प्रधानमंत्री बनने से पहले ही नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान देश की जनता से अच्छे दिन लाने का वादा किया था. यह अलग बात है कि अब उन्हीं की पार्टी के कुछ नेता इसे जुमला बताते हैं या इससे इंकार भी करने लगे हैं. लेकिन, यह सच्चाई यह है कि चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने जनता के बीच उम्मीदों का एक पहाड़ खड़ा कर दिया था. ऐसा कोई भी क्षेत्र (सेक्टर) नहीं बचा, जिसके लिए मोदी ने वादों की बौछार न की हो. देश की जनता, खासकर नौजवानों को उनसे बहुत सारी उम्मीदें बंध गई थीं.
उन्होंने इतने वादे किए थे, जिन्हें वर्गीकृत करके बता पाना भी मुश्किल है. कुल मिलाकर कहें, तो देश के हर एक तबके के लिए उनकी झोली में कुछ न कुछ ज़रूर था. नतीजा यह हुआ कि नरेंद्र मोदी अपार बहुमत से प्रधानमंत्री चुने गए. प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने अपने वादों को क्रियान्वित करने के लिए कई योजनाएं शुरू कीं. मसलन, मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, क्लीन इंडिया, सोलर पॉवर, जनधन, बीमा, पेंशन, आदर्श ग्राम आदि. इन सभी योजनाओं के पीछे सरकार की नीयत पर सवाल खड़े करना या शंका करना ग़लत होगा.
लेकिन, यह देखना भी ज़रूरी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक साल के कार्यकाल के दौरान घोषित इन योजनाओं का आज एक साल बाद क्या हाल है. ये किस स्थिति में हैं, ये अपने मकसद में कितनी कामयाब हो रही हैं और इनके क्रियान्वयन की जो गति है, क्या वह संतोषजनक है? हमने इन सारी योजनाओं की समीक्षा करने की कोशिश की है, जिसमें सरकारी आंकड़ों के साथ-साथ रिसर्च इंस्टीट्यूट के भी आंकड़े शामिल हैं, ताकि एक तुलनात्मक अध्ययन किया जा सके और एक निष्पक्ष तस्वीर जनता के समक्ष रखी जा सके.
इसका मकसद इन योजनाओं की प्रासंगिकता पर सवाल खड़े करना नहीं है, बल्कि इसके ज़रिये इनके क्रियान्वयन पर एक समीक्षात्मक नज़र डालना है. पेश है, इन योजनाओं की मौजूदा स्थिति का एक लेखा-जोखा.
मेक इन इंडिया, लेकिन किसके लिए
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 सितंबर, 2014 को नई दिल्ली के विज्ञान भवन से मेक इन इंडिया नामक एक महत्वाकांक्षी अभियान की शुरुआत की थी. इस अभियान का मुख्य उद्देश्य भारत को एक ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग और एक्सपोर्ट हब में बदलने के साथ-साथ युवाओं को रा़ेजगार के अवसर उपलब्ध कराना भी है. इस अभियान की रूपरेखा इसकी औपचारिक शुरुआत से पूर्व ही प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त, 2014 को स्वतंत्रता दिवस के अपने पहले संबोधन में पेश कर दी थी.
उन्होंने दुनिया के उद्यमियों का आह्वान करते हुए कहा था, आप भारत में आइए, यहां निर्माण कीजिए और दुनिया के किसी भी देश में ले जाकर बेचिए. हमारे पास कौशल है, प्रतिभा है, अनुशासन है और कुछ कर ग़ुजरने की इच्छाशक्ति है. बहरहाल, मेक इन इंडिया की शुरुआत हुए तक़रीबन एक वर्ष हो गए हैं. शुरुआती उदासीनता के बाद अब इस अभियान में कुछ प्रगति होती दिख रही है. कई विदेशी कंपनियों ने भारत में पूंजी निवेश के प्रस्ताव रखे हैं और कुछ ने उत्पादन भी शुरू कर दिया है.
भारत सरकार की संस्था डेवलपमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रमोशन (डीआईपीपी) द्वारा 15 जुलाई 2015 को जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर 2014 से अप्रैल 2015 के दौरान पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में विदेशी निवेश में 48 प्रतिशत इजा़फा हुआ है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, इस अवधि में विदेशी संस्थागत निवेशकों या वित्तीय बाज़ारों के माध्यम से आने वाली कुल धनराशि 40.92 अरब डॉलर थी. डीआईपीपी के आंकड़ों के मुताबिक, ज़्यादातर निवेशक फ़िलहाल टेलीकम्युनिकेशन, कंप्यूटर सॉफ्टवेयर, सर्विस सेक्टर, ऑटोमोबाइल, ड्रग्स एंड फार्मास्युटिकल्स में अधिक रुचि ले रहे हैं.
मोबाइल बनाने वाली कंपनियों जिओमी, मोटोरोला और लेनोवो की एसेम्बलिंग यूनिटों में काम भी शुरू हो गया है. सैमसंग, माइक्रोमैक्स और स्पाइस की एसेम्बलिंग यूनिटें भारत में पहले से काम कर रही थीं. ताइवान की कंपनी फोक्सकॉन ने पांच अरब डॉलर के निवेश का प्रस्ताव रखा है. भारतीय संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के मुताबिक, पिछले दो महीनों के दौरान इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण क्षेत्र में भारत सरकार को 90 हज़ार करोड़ रुपये के प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं. ये प्रस्ताव रखने वाली कंपनियों में फिलिप्स, थॉम्सन, सैमसंग, एलजी और फ्लेक्सट्रोनिक्स आदि शामिल हैं.
विदेशी निवेश को लेकर वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की ओर से पांच अगस्त 2015 को दी गई जानकारी के मुताबिक, कंप्यूटर सॉफ्टवेयर एवं हार्डवेयर में 14.5 हज़ार करोड़, ऑटोमोबाइल में 6.35 हज़ार करोड़, ट्रेेडिंग में 4 हज़ार करोड़, सर्विस सेक्टर में 3 हज़ार करोड़, टेलीकम्युनिकेशन में 2 हज़ार करोेड़ रुपये का विदेशी निवेश आया, लेकिन र्ड प्रोसेसिंग में 373 करोड़, मेटालार्जिकल में 466 करोड़, इंडस्ट्रियल मशीनरी में 413 करोड़, चीनी उद्योग में 90करोड़, मशीन टूल्स में 22 करोड़ रुपये का ही निवेश प्राप्त हुआ. यानी इन क्षेत्रों में निवेशकों की उदासीनता बरकरार है.
डीआईपीपी और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि मेक इन इंडिया के तहत अभी तक कुछ गिन-चुने क्षेत्रों के प्रति ही निवेशकों का उत्साह है. स्टील, इलेक्ट्रिकल स्विचगेयर और कृषि से संबंधित मशीन टूल्स के प्रति उनकी उदासीनता बरकरार है. इन आंकड़ों से ज़ाहिर होता है कि निवेशकों की रुचि उन्हीं क्षेत्रों में है, जिनकी स्थिति भारत में पहले से मज़बूत थी. अगर भारत को एक मैन्युफैक्चरिंग हब बनना है और मेक इन इंडिया के तहत रोज़गार के अवसर पैदा करने हैं, तो उसे कृषि से जुड़े उद्योगों के साथ-साथ दूसरे क्षेत्रों में भी निवेश को आकर्षित करना होगा. उसके बाद ही देश की बड़ी आबादी को मेक इन इंडिया का लाभ दिया जा सकता है.
इसमें कोई शक नहीं कि मेक इन इंडिया में विदेशी निर्माताओं के सामने 10 प्रतिशत आर्थिक विकास दर हासिल करने का जो लक्ष्य रखा गया है, वह असंभव नहीं है. विदेशी कंपनियां इसी नीयत से इसमें रुचि भी दिखा रही हैं.
उधर चीन में आर्थिक संकट गहरा रहा है और वह अपनी मुद्रा युआन का अवमूल्यन कर रहा है. शेयर बाज़ार में निवेशकों की रुचि कम हो रही है. ग़ौरतलब है कि ग्लोबल निर्यात में चीन की हिस्सेदारी है. इस स्थिति को बाज़ार विशेषज्ञ भारत के मेक इन इंडिया अभियान के लिए एक अवसर मान रहे हैं, वहीं कुछ अर्थशास्त्री चीन की ही मिसाल देते हुए फूंक-फूंक कर क़दम बढ़ाने की सलाह दे रहे हैं. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक शोध का हवाला देते हुए अर्थशास्त्री भरत झुनझुनवाला लिखते हैं कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां किसी विकासशील देश को अपनी आधुनिक तकनीक हस्तांतरित नहीं करतीं.
तकनीक हस्तांतरण के लिए इन कंपनियों पर दबाव बनाना पड़ता है. ज़ाहिर है, अगर तकनीकों का हस्तांतरण नहीं होगा, तो इसका मतलब यह कि मेक इन इंडिया कुछ विदेशी कंपनियों तक सिमट कर रह जाएगा. चीन की विकास दर में आ रही गिरावट के पीछे उसकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर निर्भरता बताई जा रही है. ऐसे में, भारत को तकनीक के विकास के लिए रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर अधिक ज़ोर देना चाहिए और कोई फैसला जल्दबाजी में नहीं करना चाहिए. बहरहाल, मेक इन इंडिया अभियान में अब तक की प्रगति देखते हुए कहा जा सकता है कि भारत को मैन्युफैक्चरिंग और एक्सपोर्ट हब बनने के लिए अभी काफी लंबा रास्ता तय करना है.
सोलर पावर: लक्ष्य हिमालयी, चाल कछुए की
भारत ने अपनी सोलर पावर यात्रा महत्वाकांक्षी जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन (जेएनएनएसएम) के तहत 2010 में शुरू की. मोदी सरकार ने जून 2015 में वर्ष 2022 तक भारत की सौर ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य पांच गुना बढ़ाकर 1,00,000 मेगावाट करने के लिए एक योजना को मंजूरी दी. सौर ऊर्जा को तीन घटकों से जोड़ा गया है. पहला बड़े ग्रिड, दूसरा छोटे ग्रिड और तीसरा ऑफ ग्रिड. इनमें पहला काम छोड़कर दूसरा और तीसरा मिनिस्ट्री ऑफ न्यू रेन्यूबल एनर्जी कर रही है. अभी बड़े ग्रिड पर ज़्यादा काम हो रहा है. आने वाले समय में ऑफ ग्रिड पर ज़्यादा काम की गुंजाइश है. दरअसल, जवाहर लाल नेहरू सोलर मिशन के तहत एक बड़ा लक्ष्य हासिल करना है, जो बड़े निवेश और उपकरणों के बिना संभव नहीं है.
भारत की मौजूदा सौर ऊर्जा क्षमता केवल 4,060 मेगावाट है. मोदी सरकार की इस पहल को छह लाख करोड़ रुपये के निवेश की आवश्यकता है और हर साल अगर औसतन 15,000 मेगावाट सौर ऊर्जा का उत्पादन भारत करता है, तभी यह लक्ष्य पूरा किया जा सकता है. मई 2014 से आज तक सरकार का एक साल पूरा हो गया है. बीते एक साल में सौर ऊर्जा के संबंध में सरकार और निजी क्षेत्रों की ओर से घोषणाएं तो बहुत हुईं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर उतना काम नहीं दिख रहा.
सरकारी सूत्रों की मानें, तो अब तक सरकार को लगभग 85 हज़ार मेगावाट के सोलर पावर प्रपोजल मिल चुके हैं, जबकि सरकार का लक्ष्य वर्ष 2022 तक सोलर पावर से एक लाख मेगावाट बिजली उत्पादन करना है. नवीन एवं अक्षय ऊर्जा मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 31 मार्च 2014 तक सौर ऊर्जा की कुल क्षमता 2,631.9038 मेगावाट थी, जो 13 जुलाई 2015 तक स़िर्फ 1,464.7442 मेगावाट बढ़कर 4,096.648 तक पहुंची है. चिंताजनक बात यह भी है कि 2014-15 के दौरान तेलंगाना और त्रिपुरा के अलावा कहीं भी सौर ऊर्जा क्षमता में वृद्धि नहीं हुई है. कई राज्यों, जिनमें बिहार प्रमुख है, में एक भी परियोजना शुरू नहीं हुई है.
सरकार द्वारा सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए कुछ क़दम
-भारतीय सौर विकिरण एटलस का निर्माण.
-रूफ टॉप सोलर पावर जनरेशन पॉलिसी.
-करमुक्त बांड और सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए 15 करोड़ रुपये तक का बैंक ऋण.
राज्य
वर्ष 2014 में राजस्थान सरकार ने 26,000 मेगावाट की संचयी क्षमता के साथ सौर पार्क विकसित करने के लिए निजी कंपनियों के साथ समझौतों पर हस्ताक्षर किए. तमिलनाडु सरकार और अडानी पावर लिमिटेड ने रामनाथपुरम ज़िले में 200 मेगावाट क्षमता के सौर ऊर्जा संयंत्र की स्थापना करने के लिए ऊर्जा खरीद समझौता (पीपीए) पर जून 2015 में हस्ताक्षर किए. मध्य प्रदेश सरकार ने 750 मेगावॉट क्षमता वाला सौर ऊर्जा संयंत्र रीवा ज़िले की गढ़ तहसील में स्थापित करने के लिए संयुक्त उपक्रम के गठन के प्रस्ताव को मंजूरी दी. केंद्र सरकार इस संयंत्र की स्थापना के लिए 150 करोड़ रुपये मुहैया कराएगी.
कर्नाटक सरकार ने सोलर पावर प्रोजेक्ट के लिए बिड निकाली है, जिसके तहत तीन मेगावाट से ऊपर के सोलर पावर प्रोजेक्ट इंस्टॉल किए जाने हैं. डॉयचे बैंक इंडिया 2020: यूटिलिटी एंड रिन्यूएबल नामक रिपोर्ट में कहा गया है कि निजी क्षेत्रों ने कोल पावर के बजाय सोलर पावर की ओर अपनी रुचि बढ़ा दी है. बिजली उत्पादन करने वाली सरकारी कंपनी एनटीपीसी के साथ-साथ अडानी और रिलायंस पावर भी आने वाले दो-तीन सालों में सोलर पावर पर बड़ा निवेश कर सकती हैं.
-सरकार का लक्ष्य: वर्ष 2022 तक भारत की सौर ऊर्जा क्षमता 1,00,000 मेगावाट करना. एक साल में 85 हज़ार मेगावाट के सोलर पावर प्रस्ताव प्राप्त.
-13 जुलाई 2015 तक सौर ऊर्जा क्षमता 4,096.648 मेगावाट.
-हर साल 15,000 मेगावाट सौर ऊर्जा के उत्पादन की ज़रूरत.
-एक साल में केवल 1,464.7442 मेगावाट की बढ़ोत्तरी.
-छह लाख करोड़ रुपये के निवेश की आवश्यकता.
कृषि से जुड़े 54 प्रतिशत कामगारों का कौशल विकास कैसे होगा
स्किल इंडिया सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है. यह योजना पहले से चली आ रही है, लेकिन मौजूदा सरकार ने इसके लिए एक अलग से मंत्रालय बनाया है और इसमें कई सारी योजनाएं भी जोड़ी हैं. इस मंत्रालय का नाम है, कौशल विकास एवं उद्यमिता. स्किल इंडिया के तहत सरकार का लक्ष्य वर्ष 2022 तक 40 करोड़ लोगों को प्रशिक्षित करना है. इसमें लोगों को चार योजनाओं के तहत प्रशिक्षित किया जाता है:-
1-प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना.
2-उड़ान.
3-स्टार (स्टैंडर्ड ट्रेनिंग असेसमेंट रिवार्ड)
4-वोकेशनलाइजेशन ऑफ एजुकेशन (इसमें दो तरह की योजनाएं हैं, 1- स्कूली शिक्षा, 2- उच्च शिक्षा).
आइए जानते हैं कि इसकी मौजूदा स्थिति क्या है?
नए मंत्रालय ने 35 वर्ष तक के 24 लाख युवाओं के लिए स्किल प्रोग्राम लॉन्च किया है, लेकिन प्रत्येक वर्ष 1.2 करोड़ लोगों को नौकरी की आवश्यकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि हमारा देश युवाओं का है और यहां 65 प्रतिशत लोग 35 साल से कम के हैं. दुनिया में सबसे अधिक युवा हमारे देश में हैं. आज पूरी दुनिया के साथ-साथ भारत को एक कुशल कार्यबल की ज़रूरत है. किसी समय हमें अच्छे ड्राइवर की आवश्यकता होती है, लेकिन वह नहीं मिलता.
कभी हमें एक अच्छे प्लंबर की ज़रूरत होती है, लेकिन वह नहीं मिलता. फिलहाल, दस लाख रा़ेजगार की आवश्यकता हर महीने है और यह संख्या प्रत्येक वर्ष उत्पन्न हो रही है. मोदी ने कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय में जान फूंक दी है और उसे 24 लाख लोगों को हुनर सिखाने का काम सौंपा है. प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना 15 जुलाई 2015 को लॉन्च की गई थी. अर्थव्यवस्था और प्रत्येक वर्ष 1.2 करोड़ नौकरियों की ज़रूरत को देखते हुए प्रधानमंत्री कौशल विकास मिशन (प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना) 25 वर्ष से कम 23.1 करोड़ युवाओं का प्रशिक्षण सुनिश्चित करने के लिए लॉन्च किया गया था. लेकिन, भारत की असली कौशल परीक्षा खेती-किसानी से जुड़े 54 प्रतिशत कामगारों को लेकर है.
-किसान और मज़दूर के रूप में खेतों में काम करने वालों की आबादी 54 प्रतिशत है.
-कौशल विकास न होने के कारण बड़ी संख्या में लोग कृषि मज़दूर बनने को मजबूर हैं.
– केवल दो प्रतिशत (90 लाख) भारतीय कामगार प्रशिक्षित हैं.
ऐसे कब तक बन पाएगा स्वच्छ भारत
प्रधानमंत्री मोदी ने दो अक्टूबर 2014 को गांधी जयंती के अवसर पर स्वच्छ भारत अभियान लांच किया था, जिसके तहत उन्होंने आह्वान किया था कि जनता देश को स्वच्छ बनाने में अपनी भागीदारी निभाए. शुरू-शुरू में लोगों ने इसमें सहयोग भी किया, लेकिन बाद में उनका उत्साह कम होने लगा. बहरहाल, इस अभियान का मकसद खुले में शौच की आदत और मैला ढोने का काम समाप्त करना, शौचालयों का निर्माण था. प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा था कि देश को मंदिर से अधिक शौचालय की आवश्यकता है.
लिहाज़ा शौचालय स्वच्छ भारत अभियान का एक अहम हिस्सा है. वर्ष 2019 तक खुले में शौच की समस्या समाप्त कर देने का लक्ष्य रखा गया है. मोदी सरकार के रिपोर्ट कार्ड के मुताबिक, वर्ष 2014-15 में 58,55,666 शौचालय बनवाए गए, जो 2013-14 की तुलना में 17 प्रतिशत अधिक हैं. ज़ाहिर है, यह सरकारी दावा है. नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) स्वच्छ भारत अभियान पर अपनी रिपोर्ट इस साल अक्टूबर में जारी करेगा.
यह सही है कि 2013-14 की तुलना में 2014-15 के दौरान देश में शौचालय निर्माण में वृद्धि हुई है, लेकिन 2008-09, 2009-10, 2010-11 के दौरान इस गति से कहीं अधिक काम हुआ था.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अभी भी देश की कम से कम 55 प्रतिशत आबादी के पास शौचालय नहीं है. मैला ढोने की प्रथा अब तक जारी है, जिसे खत्म करना स्वच्छ भारत अभियान का एक बड़ा लक्ष्य था. जिस गति से काम हो रहा है, उससे यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है कि तय समय सीमा के भीतर निर्धारित लक्ष्य शायद ही पूरा किया जा सकेगा. शौचालय निर्माण से इतर यदि स़िर्फ स्वच्छता अभियान की बात करें, तो शुरू में प्रधानमंत्री से लेकर मंत्रियों तक ने सड़क पर उतर कर झाड़ू लगाई थी.
मीडिया में इसका ज़ोर-शोर से प्रचार प्रसार भी हुआ. लेकिन खुद प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी का अगर आप दौरा कर लें, तो इस अभियान की सत्यता मालूम हो जाएगी. ऐसे में, बाकी सांसदों के क्षेत्रों की बात करना भी बेमानी है. लेकिन, यह भी ज़रूरी है कि ऐसे अभियानों में जनता खुद आगे बढ़कर आए. सरकार भी ऐसे प्रयास करे, जिनसे इस अभियान में जन-सहभागिता सुनिश्चित हो.
वर्ष घर, जिनमें शौचालय बने
2008-09 1,12,65,882
2009-10 1,24,07,778
2010-11 1,22,43,731
2011-12 87,98,864
2012-13 45,59,162
2013-14 49,76,294
2014-15 58,55,666
(स्रोत: फैक्टचेकर डॉट इन-जो लोकसभा में दिए गए जवाब पर आधारित है.)
योजना नहीं, स्थानीय नेतृत्व से बनेगा आदर्श ग्राम
11 अक्टूबर 2014 को आदर्श ग्राम योजना शुरू करते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि अगर 800 सांसद वर्ष 2019 तक तीन गांवों का विकास करेंगे, तो देश के 2,500 गांवों का विकास हो जाएगा. ग़ौर करने वाली बात यह है कि देश में क़रीब छह लाख गांव हैं. यदि पांच साल में 2,500 गांव आदर्श ग्राम बनते हैं, तो छह लाख गांवों को आदर्श ग्राम बनने में कितने साल लगेंगे? वैसे 11 अक्टूबर 2016 से पहले इस योजना की समीक्षा और इसे सफल या असफल बताना थोड़ी जल्दबाजी होगी.
फिर भी मोटे तौर पर दस महीनों के दौरान इस योजना पर हुए कामों की समीक्षा की जा सकती है. दस माह पुरानी इस योजना में अब तक गिने-चुने गांव ही ऐसे मिले हैं, जिन्हें मोदी सरकार की सालाना प्रगति पुस्तक-संवाद में जगह दी गई है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गोद लिए गए गांव जयापुर में निश्चित तौर पर काम हो रहे हैं और वहां विकास की रोशनी पहुंचनी शुरू हो गई है. लेकिन, बाकी सात सौ गांवों की हालत भी जयापुर जैसी हो गई है, कहना ग़लत होगा.
सरकारी तौर पर गांवों में विकास के कार्य अगस्त 2015 से शुरू होने थे और 2016 के अंत तक पूरे किए जाने हैं. सरकारी वेबसाइट के मुताबिक, योजना की घोषणा के दस महीने बाद भी क़रीब सौ सांसद ऐसे हैं, जिन्होंने गांव गोद नहीं लिया. लोकसभा के 543 में से 44 और राज्यसभा के 247 में से 54 सांसदों ने अब तक गांव का चयन नहीं किया है.
सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि इस योजना के लिए सांसदों को अलग से पैसा नहीं दिया गया है. इसके लिए उन्हें अपनी सांसद निधि खर्च करनी पड़ रही है. सवाल यह है कि यदि वह एक गांव के विकास पर ही पूरी सांसद निधि खर्च कर देगा, तो अपने संसदीय क्षेत्र के बाकी सैकड़ों गांवों के लिए पैसा कहां से लाएगा? सपा के राज्यसभा सांसद नरेश अग्रवाल ने जिस गांव को आदर्श बनाने के लिए चुना था, उसे वापस कर दिया.
उन्होंने कहा कि यह योजना तो गांवों में झगड़ा करा देगी. विकास होना है, तो सभी गांवों का हो. दूसरे, योजना में पैसा तो है नहीं, विकास कहां से होगा? सरकार की ओर से व्यवस्था की गई है कि विभिन्न मंत्रालयों की पहले से चली आ रही योजनाओं का कुछ हिस्सा इन आदर्श ग्रामों को दे दिया जाए. गांवों के लिए अधिकतर योजनाएं यूपीए सरकार की हैं, जो पहले से जारी हैं.
दरअसल, आदर्श ग्राम योजना एक आदर्शवादी योजना है, जिसमें व्यक्तिगत विकास, मानवीय विकास, सामाजिक विकास, आर्थिक विकास, पर्यावरणीय विकास, बुनियादी सहूलियतें, सामाजिक सुरक्षा और बेहतर शासन जैसे मुद्दे शामिल हैं. ये सारे मुद्दे निश्चित तौर पर सराहनीय हैं और अगर ये सचमुच लागू हो जाएं, तो हमारे गांव आदर्श ग्राम से बढ़कर गांधी जी के रामराज्य वाली कल्पना साकार कर उठेंगे.
सांसद, जिन्होंने अब तक गांव का चयन नहीं किया
लोकसभा
कुल सांसद-543
गांव का चयन न करने वाले सांसद-44
राज्यसभा
कुल सांसद-247
गांव का चयन न करने वाले सांसद-54
प्रधानमंत्री जनधन योजना: 46 प्रतिशत खातों में एक पैसा नहीं
भारत सरकार ने 15 अगस्त 2014 से 26 जनवरी 2015 के बीच जनधन योजना के तहत 15 करोड़ नए खाते खोले. आज देश के 95 प्रतिशत लोग बैंक से जुड़ गए हैं. इन 15 करोड़ खातों में ग़रीब लोगों ने 15,800 करोड़ रुपये जमा कर दिए, लेकिन प्रधानमंत्री ने यह नहीं बताया कि इन 15 करोड़ में से आधे खातों में एक पैसा नहीं है. जनधन योजना के तहत एक ही दिन में डेढ़ करोड़ खाते खोले गए. सरकार ने जनधन योजना को वित्तीय समावेशन (फाइनेंशियल इन्क्लूजन) की दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण क़दम बताया है.
सरकार चाहती है कि उसकी ओर से मुहैय्या कराई जाने वाली वित्तीय सहायता एवं सब्सिडी सीधे लाभार्थी के बैंक खाते में पहुंचे. इसके साथ ही जनधन खाताधारक को एक लाख रुपये का मुुफ्त दुर्घटना बीमा का प्रावधान है.
प्रधानमंत्री जनधन योजना (पांच अगस्त 2015 तक)
खातों की संख्या डेबिट काड्र्स में धनराशि जमा धनराशि जीरो बैलेंस खातों का प्रतिशत (ग्रामीण और शहरी मिलाकर)
- सरकारी क्षेत्र के बैंक 74.8 61.6 136.
- 4 125.4 1772731.2 46
- ग्रामीण क्षेत्रीय बैंक 26.5 4.6 31.1 22.7 36845.6 49
- निजी बैंक 4.1 2.8 7 6.2 10750.1 46
कुल 105.5 69 174.5 154.3 220326.8 46
स्रोत: वित्त मंत्रालय
बीमा और पेंशन: कई अनसुलझे सवाल
बीमा और पेंशन ऐसे विषय हैं, जिन पर विस्तार से बात करना ज़रूरी है, क्योंकि बीमा की असलियत पॉलिसी के विवरण में होती है, न कि प्रीमियम में. वहीं दूसरी तऱफ पेंशन वृद्धावस्था का एकमात्र सहारा है, लेकिन भारत में बीमा लगभग भगवान भरोसे ही है. अमेरिका में ओबामा हेल्थ केयर बीमा पर भले ही बहस होती रही हो, लेकिन भारत में जो बीमा योजनाएं सरकार लॉन्च करती है, उन्हें लेकर राजनीतिक दल चर्चा तक नहीं करते. कुछ महीने पहले प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति योजना और अटल पेंशन योजना मोदी सरकार ने लॉन्च की. आइए, जानते हैं इन योजनाओं की हक़ीक़त.
अटल पेंशन योजना: इसके तहत आप 42 से 1,452 रुपये की सालाना किस्त देकर एक हज़ार से लेकर पांच हज़ार रुपये तक की पेंशन पा सकते हैं. सरकार के अंशदान का लाभ उन्हें ही मिलेगा, जो आयकर दाता नहीं होंगे. इस योजना का सारा काम बैंक के ज़रिये होगा. क्या बीमा क्षेत्र को सहारा देने के लिए बैंकों के बने-बनाए ढांचे का इस्तेमाल किया जा रहा है? यह योजना 18 से 40 वर्ष तक के लोगों के लिए है. 40 वर्ष से ज़्यादा उम्र वालों को इससे क्यों बाहर कर दिया गया? वरिष्ठ नागरिक भी इसमें शामिल नहीं हैं.
लोगों का मानना है कि अटल पेंशन योजना के तहत वही पैसा आपको साठ साल बाद मिलेगा, जो आपने जमा किया है. यही नहीं, जितने लोग बीमा लेंगे, उनमें मरने वालों की संख्या बहुत कम होगी और ज़्यादातर लोग बच जाएंगे. ऐसे में, प्रीमियम राशि बैंकों की जेब में चली जाएगी.
प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना: इसका सालाना प्रीमियम 12 रुपये है. इसके अंतर्गत बीमित व्यक्ति के विकलांग होने या मृत्यु पर घटना के 30 दिनों के अंदर दावा (क्लेम) करना होगा. दावे के साथ पोस्टमार्टम रिपोर्ट संलग्न करना अनिवार्य है. यदि कोई व्यक्ति ग्रामीण क्षेत्र में बीमार हो जाता है, तो उसके इलाज के लिए डॉक्टर ही उपलब्ध नहीं होते. ऐसे में, व्यक्ति की मौत के बाद उसका पोस्टमार्टम कराना और पोस्टमार्टम रिपोर्ट हासिल करना एक मुश्किल काम है. इसलिए ऐसे बीमा का क्लेम हासिल करना टेढ़ी खीर साबित होगा.
प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना: 330 रुपये सालाना प्रीमियम वाली इस योजना का लाभ 20 करोड़ से ज़्यादा लोग नहीं उठा पाएंगे, क्योंकि 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में 19 करोड़ से ज़्यादा लोग ऐसे हैं, जिनकी आयु 50 साल से ज़्यादा है और इस योजना में प्रावधान है कि केवल 18 से 50 साल तक के लोग ही इससे जुड़ सकते हैं. दूसरी तऱफ इस योजना में बीमा कवर 55 साल तक ही मिलेगा. यानी बीमाधारक की मृत्यु यदि 55 साल की उम्र तक होती है, तभी उसके नामित को दो लाख रुपये मिलेंगे. जबकि बाज़ार में मौजूद अन्य कंपनियों की पॉलिसी में 100 साल तक बीमा का लाभ लिया जा सकता है.
अल्पसंख्यकों से जुड़ी योजनाओं की मौजूदा स्थिति
अब एक नज़र अल्पसंख्यकों से संबंधित योजनाओं की वर्तमान स्थिति पर डालते हैं.
हमारी धरोहर: इसका उद्देश्य अल्पसंख्यक वर्गों की पारंपरिक कलाओं एवं व्यवसाय को सुरक्षित करना और इसके लिए आर्थिक सहायता उपलब्ध कराना है. इस योजना के क्रियान्वयन की स्थिति क्या है, यह अभी तक सरकार ने सार्वजनिक नहीं किया. आठ जुलाई 2014 को राज्यसभा में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री डॉ. नजमा हेपतुल्लाह ने बताया था कि अल्पसंख्यक मंत्रालय की ओर से मल्टी सेक्टोरल डेवलपमेंट प्रोग्राम (एमएसडीपी) के तहत देश भर में अल्पसंख्यकों की घनी आबादी वाले क्षेत्रों में 117 आईटीआई, 44 पॉलिटेक्निक, 645 छात्रावास, 1,092 स्कूल भवन और 20,656 अतिरिक्त कक्षाएं बनाने की स्वीकृति दी गई है, लेकिन आज सितंबर 2015 में जब हम यह जानने का प्रयास करते हैं कि इस दिशा में कितना काम हुआ, तो हमें मंत्रालय की ओर से कोई जानकारी नहीं मिलती.
मौलाना आज़ाद सेहत योजना: मोदी सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिए एक नई योजना मौलाना आज़ाद सेहत योजना नाम से शुरू की थी. इससे अल्पसंख्यक वर्ग कितना लाभांवित हुआ, अभी तक किसी को नहीं मालूम.
पढ़ो प्रदेश: यूपीए सरकार के दौरान 2013-14 में इसकी घोषणा कर दी गई थी, लेकिन उस समय यह योजना लागू नहीं हो सकी थी. 2014 में मोदी सरकार आने के बाद इसे लागू किया गया. वर्ष 2014-15 में इसके लिए केंद्र सरकार की ओर से चार करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे. इस योजना से अब तक स़िर्फ 573 अल्पसंख्यक विद्यार्थी लाभांवित हुए.
सीखो और कमाओ: अल्पसंख्यकों की हुनरमंदी के विकास के लिए अल्पसंख्यक मंत्रालय ने सीखो और कमाओ नामक एक योजना शुरू की है. इसके तहत मंत्रालय ने वर्ष 2014-15 में 34.67 करोड़ रुपये जारी किए और प्रशिक्षित लोगों को विभिन्न क्षेत्रों में नौकरियां दिलवाईं. इसके अलावा मंत्रालय ने अपने अंतर्गत काम करने वाले राष्ट्रीय अल्पसंख्यक विकास एवं आर्थिक निगम (एनएमडीएफसी) और मारुति सुजूकी इंडिया लिमिटेड के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर कराकर अल्पसंख्यकों के लिए ड्राइविंग प्रशिक्षण की व्यवस्था की, जिसके तहत दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं उत्तर प्रदेश में 2,515 अल्पसंख्यक युवाओं को ड्राइविंग का प्रशिक्षण दिया गया.
उस्ताद: वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 10 जुलाई 2014 को संसद में दिए गए अपने पहले बजट भाषण में अल्पसंख्यकों के लिए उस्ताद नामक योजना की घोषणा की थी, जिसका उद्देश्य अल्पसंख्यकों की पारंपरिक कलाओं एवं व्यवसाय को वर्तमान आवश्यकताओं के अनुसार आधुनिक बनाना और इस संबंध में अल्पसंख्यकों को प्रशिक्षित करना था. इसके लिए अल्पसंख्यक मंत्रालय ने देशी एवं विदेशी बाज़ार और एक ई-बिजनेस पोर्टल उपलब्ध कराने का भी वादा किया था, जो अब तक पूरा नहीं हो सका.
नई रोशनी: अल्पसंख्यक महिलाओं की नेतृत्व क्षमता विकसित करने के लिए अल्पसंख्यक मंत्रालय ने 2012-13 में नई रोशनी नामक एक योजना शुरू की थी. इसके तहत अल्पसंख्यक महिलाओं को सा़फ-स़फाई, बच्चों की बीमारियां एवं उनका उपचार, महिलाओं से संबंधित समस्याएं, जन वितरण प्रणाली, लाइफ स्किल्स आदि का प्रशिक्षण दिया जाता है.
नई मंज़िल: अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री डॉ. नजमा हेपतुल्लाह ने आठ अगस्त, 2015 को बिहार की राजधानी पटना में नई मंज़िल नामक एक नई योजना शुरू की. इसका उद्देश्य अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुसलमानों को शिक्षित बनाने के साथ-साथ उन्हें अपने जीवन की आवश्यकताएं पूरी करने के लिए आत्मनिर्भर बनाना है.
(साथ में चौथी दुनिया टीम)