महाकाली नदी पर 315 मीटर की ऊंचाई का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बांध बनाया जा रहा है. बडे बांधों के खतरों से अनजान हम देवभूमि पर एक और विनाशलीला को आमंत्रण दे रहे हैं, जबकि सरकार इसके फायदे गिनाने में लगी है. जवाहरलाल नेहरू ने सबसे पहले 1954 में पंचेश्‍वर बांध की बात की थी. तब से कई दशक बीत गए, पर बांध निर्माण पर कोई काम शुरू नहीं हुआ. हाल में उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के दौरान एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पंचेश्‍वर बांध का जिक्र किया था. 2018 से पंचेश्‍वर बांध का निर्माण कार्य शुरू होगा, जो 2026 में पूरा होगा.

इसके बाद 2028 तक बांध में पानी भरने का काम पूरा होगा. यह परियोजना दो चरणों में शुरू होगी. पंचेश्‍वर में  के संगम पर पहले315 मीटर ऊंचे बांध का निर्माण होगा. इसके बाद शारदा नदी पर 145 मीटर ऊंचा रूपाली गाड़ बांध बनेगा. अनुमान है कि इस परियोजना से भारत और नेपाल का करीब 134 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र डूब क्षेत्र में आ जाएगा. इसमें उत्तराखंड का 120 वर्ग किलोमीटर और नेपाल का 14 वर्ग किलोमीटर डूब क्षेत्र होगा. अनुमान है कि इस परियोजना से 115 गांवों के 11000 से अधिक लोग पूरी तरह से प्रभावित होंगे.

यह क्षेत्र भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में से एक है. भूगर्भवेत्ताओं के मुताबिक, मध्य हिमालय के सिस्मिक-4 जोन में पिछले 15 वर्षों में 5 अंकों की तीव्रता से अधिक के 10 भूकंप आए हैं. इनमें से 5 भूकंपों का केंद्र पंचेश्‍वर नदी के आस-पास का इलाका ही रहा है. अगर पंचेश्‍वर बांध में नदियों का पानी रोका जाता है, तो इससे 90 करोड़ घन लीटर पानी का दबाव एक छोटे से क्षेत्र पर पड़ेगा. पहाड़ों पर स्थित चट्टानें इस दबाव को झेलने में असमर्थ हैं. चट्टानों के धंसने से इस क्षेत्र में भूकंप की आशंका बराबर बनी रहेगी. यहां की चट्टानें पानी का कितना दबाव झेल पाएंगी, इसे लेकर 2016 में रॉक टेस्टिंग के लिए सुरंगें खोदी गई थीं.

बताया गया था कि रॉक टेस्टिंग की पॉजीटिव रिपोर्ट आने के बाद ही बांध का निर्माण शुरू होगा. इससे पूर्व रॉक टेस्टिंग के लिए 20 से अधिक सुरंगें खोदी गई थीं, जिनकी रिपोर्ट पॉजीटिव नहीं आई थी. खुदाई करने वाली कंपनी वॉफ कोर्स के सुपरवाइजर कुलभूषण ने बताया कि हमारा मकसद रॉक टेस्टिंग के साथ पानी को जमा करने के लिए मिट्टी की क्षमता का भी आकलन करना है. इसके बाद ही बांध का निर्माण शुरू होगा. लेकिन भूगर्भवेत्ताओं, पर्यावरणविदों और स्थानीय लोगों के विरोध को अनदेखा कर सरकार इस परियोजना को जल्द शुरू करना चाहती है. सवाल ये है कि सरकार इस परियोजना को शुरू करने के लिए इतनी हड़बड़ी में क्यों है?  सरकार का मानना है कि बड़े बांधों से ही पहाड़ी इलाकों में विकास का रास्ता खुलेगा. फिर आम जनता सरकार के इस तर्क को क्यों अनसुना कर रही है?

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