असामाजिक तत्व और नक्सली संगठन इस तरह के हालात पैदा कर लाभ लेने की कोशिश में हैं. फसल लगाने का काम किया जा रहा है. इस मामले में तस्कर यहां पानी की तरह पैसे बहा रहे हैं. अफीम माओवादियों का मुख्य आर्थिक आधार बना है. पिछलेे दिनों पुलिस और प्रशासन ने जब सैकड़ों एकड़ पर लगी अफीम की फसल को नष्ट कर दिया तो अराजक तत्वों ने ग्रामीणों को आर्थिक नुकसान का हवाला देकर उन्हें और भड़का दिया. इधर आदिवासी बुद्धिजीवी मंच के अध्यक्ष पीसी मुर्मू का मानना है कि भारत कृषि प्रधान देश है और झारखंड में भी किसान खेती-बारी पर ही आधारित हैं. इसके बाद भी राज्य सरकार ने विकास का मुख्य केन्द्र बिन्दु उद्योग को रखा है. इसमें किसानों की जमीन जा रही है, जिससे किसानों में आक्रोश है.
झारखंड में गुड गवर्नेंस और विकास के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं. राज्य सरकार यह भी दावा करती है कि झारखंड गठन के बाद और पहले आदिवासियों का केवल शोषण हो रहा था और आदिवासियों को वोट बैंक के रूप में उपयोग हो रहा था. इतने दावों के बाद भी राज्य के आदिवासी आखिर सरकार से इतने नाराज क्यों हैं? यह एक बहुत बड़ा सवाल है और रघुवर सरकार की कार्यप्रणाली पर भी एक बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा होता है कि आखिर सरकार है कहां? पत्थलगड़ी के नाम पर क्यों समानान्तर सरकार चलाने की कोशिश की जा रही है. आखिर इस तरह का प्रयास सत्ताधारी दल के राजनीतिक चरित्र का प्रतिफल तो नहीं है. आदिवासियों एवं स्थानीय लोगों का जमीन अधिग्रहण कर औद्योगिक घरानों को देने की साजिश के कारण तो कहीं समानान्तर सरकार का गठन नहीं हो रहा है. इससे पूर्व भी नक्सली संगठन एक तरह से पूरे राज्य में समानान्तर सरकार चला रहे थे, पर सरकार के कठोर कार्रवाई के कारण नक्सलियों की कमर टूट गई और वे कुछ कमजोर हुए. पर अब राज्य के पिछड़े जिलों में नक्सली ग्रामीणों को व्यवस्था के खिलाफ भड़काकर समानान्तर सरकार कायम करने में लगे हुए हैं. आलम यह है कि ग्रामीण आज पुलिस प्रशासन को ही अपना विरोधी समझने लगे हैं. पत्थलगड़ी के कई इलाकों में पुलिस और प्रशासन के घुसने पर पाबंदी लगा दी गई है. इन इलाकों में सरकारी योजनाएं भी नहीं लागू हो पाती हैं. राजधानी से सटे खूंटी में जो पिछड़े जिलों में एक है, वह इस कारण और पिछड़ता जा रहा है. ऐसे में आर्थिक रूप से टूट चुके इन गरीब किसानों, मजदूरों को आसानी से बरगलाकर उन्हें व्यवस्था के खिलाफ भड़काया जा रहा है. समीपवर्ती जिलों में भी कुछ ऐसा ही हाल है. व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए पुलिस और प्रशासन के पसीने छूट रहे हैं, मगर यहां भी सरकार का कम दोष नहीं है. लंबे समय से चल रहे इस कुचक्र के खिलाफ आखिर समय रहते क्यों नहीं कार्रवाई की गयी, सरकारी योजनाएं आखिर सड़क पर क्यों नहीं उतर पा रही हैं, इसके लिए दोषी कौन है, यह लाख टके का सवाल है.
योजनाओं का लाभ नहीं लेगी ग्रामसभा
सरकार की लापरवाही के कारण ही ग्रामीणों के आक्रोश को हवा मिली. ग्रामीणों के आक्रोश का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि खूंटी जिले के कांकी गांव में ग्रामीणों ने पुलिस अधीक्षक, उपायुक्त सहित सैकड़ों पुलिस जवान और अधिकारियों को बंधक बना लिया था. उन्हें छुड़ाने में प्रशासनिक अधिकारियों के पसीने छूट गए.
इनलोगों ने तो अपना संविधान भी बना लिया है और ग्राम सभा को सभी अधिकार दे दिए. ग्रामीणों ने गांव में घुसने पर बाहरी और प्रशासनिक अधिकारियों पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसके लिए बेरिकेडिंग और मचान लगाए गए. पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने जब इसे तोड़ दिया तो अधिकारियों और जवानों को ग्रामीणों ने बंधक बना लिया. ग्रामीण काफी गुस्से में थे और यह कह रहे थे कि आरक्षी अधीक्षक पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाएगा. इस गांव में ग्रामसभा के नियम कानून के तहत ही काम होगा. कांकी ग्राम सभा के अध्यक्ष मथनियल मुंडा का मानना है कि ग्रामसभा सर्वोपरि संस्था है, ग्राम सभा ही सरकार है, इसका फैसला सभी को मानना होगा. यहां के लोग अपने मामले को लेकर न तो थाने जाते हैं और न ही कोर्ट. इनलोगों का विवाद ग्रामसभा में ही सुलझाया जाता है और यहीं फैसला भी होता है, जिसे ग्रामीणों को मानना पड़ता है. यहां पत्थलगड़ी कर संविधान भी बना दिया गया है और अब यह पत्थलगड़ी कर अन्य गांवों में ग्रामसभा के अधिकारों के बारे में बताया जा रहा है और पूरे राज्य में एक तरह से समानान्तर सरकार चलाने की कोशिश की जा रही है. ग्रामसभा के सदस्यों का मानना है कि वे सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं लेंगे. ग्रामसभा का कहना है कि गांव में योजना बने और सरकार ग्रामसभा को पैसे दे, ग्रामसभा ही सभी काम पूरा करेगी. ग्रामसभा ग्रामीण इलाकों का विकास चाहती है और विकास कार्य ग्रामीणों के इच्छा अनुरूप ही होने चाहिए. इधर खूंंटी के आरक्षी अधीक्षक का कहना है कि भारत में दूसरा भारत कैसे हो सकता है और दो संविधान कैसे होंगे, उन्होंने कहा कि यह मामला सामाजिक नहीं बल्कि राजनीतिक है.
ग़लतियों से सबक नहीं ले रही सरकार
इस घटना के बाद भी सरकार नहीं चेती और इसका परिणाम है कि अब आसपास के जिलों में भी पत्थलगड़ी की सुगबुगाहट होने लगी है. खूंटी जिले की गूंज अभी थमी भी नहीं थी कि राजधानी रांची से चंद किलोमीटर दूर बुण्डू प्रखंड की दो पंचायतों में ऐसी ही ताकतों ने सरकार को खुली चुनौती देने की साजिश रची. यहां की स्थिति अभी ज्यादा बिगड़ी नहीं है, लेकिन जिस तरह से अधिकारी और सरकार निष्क्रिय हैं, उसे देखते हुए लगता है कि यहां के हालात भी जल्द गंभीर रुख अपना लेंगे. रांची से 28 किलोमीटर दूर तैमारा और 55 किलोमीटर दूर चुरगी पंचायत में पत्थलगड़ी कर सरकारी योजनाओं का रास्ता बंद कर दिया है. दोनों ही गांव बुण्डू प्रखंड की पंचायतें हैं. इस क्षेत्र में राज्य विरोधी शक्तियां सक्रिय हैं. दोनों ही पंचायत में पत्थर को गाड़कर उस पर ग्रामीणों की ओर से उसके अपने संविधान का हवाला देते हुए उसकी आड़ में सरकारी योजनाओं के बहिष्कार की बातें लिखी गई हैं. इसमें स्पष्ट किया गया है कि पंचायत में कोई विकास कार्य बिना ग्राम पंचायत की अनुमति के नहीं हो सकता है. दरअसल ग्रामीण पूरे अनुसूचित क्षेत्र में समानान्तर सरकार चलाने का अधिकार चाहते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि सरकार के जितने भी विकास कार्य हैं, वे सभी ग्रामसभा के माध्यम से हो. सरकार विकास की राशि सीधे ग्रामसभा को भेजे. क्षेत्र में सड़क, पुल, डैम बने चाहे जन्म-मृत्यु का प्रमाण-पत्र हो, सभी कार्य कराने का अधिकार सिर्फ ग्राम-सभा का हो. ग्रामसभा सीएनटी और एसपीटी एक्ट का भी विरोध कर रही है. ग्रामसभा का मानना है कि अगर इसमें बदलाव किया गया तो इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. ग्रामसभा ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि सीएनटी एसपीटी एक्ट में संशोधन यहां के मूल निवासियों के खिलाफ षड्यंत्र है. आदिवासी समुदाय इसी संशोधन की आड़ में एकजुट हो रहा है और अब अपने क्षेत्र में अपनी सरकार चलाना चाहते हैं. आदिवासी हमेशा बाहरी का विरोध करते रहे हैं और कई बार आदिवासी और बाहरी के बीच हिंसक झड़प भी हो चुकी है. यह समुदाय झारखंड पर पूरी तरह से अपना अधिकार चाहता है. धीरे-धीरे इनलोगों के बीच इस तरह की संभावनाएं उभरकर सामने आ रही हैं और अगर समय रहते इस पर काबू नहीं पाया गया तो वह दिन दूर नहीं, जब झारखंड बारूद के ढेर पर होगा.
सूत्रों का मानना है कि असामाजिक तत्व और नक्सली संगठन इस तरह के हालात पैदा कर लाभ लेने की कोशिश में हैं. फसल लगाने का काम किया जा रहा है. इस मामले में तस्कर यहां पानी की तरह पैसे बहा रहे हैं. अफीम माओवादियों का मुख्य आर्थिक आधार बना है. पिछलेे दिनों पुलिस और प्रशासन ने जब सैकड़ों एकड़ पर लगी अफीम की फसल को नष्ट कर दिया तो अराजक तत्वों ने ग्रामीणों को आर्थिक नुकसान का हवाला देकर उन्हें और भड़का दिया.
इधर आदिवासी बुद्धिजीवी मंच के अध्यक्ष पीसी मुर्मू का मानना है कि भारत कृषि प्रधान देश है और झारखंड में भी किसान खेती-बारी पर ही आधारित हैं. इसके बाद भी राज्य सरकार ने विकास का मुख्य केन्द्र बिन्दु उद्योग को रखा है. इसमें किसानों की जमीन जा रही है, जिससे किसानों में आक्रोश है. 70 प्रतिशत आदिवासी के जीवन-यापन का आधार कृषि है, इसलिए यह जरूरी है कि शिड्यूल एरिया में कानूनों का ईमानदारी से पालन हो. जमीन अगर छीनी गयी तो आदिवासी समाज विलुप्त हो जाएगा. झारखंड में ग्रामसभा को ही सभी अधिकार दिये जायेंगे, तभी ग्रामीण खुशहाल होंगे और राज्य का विकास हो सकेगा. संविधान में भी ग्रामसभा को विशेष शक्तियां दी गयी हैं.
जबकि राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा का कहना है कि किसी को भी कानून हाथ में लेने की इजाजत नहीं दी जायेगी. खूंटी में तो विकास कार्य तेजी से हो रहा है, पर कुछ असामाजिक तत्व और नक्सली संगठन सरकार विरोधी काम कर रहे हैं. इसे किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. सरकार ने पत्थलगड़ी के खिलाफ होर्डिंग्स भी लगाना शुरू कर दिया है. सरकार का कहना है कि संविधान विरोधी और गरीबों के खिलाफ है पत्थलगड़ी. जो भी हो सरकार ने अगर कड़ा कदम नहीं उठाया, तो यह चिंगारी शोला बन जाएगी और बाद में राज्य सरकार के लिए यह एक बड़ी मुसीबत बन जाएगी.