परेशानी का सबब यह है कि मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह के उस बयान के बाद भी किसान आत्महत्या कर रहे हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि प्रदेश में किसानों की स्थिति बहुत अच्छी है. यहां किसान अपना सारा कर्ज वापस कर देते हैं, क्योंकि उन्हें ऋृण पर कोई ब्याज़ नहीं लगता. आंकड़ों के मुताबिक ये करीब सालाना 3200 करोड़ रुपये का है. सवाल यह है कि आखिर इसके बाद भी किसान क्यों खुदकुशी कर रहे हैं? सच यही है कि सरकार की कई कल्याणकारी योजनाओं के बाद भी किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं.
दरअसल सरकार आंकड़ों की बाज़ीगरी कर अपनी छवि पेश कर रही है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में 32 लाख किसान हैं. इनमें से इस ऋृण की पात्रता प्रदेश के करीब 10 लाख 50 हज़ार उन किसानों तक है, जो नाबार्ड में पंजीकृत हैं. प्रदेश में 76 फीसदी सीमांत और लघु किसान हैं, जो इसके दायरे से बाहर हैं.
सरकार जिस ऋृण को शून्य ब्याज़ दर पर देने की बात कहती है, वह केवल अल्पकालीन कृषि ऋृण है जो खाद और बीज के लिए दिए जाते हैं. यानी जो इस ऋृण के दायरे में हैं, उन्हें भी केवल खाद और बीज के लिए शून्य प्रतिशत दर पर कर्ज़ मिलता है. जबकि ट्रैक्टर समेत खेती के अन्य उपकरणों और महंगे कीटनाशकों के लिए बाजार दर पर ऋृण लेना होता है. जिन लोगों को बैंक से लोन नहीं मिल पाता, वे लोग साहूकारों से कर्ज लेने को विवश हैं, जिसकी दर ज़्यादा होती है. बैंक हो या साहूकार ऋृण वसूली को लेकर वे किसानों पर जबरदस्त दबाव डालते हैं. बैंक व साहूकार के आदमी किसानों के घर वसूली के लिए बार-बार पहुंच जाते हैं. एक ग्रामीण परिवेश में किसानों के लिए यह स्थिति बहुत ही अपमानजनक होती है.
राज्य का प्रशासनिक तंत्र किसी किसान की खुदकुशी को इस आधार पर खारिज करने की कोशिश करता है कि किसान साधन-संपन्न था. लेकिन संपन्न किसान के आत्महत्या करने की बड़ी वजह उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचना है. समस्या ये है कि सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नहीं, बल्कि पूरे देश में किसानों के लिए ऐसी कोई लोककल्याणकारी योजना नहीं है, जो उन्हें बाज़ार के कर्ज़ जाल से बाहर निकाल सके. फिर सत्ता चाहे बीजेपी की हो या कांग्रेस की, इसलिए देश में किसानों की खुदकुशी रुक नहीं रही है.