मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार और अभिनेत्री भूमि पेडनेकर के साथ सड़क पर झाड़ू लगाते अपना फोटो सेशन भले ही करा लें, लेकिन लखनऊ की सफाई की दशा अत्यंत घटिया स्तर पर आ गई है. जिन दिनों मुख्यमंत्री का फिल्मी हीरो-हिरोइन के साथ झाड़ू फोटो सेशन हो रहा था, उसके कुछ ही दिन पहले नगर निगम सदन की बैठक में यह आधिकारिक तौर पर स्वीकार कर लिया गया कि लखनऊ की सफाई और स्वच्छता का ऐसा कोई भी काम नहीं हुआ जो शहर में दिखे. न कूड़ा प्रबंधन योजना आई और न शहर अतिक्रमण से मुक्त हो पाया. शहर सीवर, पेयजल और सफाई समस्या से जूझता रह गया. आवारा पशुओं के लिए कोई ठोस उपाय नहीं हो पाया. लखनऊ की सड़कों और गलियों में आवारा गायों और खतरनाक कुत्तों की भरमार है, लेकिन सरकार का इस तरफ कोई ध्यान नहीं है. हर दिन लोगों के कुत्तों से काटे जाने की घटनाएं हो रही हैं, लेकिन शहर कुत्तों और उनके प्रेमियों से परेशान है. नगर निगम ने खुद ही यह माना है कि जवाहरलाल नेहरू शहरी नवीकरण मिशन (जेएनयूआरएम) के तहत ट्रांसगोमती में सीवर लाइन बिछाने का काम पूरा नहीं हो पाया. शहर के कई इलाकों में पेयजल संकट दूर करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया जा सका. पार्षद निधि से लगे सब-मर्सिबल पंप समय से पहले ही खराब हो गए. अतिक्रमण हटाने और पटरी दुकानदारों के लिए फेरी नीति लागू कराने की दिशा में कोई निर्णय नहीं हुआ. अनियोजित कॉलोनियों का विस्तार रोकने के बजाय नेताओं और पार्षदों ने ऐसी कॉलोनियों में अपनी विकास निधि लगाकर उसे बढ़ावा देने का काम किया. शहर में नई कैटल कॉलोनी बनाने की दिशा में भी कोई योजना नहीं बनी. राजधानी की सफाई का हाल यह है लेकिन मुख्यमंत्री या अन्य मंत्रियों को झाड़ू के साथ फोटो खिंचाने और अखबार में छपवाने में कोई झेंप भी नहीं होती.
लखनऊ में करीब नौ सौ करोड़ रुपए खर्च कर विभिन्न इलाकों में सीवर लाइन डालने का काम हुआ था. लेकिन वह काम आज तक पूरा नहीं हुआ. सात साल से सीवर का काम ही चल रहा है. दरअसल, यह भ्रष्टाचार का जरिया बन गया है. नेता से लेकर नौकरशाह और ठेकेदार तक सीवर का गंदा पैसा खाने से भी हिचक नहीं रहे हैं. जल निगम के परियोजना प्रबंधक (अस्थायी गोमती प्रदूषण नियंत्रण इकाई) की ताजा रिपोर्ट को लेकर सफाई पसंद नागरिक हतप्रभ हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि नालियों को सीवर लाइन से जोड़ना बंद नहीं किया गया, तो सीवर योजना ध्वस्त हो जाएगी. लखनऊ के दौलतगंज, दुबग्गा, बालागंज की 369 किलोमीटर लंबी सीवर लाइन भीषण मुश्किलों में है. इस इलाके में सीवर कनेक्शन देने के लिए 7682.57 लाख की योजना मंजूर की गई थी. इसी तरह अलीगंज, जानकीपुरम, कल्याणपुर, विकासनगर, रहीमनगर, खुर्रमनगर, महानगर, निरालानगर, डालीगंज और निशातगंज इलाकों में जेएनयूआरएम के तहत पांच सौ किलोमीटर सीवर लाइन डाली गई थी. इन इलाकों में 50 हजार से अधिक घरों में सीवर का कनेक्शन करने के लिए 13933.27 लाख मंजूर किए गए थे. इंदिरा नगर, गोमती नगर और फैजाबाद रोड से जुड़े इलाकों में भी 350 किलोमीटर सीवर लाइन डाली गई थी. यहां साढ़े 24 हजार घरों में सीवर का कनेक्शन होना है. जिस पर 7920.50 लाख की योजना को मंजूरी मिली. लेकिन यह सब घपले-घोटाले की भेंट चढ़ गई. वर्ष 2008 से शुरू हुए सीवर लाइन के काम में जल निगम ने बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की. बसपा सरकार और सपा सरकार के अलमबरदारों ने भी इस गंदगी में खूब मुंह मारा. इसका असर यह पड़ा कि ठेकेदारों ने सीवर लाइन तो डाल दी, लेकिन मैनहोल बनाने के दौरान डाली गई बोरियां और मलबे वहीं छोड़ दिए. सीमेंट और कंकरीट के मलबों की सफाई न होने से सीवर लाइनें शुरू होने के पहले ही जाम हो गईं. विडंबना यह है कि जलकल महकमे ने कागज पर सीवर लाइनों का हैंड-ओवर दिखा दिया, जबकि सीवर लाइन आज तक चालू ही नहीं हो पाई.
विकास जन कल्याण सेवा समिति इंदिरा नगर के मुख्य संरक्षक समाजसेवी विजय गुप्ता कहते हैं कि यह राजधानी लखनऊ का दुर्भाग्य है कि 900 करोड़ रुपए फूंकने के बाद भी आज तक सीवर लाइन शुरू नहीं की जा सकी. अकेले इंदिरा नगर के ही करीब 12 लाख उपभोक्ताओं को सीवर लाइन की सुविधा नहीं मिल रही. शहर में गंदगी से बजबजाती नालियों और जलभराव की समस्या आम है. स्वच्छ भारत के राजनीतिक नारे की यही जमीनी असलियत है. विजय गुप्ता ने दीनदयालपुरम तकरोही का हवाला देते हुए बताया कि वहां जब सीवर लाइन बिछाने काम शुरू हुआ, तो सीवर लाइन की निकासी के लिए उचित गहराई नहीं मिल पाई. इसके बावजूद लाइन डालकर मिट्टी डाल दी गई. अब वहां सीवर लाइन दोबारा उखाड़ने की नौबत है, या उसे छोड़ कर दूसरी सीवर लाइन निर्धारित गहराई में फिर से लगाई जाएगी. झाड़ू लगा कर फोटो खिंचवाने वाले नेताओं को यह गंदगी नहीं दिखती. गुप्ता कहते हैं कि सीवर लाइन शुरू भी नहीं हुई, लेकिन सीवर लाइन के चैंबर्स के प्लास्टर झड़ कर दीवार को नंगा कर चुके हैं. कई जगह इस सीवर लाइन में स्थानीय लोगों ने अनधिकृत रूप से सीवर जोड़कर चैंबर्स को जाम कर दिया है. कई इलाकों में सीवर लाइन बिछने से पहले ही नगर निगम द्वारा सड़क निर्माण कर दिया गया. फिर नई बनी सड़कों को खोद कर सीवर लाइन डाली गई. यह गड़बड़झाला करोड़ों रुपए खाने के लिए किया गया.
स्वच्छता के महा-अभियान का यह हाल है. जेएनएनयूआरएम योजना के तहत तकरीबन डेढ़ हजार किलोमीटर लंबी सीवर लाइन बिछाने का काम जल निगम ने वर्ष 2007 में ही शुरू किया था. इसे 2014 तक पूरा कर देना था. लेकिन जल निगम ने इस काम में घोर लापरवाही बरती. इस लापरवाही के कारण डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) में ही करीब 50 हजार कनेक्टिंग चैंबर्स का प्रावधान नहीं हो सका. जल निगम द्वारा डीपीआर में लापरवाही बरतने के कारण सीवर लाइन का बजट गड़बड़ हो गया. एक आला अधिकारी ने कहा कि जल निगम ने उसी समय सरकार से कनेक्टिंग चैंबर्स का बजट मांग लिया होता, तो यह समस्या नहीं आती. उक्त अधिकारी का कहना था कि परियोजना में तकनीकी खामियों के साथ-साथ लापरवाहियों के कारण योजना के पूरे होने का समय बढ़ता चला गया और देरी के कारण बजट में प्रस्तावित लागत भी बढ़ती रही.