पूरी दुनिया को शांति का संदेश देने वाला और भगवान बुद्ध की ज्ञानस्थली कहा जाने वाला मगध क्षेत्र आज अशांत है. मगध में प्रशासन और सत्ता की कार्यशैली से लोगों की नाराजगी जनाक्रोश का रूप ले चुकी है. इस बढ़ते जनाक्रोश की वजह से इस पूरे क्षेत्र में कानून-व्यवस्था की समस्या खड़ी गई हो गई है. स्थिति इतनी खराब हो गई है कि लोगों ने पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के काफिले पर हमला बोल दिया और वहीं दूसरी तरफ आक्रोशित लोगों की भीड़ देखकर पुलिसवाले थाना में ताला लगाकर भाग खड़े होते हैं. इस जनाक्रोश के पीछे बिहार पुलिस की कार्यशैली और सत्ता में बैठे जनप्रतिनिधियों के खिलाफ लोगों की नाराजगी मुख्य वजह है. मगध प्रमंडल के मुख्यालय गया में एक सप्ताह के अंदर घटित तीन घटनाओं और लोगों के खिलाफ पुलिस द्वारा मनमाने ढ़ंग से कार्रवाई की वजह से लोगों का गुस्सा सड़क पर आया.
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गया जिले के डुमरिया प्रखंड के काचर पंचायत की निवर्तमान मुखिया के पति और प्रखंड लोजपा के अध्यक्ष सुदेश पासवान और उनके चचरे भाई सुनील पासवान की दिनदहाड़े गोली मार कर हत्या कर दी गई. दोनों चचेरे भाई पंचायत चुनाव में अपनी पत्नी को मुखिया और पंचायत समिति सदस्य के लिए चुनाव प्रचार कर रहे थे. इसी दौरान प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी के हथियारबंद माओवादियों ने दोनों भाईयों को गोली मार कर फरार हो गए. इस घटना के बाद लोगों का गुस्सा सड़क पर आ गया और लोगों ने जमकर बवाल मचाया. उसके दूसरे दिन सुबह क्षेत्र के विधायक व पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी का काफिला डुमरिया पहुंचा, तो देर से पहुंचने की वजह से आक्रोशित लोगों ने उनके काफिले पर हमला बोल दिया और उनकी एस्कॉटर्र् जीप में आग लगा दी. इस दौरान लोगों ने सीआरपीएफ जवानों की दो बाइक को भी फूंक दिया. पत्थरबाजी में गया के एएसपी अभियान मनोज यादव सहित पांच पुलिसकर्मी भी घायल हो गए. पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के वाहन कोे ड्राईवर ने किसी प्रकार पास के सीआरपीएफ कैम्प में ले जाकर लगाया, जिससे उनकी जान बची. लोगों का कहना था कि सूचना देने के बाद भी पूर्व मुख्यमंत्री देर से मृतक के परिजनों को सांत्वना देने आए थे. जबकि सुदेश पासवान विधानसभा चुनाव में जीतनराम मांझी के चुनाव एजेंट रह चुके थे. पुलिस सुदेश पासवान और सुनील पासवान की हत्या को नक्सली घटना मान रही है. जबकि किसी नक्सली संगठन ने इस घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है. हालांकि मृतक लोजपा नेता की पत्नी ने राजद नेता रामसरेख यादव तथा उसकी पत्नी समेत कई अन्य लोगों को नामजद अभियुक्त बनाया है.
रामसरेख यादव की पत्नी उर्मिला देवी, इसी पंचायत की मुखिया प्रत्याशी थी. पिछले डेढ़ दशक में सुदेश पासवान एक बड़े नेता के रूप में डुमरिया में उभरे थे. 2001 में डुमरिया प्रखंड के उपप्रमुख बन चुके थे. पत्नी को बाद में अपने पंचायत से मुखिया भी बनवा दिया था. प्रखंड में सुदेश के बढ़ते राजनीतिक कद को देखते हुए माओवादियों तथा उनके राजनीतिक विरोधियों ने उनको अपने निशाने पर ले रखा था. इस घटना के पीछे चुनावी रंजिश के साथ ही बड़े राजनीतिक नेताओं का हाथ होने से इंकार नहीं किया जा सकता. क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी पर अपने ही क्षेत्र में लोगों द्वारा हमला किए जाने की बात लोग असानी से नहीं पचा पा रहे हैं. इस बात को पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी, प्रशासन के वरीय पदाधिकारी और स्थानीय लोग भी जानते हैं, लेकिन इस मामले पर कोई खुलकर बोलने को तैयार नहीं है. इसकी प्रकार मई के महीने में ही शेरघाटी थाना के अन्तर्गत आने वाली मोरहर नदी में अवैध खनन से हुए गड्ढे के पानी में डूबने की वजह से कठार गांव के दो बच्चों की मौत हो गई. इस घटना की जानकारी मिलते ही आस-पास के गांव के लोगों की भीड़ जमा हो गई और नदी में बालू उठा रहे वेस्ट लिंक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की चार ट्रक, तीन हाइवा, दो पोकलेव मशीन और एक ट्रैक्टर को फूंक डाला. सूचना पाकर घटनास्थल पर पहुंची पुलिस पर भी आक्रोशित भीड़ ने हमला कर दिया और पुलिस की जीप को फूंक दिया. पुलिसकर्मियों ने किसी तरह भागकर अपनी जान बचाई. इन दोनों ही घटनाओं से करोड़ों की क्षति हुई, लेकिन सवाल यह है आखिर लोगों के आक्रोशित होने की वजह क्या है? पुलिस इस बात को आज भी नहीं समझ पा रही है.
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मोरहर नदी में बालू का खनन दस फीट तक करना है. प्रशासन का कहना है कि साढ़ नौ फीट बालू के गड्ढे में वर्षा का पानी जमा हो गया था और इसी गड्ढे में कठार गांव के बच्चों की डूबने की वजह से मौत हो गई. लेकिन परिजनों का आरोप है कि इन बच्चों की मौत डूबने से नहीं, बल्कि बालू उठाते समय जेसीबी से दब जाने की वजह से हुई है. इसी प्रकार बथानी अनुमंडल थाने को लोगों ने अपने कब्जे में ले लिया और थाना अध्यक्ष समेत सभी पुलिस कर्मी थाने में ताला लगाकर भाग खड़े हुए. वजह यह थी कि थाना क्षेत्र के बंडी बाजार में दुकानदार के द्वारा पान का पैसा मागने पर दो लोगों ने जमकर फायरिंग की. फायरिंग करने वाले शकील खां और वकील खां का क्षेत्र में आतंक है. जनवरी के महीने में पूर्व मुखिया खलील मियां की हुई हत्या का आरोप भी इन दोनों पर ही है. लोगों ने जब थाने में जाकर इन दोनों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करानी चाही, तो पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज नहीं की. लोगों का आरोप है कि डीएसपी आरोपियों की मदद कर रहे हैं. पुलिस के असहयोग और दबंगों के बढ़ते अत्याचार की वजह से जब लोग परेशान हो गए, तो हजारों की संख्या में बथानी थाना पहुंच कर थाने का घेराव कर दिया. कई घंटे तक लोग थाना परिसर में ही बैठे रहे, लेकिन लोगों की समस्या को सुनने के लिए कोई भी पुलिस पदाधिकारी नहीं पहुंचा. यही वजह है कि पुलिस और प्रशासन की कार्यशैली से लोगों में बढ़ती नाराजगी जनाक्रोश का रूप लेती जा रही है. आरोपियों के खिलाफ पुलिसिया कार्रवाई की शिथिलता और निर्दोष लोगों पर कार्रवाई मगध के लोगों को उग्र होने के लिए मजबूर कर रही है. इस जनाक्रोश का आम लोगों को भी खामियाजा भुगतना पड़ रहा है.