राजस्थान की भाजपा सरकार ने अपना तीसरा बजट पेश किया. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने यह बजट पेश किया. इसमें मुख्यमंत्री ने कुछ कल्याणकारी घोषणाएं भी कीं और कुछ महत्वपूर्ण फैसलों पर मुहर लगाई, लेकिन बजट की सबसे खास बात यह रही कि मौजूदा सरकार ने 26 महीने पहले जहां से यह पारी शुरू की थी, वह फिर से उसी जगह जाकर टिकती दिखाई दी. मतलब, पहले बजट में जिस तरह मुख्यमंत्री ने प्रदेश की खराब वित्तीय हालत का हवाला देते हुए पिछली सरकार के माथे ठीकरा फोड़ा था, वैसा ही लगातार तीसरी बार हुआ.
180 मिनट का आलोचना बजट
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे करीब तीन घंटे तक धारा प्रवाह बोलती रहीं. 122 पन्नों के बजट भाषण की एक-एक लाइन उन्होंने पढ़ी, लेकिन इस दौरान वे पिछली गहलोत सरकार पर बीच-बीच में बरसना नहीं भूलीं. जहां पर भी वित्तीय हालात खराब होने की बात आई, उन्होंने उसका जिम्मेदार गहलोत सरकार को ही बताया. यह बात सियासी हलकों के साथ-साथ राजनीतिक विश्लेषकों को भी खटकी कि आखिर 26 महीने बाद भी अगर कोई राज्य वित्तीय कुप्रबंधन के लिए पिछली सरकारों को ही जिम्मेदार ठहरा रहा हो, तो क्यूं न यह माना जाए कि दरअसल कमी कहीं कुछ अपने ही अंदर है.
रोज़गार का रोडमैप नहीं
यूं तो मुख्यमंत्री ने बजट भाषण के दौरान कुल मिला कर 11 नई और कई छोटी-मोटी घोषणाएं कीं और इन सभी में लोगों को कुछ न कुछ देने की भी कोशिश की, लेकिन राज्य की सबसे बड़ी समस्या यानी की रोजगार को लेकर वे कोई रोडमैड प्रस्तुत करने में कामयाब नहीं हो सकीं. अलबत्ता उन्होंने यह तो वादा किया कि सरकार एक लाख नौकरियां देगी, लेकिन ये नौकरियां कितने समय में दी जाएंगी या कैसे दी जाएंगी, इसको लेकर कुछ भी साफ नहीं किया. सरकारी डॉक्टरों की रिटायरमेंट उम्र को 60 साल से बढ़ा कर 62 साल कर देने से उन्हें कुछ राहत दी, जबकि बेटियों के लिए भी पहली बार कुछ सकारात्मक सोच बजट में दिखी.
बजट में नई सौगात
जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ के नारे को प्रोत्साहन देते रहे हैं, तो राज्य के इस बजट में भी उनके इस आह्वान की झलक मिली, जब मुख्यमंत्री ने राजश्री योजना के नाम पर एक नई योजना लॉन्च, जिसमें एक जून 2016 या उसके बाद जन्म लेने वाली हर बेटी को जन्म पर 2500 रुपये देने के साथ ही उसके पहले जन्मदिन पर भी 2500 रुपये देने का ऐलान किया गया. इतना ही नहीं, जब बेटी सरकारी स्कूल में पहली कक्षा में प्रवेश लेगी, तो उसे 4000 रुपये देने का प्रावधान इस योजना के तहत किया गया है. इसके बाद पाचवीं कक्ष में पहुंचने पर उसे फिर 5000 रुपये और 10वीं कक्षा में आने पर 11 हजार रुपये देने की बात कही गई है. 12वीं कक्षा पास करने पर बेटी को 25000 रुपये दने की बात इस योजना में की गई है.
अच्छी-अच्छी बातें
कुछ और अच्छी बातें भी बजट में सामने आईं, जिसमें जनता को जमीनों की रजिस्ट्री की डीएलसी रेट न बढ़ाकर कुछ राहत जरूर दी गई. गौरतलब है कि अब तक प्रावधान यह था कि चालू वित्त वर्ष में डीएलसी की मीटिंग न होने पर भी रेट को 10 प्रतिशत बढ़ा दिया जाता था. रजिस्ट्री दरों में बढ़ोत्तरी न करने से लोगों को जमीन के सौदों में कुछ राहत मिलेगी.
यह एक अच्छी खबर है. हालांकि, यह राहत फिलहाल सिर्फ साल भर के लिए ही है. राजस्थान की सबसे बड़ी समस्या यानी पेयजल को लेकर खुद राजधानी जयपुर के हाल भी बुरे हैं. बजट में 1045 करोड़ रुपये बीसलपुर से मीठा पानी जयपुर पहुंचाने के लिए प्रोजेक्ट को देकर लोगों के गले में राहत की बूंदें डालने की कोशिश हुई. 40 हजार किसानों को अगले साल तक कृषि बिजली कनेक्शन समेत किसानों, महिलाओं, समाज के पिछड़े तबकों और पशुपालकों के लिए की गईं तमाम घोषणाएं बजट को लोक लुभावन बनाते दिखीं. कई वस्तुओं पर वैट दरों में की गई कमी का असर भी लोगों को खुश करने वाला है.
…लेकिन निराश भी किया
बजट में तमाम चीजों के बावजूद कई बातें बेहद निराशाजनक कही जा सकती हैं. पहली बात तो यह कि सातवें वेतन आयोग की आस में प्रदेश का तमाम सरकारी तबका मुख्यमंत्री की ओर निहार रहा था कि वे इस बजट में सातवें वेतन आयोग के मद में कुछ राशि के आवंटन की घोषणा जरूर करेंगी. लेकिन उन्हें इस बारे में सीएम की ओर से एक भी शब्द न बोलने से घोर निराशा हुई.
इसके अलावा सिर्फ 10.50 करोड़ रुपये स्टार्ट अप के लिए दिए गए जो इतने बड़े मद के लिए ऊंट के मुंह में जीरा के समान है. इसके अलावा कुछ जो सबसे अधिक विचलित करने वाला था, तो वह पिछली सरकार के समय के दो महत्वाकांक्षी प्रोजेक्टों पर मुख्यमंत्री का चुप्पी साधे रखना और उदासीन बने रहना.
पहले बात रिफाइनरी की करते हैं. पश्चिमी राजस्थान के लिए जिसे आर्थिक उन्नति क्षेत्र में उगता हुआ सूरज माना जा रहा था, उस इलाके को मुख्यमंत्री की बजट घोषणाओं ने बेहद निराश किया है. तीन साल से कागलों में दफन रिफाइनरी का काम कब शुरू होगा, इस पर कुछ नहीं कहा गया. जबकि जयपुर में मेट्रो परियोजना के दूसरे चरण और दिल्ली-मुंबई इंडस्ट्रियल कारीडोर के लिए भी कोई घोषणा नहीं हुई.
बजट वसुंधरा का, विजन मोदी का
यह भी काबिले गौर है कि वसुंधरा सरकार का लगातार तीसरा बजट मोदी के विजन को ही परिलक्षित करता दिखाई दिया. मोदी की पांच प्रिय योजनाओं सफाई यानी स्वच्छता, डिजिटलाइजेशन, ग्रीन योजना, स्किल डेवलपमेंट और स्मार्ट सिटीज की परिकल्पना को इस बजट में भी आकार मिलता दिखाई दिया. जयपुर और उदयपुर को स्मार्ट सिटी के नाम पर 400 करोड़ रुपये मिले, जबकि अलग-अलग शहरों में सीवरेज इंफ्रा डेवलपमेंट के लिए 4200 करोड़ रुपये दिए गए. फसल बीमा योजना, पशु बीमा योजना, फसली ऋण जैसी कई बातें कुछ देर तक तो यह अहसास ही कराती दिखीं कि यह बजट केंद्र सरकार की फोटो प्रति ही है.
बिजली का घाटा खुद ओढ़ा
इस बजट की एक और खास बात यह रही कि इस पूरे बजट का तकरीबन 20 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ घाटे में चल रही विद्युत वितरण कंपनियों को उबारने में ही खर्च हो गया. नतीजे में विकास के नाम पर आम जनता के हिस्से थोड़ा बहुत ही आ पाया. हालांकि, विद्युत निगमों के घाटे में जाने के लिए भी वसुंधरा ने गहलोत सरकार पर ठीकरा फोड़ कर एक तरह से यहां भी अहसान ही लादने की कोशिश की.
इनके लिए निराशाजनक
सूर्यनगरी यानी जोधपुर संभाग को न रोड न कॉलेज. कुछ कहा भी, तो पिछली घोषणाओं को पूरा करने का वादा ही किया. सरकार ने कई जिलों की लंबे अरसे से लंबित मांगों को दरकिनार किया, तो कई जगहों की मूलभूत आवश्यकताओं की अनदेखी भी की. जयपुर में मेट्रो परियोजना का जिक्र न करके एक तरह से राजनीतिक संदेश देने की कोशिश ही हुई.
ब्लेम गेम का कारण समझिए
बिजली कंपनियों के घाटे से बिगड़े गणित ने तकरीबन पूरे बजट को ब्लेम गेम जैसा बना दिया. सरकार ने उदय योजना की बात कह बिजली कंपनियों का घाटा खुद वहन करने की हिम्मत तो दिखाई, लेकिन इसका खामियाजा विकास योजनाओं को भुगतना पड़ा. सरकार ने सारे वित्तीय अनुशासन तोड़ कर राजकोषीय घाटा 9.99 प्रतिशत पर पहुंचा दिया, जबकि कानूनी प्रावधानों के तहत बजट घाटा तीन प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो सकता. हालात खराब हैं, इसका अंदाजा तो मुख्यमंत्री को भी हो गया, जिसके चलते उन्हें सफाई भी देनी पड़ी कि पिछली सरकार की खामियां सामने लाने के लिए वे दोहरे आंकड़े जारी कर रही हैं.
राजनीतिक विश्लेषण
जैसी की आशंका थी, कांग्रेस को यह बजट नहीं भाना था और हुआ भी ऐसा ही. पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जहां इस सरकार को नाकामियों के लिए पिछली सरकार पर ठीकरा फोड़ने के लिए कोसा, तो साथ ही यह टिप्पणी भी कर डाली कि इस सरकार को कांग्रेस सरकार की कमियां खोजने में ही 26 माह लग गए, तो भला विकास योजनाओं का नंबर कब आता. वहीं कांग्रेस के प्रदेश में खेवनहार यानी प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने बजट को वास्तविकता से परे और आर्थिक स्थिति को और खस्ताहाल बनाने वाला बजट बता कर सरकार पर तीखा हमला बोला.
कुछ आकर्षक घोषणाएं
- कारोबारियों को स्टार्ट अप में छूट
- मकान खरीदना सस्ता हुआ
- डीलर्स को ढेर सारी सुविधाएं और इंसपेक्टर राज से मुक्ति देने के उपाय
- 86 हजार युवाओं को स्किल ट्रेनिंग के लिए 354 करोड़
- 325 करोड़ रुपये की कर राहत
- एमबीबीएस की 350 सीटें प्रदेश के मेडिकल कालेजों में बढ़ाईं.
- सामूहिक विवाह का अनुदान 10 हजार से बढ़ा कर 15 हजार किया.
- बच्चों के पालन पोषण के लिए पालनहार योजना
- मेधावी छात्र-छात्राओं को लैपटाप और स्कूटी-साइकिल वितरण योजना
- कारोबारियों को फुड प्रोसेसिंग में रियायतें
- 2000 किलोमीटर ग्रामीण गौरव पथ और मिसिंग लिंक का निर्माण
- खिलाडियों और सैन्यकर्मियों के लिए प्रोत्साहन योजनाएं
- बृज 84 कोसी परिक्रमा मार्ग में सुविधाएं बढ़ाने के लिए 103 करोड़
- मेंहदीपुर बाला जी और खाटू श्याम जी जैसे धार्मिक स्थलों के विकास के लिए बजट आवंटन
- रिकॉर्ड डिजिटलाइजेशन के उपाय पर जोर देने के लिए बजट आवंटन