बिहार के लिए बाढ़ कोई नई कहानी नहीं है. हर साल कभी ज्यादा तो कभी कम, सूबे के लोग इस त्रासदी को झेलते आए हैं. लेकिन इस बार की स्थिति कुछ ज्यादा ही गंभीर है. सहरसा, मधेपुरा, सुपौल, पूर्णिया, अररिया, कटिहार, किशनगंज और चंपारण सहित कई जिलों में बाढ़ ने तांडव मचाया है. 12 जिलों के 84 प्रखंडों व 889 पंचायतों की कुल 65.37 लाख की आबादी बुरी तरह बाढ़ से प्रभावित हुई है. इस साल की बाढ़ ने यह साबित कर दिया कि बिहार सरकार का विकास मॉडल नदी क्षेत्रों में चलने वाला नहीं है. विकास के नाम पर जिस तरह से पुल-पुलिया अवरूद्ध किए गए और नदी मार्गों का अतिक्रमण किया गया, उसका कुपरिणाम अब स्पष्ट रूप से नजर आ रहा है.
अररिया जिले के फारबिसगंज व जोगबनी को डूबोने वाली प्रमुख नदी सीताधार रही है. इस नदी को अतिक्रमित कर भूमाफियाओं ने पहले किसी दलित के नाम से बंदोबस्ती करवाया और फिर इस पर मिट्टी भरवाई करवाकर सीओ की मिलीभगत से बेच दिया. परिणाम ये हुआ कि भारी बारिश के बाद आए बाढ़ ने नदी के रास्ते अपना रुख रिहायसी इलाकों की ओर मोड़ लिया. अररिया के प्रखंड जोकीहाट, सिकटी, पलासी, कुर्साकांटा, नरपतगंज, भरगामा के अलावा नगर पंचायत फारबिसगंज व जोगबनी इस बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. पनार, काकन, बिलौनियां, सुरसुर सहित महानंदा बेसिन क्षेत्रों में हुई मूसलाधार बारिश ने लोगों को विस्थापित की जिंदगी जीने को मजबूर कर दिया. जानमाल की भारी क्षति ने सैकड़ों परिवारों व किसानों की कमर तोड़ दी है. यही हाल सुपौल जिले का भी है. मरौना व निर्मली के अलावा पीपरा, त्रिवेणीगंज, बसंतपुर और बीरपुर में बाढ़ ने भारी तबाही मचाई है. कुनौली, कमलपुर, डगमारा, दिघिया, बेला सिंगारपुर, मोसी और मझारी के लोगों को भी भयंकर बाढ़ का सामना करना पड़ा. इन इलाकों में खारो, तिलयुगा, जिता, पौबाली आदि नदियों ने भयंकर त्रासदी मचाई.
मधेपुरा जिले के आलमनगर, चौसा, इदाषिनगंज, मुरलीगंज व ग्वालपाड़ा प्रखंड भी भारी बाढ़ से प्रभावित है. आलमनगर के एक लाख 75 हजार 886 व चौसा के करीब एक लाख 65 हजार की आबादी सबसे ज्यादा प्रभावित है. इन प्रखंडों में बाढ का रौद्र रूप देखा जा सकता है. इसी तरह का हाल चंपारण का भी है. बेतिया और मोतिहारी के कई इलाके अब भी पानी डूबे हैं और पानी उतरने का इंतजार कर रहे हैं. यहां भी जान-माल की भारी क्षति हुई है. कोसी प्रमंडलीय मुख्यालय सहरसा जिले के सात प्रखंडों में महिषी, नवहट्टा, सिमरी बख्तियारपुर, बनमा ईटहरी, सोनवर्षा एवं सौर बाजार के 54 पंचायतों को बाढ़ से प्रभावित घोषित किया गया है. जिसमें 38 पंचायतों को पूर्णत: व 16 पंचायतों को आंशिक रूप से प्रभावित बताया गया है. इन इलाकों के बाढ़ से घिरे होने के दौरान यातायात व्यवस्था को सुचारू रखने के लिए प्रशासन की तरफ से 181 नावों के परिचालन की व्यवस्था की गई थी. जिनमें 44 सरकारी 137 प्राईवेट नावें थीं. जिला जनसंपर्क पदाधिकारी जयशंकर कुमार ने बताया कि बाढ़ के दौरान जिला प्रशासन द्वारा 11 राहत शिविर संचालित किए गए, जिनमें लगभग 6 हजार लोगों के रहने व भोजन की व्यवस्था सुनिश्चित की गई. जिला प्रशासन ने बाढ़ से निपटने के लिए युद्ध स्तर पर कार्य किया. राहत शिविरों में स्वच्छ पेयजल, रोशनी आदि की भी समुचित व्यवस्था की गई और बाढ़ से विस्थापित लोगों के स्वास्थ्य की देखभाल करने के लिए 11 स्वास्थ्य केन्द्र स्थापित किए गए. इसके अतिरिक्त ईटू घाट, गंडोल चौक, बेलवारा तथा बहोरवा में बांध पर एंबुलेंस की विशेष व्यवस्था की गई. पशुओं के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए एक एबंलेटरी वैन का भी परिचालन किया जा रहा है.
इस बाढ़ के दौरान बिहार सरकार ने दावा किया कि प्रशासन की तरफ से एक लाख 82 हजार 480 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है और 254 राहत शिविरों में 48 हजार 120 लोगों को सुरक्षित रखा गया है. सूबे के मुखिया नीतीश कुमार ने भी बाढ़ प्रभावित जिलों का हवाई सर्वेक्षण किया. साथ ही पूर्णिया, बेतिया, मोतिहारी सहित कई जिला मुख्यालयों में खुद पहुंच कर राहत कार्यों का जायजा लिया. बाढ़ के दौरान भले ही प्रशासन चाक-चौबंद दिखे, लेकिन बाढ़ के स्थायी निदान के लिए न तो बिहार सरकार और न ही केंद्र सरकार की तरफ से कोई कदम उठाया जा रहा है. बिहार में प्रत्येक वर्ष बाढ़ के कारण हजारों करोड़ का नुकसान होता है. अभी तो बाढ़ प्रभावित लोग यही उम्मीद कर रहे हैं कि उन्हें सरकार की तरफ से उसका हर्जाना मिलेगा, जो बाढ़ के पानी में बर्बाद हो गया. अभी केंद्र और राज्य में एक ही गठबंधन की सरकार है, इसलिए लोगों को ये उम्मीद भी है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर बाढ़ के स्थायी समाधान की दिशा में कार्य करेंगे.