मुख्यमंत्री रघुवर दास को जब विपक्षी दलों के भारी दबाव के कारण छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी) एवं संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (एसपीटी) को वापस लेना पड़ा था, तब से ही तिलमिलाए मुख्यमंत्री दास इसका कोई विकल्प ढूंढ़ रहे थे, ताकि विपक्षी दलों के मुंह पर तमाचा जड़ा जा सके. भूमि अधिग्रहण संषोधन विधेयक के तौर पर आखिरकार मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इसका विकल्प मिल गया. लेकिन यह विधेयक भी विपक्षियों के निशाने पर आ गया. सरकार की सहयोगी दल आजसू भी इस विधेयक के खिलाफ खड़ी हो गई और कहा कि विधेयक लाने के पहले सरकार को सभी दलों को विश्वास में लेना चाहिए था, लेकिन मुख्यमंत्री बिना किसी से इस मुद्दे पर सलाह लिए यह संशोधन विधेयक लाए. इस विधेयक के आते ही सत्ता और विपक्ष में फिर तलवार खींच गई है. भाजपा इसका समर्थन करते हुए इसे पूरी तरह से जनता के हित में बता रही है और कहा जा रहा है कि यह बिल पास हो जाने से स्कूल, अस्पताल और आधारभूत संरचना के लिए भूमि अधिग्रहण में आसानी होगी, जिनकी जमीन जाएगी, उन्हें भी जल्द मुआवजा मिलेेगा. वहीं विपक्षी दलों ने इसका विरोध करते हुए इसके खिलाफ राज्यव्यापी आंदोलन छेड़ दिया है. विपक्षी दलों के नेताओं का आरोप है कि यह विधेयक उद्योगपतियों को जमीन देने की साजिश है.
हंगामे की भेंट चढ़ा विधानसभा सत्र
सम्पूर्ण विपक्ष ने इस मुद्दे को लेकर मानसून सत्र को नहीं चलने दिया. हंगामे के कारण विधानसभा के सात दिवसीय मानसून सत्र में एक दिन भी कार्यवाही नहीं चल सकी. विपक्षी सदस्य इसे लेकर विशेष बहस कराने की मांग पर तो अड़े हुए ही थे, साथ ही सरकार पर भी यह दबाव बना रहे थे कि इस अधिनियम को वापस लेने के बाद ही सदन सुचारू रुप से चल सकेगा. विपक्षी विधायकों ने यह भी आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री लोकतांत्रिक व्यवस्था को ध्वस्त करने में लगे हुए हैं और एक तानाशाह की तरह काम कर रहे हैं. विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री रघुवर दास पर जबरदस्त हमला बोला और कहा कि हम विनाश का मंसूबा सफल नहीं होने देंगे. उन्होंने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री के विकास का मतलब अगर आदिवासी मूलवासी की जमीन दखल कर कारपोरेट घरानों को देना है, तो हम ऐसे विकास के विरोधी हैं.
विकास की आड़ में विनाश का मंसूबा हम सफल नहीं होने देंगे. मुख्यमंत्री ने पहले सीएनटी-एसपीटी कानून को बदलने की कोशिश की, इस साजिश में वे सफल नहीं हो पाए, तो भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन कर दिया. मुख्यमंत्री रघुवर दास की मंशा स्पष्ट है कि आदिवासी-मूलवासी की जमीनें लूटो और पूंजीपतियों को औने-पौने दाम पर दे दो. गोड्डा में अडानी के लिए इन्होंने कानून में ही संशोधन कर दिया और अडानी ने अपने पावर प्रोजेक्ट के लिए हजारों एकड़ जमीन लेकर लोगों को विस्थापित करने का काम किया. विधानसभा नहीं चलने देने का दोष झामुमो ने सरकार के मत्थे मढ़ दिया और कहा कि इस सातों दिन का वेतन एवं भत्ता झामुमो विधायक नहीं लेंगे. यह घोषणा कर वैसे झामुमो ने सत्तारुढ़ दल के गाल पर तमाचा मारने का काम किया.
सरकार का तर्क
सीएनटी-एसपीटी संशोधन पर जिस तरह मुख्यमंत्री शुरू में आक्रामक रूप दिखा रहे थे, पर बाद में जिस तरह उन्हें अपने ही दल के नेताओं एवं विपक्ष के दबाव में बैकफुट पर आना पड़ा था, वो मुख्यमंत्री को काफी नागवार लगा था. उन्होंने इस संशोधन विधेयक को लेकर स्पष्ट तौर पर कहा था कि किसी भी कीमत पर इस संशोधन विधेयक को वापस नहीं लिया जाएगा. इस बार विधेयक को लाने के बाद मुख्यमंत्री हठधर्मिता नहीं दिखाकर जनता को समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि यह जनहित में लाया गया एक महत्वपूर्ण विधेयक है. मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा कि विपक्ष भ्रम फैला रहा है. सरकार ने कानून में छेड़छाड़ नहीं किया है. केवल नियमों का सरलीकरण किया गया है. इसके लागू होने से आठ महीने के भीतर लोगों को मुआवजा मिल सकेगा. स्कूल, सड़क, अस्पताल, बिजली आदि के लिए भूमि अधिग्रहण किया जा सकेगा. उन्होंने कहा कि पहले व्यवस्था में कमियां थीं, जिन्हें ठीक किया जा रहा है. सिंचाई के मामले में राज्य पिछड़ा हुआ है. व्यवस्था ठीक करने के लिए तालाब, डोभा, चेक डैम आदि बनाए जा रहे हैं, ताकि किसानों को सालों भर पानी मिल सके और किसानों की आय में वृद्धि हो सके. विपक्ष यह बताए कि इस कानून में कमियां कहां है, केवल हल्ला करने से कुछ नहीं होता है. मुख्यमंत्री ने यह भी कहा है कि खूंटी में 776 गांव हैं, इनमें से तीन पंचायतों के केवल 32 गांवों में पत्थलगड़ी का मामला है. इसे लेकर हायतौबा की जरूरत नहीं है. स्थिति सामान्य हो गई है. लोग विकास चाहते हैं. प्रशासन लोगों के साथ संवाद कर रहा है. जनभागीदारी से विकास का काम शुरू हो गया है.
राज्य के भू-राजस्व मंत्री अमर बाउरी का मानना है कि विपक्ष इस संशोधन विधेयक को लेकर बेकार हाय-तौबा मचा रहा है. यह विधेयक पूरी तरह से जनता के हित में है और इसका सीधा लाभ जनता को मिलेगा. सरकारी योजनाएं भूमि के अभाव में नहीं रुकेंगी और योजनाओं का क्रियान्वयन जल्द से जल्द हो सकेगा. आवश्यकता पड़ने पर रैयतों से जमीन ली जाएगी और इसका मुआवजा मिलने में देर भी नहीं होगी. इस कार्य से इस पूरे क्षेत्र का विकास होगा. विपक्ष केवल वोट की राजनीति के लिए इसकी गलत व्याख्या कर जनता को दिग्भ्रमित कर रहा है. वहीं, सरकार के गठबंधन दल आजसू के सुप्रीमो सुदेश महतो का मानना है कि मानसून सत्र में इस पर दो दिनों का बहस होना चाहिए था. विधानसभा राज्य की सबसे बड़ी पंचायत है और जनता के निर्वाचित जन प्रतिनिधियों की सदन के प्रति अहम् जिम्मेदारी होती है, इसलिए आरोप-प्रत्यारोप के बजाय, सत्ता-विपक्ष को नैतिक जिम्मेदारी के साथ विशेष बहस के लिए आगे आना चाहिए.
चर्च भी सरकार के ़िखला़फ
इस अधिनियम को लेकर हो रहे विरोध में ईसाई समुदाय एवं चर्च भी कूद गया है. भाजपा अभी लगातार ईसाइयों एवं चर्च को लेकर सख्त रवैया अपना रही है. इसके कारण धर्मगुरुओं में नाराजगी व्याप्त है. आर्च बिशन फेलिक्स टोप्पो ने राज्य सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि रघुवर सरकार ने कॉरपोरेट घरानों के साथ एमओयू किया है. इसलिए वे सिर्फ कारपोरेट को जमीन देने की नीति पर काम कर रहे हैं. आदिवासियों में यह भय समा गया है कि सरकार उनलोगों की जमीन हड़प लेगी, इसलिए आदिवासी समुदाय पत्थलगड़ी कर अपनी जमीन को बचा रहा है. ज्यादातर मसीही आदिवासी समुदाय के हैं.
जब चर्च इनलोगों की जमीन की रक्षा के लिए खड़ा होता है, तो सरकार को अखरता है. उन्होंने कहा कि चर्च संवैधानिक प्रावधान के तहत ही सीएनटी एसपीटी एक्ट का पक्षधर है. हालांकि सरकार का कहना है कि इस अधिनियम से उद्योगपतियों को कोई लाभ नहीं होगा. इस संशोधन के बाद सिर्फ विद्यालय, महाविद्यालय, अस्पताल, पंचायत भवन, आंगनबाड़ी केंद्र, रेल, सड़क, जलमार्ग, विद्युतीकरण, सिंचाई जलापूर्ति, पाईपलाईन, ट्रांसमिशन लाईन तथा आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आवास बनाने के रास्ते और आसान होंगे.
सरकार के खिलाफ एक तर्क यह भी है कि इससे पूर्व रघुवर सरकार ने पूंजीपतियों एवं औद्योगिक घरानों को लाभ पहुंचाने के लिए ही सीएनटी एवं एसपीटी एक्ट में संशोधन का प्रस्ताव लाया था, लेकिन उसमें सफल नहीं हो सके. राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने भी कई आपत्तियों के साथ इस विधेयक को लौटा दिया था. इस सरकार ने कॉरपोरेट को फायदा पहुंचाने की अपनी मंशा को पूरा करने के लिए ही जमीन अधिग्रहण विधेयक 2013 में संशोधन किया. इस अधिनियम की सबसे खराब बात यह है कि इसके जरिए कृषि योग्य जमीन के अधिग्रहण की भी छूट दे दी गई है और इसमें सामाजिक आकलन करने की भी आवश्यकता नहीं समझी गई है.
अगर कृषि योग्य भूमि का अधिग्र्रहण हुआ, तो किसानों पर इसका सीधा प्रभाव पड़ेगा. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि पहले ही आदिवासी एवं स्थानीय लोग बड़ी-बड़ी परियोजनाओं के कारण विस्थापन का दंश झेल रहे हैं और अब सरकार प्रशासनिक दमन के बल पर किसानों की जमीन लेना चाह रही है. कई स्थानों पर पूर्व में अध्रिहण के खिलाफ जब विरोध हुआ, तो पुलिस की तरफ से गोलियां भी चलीं. अभी फिर कई स्थानों पर ऐसी परिस्थितियां बन रही हैं. जबरन जमीन लेना सरासर गलत है, लेकिन सरकार इस अधिनियम को जनहित बताकर इसे एक बड़ी उपलब्धि के दौर पर दिखा रही है.
आदिवासियों की ज़मीन नहीं लेंगे: राज्यपाल
राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने कहा है कि भूमि अधिग्रहण बिल को ठीक से पढ़ने की आवश्यकता है. इसे लेकर पैनिक होने की जरूरत नहीं है. इसमें सरलीकरण किया गया है. आदिवासियों की जमीन लेने जैसी कोई बात नहीं है इसमें. इस सरलीकरण में शेड्यूल एरिया को टच नहीं किया गया है. राज्यपाल ने कहा कि पहले सोशल ऑडिट में दो-तीन साल लग जाते थे. अब सरलीकरण के बाद छह से आठ महीने लगेंगे. भूमि अधिग्रहण कानून की धारा-41 के तहत शेड्यूल एरिया को नहीं छुआ गया है. भूमि अधिग्रहण कानून 2013 की धारा-2 की उपधारा-दो और तीन का सरलीकरण किया गया है. आदिवासी की जमीन ट्रांसफर करने जैसी कोई बात नहीं है.
उन्होंने कहा कि बिल को लोग पढ़ेंगे, तो कोई भ्रम नहीं रहेगा. पत्थलगढ़ी को लेकर राज्यपाल ने कहा कि यह एक परम्परा है, लेकिन अभी जो हो रहा है, उसमें कुछ और हो रहा है. अब नया नजारा देखने को मिल रहा है. यह सब ठीक नहीं है. लोगों को गुमराह किया जा रहा है. बच्चों को स्कूल में पढ़ने नहीं देंगे, स्वास्थ्य केंद्र नहीं खोलने देंगे, अपना बैंक खोलेंगे व राशन कार्ड नहीं चलने देंगे. यह सब ठीक नहीं है. यह राष्ट्रीयता के खिलाफ है और जनमंगल और विकास के लिए ठीक नहीं है. संवाद होना चाहिए. मैंने ग्रामीणों को बुलाया भी था. कई चक्र में बातचीत होनी चाहिए. बातचीत बंद नहीं होनी चाहिए. बार-बार बात होने से ग्रामीण भी समझेंगे. सबको समझाने की जरूरत है.