रेल बजट पेश किया गया. कोई विशेष योजना, विशेष छूट या अतिरिक्त भाड़ा वृद्धि नहीं देखी गई. मूल रूप से यह एक आम रेल बजट की तरह रहा. निश्चित तौर पर कुछ स्वागत योग्य क़दम उठाए गए, मसलन, वृद्धों एवं महिलाओं के लिए सीटों में आरक्षण आदि. यह सब किसी समस्या का समाधान नहीं है, क्योंकि रेलवे एक संस्था के तौर पर बहुत अक्षमता के साथ चल रहा है. उसे कड़ी निगरानी की ज़रूरत है. यह काम अतिरिक्त प्रबंधन, विशेष योजनाओं और कुछ खास तरह की गतिविधियों की आउटसोर्सिंग के ज़रिये हो सकता है.
जैसे कि हम स्वच्छ भारत की बात करते हैं. रेलवे में हमेशा गंदगी रहती है. जब भी हम रेल यात्रा करते हैं, तो पाते हैं कि रेलें सा़फ नहीं हैं. अन्य एफिशिएंसी पैरामीटर्स (दक्षता मानदंडों) और बुलेट ट्रेन की बात भूल जाइए, आप स़िर्फ पहले रेल की स्वच्छता सुनिश्चित कीजिए, रेल यात्रा को आरामदायक बनाइए. इस कार्य में आप ठेकेदारों को लगा सकते हैं और उन्हें इसके लिए भुगतान कर सकते हैं. जब हम यूरोप में रेल यात्रा करते हैं, तो देखते हैं कि रेलें कितनी सा़फ-सुथरी और आरामदायक हैं. ज़ाहिर तौर पर वहां और यहां के बीच अंतर है.
भारत के मुक़ाबले वहां रेलों से यात्रा करने वाले लोगों की संख्या कम है. भारत में लाखों लोग रा़ेजाना रेल से सफर करते हैं. इस सरकार को आए दो साल हो चुके हैं. प्रधानमंत्री ने खुद 2014 में स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की थी. अब रेल यात्रा को अधिक आरामदायक और खुशनुमा बनाने के लिए ठोस उपाय किए जाने चाहिए. रेल बजट ठीकठाक है. सुरेश प्रभु के पास लालू यादव जैसा कोई करिश्मा नहीं है और न वह उनकी तरह अपना बजट भाषण पढ़ते हैं. वह एक सक्षम, लेकिन दिखावे से दूर रहने वाले व्यक्ति हैं. उन्होंने अपना बजट भाषण सामान्य तरीके से पढ़ा.
दूसरा मुद्दा है, राष्ट्रपति का अभिभाषण. राष्ट्रपति का अभिभाषण केवल सरकार के कार्यों एवं विचारों को दर्शाता है. सरकार के साथ समस्या यह है कि वह बोलती कुछ है और करती कुछ है. मोदी जी के सभी भाषणों में सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार की बात होती है. वह कहते हैं कि संविधान ही एकमात्र किताब है, जिसका अनुसरण देश को करना चाहिए. दूसरी तऱफ एक मंत्री यह सुझाव देते हैं कि गीता को राष्ट्रीय पुस्तक घोषित किया जाना चाहिए. समस्या यह है कि आरएसएस से जुड़े संगठन जैसे विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल एवं श्रीराम सेना आदि, जो सीधे उनसे (मोदी) नहीं जुड़े हैं, लेकिन वे सब मिलकर हिंदू विचार को थोपने की कोशिश करते हैं.
वे सब देश में एक ऐसे माहौल का निर्माण करना चाहते हैं, जहां हिंदू हावी हों. भारत में तो पहले से ही 85 प्रतिशत आबादी हिंदुओं की है. वे प्रमुख धर्म के तौर पर हैं और आगे भी रहेंगे, लेकिन उक्त संगठनों में हीनता का एक बोध है. वे हिंदू समुदाय को आक्रामक बनाना चाहते हैं. इससे देश को कोई ़फायदा नहीं होने वाला, इससे हिंदुओं को कोई ़फायदा नहीं होने वाला. यह सब कैसे ़खत्म होगा, एक गंभीर मुद्दा है. निश्चित तौर पर राष्ट्रपति वही बोलेंगे, जो सरकार के रिकॉर्ड में है. अन्य संगठन जो कुछ कर रहे हैं, वह क़ानून व्यवस्था की समस्या है. इसलिए राष्ट्रपति का अभिभाषण ठीक है.
अब एक और बात, जिसे सरकार में शामिल लोग अपने लिए बड़ी सफलता मान रहे हैं. स्मृति ईरानी ने लोकसभा में एक लंबा भाषण दिया. मैंने वह भाषण सुना. सबसे पहले मैं यह कहना चाहूंगा कि वह एक अच्छी वक्ता हैं, उनकी हिंदी और अंग्रेजी अच्छी है, उनके तथ्य ठीक हैं. असल में वह एक सांसद के तौर पर भी भाजपा के लिए बेहतर वक्ता हो सकती हैं. हालांकि, इसका ़फायदा स़िर्फ राज्यसभा में मिलेगा, क्योंकि ईरानी राज्यसभा सदस्य हैं. अब बात आती है उनके अपने मौजूदा दायित्व की. मैं इस धारणा को नहीं मानता कि चूंकि उनके पास कोई डिग्री नहीं है, इसलिए उन्हें मानव संसाधन विकास मंत्री नहीं बनाया जाना चाहिए. यहां हमें संविधान देखना चाहिए. यह सा़फ है कि सांसद कौन बन सकता है.
एक खास उम्र के बाद और कुछ निश्चित मानदंड पूरा करने वाला शख्स सांसद बन सकता है. और, जो सांसद बन सकता है, वह मंत्री भी बन सकता है. इसलिए ऐसे तर्क सही नहीं हैं. इससे कोई समस्या भी नहीं है. उनके भाषण में दो-तीन बातें महत्वपूर्ण हैं. पहली बात यह कि पुलिस और सरकार ने जेएनयू प्रकरण में जो कुछ किया, उसे लेकर उन्होंने अपने पक्ष में कई सारे तर्क देने की कोशिश की. लेकिन, पुलिस की कार्रवाई सही नहीं थी. पुलिस ने इस मामले में असंगत और सीमा से बाहर जाकर काम किया. यह सब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की मदद करने के लिए किया गया, जिसने पहले से ही एक ग़लत टेप बनाकर मीडिया और लोगों के बीच बांट दिया था. बाद में पता चला कि यह जानबूझ कर ग़लत ढंग से बनाया गया टेप है. जिस तेजी के साथ यह टेप बनाया और जारी किया गया, उससे लगता है कि शायद इसके लिए कुछ पुलिस वालों को भी विश्वास में लिया गया हो. यह एक गंभीर मुद्दा है. अंतिम बार जिस जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष को आपातकाल के समय गिरफ्तार किया गया था, उनका नाम है डीपी त्रिपाठी.
बहरहाल, मूल तथ्य यह है कि जेएनयू एक प्रीमियर इंस्टीट्यूट है, जहां सभी प्रकार के विचारों को फलने-फूलने का मा़ैका मिलता है. यह कार्रवाई दिखाती है कि सत्ता का असल मकसद कुछ और है. असहमति अपराध नहीं है. यदि असहमति को अपराध बनाया जाता है, तो यह एक ़खतरनाक बात है. कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने माना है कि देशद्रोह तभी है, जब सत्ता को गिराने या राष्ट्र के ़िखला़फ हिंसा भड़काने की कोशिश की जाए. नारेबाजी के ज़रिये महज अपने विचार व्यक्त करना देशद्रोह नहीं है. इंडियन एक्सप्रेस में फाली एस नरीमन ने सही लिखा है कि यदि छात्र सचमुच भारत की बर्बादी जैसे नारे लगा रहे थे, तो ज़रूरत इस बात की है कि उनके माता-पिता से कहा जाए कि वे अपने बच्चे के दिमाग़ की जांच कराएं. कोई भी भारत की बर्बादी नहीं चाहता. कोई भारतीय इस बात को पसंद नहीं करता. जहां तक अफजल गुरु की बात है, तो पूरा कश्मीर उसकी फांसी के ़िखला़फ है.
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी खुद सुप्रीम कोर्ट के बजाय जनता की सामूहिक चेतना की बात करता है. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट वह जगह नहीं है, जहां कोई फैसला करने के लिए जनता की राय या मतदान की ज़रूरत हो. परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर किसी को फांसी दी जाती है. इससे कम सजा दी जा सकती थी. पीडीपी, जिसके साथ भाजपा ने गठबंधन किया और जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाई, का यह आधिकारिक रुख है कि अफजल गुरु की फांसी ग़लत थी. फिर भी भाजपा को पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने में कोई परेशानी नहीं है. लेकिन, यदि एक छात्र अफजल गुरु के बारे में ऐसी बात बोलता है, तो उसे गिरफ्तार करके उसके साथ बदसलूकी की जाती है. यह किस तरह का तर्क है? क्या आप सोचते हैं कि भारत के लोग अंधे और बहरे हैं? ऐसा नहीं है. हर कोई देख रहा है, सबको सच पता है. जितनी जल्दी सरकार अपनी यह ग़लती सुधार ले, उतना ही बेहतर है. मैं आशा करता हूं कि न्याय पालिका कन्हैया को जल्द से जल्द रिहा करेगी. और, इस पूरे प्रकरण को शीघ्र भुला देना चाहिए. सरकार को बाकी बचे कार्यकाल में छात्रों को डील करते समय सावधान रहना चाहिए.
रोहित वेमुला का मामला जातिवाद का निम्नतम उदाहरण है. संबंधित यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर को तुरंत उनके पद से हटा देना चाहिए. यह बहुत दु:खद मामला है. रोहित दुनिया में नहीं है, अब कुछ नहीं किया जा सकता है. लेकिन, भविष्य में ऐसे मुद्दों से निपटने में सावधानी बरती जानी चाहिए. अंबेडकर के बारे में बात करना ठीक है. भाजपा अब अंबेडकर के बारे में बात कर रही है. ठीक है, यह वोट बैंक की राजनीति है. लेकिन, दलित इससे प्रभावित नहीं हो रहे हैं और वे भाजपा को वोट देने नहीं जा रहे. अभी संसद का सत्र चल रहा है. कुल मिलाकर हालात ठीक नहीं हैं.