दिल्ली सरकार ने शुक्रवार (5 अप्रैल, 2019) को अदालत से कहा कि 2016 जेएनयू राजद्रोह मामले में पुलिस ने ‘गुपचुप तरीके’ से और ‘जल्दीबाजी’ में आरोपपत्र दाखिल किया है और कन्हैया कुमार तथा अन्य के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देने के संबंध में फैसला लेने के लिए सरकार को एक महीने से ज्यादा वक्त लगेगा।

सरकार ने यह भी कहा कि अभी तक यह भी निर्धारित नहीं किया है कि जो कथित नारे लगाए गए वो देशद्रोही थे या नहीं। आप सरकार ने मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट दीपक शहरावत की अदालत में दी गई दलील में आरोप लगाया कि पुलिस ने सक्षम अधिकारी से अनुमति लिए बगैर बेहद जल्दीबाजी में और गुपचुप तरीके से आरोपपत्र दाखिल कर दिया। अदालत ने पहले राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह मुकदमा चलाने की अनुमति देने के संबंध में स्पष्ट समय सीमा के साथ ‘उचित जवाब’ दाखिल करे।

इससे पहले बुधवार को दिल्ली सरकार ने जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार और अन्य के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देने के लिए किसी निर्णय तक पहुंचने के वास्ते एक महीने का समय मांगा था।

गौरतलब है कि दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा के डीसीपी प्रमोद कुशवाह ने पहले अदालत से कहा था कि एजेंसी ने पहले ही अनुमति के लिए दिल्ली सरकार को अनुरोध भेज दिया है। साथ ही उन्होंने कहा कि मंजूरी लेना एक प्रशासनिक प्रक्रिया है और इसके बिना भी आरोपपत्र दाखिल किया जा सकता है।

दिल्ली पुलिस ने अदालत से पहले कहा था कि इस मामले में कुमार और अन्य के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए अधिकारियों की मंजूरी मिलनी बाकी है और इसे मिलने में दो से तीन महीने का समय लग सकता है। पुलिस ने कुमार और अन्य के खिलाफ अदालत में आरोपपत्र दायर करते हुए कहा था कि वह नौ फरवरी 2016 में जेएनयू परिसर में हुए समारोह में निकाले गए जुलूस का नेतृत्व कर रहा था और उसने राजविरोधी नारों का समर्थन किया था।

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