इस समय में संवेदनाऐं और और जागीं हैं।कवि ह्दय व्यक्ति कवि हो गए हैं,और कवि और पैनी कविताएं लिखने लगे हैं।यहां प्रस्तुत दो कविताएं दूसरे श्रेणी के कवि की हैं जो और अधिक नुकीला,और अधिक स्पष्ट और अधिक महीन लिखने लगीं हैं।इन कविताओं को पढ़कर हमारे अनुभव कवि के अनुभवों से एकात्म होते हुए लगते हैं।हम चौंकते हैं कि क्या सच में ही इस विषाणु ने हमें इस कदर हिला कर रख दिया,हमें ही नहीं टिटहरी,चींटियों से लेकर दुनिया के तथाकथित बादशाह को भी उसकी अक्षमता से पहचान करा दी।

वनिता वाजपेयी की कविताएं ऐसी ही हैं।जो इस कुकाल में विहग अवलोकन करते हुए हमें बता रहीं हैं कि हाँ यह हो रहा है।
इसी वक्त हो रहा है।

—ब्रज श्रीवास्तव

सफाई

सिर्फ हवा और पानी नहीं
और भी बहुत कुछ
हो गया है
साफ़
ब्रांडेड जींस और जूतों का पता नहीं
किस कोने में हैं
सहेजा जा रहा है
खाने का सामान
सुबह उठकर
अब नहीं देखे जाते शेयर और सोने के भाव
हां आलू प्याज का दाम
पता है सबको
अचानक सफाई में दिखे हैं जाले
किसी और को क्यों दिखते
घर और जाले
तुम्हारे हैं
दिन भर क्या करती हो
जवाब ऐसे मिला है
सिर्फ हवा पानी नहीं
साफ हो गया है अन्तःकरण

शगल

चीटियों ने जुटा ही लिया
भोजन
कुछ पक्षी फैलाते रहे दाने
ताकि
मिल सके सबको खाना
बगुले निकल पड़े हैं
शिकार पर
ऑक्टोपस सिमट गए
और अंदर
तोते बांच रहे हैं कथा
टिटहरी को नहीं आती
नींद
रात भर
सबके अपने अपने शगल हैं
इस बुरे समय में ।

नन्हीं हथेलियों में

होती थीं
हरी हरी कजलियां
और आंखों में चमक
मालूम नहीं था
कजलियों का मतलब
बस ये पता था
कि
सर पर फेरा जाएगा
प्यार से हाथ
और
हथेली पर धर दी जाएंगी
चन्द खुशियांँ
पूरे जहांँ की दौलत नहीं खरीद सकती जिसे

वनिता वाजपेयी

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