सुपर 30 ने आठ सालों में दर्जनों बच्चों का आईआईटी, एनआईटी के अलावा देश के अन्य चर्चित कॉलेजों में नामाकंन कराकर यह जता दिया है कि प्रतिभा हो तो उसे आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता. इन बच्चों में कई ऐसे बच्चे थे जिनके सामने दसवीं के बाद आगे पढ़ने का कोई विकल्प नहीं था. अधिकांश बच्चे बिहार-झारखंड के बारूद की ढेर से घिरे ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं. इन बच्चों का बचपन प्रतिबंधित संगठनों के हथियारबंद दस्तों और पुलिस के बीच दहशत में गुजरा है. 2008 में बिहार के चर्चित आईपीएस अधिकारी अभयानंद के नेतृत्व में गया शहर के कुछ लोगों ने मगध रेंज के तत्कालीन डीआईजी प्रवीण वशिष्ठ की पहल पर मगध सुपर 30 की स्थापना की और ग्रामीण क्षेत्रों के विशेषकर दहशत में जीने वाले मेधावी बच्चों को इंजीनियरिंग की तैयारी कराने का निर्णय लिया. 2008 से लेकर अब तक सौ से अधिक बच्चे आईआईटी, एनआईटी में जा चुके हैं. इतना ही नहीं यहां के बच्चे देश के अन्य चर्चित इंजीनियरिग कॉलेजों और मेरिन में भी जा चुके हैं. अनेक बच्चे देश के सर्वोच्च इंजीनियरिंग संस्थानों से बीटेक कर अच्छो पदों पर नौकरी कर रहे हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि मगध सुपर 30 प्रतिवर्ष 30 मेधावी बच्चों के चयन के लिए प्रवेश परीक्षा का आयोजन करता है. इस परीक्षा में पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों को परीक्षा देने की अनुमति होती है. दो लिखित परीक्षा के अलावा मौखिक परीक्षा भी ली जाती है. इन परीक्षाओं के मेरिट लिस्ट में आने वाले 30 बच्चों को मगध सुपर 30 में रखा जाता है. इन सभी बच्चों को रहने, खाने-पीने और पढ़ाई की नि:शुल्क व्यवस्था रहती है. मगध सुपर 30 को शुरू करने में गया शहर के प्रसिद्ध समाजसेवी स्व. शिवराम डालमिया, सेंट्रल बिहार चैम्बर ऑफ कॉमर्स के पूर्व अध्यक्ष डॉ. कौशेलेंद्र प्रताप, डॉ. अनूप कुमार केडिया, चर्चित समाजिक कार्यकर्ता लालजी प्रसाद, गीता देवी एवं पत्रकार पंकज कुमार की महत्वपूर्ण भूमिका रही. इन्हीं प्रयासों का नतीजा है कि मगध सुपर 30 बारूद की ढेर पर बैठे क्षेत्रों से प्रतिभाओं का जखीरा निकाल पा रहा है.
बारूद की ढेर से निकल रहा प्रतिभाओं का ज़ख़ीरा
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