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बढ़ते रेल हादसों के नजरिए से देखें, तो प्रधानमंत्री की कौशल विकास योजना लफ्फाजी ही साबित हो रही है. तकनीकी कर्मचारियों के अभाव में अकुशल श्रमिकों से काम लिए जाने के कारण रेल हादसों का खतरा लगातार बढ़ रहा है, लेकिन बेरोजगारी दूर करने वाली तथाकथित कौशल-विकास योजना को ताक पर रख दिया गया है.

रेल विभाग अपने ही ट्रेंड अप्रेंटिसों को नौकरी पर नियमित नहीं कर रहा और बाहर से ठेका पर मजदूरों को लेकर काम करा रहा है. ऐसे ही हजारों ट्रेंड अप्रेंटिस एक लंबे अर्से से आंदोलन कर रहे हैं. अभी हाल ही में हजारों अप्रेंटिसों ने राजधानी दिल्ली के जंतर-मंतर पर भी क्रमिक अनशन किया और प्रदर्शन का सिलसिलेवार कार्यक्रम चलाया.

आखिरकार सरकार ने इस मामले का निपटारा करने के बजाय प्रदर्शनकारियों को ही वहां से खदेड़ भगाया. रेलवे अपरेंटिस डबल-स्किल्ड श्रेणी के अंतर्गत आते हैं. आईटीआई और अपरेंटिस जैसे कोर्स में कई तरह की परीक्षाएं पास करने के बाद इन्हें नेशनल काउंसिल ऑन वोकेशनल ट्रेनिंग (एनसीवीटी) की तरफ से सर्टिफिकेट दिया जाता है.

इन अप्रेंटिसों को पहले रेलवे में समायोजित कर लिया जाता था. यह प्रक्रिया बंद कर देने और पहले से नियुक्त ट्रेंड अप्रेंटिसों को नौकरी से निकाल बाहर करने के कारण देशभर के करीब 40 अप्रेंटिस आत्महत्या कर चुके हैं. प्रशिक्षुओं का कहना है कि उन्होंने रेलवे में ट्रेनिंग की है, लिहाजा उन्हें रेलवे का ही काम आता है. बाहर उन्हें कोई नौकरी नहीं देता.

दूसरी तरफ रेलवे में सुरक्षाकर्मियों की भारी कमी है. यह आधिकारिक तथ्य है. रेल मंत्रालय किराए में लगातार बढ़ोतरी करता जा रहा है, लेकिन सुरक्षाकर्मियों की भर्ती में उसकी कोई रुचि नहीं है. अभी हाल ही रेल मंत्रालय ने संसद में यह स्वीकार किया था कि रेलवे सुरक्षा महकमे में समूह (ग) और समूह (डी) में रिक्तियों की कुल संख्या 122763 है. इस आंकड़े की आधिकारिक स्वीकारोक्ति इस बात का भी जवाब है कि सरकार को यात्रियों की सुरक्षा में कोई दिलचस्पी नहीं है.

हर साल किराया बढ़ाने वाले रेल मंत्रालय ने हादसों में मरने वाले यात्रियों को दिया जाने वाला मुआवजा पिछले दो दशक से नहीं बढ़ाया है. चार लाख रुपए का मुआवजा 1997 में तय हुआ था, वही अब भी मिल रहा है. आजादी के बाद पहली बार 1962 में रेल हादसे में मारे जाने वालों के लिए 10 हजार रुपए मुआवजा तय किया गया था.

उसके बाद 1963 में इसे बढ़ाकर 20 हजार रुपए कर दिया गया. 1973 में मुआवजे की राशि बढ़ा कर 50 हजार रुपए की गई. फिर 1983 में यह एक लाख रुपए हुआ. 1990 में मुआवजा दो लाख रुपए किया गया और 1997 में इसे चार लाख रुपए किया गया. लेकिन उसके बाद वह वहीं अटक गया.

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