समकालीन कविता की दुनिया में अपनी प्रगतिशील और लगभग अस्मिता संदर्भित विचारों की नुकीली धार से इस समय की खुमारी को चीरती जातीय कविताएं लेकर उपस्थित हैं छिंदवाड़ा मध्यप्रदेश की कवि
शेफाली शर्मा
आइये पढ़ते है झकझोरने वाली कविताएँ
ब्रज श्रीवास्तव
बलात्कारियों के बयान
औरत से
प्रेम हो
घृणा हो
नफ़रत हो
या दुश्मनी
पुरूषों के पास
एक ही हथियार है
एक ही तरह का वार है
जब कि औरतों ने अपनी जान को
तोते में रखना छोड़ दिया है
वो भी तुम्हारी ही तरह
गिर जाने के बाद
घुटने और कोहनियाँ झाड़ कर
उठ जाती है।
धर्म की सार्थकता
मैं उसी दिन जन्मी
जिस दिन ये कथा जन्मी
ठीक उसी वक्त
जब एक निरपराध बालक का सिर काट लेने के बाद
काटा गया दूसरे बालक का सिर
एक स्त्री क्रोध कर सकती थी
एक केवल आह भर सकती थी
देवता सिर काट सकते थे
सिर काट कर देवता हुआ जा सकता है?
पूरा जीवन एक माँ की
आह सुनते हुए नहीं बिताया जा सकता
मैं इसे कहानी मानते हुए इस आह से मुक्त हुई
अपराध से मुक्त हुई
हाँ सिर काट लेना अपराध होता है
हिंसा का विरोध ही
धर्म की सार्थकता है।
मरता भारत
अपने भगवान का नाम लेते हुए भी
यदि तुम्हारे हाथ से हथियार नहीं छूटते
दिल से नफ़रत ख़त्म नहीं होती
तो बताओ
कौनसा धर्म है तुम्हारा
जिसे तुम बीच चौराहे ज़लील करते हो
मुझे अपने बच्चे को
इसी धर्म से बचाना है।
चेतावनी
क्यूँ ढूंढते हो
मंगल सूत्र मेरी गर्दन में;
माथे की बिंदी और मांग के सिंदूर से
तय करते हो अपना आचरण।
यदि मेरे आभूषण,
तुम्हारी सोच को नियंत्रित करते हैं;
और तुम्हारे शरीर को नियंत्रित करते हैं-
‘मेरे वस्त्र’
तो चेतावनी देती हूँ-
किसी नवजात बच्ची को;
गोद में मत उठाना।
सुन्दरता के मापदंड तय हुए
और उन्हें तराशकर सजाया गया
औज़ार कभी दिखे कभी नहीं भी दिखे
इस दौरान एनेस्थीसिया दिया गया
जो ताउम्र काम करता रहेगा
उनका इस्तेमाल अब इच्छाओं की
पूर्ति के लिए होता है
ये बात पत्थरों के बारे में है।
शेफाली शर्मा
छिन्दवाड़ा