लालू को मोदी विरोध महंगा पड़ा. लोकसभा चुनाव के बाद से शुरू हुआ मोदी विरोध बिहार विधानसभा के चुनाव के बाद जितना तल्ख होता गया लालू के खिलाफ कानून का घेरा उतना ही तंग होता गया. लालू के मुखर विरोध का मोदी ने मौन जवाब दिया. मोदी के जाल में लालू ऐसे फंसे कि उनका पूरा परिवार ही चपेटे में आ गया.
बिहार के सबसे दबंग और प्रभावशाली लालू परिवार के राजनीतिक भविष्य पर कानूनी संकट खड़ा हो गया है. लालू परिवार अरबों रुपए की बेनामी सम्पत्ति मामले में फंस गया है. आयकर विभाग ने लालू परिवार की कई बेनामी सम्पत्तियां जब्त कर ली हैं और लालू की बेटी मीसा यादव समेत परिवार के अन्य सदस्यों से आयकर विभाग सघन पूछताछ कर रहा है.
पूछताछ की अगली बारी पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, उनके बेटे व बिहार के स्वास्थ्य मंत्री तेजप्रताप और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की आने वाली है. मामला राजनीतिक नहीं है, कानूनी है. राजनीतिक मुद्दा रहता तो लालू उसे अपनी स्टाइल में निपट लेते, लेकिन मामला आर्थिक अपराध का है इसलिए चाहकर भी लालू कुछ करने की स्थिति में नहीं हैं. आयकर विभाग की ताबड़तोड़ कार्रवाई बता रही है कि मामला अंजाम तक पहुंचेगा.
लालू और उनका परिवार बार-बार सफाई दे रहा है कि सम्पत्ति के लेन-देन में कोई अनियमितता नहीं बरती गई है. सारा लेन-देन पारदर्शी है और छानबीन में संबंधित विभाग को पूरी जानकारी दे दी जाएगी. लेकिन लालू परिवार की बेचैनी बताती है कि लेन-देन उतना भी पारदर्शी नहीं है. आयकर विभाग के अधिकारी कहते हैं कि मामला जटिल है, जो प्रमाण जुटाए गए हैं उन्हें झुठलाना लालू प्रसाद और उनके परिवार के लिए आसान नहीं होगा. आयकर विभाग की पूछताछ में मीसा भारती संतोषजनक जवाब नहीं दे पाईं. यह बात भी लालू को परेशान कर रही है.
लालू प्रसाद बार-बार दोहरा रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विरोध का स्वर सुनना नहीं चाहते, इसलिए उन्हें फंसाने की साजिश रची जा रही है. लालू कहते हैं, ‘मैं ही नहीं, जो कोई भी नरेंद्र मोदी के खिलाफ बोल रहा है वह केंद्रीय एजेंसियों का शिकार हो रहा है, चाहे वह ममता बनर्जी हों या फिर पी चिंदबरम.
हमलोगों को मिलकर फासीवादी ताकतों को जवाब देना होगा.’ लालू प्रसाद का यह बयान कुछ हद तक राजनीतिक है और कुछ हद तक तात्विक. लालू इस समय विपक्षी एकता के अभियान में काफी सक्रिय हैं. वे इस सिलसिले में ममता बनर्जी से बात कर रहे हैं और अखिलेश यादव से भी संवाद में हैं. यूपी में अखिलेश और मायावती को एक करने के लिए भी लालू काफी पसीना बहा रहे हैं. सोनिया गांधी से लेकर शरद पवार तक से लालू के अच्छे रिश्ते हैं.
2019 की लड़ाई के लिए खासकर यूपी और बिहार में लालू प्रसाद अभी से राजनीतिक बिसात बिछाने में लगे हैं. मामला नोटबंदी का हो या फिर राष्ट्रपति के चुनाव का, लालू प्रसाद विपक्ष की आवाज बनकर उभरे हैं. लालू प्रसाद का सक्रिय विरोध भाजपाइयों को सोहा नहीं रहा है. इसलिए हर कोशिश हो रही है कि लालू प्रसाद को कानून के फंदे में ऐसे कस दिया जाए कि राजनीतिक सक्रियता का वक्त ही न मिले. लालू के खास समर्थक शिवानंद तिवारी कहते हैं, ‘लालू यादव को खलनायक साबित करने का अभियान चल रहा है. कुछ अखबार भी
जाने-अनजाने इस अभियान का हिस्सा बन रहे हैं. लालू परिवार पर एक हजार करोड़ रुपए की बेनामी सम्पत्ति और टैक्स चोरी की खबर प्रमुखता से छापी गई. एक हजार करोड़ रुपए की बेनामी सम्पत्ति की खबर के बीच में इनकम टैक्स विभाग के हवाले से यह लिखा गया है कि दिल्ली-एनसीआर और पटना में लालू परिवार की कई अचल सम्पत्ति जब्त की गई है. इनमें जमीन, प्लॉट और इमारतें शामिल हैं. लालू परिवार ने इन सम्पत्तियों की कीमत 9 करोड़ 32 लाख रुपए बताई है. लेकिन इनकम टैक्स विभाग के मुताबिक इन सम्पत्तियों का मौजूदा बाजार मूल्य 170 से 180 करोड़ रुपए है. दरअसल विवाद का मूल यही है.
इनकम टैक्स विभाग आज का बाजार मूल्य बता रहा है. लेकिन जिस समय इन सम्पत्तियों को खरीदा गया तब इनका बाजार मूल्य 9 करोड़ 32 लाख रुपए था. यही बात लालू परिवार को साबित करनी है. देशभर में ऐसे हजारों विवाद इनकम टैक्स विभाग में चलते रहते हैं. लालू परिवार पर एक हजार करोड़ रुपए की बेनामी सम्पत्ति और कर चोरी का आरोप बेबुनियाद, आधारहीन और पूर्वाग्रह से ग्रसित है.’ इसके बरक्स सुशील मोदी कहते हैं, ‘कानून अपना काम कर रहा है और जिन्होंने भी गलत किया है उन्हें सजा मिलनी चाहिए. कहा जा रहा था कि भाजपा नेता केवल प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं.
अब केंद्रीय एजेंसियां कार्रवाई कर रही हैं तो नीतीश कुमार खामोश क्यों हैं. आखिर तेजप्रताप और तेजस्वी यादव को मंत्रिमंडल से बाहर क्यों नहीं किया जा रहा है? भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीतीश कुमार की नीति को अब क्या हो गया? नीतीश कुमार का सत्ता मोह उन्हें तेजप्रताप और तेजस्वी के खिलाफ कार्रवाई से रोक रहा है.’ बहरहाल, सूबे में अभी दोनों ही खेमों की ओर से आरोप और प्रत्यारोप का दौर जारी है.
आरोप प्रत्यारोप और कहने सुनने वाली बातों को छोड़ कर हम लालू परिवार पर आयकर शिकंजे के पीछे की गुत्थियों को समझने के लिए बिहार की राजनीति के फ्लैशबैक में चलते हैं. नीतीश कुमार द्वारा भाजपा का साथ छोड़ने और लोकसभा चुनाव में उम्मीद के मुताबिक सफलता हासिल न होने के बाद जदयू के सामने दो रास्ते बच गए थे. उस समय जदयू दो विकल्पों को लेकर दो खेमों में बंटा था. पहले खेमे के लिए पहला और आसान विकल्प यह था कि पुरानी दोस्ती एक बार फिर कायम कर ली जाए.
सबसे बड़ा आधार बिहार का विकास और सूबे को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने वाली मुहिम थी. नरेंद्र मोदी और इनकी सरकार को उस समय इसमें कोई दिक्कत भी नहीं थी और बात कुछ आगे भी बढ़ गई. लेकिन नरेंद्र मोदी की प्रचंड जीत ने नीतीश कुमार को संशकित कर दिया. उस समय जदयू के एक खेमे ने उन्हें यह राय दी कि अभी नरेंद्र मोदी से अपनी शर्तों पर हाथ मिलाना संभव नहीं है.
देश का मिजाज अभी मोदीमय है. इसलिए जल्दबाजी में कोई फैसला लेना ठीक नहीं होगा. दूसरा, यह संदेश भी जाएगा कि जदयू मौकापरस्ती की राजनीति कर रही है. इन दो तर्कों के आधार पर उस समय नीतीश कुमार ने यह तय किया कि अभी रुका जाए और राजनीति की दशा-दिशा कुछ आगे बढ़ने दी जाए. इसके बाद ही जदयू का दूसरा खेमा सक्रिय हुआ और उसने नीतीश कुमार पर लालू प्रसाद से हाथ मिलाने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया. विधानसभा चुनाव का समय नजदीक आ रहा था और जदयू में लालू समर्थक खेमा लगातार यह दबाव बना रहा था कि महागठबंधन बनाकर नरेंद्र मोदी को करारा जवाब दिया जा सकता है.
नरेंद्र मोदी से खार खाए प्रशांत किशोर की भी उसी समय सत्ता के गलियारे में इंट्री हुई और उन्होंने भी नीतीश कुमार को यह गणित समझाया कि लालू प्रसाद और कांग्रेस के वोटों को जदयू के वोटों में मिला दिया जाए, तो फिर नरेंद्र मोदी का जादू बेअसर किया जा सकता है. दूसरी तरफ, भाजपा को भी लगने लगा कि वह अपने बलबूते बिहार की सत्ता पर काबिज हो सकती है. पार्टी को नरेंद्र मोदी के जादू पर भरोसा इस कदर था कि उसने अपनी सहयोगी पार्टियों को भी बहुत तवज्जो नहीं दी. ऐसे हालात में जदयू के अंदर जो भाजपा से हाथ मिलाकर राजनीति करने का पैरोकार खेमा था वह सुस्त पड़ गया. लालू समर्थक खेमा इतना प्रभावी हो गया कि उसने महागठबंधन का निर्माण करा दिया.
चुनाव हुआ, नतीजे आए और सब कुछ महागठबंधन के पक्ष में रहा. लेकिन राजनीति के जानकारों ने उस समय कहा था कि लालू के साथ मिलकर चुनाव लड़ना एक बात है और लालू के साथ मिलकर सरकार चलाना दूसरी बात है. नीतीश सरकार जैसे-जैसे आगे बढ़ती गई यह आशंका सच साबित होती गई. तेजस्वी यादव के विभाग के विज्ञापनों में नीतीश कुमार की तस्वीर का न लगना यह बताने लगा कि परदे के पीछे सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है.
इस बीच नोटबंदी के मुद्दे पर बिल्कुल अलग स्टैंड लेकर नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद को चौंका दिया. लाख दबाव के बावजूद नीतीश कुमार ने अपनी राय नहीं बदली और कहते रहे कि यह एक अच्छा कदम है. लालू प्रसाद को उसी दिन स्पष्ट हो गया कि नीतीश कुमार अपनी मर्जी की ही करेंगे, इसलिए बेहतर होगा कि महागठबंधन की रस्सी को जरूरत से ज्यादा न खींचा जाए नहीं तो यह टूट भी सकती है. इसका असर यह हुआ कि सरकार चलने लगी, लेकिन परदे के पीछे दो ऐसी चीजें अटकी रहीं, जो महागठबंधन की गाड़ी दौड़ने नहीं दे रही थीं. इसी की काट लालू प्रसाद और नीतीश कुमार दोनों अब भी खोज रहे हैं. पहला रोड़ा था बड़े प्रशासनिक तबादले का और दूसरा रोड़ा बोर्ड व निगमों का नए सिरे से गठन का था.
ये ऐसे मामले हैं जिन पर कई प्रयासों के बावजूद तीनों दलों में आमसहमति नहीं बन पाई. डीएम और एसपी के तबादले के मुद्दे पर लालू प्रसाद ने एक बार नीतीश कुमार के कुछ करीबी नेताओं को ऐसी फटकार लगाई कि वे हक्का-बक्का रह गए. इस माहौल में जदयू के उस खेमे को फिर से बल मिला जो पहले से चाह रहा था कि भाजपा के साथ पुरानी दोस्ती फिर से बहाल हो. लालू के व्यवहार से अपमानित वह खेमा उसी दिन से अभियान में लग गया कि कैसे लालू और उनके परिवार को लपेटे में लिया जाए.
महागठबंधन में रहते हुए लालू प्रसाद के खिलाफ जदयू द्वारा सीधा हमला संभव नहीं था, इसलिए लालू विरोधी नेताओं ने रणनीति में बदलाव कर दूसरे तरीके से हमला कराना शुरू कर दिया. सभी जानते हैं कि लालू प्रसाद को नीतीश कुमार के खिलाफ कुछ बोलना होता है, तो वे कभी रघुवंश बाबू तो कभी सांसद बूलो मंडल का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन जदयू के लालू विरोधी नेताओं के लिए इस रणनीति को अपनाना संभव नहीं था.
इसलिए प्लान बदला गया और ऐसे नेता की तलाश हुई, जिसकी बातों को मीडिया वजनदार माने और देश दुनिया में यह बात फैले कि लालू और उनका सारा परिवार बेनामी सम्पत्ति का बेताज बादशाह है. संयोग से सुशील मोदी इस समय पार्टी में हाशिए पर थे और उन्हें भी अपनी इमेज चमकाने के लिए कुछ खास मुद्दे की तलाश थी. यह तय हुआ कि सुशील मोदी को आगे करके लालू प्रसाद पर ताबड़तोड़ हमले किए जाएं ताकि नीतीश कुमार पर लगातार बन रहा दबाव कम हो सके. नोटबंदी के बाद नीतीश कुमार बार-बार कह रहे थे कि नरेंद्र मोदी को अब बेनामी सम्पत्ति वालों पर भी शिकंजा कसना चाहिए.
जदयू का लालू विरोधी खेमा इस इशारे को समझ गया, इसलिए उसने सबसे पहले बेनामी सम्पत्ति के मामले में लालू और उनके परिवार को घेरने की रणनीति बनाई. जदयू का लालू विरोधी खेमा सुशील मोदी को आगे करके अपनी गोटी लाल करने में लग गया. नरेंद्र मोदी सरकार के कुछ मंत्री भी धीरे-धीरे इसमें दिलचस्पी दिखाने लगे और लालू के खिलाफ आरोपों की झड़ी लगाने वाले दस्तावेज पटना और दिल्ली से एक साथ पहुंचने लगे. यह बात अब सभी कहने लगे हैं कि बिना सरकारी मशीनरी के इतने अहम दस्तावेज सुशील मोदी के हाथ लगना असंभव है.
खैर, तेजस्वी यादव के पटना में बन रहे सबसे बड़े मॉल से बात शुरू हुई और धीरे-धीरे इसमें लालू का पूरा परिवार आ गया. लालू विरोधी खेमे का तीर निशाने पर लगा और आरोपों की जो झड़ी सुशील मोदी ने लगाई उसकी गूंज पूरे देश में सुनाई देने लगी. नीतीश कुमार ने इस मामले में बहुत ही ठंडा रवैया अपनाया और यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया कि अगर किसी के पास कोई सबूत है, तो वह उचित जगह पर उसे रखे. केवल मीडिया में बात करने से कुछ नहीं होगा.
लालू खेमा चाहता था कि नीतीश कुमार इस मामले में खुलकर इनका साथ दें, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. लालू खेमे को आभास हो गया कि यह लड़ाई उसे अपनी ही ताकत पर लड़नी है. इसलिए जवाबी कार्रवाई की रणनीति अपनाई गई. राजद प्रवक्ता मनोज झा ने आरोप लगाया कि सुशील मोदी के भाई की कई फर्जी कंपनियां हैं, जो काले धन को सफेद करती हैं. सुशील मोदी को इस मामले में जवाब देना चाहिए. राजद के प्रदेश प्रवक्ता प्रगति मेहता का आरोप है कि एनडीए के कई नेता अरबों रुपए के बेनामी सम्पति के मालिक हैं, लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही है.
लालू प्रसाद चूंकि विपक्षी एकता की धुरी बन गए हैं, इसलिए नरेंद्र मोदी की सरकार फर्जी मामले में लालू परिवार को फंसा कर बदनाम कर रही है. हालांकि राजद सुप्रीमो लालू यादव के ठिकानों पर छापेमारी के बाद पार्टी में विरोध की आवाज उठने से लालू के समक्ष अंदरूनी मुश्किलें भी खड़ी हुई हैं. राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ. हरेंद्र कुमार ने इसी मुद्दे पर पार्टी से इस्तीफा दे दिया और कहा कि लालू यादव पहले से चारा घोटाले में फंसे हुए थे. अब उन्होंने घोटाले में अपने पूरे परिवार को समेट लिया है. ऐसे माहौल में राजद में रहकर काम करना मुश्किल है.
बहरहाल, लगभग तीन महीने से चल रहे इस आरोप-प्रत्यारोप की कहानी के राजनीतिक प्रभाव की समीक्षा करें, तो पाते हैं कि लालू खेमा अभी बैकफुट पर है. लालू कहीं न कहीं अपने ऊपर लगे आरोपों का आक्रामक जवाब देने की स्थिति में नहीं हैं. राजद के अन्य नेता भी प्रतिरोध में ढीले ही साबित हो रहे हैं. राजद और उसके नेता यह बात ठीक से नहीं उठा पा रहे कि दर्जनों नेताओं के पास अकूत बेनामी सम्पत्ति है. उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हो रही. केवल लालू प्रसाद ही निशाने पर क्यों हैं?
भाजपा आलाकमान भी यह समझ चुका है कि लालू और उनका परिवार भ्रष्टाचार के मामले में जितना ही उलझेगा, नीतीश कुमार के साथ सरकार की गाड़ी खींचना उतना ही आसान होगा. लालू जितना ही कानून के फंदे में उलझेंगे नरेंद्र मोदी और अमित शाह के लिए 2019 की लड़ाई बिहार में उतनी ही आसान होती जाएगी. यही वजह है कि लालू प्रसाद बार-बार प्रयास कर रहे हैं कि यूपी में अखिलेश यादव और मायावती एक मंच पर आ जाएं. मायावती से उनकी लगातार बात हो रही है और चर्चा है कि एक बार तो उन्होंने मायावती को बिहार से राज्यसभा भेजने का प्रस्ताव भी दिया था.
लालू चाह रहे हैं कि बिहार की तरह यूपी में भी भाजपा कमजोर हो. जदयू की भाजपा के साथ दोस्ती अगर एक बार फिर परवान चढ़ती है, तो नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की जोड़ी बिहार में कमाल कर सकती है. जाहिर है, 2019 की राजनीतिक बिसात के लिए सभी दल अपनी-अपनी गोटियों बिछाने में लग गए हैं. शह और मात के इस खेल में देखना दिलचस्प होगा कि कौन सी चाल पर किस खेमे को मात मिलती है और कौन सा खेमा बादशाहत बरकरार रख पाता है.
लालू परिवार की ज़ब्त सम्पत्तियां
1.फार्म हाइस नंबर 26, पालम फार्म्स, बिजवासन, दिल्ली
कागजों पर नाम : मिशेल पैकर्स एंड प्रिंटर्स प्रा. लिमिटेड
असल मालिक : मीसा और शैलेश
बजार मूल्य : करीब 40 करोड़
2.बंगला नंबर : 1088, न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी, दिल्ली
कागजों में नाम : एबी एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड
असल मालिक : तेजस्वी यादव, चन्दा यादव और रागिनी यादव
बाजार मूल्य : 40 करोड़
3.नौ प्लॉट : जालापुर, थाना-दानापुर
कागजों के नाम : डिलाइट मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड
असल मालिक : राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव
बाजार मूल्य : 65 करोड़
4.तीन प्लॉट : जालापुर, थाना-दानापुर
कागजों के नाम : ए.के. इन्फोसिस्टम
असल मालिक : राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव
बाजार मूल्य : 20 करोड़
फंसते हैं तब भी और उबरते हैं तब भी, चर्चा में रहते हैं लालू
बिहार के सबसे बड़ा मॉल का मसला हो, चिड़ियाखाना में मिट्टी बेचने की बात हो या अकूत बेनामी सम्पत्ति जमा करने के आरोप हों, लालू यादव इन आरोपों पर लगातार बल्लेबाजी कर रहे हैं. लालू की फितरत है कि वे फंसकर भी चर्चित होते हैं और उबरकर भी चर्चा में रहते हैं. निर्माणाधीन मॉल की मिट्टी चिड़ियाघर को बेचने के आरोप पर जब लालू आक्रामक हुए, तो लगा था कि लालू आरोपों से पार पा जाएंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
लालू लगातार यह कहते रहे कि सारे आरोप बेबुनियाद हैं और सच्चाई सामने आने पर सबकी बोलती बंद हो जाएगी. लेकिन आरोपों की तादाद बढ़ती ही गई. लालू ने मीडिया के समक्ष कहा था कि उनकी सम्पत्ति की सच्चाई नौ साल पहले 2008 में ही सामने आ चुकी थी. आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में उन्हें सुप्रीम कोर्ट तक से क्लीनचिट मिल चुकी है. उप मुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव और स्वास्थ्य मंत्री तेजप्रताप यादव ने अपनी सम्पत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक किया हुआ है.
मुख्यमंत्री को भी उसका ब्यौरा दिया गया है और चुनाव आयोग को भी. विभिन्न कंपनियों में शेयर के बारे में भी चुनाव आयोग को दिए गए हलफनामे में पहले ही उल्लेख किया जा चुका है. लालू ने कहा कि उनके बच्चों और पत्नी को बदनाम किया जा रहा है. लालू ने बाद में माना कि मॉल की जमीन उन्हीं की है, जहां मेरिडियन कंपनी पार्टनरशिप में मॉल बना रही है. डिलाइट मार्केटिंग ने सिलिंग एक्ट के तहत अनुमति लेकर जमीन खरीदी थी. सर्किल रेट और जमीन की कीमत का भुगतान चेक से किया गया था. बूम आया तो रीयल स्टेट की कीमत बेतहाशा बढ़ी. उस जमीन की कीमत भी बढ़ी. उसी जमीन पर मेरिडीयन कंस्ट्रक्शन ने मॉल बनाना शुरू किया.
2014 में पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने डिलाइट मार्केटिंग के शेयर खरीदे थे. लालू ने दावा किया था कि उनकी बेटी चन्दा और रागिनी के शेयर होल्डर होने की बात गलत है. हालांकि आयकर विभाग के रडार पर ये दोनों भी हैं. इनके अलावा लालू की पांचवीं बेटी हेमा यादव के पास भी बेनामी सम्पत्ति का आरोप है. हेमा के पास 62 लाख रुपए की बेनामी जमीन होने का मामला सामने आया है. ललन चौधरी नामक व्यक्ति ने हेमा यादव को तोहफे में जमीन दी.
ललन चौधरी लालू के मवेशियों की देखभाल करता था और उसका नाम बीपीएल सूची में दर्ज है. सीवान जिले के बड़हरिया थानान्तर्गत सियाडीह गांव निवासी ललन चौधरी ने केवल राबड़ी देवी को ही 30 लाख 80 हजार रुपए के मकान सहित 2.5 डिसमिल जमीन ‘दान’ में नहीं दी, बल्कि लालू परिवार के कुछ अन्य लोग भी हैं, जिन्हें ललन ने तोहफे में जमीनें दी हैं. आरोप है कि राबड़ी को जमीन दिए जाने के 18 दिन बाद ही 62 लाख की 7.75 डिसमिल जमीन लालू प्रसाद की पांचवीं बेटी हेमा यादव को तोहफे में दे दी.
पिछले 16 मई को आयकर विभाग ने दिल्ली और गुड़गांव में लालू यादव और उनके परिवार के 22 ठिकानों पर जब ताबड़तोड़ छापेमारी की तब आरोप-प्रत्यारोप का सच लोगों की समझ में आया. इसके काफी पहले मीसा यादव के चार्टर्ड अकाउंटेंट राजेश अग्रवाल की गिरफ्तारी हो चुकी थी. राजेश पर बेनामी कम्पनियों के 8 हजार करोड़ रुपए के लेन-देन को कानूनी बनाने की कोशिश करने के आरोप हैं. आयकर छापे की जद में राजद सांसद प्रेमचंद गुप्ता के ठिकाने भी आए.
लालू पर चारा घोटाले का केस चलता रहेगा
बेनामी सम्पत्तियों के आरोप में फंसा लालू परिवार सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले से पहले से चिंता में था कि लालू प्रसाद पर चारा घोटाले का केस भी चलता रहेगा. सुप्रीम कोर्ट ने लालू प्रसाद यादव के खिलाफ चारा घोटाला मामले में अलग से ट्रायल चलाने की अनुमति दे रखी है. सुप्रीम कोर्ट ने लालू के साथ-साथ बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा और पूर्व नौकरशाह सजल चक्रवर्ती के खिलाफ भी आपराधिक साजिश का केस चलाने का आदेश दे रखा है. पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने साफ-साफ कहा कि झारखंड हाईकोर्ट ने कानून का उल्लंघन करते हुए लालू को राहत दी थी.
सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को आदेश दिया कि वह लालू और अन्य आरोपियों के खिलाफ देवघर कोषागार से धन निकासी के मामले की सुनवाई तेजी से करे और ट्रायल नौ महीने में पूरा करे. ट्रायल कोर्ट ने लालू को पांच साल की सजा सुनाई थी. रांची हाईकोर्ट ने लालू यादव के खिलाफ साजिश के आरोपों को हटा दिया था. झारखंड के चाईबासा में ट्रेजरी से अवैध निकासी के मामले में ट्रायल कोर्ट लालू को दोषी ठहरा चुकी है. सीबीआई ने रांची हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर की थी. सीबीआई ने कहा था कि हाईकोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ आपराधिक साजिश की धाराएं हटाकर गलती की.
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि एक ही अपराध के लिए किसी व्यक्ति के खिलाफ दो बार ट्रायल नहीं चलाया जा सकता. लालू की तरफ से सीबीआई की देर से दाखिल हुई याचिका के औचित्य पर सवाल उठाया गया था. नियमतः नब्बे दिन के अंदर याचिका दायर करनी होती है, लेकिन सीबीआई ने 157 दिनों के बाद याचिका दाखिल की थी. सीबीआई ने देरी की जो वजह बताई वह भी सही नहीं थी. लालू ने यह भी कहा था कि एक ही साजिश के आरोप बार-बार नहीं लगाए जा सकते.
लालू का हमलावर तेवर बरकरार
आरोपों और छापों के बावजूद लालू यादव का हमलावर तेवर बरकरार है. आयकर विभाग की छापेमारियों पर सवाल उठाते हुए लालू ने मीडिया की भूमिका पर भी गंभीर सवाल उठाए. लालू ने पूछा कि वे 22 ठिकाने कौन है, जहां छापेमारी हुई? यह भी सवाल सामने आया कि अगर आठ घंटे तक छापेमारी चलती रही तो न्यूज चैनेल उन ठिकानों को क्यों नहीं दिखा पाए? लालू परिवार ने यह भी आरोप लगाया कि खबरों में आयकर का आधिकारिक पक्ष भी नहीं दिखाया गया.
ऐसी खबरों पर लालू प्रसाद ने भाजपा पर हमला बोला और कहा कि भाजपा की गीदड़ भभकी से वे डरने वाले नहीं है और वे भाजपा और संघ की ईंट से ईंट बजा देंगे. लालू यह साबित करने में लगे हैं कि उन पर हो रही कार्रवाई कानूनी नहीं बल्कि राजनीतिक साजिश है.
उल्लेखनीय है कि कुछ महीने पहले राजद ने राजगीर में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई थी. तीन दिनों की इस बैठक में संघ और भाजपा पर जोरदार हमला बोला गया था. भाजपा को उखाड़ फेंकने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन बना कर 2019 का चुनाव लड़ने का ऐलान किया गया था. उसी समय 27 अगस्त को भाजपा भगाओ देश बचाओ रैली करने का भी ऐलान किया गया था.
इस रैली में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसी पार्टियां एक मंच पर जुटने वाली हैं. पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस और मार्क्सवादी पार्टी भी इस रैली में एक मंच पर शामिल होने वाली हैं. राजद के विधायक और प्रवक्ता अख्तरुल इस्लाम शाहीन कहते हैं कि लालू प्रसाद की इस कोशिश से भाजपा डर गई है और इसीलिए वह उनका मनोबल तोड़ने पर लगी है.