एक समय था, जब पद्म पुरस्कारों का बहुत सम्मान होता था. जिसे पद्मश्री, पद्मभूषण एवं पद्मविभूषण मिलते थे, उसे माना जाता था कि यह समाज का ऐसा व्यक्ति है, जिसने समाज के आम आदमियों से हटकर बहुत अच्छा काम किया है. और उस क्षेत्र में, जिसके लिए उसे पद्म पुरस्कार मिला, असामान्य काम का सम्मान होता था. अब भी विभिन्न क्षेत्रों के ऐसे लोग याद आते हैं, जो सचमुच विशिष्ट थे और जिनका नाम लेते ही उनका काम याद आ जाता है.
लेकिन, धीरे-धीरे ये पद्म पुरस्कार राजनीति के दायरे में बंधते चले गए और ऐसे लोगों को दिए जाने लगे, जो उस राजनीतिक दल विशेष की विचारधारा को ज़्यादा पसंद आते थे. इसलिए धीरे-धीरे इन पद्म पुरस्कारों की साख सवालिया निशान के दायरे में आने लगी और होते-होते आज हालत यह हो गई कि किसे पद्मश्री मिल रहा है, किसे नहीं मिल रहा है, इसका कोई महत्व नहीं होता. अब ये पुरस्कार स़िर्फ खानापूर्ति का एक छोटा-सा अध्याय बनकर रह गए हैं, जिनकी अब कोई साख बची ही नहीं है.
अगर आप किसी राजनीतिक दल के सबसे बड़े ढिंढोरची हैं, किसी नेता के पब्लिक रिलेशन एजेंट हैं और उसके स्वार्थ के लिए कोई कार्य करते हैं, तो आप पद्म पुरस्कारों के लायक हैं. अगर आप अपने क्षेत्र में साख वाले हैं, आपका नाम लोग जानते हैं और आपके काम के आधार पर अपना विचार बनाते हैं, तो आप पद्म पुरस्कारों के लायक नहीं हैं. आप किसी भी क्षेत्र में हों, अगर आप वहां अच्छा काम कर रहे हैं, तो आप पद्म पुरस्कारों के लायक नहीं हैं. अगर आप अपने क्षेत्र में काम कर रहे लोगों में सबसे निचली श्रेणी में भी हैं, लेकिन आप राजनीतिक दल विशेष का ढिंढोरा पीटते हैं या उसकी विचारधारा को ढपोरशंख की तरह चिल्लाते हैं, तो आप निश्चित तौर पर पद्म पुरस्कारों के लायक हैं.
इस बार के पद्म पुरस्कारों में भी लगभग यही देखने को मिला. मैं नहीं समझ पाता कि अजय देवगन एवं अनुपम खेर ने ऐसा क्या कमाल किया कि उन्हें फिल्म के क्षेत्र में पद्मश्री से नवाजा गया. मैं यह भी नहीं समझ पाता कि भूपेंद्र एवं मिताली ने आ़िखर ऐसा क्या गुनाह किया कि उन्हें आज तक पद्म पुरस्कारों के लायक नहीं माना गया. मैं यह भी नहीं समझ पाता कि पंकज उधास ने ग़ज़ल गायिकी के क्षेत्र में क्या कमाल किया, जो उन्हें वर्षों पहले पद्म पुरस्कार दे दिया गया.
मेरी समझ में यह भी नहीं आता कि फिल्मों में एैरे-गैरे, नत्थू-खैरे लोगों को पद्मश्री दिए जा रहे हैं, लेकिन कादर खान का नाम विचार के लायक भी नहीं माना जा रहा है. कादर खान एक ऐसी शख्सियत हैं, जिन्होंने अमिताभ बच्चन, जॉनी लीवर एवं गोविंदा जैसे लोगों को कॉमेडी सिखाई. कादर खान ने संवाद लेखन (डायलॉग राइटिंग) के क्षेत्र में पिछले 20-25 वर्षों में कमाल का काम किया. लेकिन, कादर खान साहब के नाम पर विचार नहीं होगा और अनुपम खेर एवं अजय देवगन को पद्मश्री दिया जाएगा! यह बात मेरी समझ में नहीं आती, लेकिन गृह मंत्रालय की समझ में आती है, श्री राजनाथ सिंह की समझ में आती है और श्री नरेंद्र मोदी की समझ में आती है.
साहित्य, कला-संस्कृति, विज्ञान एवं संगीत के क्षेत्र में ऐसे लोग भरे पड़े हैं, जिन्हें देश के द्वारा सम्मान मिलना चाहिए. लेकिन, क्या हम यह मानें कि इस देश में छोटी सोच के लोगों को यह फैसला करने की ज़िम्मेदारी सौंप दी गई है कि किसे सम्मान मिलना चाहिए और किसे नहीं. और, जो यह तक पहचान नहीं पाते कि कौन प्रथम श्रेणी में है, कौन नहीं. इसलिए जब वीरेंद्र कपूर जैसा पत्रकार पद्म पुरस्कार लेने से मना कर देता है, तो सिर गर्व से ऊंचा उठ जाता है. ऐसा एक सही पत्रकार ही कर सकता है.
वीरेंद्र कपूर ने पद्मश्री लेने से क्यों मना कर दिया, यह तो मैं नहीं जानता, लेकिन जितना मैं वीरेंद्र कपूर को जानता हूं, उससे मुझे लगता है कि वह शख्स, जिसे हम वन मैन आर्मी कहते हैं, जो शुरू से लड़ाकू रहा है और जिसने कभी स्वार्थ के लिए समझौता नहीं किया, अगर वह शख्स पुरस्कार लेने से मना करे, तो मान लेना चाहिए कि ये पुरस्कार अपनी साख लगभग खो चुके हैं. मुझे गर्व शरद जोशी की बेटी पर भी है, जिसने पद्म पुरस्कार लेने से मना कर दिया.
वीरेंद्र कपूर ने शायद इसलिए मना किया होगा कि अब अगर पद्म पुरस्कार उन्हें नहीं दिए जाते, जो अपने क्षेत्र में सचमुच सही काम कर रहे हैं, तो ऐसे पुरस्कार लेकर आप स्वयं को भांड या चारण की श्रेणी में ही खड़ा पाते हैं. इसलिए मैं वीरेंद्र कपूर को पद्म पुरस्कार न लेने के लिए बधाई देता हूं और मानता हूं कि इससे उनकी इज्जत में बहुत इजाफा हुआ है.
इतना ही कहना चाहिए कि देश में या देश के नाम पर दिए जाने वाले पुरस्कारों में जब फैसले का वक्त आए, तब ढिंढोरचियों-भड़ैतों की जगह उनका नाम आगे आना चाहिए, जिन्होंने अपने क्षेत्र में ईमानदारी के साथ अच्छा काम किया हो. पत्रकारों के नाम पर ऐसे बहुत सारे लोगों को पद्म पुरस्कार दिए गए, जो इसके लायक नहीं हैं. इसलिए मैं आख़िर में एक बार फिर वीरेंद्र कपूर को उनके फैसले के लिए साधुवाद देता हूं, बधाई देता हूं और यह मानता हूं कि वीरेंद्र कपूर हमारे समय के पत्रकारों में ऐसे पत्रकार हैं, जिन्होंने तमाम अच्छे, ईमानदार, निष्पक्ष और प्रो-पीपुल जर्नलिज्म या जनाभिमुख पत्रकारिता संस्थानों में काम किया है. वीरेंद्र कपूर के ़फैसले से उन सबकी इज्जत में इजाफा हुआ है.