paaमुलायम परिवार में महत्वाकांक्षा के टकराव ने समाजवादी पार्टी को तहस-नहस करके रख दिया. समाजवादी पार्टी का विभाजन तो हो चुका, तलवारें तो चल चुकीं, बस युद्ध की औपचारिक मुनादी नहीं हुई. समाजवादी पार्टी के रजत जयंती समारोह के बहिष्कार की औपचारिक घोषणा ने अखिलेश यादव और उनके समर्थकों के पार्टी से अलग होने की सनद पहले ही दे दी थी. फिर बाद के अप्रत्याशित और अनापेक्षित घटनाक्रम ने कसर पूरी कर दी. कुछ ही दिनों के अंतराल में सपा के राष्ट्र्रीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव तक पार्टी से निकाल दिए गए. उसके पहले एमएलसी उदयवीर सिंह निकाले गए थे. फिर मंच पर शिवपाल और अखिलेश से लेकर शिवपाल और अखिलेश के समर्थकों के बीच तक हाथापाई की स्थिति पहुंची. फिर अखिलेश ने शिवपाल समेत कुछ मंत्रियों को मंत्रिमंडल से बाहर किया. फिर शिवपाल ने अखिलेश समर्थक मंत्री पवन पांडेय को पार्टी से बाहर निकाल दिया.

फिर शिवपाल ने अपने सरकारी आवास से अपने नेम प्लेट से मंत्री पद हटा दिया. यानि, एक तरफ सुलह के संवाद चलते रहे तो दूसरी तरफ कलह के मवाद बहते रहे. इसी बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने राज्यपाल राम नाईक से मुलाकात कर नए सिरे से राजनीतिक सरगर्मी पैदा कर दी. इस मुलाकात को लेकर तरह-तरह के कयास लग रहे हैं. समाजवादी पार्टी में मचा घमासान थमने के बजाय और तल्ख होता जा रहा है. एक तरफ शिवपाल तो दूसरी तरफ अखिलेश अपना-अपना पावर दिखाने में लगे हैं.

समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव सार्वजनिक तौर पर दिखते तो शिवपाल के साथ हैं, लेकिन बेटे अखिलेश के खिलाफ तकनीकी सख्ती दिखाने से परहेज करते हैं. राजनीति के वरिष्ठ विश्‍लेषक सपा की इस दुर्गति के लिए सीधे तौर पर मुलायम को ही दोषी मानते हैं. उनका कहना है कि मुलायम अगर सख्ती और संतुलन रखते तो पार्टी इस हालत में नहीं पहुंचती.

मुलायम की इसी ढिलाई का नतीजा है कि पिछले कई महीनों से समाजवादी पार्टी के अलमबरदारों का चल रहा पारिवारिक झगड़ा आज प्रदेश और देशभर में नक-कटावन प्रसंग बन गया है. इस कलह की वजहों के बारे में जो कोई भी बोल रहा है, उसे बर्खास्तगी का अधिनायकवादी फरमान पकड़ा दिया जा रहा है. अखिलेश का साथ देने में मुलायम परिवार के ही वरिष्ठ सदस्य प्रो. रामगोपाल बाहर हो गए. रामगोपाल के लिए उनके भाई शिवपाल ने वैसे ही बोल बोले जो अमर सिंह उनके बारे में बोलते हैं. शिवपाल यादव ने रामगोपाल को भाजपा का एजेंट बताया, षडयंत्रकारी बताया, भ्रष्ट कहा, उनके बेट-बहू को घसीटा और बिहार महागठबंधन तोड़ने का जिम्मेदार बताया. रामगोपाल ने अपनी बर्खास्तगी के बाद कहा कि मुलायम आसुरी शक्तियों से घिरे हुए हैं.

उन्होंने कहा, मैं समाजवादी पार्टी में रहूं या ना रहूं लेकिन इस धर्मयुद्ध में अखिलेश यादव के साथ हूं. यह लड़ाई सरकार और पार्टी में अपने वर्चस्व को लेकर अखिलेश और शिवपाल के बीच चल रही है. अखिलेश जब 2012 में मुख्यमंत्री बने थे, उस समय भी शिवपाल ने बाधा डालने की कोशिश की थी. इस कलह प्रकरण ने कई ऐसे सच भी सामने ला दिए, जिनके बारे में सामान्य लोगों को कुछ भी पता नहीं था. जब मुलायम ने पार्टी मंच से कहा कि वे अमर सिंह के खिलाफ कुछ भी नहीं सुन सकते क्योंकि अमर सिंह ने उन्हें जेल जाने से बचाया था, नहीं तो उन्हें कम से कम सात साल की सजा जरूर हुई होती, यह सुनकर पार्टी के नेता भी हतप्रभ रह गए. इस कथन ने अमर सिंह के हुनर और उस पर नेताजी की आश्‍वस्ति को खुद-ब-खुद रौशनी में ला दिया.

बहरहाल, सपा के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव के चुनाव आयोग जाने से भी यह कयास लगाया जा रहा है कि विभाजन की औपचारिक घोषणा में अधिक वक्त नहीं रह गया है. मुलायम पक्षीय सपा ने पिछले दिनों किरणमय नंदा को मीडिया के सामने आगे कर संधि-सुलह का जिस तरह का प्रहसन खेला था उससे ही साफ पता चल गया था कि पार्टी का मुलायम-खेमा घबराया हुआ, चिंतित और आशंकित है. तभी बार-बार यह कहा गया कि

अखिलेश ही मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे. दरअसल, दो दिन पहले ही मुलायम ने यह कह कर कि चुनाव के बाद विधानमंडल दल नेता का चुनाव करेगा, मामले को फंसा दिया था. मुलायम ने औपचारिक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुला कर कहा था कि मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बाद में तय होगा. मुख्यमंत्री का उम्मीदवार कौन होगा इसका फैसला पार्टी का पार्लियामेंट्री बोर्ड करेगा. मुलायम के इस बयान के बाद अखिलेश ने खुले तौर पर यह घोषित कर दिया कि चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा वही होंगे. अखिलेश ने इस बारे में खुल कर कहा कि कोई साथ दे या न दे, वे अकेले चुनाव प्रचार करेंगे.

सपा के अखिलेशी खेमे ने भी बाकायदा इस बारे में मीडिया के समक्ष बयान देने शुरू कर दिए. मुलायम ने किरणमय नंदा को सामने लाकर यह दिखाने की भी कोशिश की कि यह मसला पारिवारिक नहीं, बल्कि पार्टीगत है. लेकिन अब तो काफी देर हो चुकी है. किरणमय नंदा पूरी तरह पूर्व निर्देशित तौर-तरीके  से अपना किरदार निभाने की कोशिश कर रहे थे. नंदा बार-बार यह कह रहे थे कि वे पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की हैसियत से बोल रहे हैं, लेकिन लोग यह समझ रहे थे कि यह डायलॉग उनका अपना नहीं है, क्योंकि पार्टी में उनकी हैसियत सब जानते हैं.

समाजवादी पार्टी की स्थापना के 25वें वर्ष में पार्टी के टूटने का सांकेतिक दस्तावेज उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के उस पत्र से तैयार हो गया जो उन्होंने 19 अक्टूबर को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को लिखा. अखिलेश ने लिखा कि तीन नवंबर से वे चुनाव प्रचार के लिए निकल जाएंगे और प्रदेश भर का दौरा करेंगे. यानि, पांच नवंबर को होने वाले रजत जयंती समारोह में वे शरीक नहीं रहेंगे. हालांकि बाद में उन्होंने यह भी कहा कि वे चनाव प्रचार के लिए भी निकलेंगे और रजत जयंती समारोह में भी मौजूद रहेंगे. अखिलेश ने सपा प्रमुख को लिखा था कि वे तीन नवंबर से पूरे प्रदेश भर में ‘विकास से विजय की ओर’ अग्रसरित होने का बिगुल फूकेंगे. अखिलेश की वह चिट्ठी स्पष्ट विद्रोह की मुनादी मानी गई थी. वैसे, इस पत्र के पहले अखिलेश खेमे की तरफ से रजत जयंती समारोह के बहिष्कार की बाकायदा औपचारिक घोषणा कर दी गई थी.

अखिलेश के चुनाव प्रचार दौरे की सूचना प्रदेश भर की सांगठनिक इकाइयों को भेज दी गई, ताकि रजत जयंती के पहले ही साफ हो जाए कि कौन अखिलेश की तरफ हैं और कौन शिवपाल की तरफ. जो तिकड़मबाजी पिछले कुछ अर्से में मुलायम परिवार में हुई, उतनी तो दो सियासी दलों के बीच भी नहीं होती. रजत जयंती समारोह के लिए बनी आयोजन समिति का प्रमुख जानबूझ कर गायत्री प्रसाद प्रजापति को बनाया गया, जिसे अखिलेश ने अपने मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया था, पर बाद में बुझे मन से वापस लेना पड़ा था. शिवपाल यह जानते हैं कि गायत्री प्रजापति को अखिलेश पसंद नहीं करते, लेकिन पार्टी में वे सारे फैसले ऐसे ही ले रहे हैं जो अखिलेश पर नागवार गुजरे.

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव ने भी सपा के रजत जयंती समारोह के बहिष्कार का संकेत दे दिया था. उन्होंने मुलायम सिंह को पत्र लिख कर उन्हें आगाह किया था कि वे जो कुछ कर रहे हैं, उससे पार्टी का सत्यानाश हो जाएगा और उसके लिए जनता उन्हें माफ नहीं करेगी. रामगोपाल ने मुलायम को लिखा,

‘समाजवादी पार्टी को आपने बड़ी मेहनत से बनाया था. पार्टी चार बार सत्ता में भी पहुंची. पिछली बार किसी अन्य दल के समर्थन की आवश्यकता भी नहीं पड़ी. उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार ने जो कार्य किए हैं, वो पूरे देश के लिए पथ प्रदर्शक का कार्य कर रहे हैं. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इस समय निर्विवाद रूप से प्रदेश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं, लेकिन पिछले कुछ दिनों में जो कुछ हुआ उससे पार्टी का मतदाता निराश और हताश है. अब तो उसमें नेतृत्व के प्रति आक्रोश भी उत्पन्न हो रहा है. लोगों को कष्ट ये है कि पहले नंबर पर चल रही पार्टी कुछ इन

गिने-चुने लोगों की गलत सलाह के चलते काफी पीछे चली गई है. ये जो लोग आजकल आपको सलाह दे रहे हैं, जनता की निगाह में उनकी हैसियत शून्य हो गई है. पार्टी जिसे चाहे उसे टिकट दे, लेकिन जीतेगा वही जिसकी हैसियत होगी और पार्टी तभी चुनाव जीतेगी जब पार्टी का चेहरा अखिलेश यादव होंगे. अगर आप चाहते हैं कि पार्टी फिर 100 से नीचे चली जाए तो आप चाहे जो फैसला लें, लेकिन एक बात याद रखें कि जो जनता आपकी पूजा करती है, समाजवादी पार्टी बनाने के लिए, वही जनता समाजवादी पार्टी के पतन के लिए आपको और केवल आपको दोषी ठहराएगी. इतिहास बहुत निष्ठूर होता है, ये किसी को बख्शता नहीं.’

रामगोपाल के इस पत्र के परिप्रेक्ष्य में सपा के ही नेता कहने लगे हैं कि पार्टी के पतन के लिए मुलायम जिम्मेदार हैं, क्योंकि उनकी सहमति के बगैर कोई कुछ नहीं कर सकता. मुलायम को लिखे इस पत्र के बाद सपा में सुगबुगाहटें और तेज हो गईं. यह इतिहास ही बना कि पार्टी में पहली बार किसी वरिष्ठ नेता ने राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को इतनी तल्ख चिट्ठी लिखी. इस पत्र ने मुलायम और उनके सिपहसालारों को स्पष्ट तौर पर कटघरे में खड़ा कर दिया. रामगोपाल ने बाद में कहा भी कि प्रदेश की वर्तमान सपा सरकार ने जो काम किए हैं, वे पूरे देश के लिए पथ प्रदर्शक हैं. पार्टी चुनाव तभी जीतेगी जब अखिलेश चेहरा होंगे. अखिलेश निर्विवाद रूप से प्रदेश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं. लोगों में नेतृत्व के प्रति नाराजगी है. स्थिति यह है कि पार्टी के मुख्यमंत्री-विरोधी तत्वों को जनता ही नापसंद कर रही है और इसका असर चुनाव में दिखेगा.

रामगोपाल ने यह भी कहा कि मुलायम को जो लोग सलाह दे रहे हैं, जनता की निगाह में उनकी हैसियत शून्य है. रामगोपाल के पत्र से ही साफ हो गया कि पार्टी के डूबने में अब कोई कसर बाकी नहीं. इसके बाद विधान परिषद सदस्य उदयवीर सिंह ने भी मुलायम को पत्र लिख कर आर-पार की रेखा खींच दी. उदयवीर सिंह ने सपा प्रमुख को पत्र लिख कर कहा कि वे अखिलेश यादव को समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोनीत कर दें और खुद संन्यास लेकर पार्टी को नष्ट होने से बचा लें. अखिलेश यादव को हर दृष्टिकोण से योग्य बताते हुए उदयवीर ने अखिलेश को नेतृत्व सौंप देने की मांग की और पार्टी में हड़कंप मचा दिया. उदयवीर ने अखिलेश यादव की सौतेली मां पर षडयंत्र रचने का आरोप लगाकर और सनसनी फैला दी. एटा-मैनपुरी से एमएलसी उदयवीर ने कहा कि

अखिलेश यादव के खिलाफ उनकी सौतेली मां साधना गुप्ता साजिश कर रही हैं. उदयवीर ने कहा कि शिवपाल यादव भी साजिश में हिस्सेदार हैं. उन्होंने मुलायम को सतर्क रहने के लिए भी कहा. उदयवीर ने मुलायम सिंह यादव को चार पेज की लंबी चिट्ठी लिखी थी. लेकिन मुलायम पर न तो रामगोपाल के पत्र का कोई असर पड़ा और न उदयवीर के पत्र का. हां, उदयवीर के खिलाफ अनुशासनिक कार्रवाई की भूमिका शुरू हुई, जो उनके निष्कासन पर आकर ही थमी. इसके बाद रामगोपाल पर भी वही कार्रवाई दोहराई गई. सपा के ही नेता कहते हैं कि रामगोपाल पर कार्रवाई होने का मतलब है पार्टी की इतिश्री.

मुलायम के खिलाफ मुखर विद्रोह का सिलसिला ऐसा शुरू हुआ कि समाजवादी पार्टी के अखिलेशवादी खेमे ने रजत जयंती समारोह और मुलायम के कार्यक्रमों के बहिष्कार का बाकायदा औपचारिक ऐलान कर दिया. समाजवादी पार्टी मुख्यालय के समानांतर बने जनेश्‍वर मिश्रा ट्रस्ट के दफ्तर में अखिलेश समर्थकों ने 18 अक्टूबर को बैठक की और बहिष्कार का सर्वसम्मत फैसला लिया. यह पार्टी नेतृत्व को खुली चुनौती थी, क्योंकि रजत जयंती समारोह की कामयाबी के लिए मुलायम खास तौर पर मीडिया के समक्ष प्रस्तुत हुए थे. इस खेमे ने मीडिया को जो आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति भेजी वह पार्टी नेतृत्व के खिलाफ खुले विद्रोह का ऐलान था.

विज्ञप्ति में कहा गया कि बसपा शासन के अन्याय के खिलाफ संघर्ष और आंदोलन में जिन लोगों ने सक्रिय तौर पर हिस्सा लिया और जिन लोगों की वजह से प्रदेशभर में समाजवादी पार्टी की ऐतिहासिक जीत का माहौल बना, उन्हें ही चुन-चुन कर बाहर निकाला गया. एमएलसी सुनील सिंह यादव, आनन्द भदौरिया, अरविन्द प्रताप यादव, संजय लाठर के साथ-साथ प्रदेश युवजन सभा के प्रदेश अध्यक्ष बृजेश यादव, यूथ ब्रिगेड के प्रदेश अध्यक्ष मो. एबाद, यूथ ब्रिगेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष गौरव दुबे और छात्र सभा के प्रदेश अध्यक्ष दिग्विजय सिंह देव को झूठी शिकायतों के आधार पर समाजवादी पार्टी से निष्कासित कर दिया गया.

अनुशासनहीनता के आरोप दुर्भाग्यपूर्ण हैं. एमएलसी संतोष यादव सनी, विधायक अरुण वर्मा, जयसिंह जयंत, पूर्व प्रदेश महासचिव युवजन सभा राहुल सिंह, पूर्व राष्ट्रीय सचिव युवजन सभा अवधेश वर्मा, कर्नल सत्यवीर सिंह यादव, जुगुल किशोर बाल्मीकि, पूर्व प्रदेश महासचिव यूथ ब्रिगेड अरुण यादव, रामसागर यादव, विजय यादव, प्रदीप तिवारी, ओम नारायण यादव, पूर्व प्रदेश सचिव युवजन सभा प्रदीप शर्मा, प्रदेश सचिव छात्रसभा मनीष दुबे, प्रदेश महासचिव छात्रसभा करुणेश द्विवेदी, प्रदेश उपाध्यक्ष युवजन सभा अरविन्द गिरि, पूर्व जिलाध्यक्ष युवजन सभा राबिन सिंह यादव, दानिश सिद्दीकी, प्रदेश सचिव छात्र सभा वैभव सैनी, पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष लोहिया वाहिनी शिवकुमार यादव, प्रदेश मीडिया प्रभारी छात्रसभा मनोज यादव, जीतू वर्मा, प्रदेश उपाध्यक्ष छात्रसभा सर्वेश यादव, पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष इलाहाबाद विश्‍वविद्यालय भूपेन्द्र सिंह यादव, योगेश यादव गाजीपुर, अभिषेक यादव, एमएलसी उदयवीर सिंह, प्रदेश अध्यक्ष अल्पसंख्यक सभा फिदा हुसैन अंसारी, त्रिशुलधारी सिंह, प्रदेश उपाध्यक्ष युवजन सभा कार्तिक तिवारी शैलू और नागेन्द्र सिंह यादव के हस्ताक्षरित बयान में कहा गया, ‘हम सभी साथियों और पदाधिकारियों ने युवा नेताओं के निष्कासन के विरोध में निर्णय लिया है कि पांच नवंबर 2016 को

समाजवादी पार्टी के प्रस्तावित स्थापना दिवस (रजत जयंती समारोह) में शामिल नही होंगे. हम सभी हजारों युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के नेतृत्व में निष्ठा एवं आस्था व्यक्त करते हैं.’ विज्ञप्ति के साथ पार्टी के अखिलेश समर्थकों की भारी फेहरिस्त भी संलग्न की गई थी. उल्लेेखनीय है कि अखिलेश समर्थक नेताओं के निकाले जाने के बाद समाजवादी पार्टी के सारे युवा संगठनों के पदाधिकारियों ने इस्तीफा दे दिया था.

समाजवादी पार्टी की छाती पर सवार होकर लिए गए इस फैसले के फौरन बाद ही अखिलेश ने मुलायम को पत्र लिख कर पूरी पार्टी को सकते में ला दिया. इसका असर यह हुआ कि पार्टी का शिवपाल खेमा फौरन सक्रिय हो गया, बैठकों का सिलसिला शुरू हो गया. रजत जयंती समारोह की तैयारी समिति की लिस्ट भी जारी कर दी गई, जिसके मुखिया स्वनामधन्य गायत्री प्रजापति बनाए गए. तैयारी समिति के अन्य सदस्यों में नारद राय, पारसनाथ यादव, कमाल अख्तर, मनोज पांडेय और विशम्भर प्रसाद निषाद के नाम भी शुमार हैं. तुरत-फुरत 21 अक्टूबर को प्रदेश भर के जिला अध्यक्षों और जिला महासचिवों को लखनऊ तलब कर उन्हें हिदायत दी गई और उनकी नब्ज भी टटोली गई. रजत जयंती समारोह को कामयाब करने के ‘टार्गेट’ दे दिए गए और तीन नवंबर से शुरू हो रहे अखिलेश के दौरे से दूरी बनाए रखने की ताकीद की गई.

फिर आनन-फानन में 22 अक्टूबर को प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक भी बुला ली गई. प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में शरीक होने के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पहले तो औपचारिकता के तहत भी आमंत्रण नहीं भेजा गया. लेकिन जिला इकाइयों की तरफ से जमीनी तापमान मिलने के बाद शिवपाल ने फौरन ही पैंतरा बदला और अखिलेश से मिलने उनके सरकारी आवास पहंच गए. उन्होंने अखिलेश को कार्यकारिणी की बैठक में शरीक होने का आमंत्रण भी दे डाला और रजत जयंती समारोह में उपस्थित रहने का आग्रह भी कर दिया. शिवपाल और अखिलेश के बीच देर रात तक बातचीत चलती रही, लेकिन नतीजा क्या निकला, इसे प्रदेश और देशभर के लोगों ने सार्वजनिक तौर पर देख लिया.

ये शब्द बताते हैं अखिलेश की पीड़ा

जब अखिलेश ने कहा कि अपना नाम भी उन्होंने ही तय किया था, लिहाजा वे अकेला चलना बखूबी जानते हैं, तो वह यह स्पष्ट संकेत दे रहे थे कि परिवार में किस तरह की परिस्थितियों से वे दो-चार होते रहे हैं. समाजवादी पार्टी के ही एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि तमाम तिकड़मों, खींचतान और विरोधाभासों के बीच अखिलेश ने पूरी मर्यादा से पांच साल तक सरकार चला ली. मुलायम, अमर, शिवपाल, आजम के चार कोनों से लगातार खींचे जाने के बावजूद अखिलेश ने कभी आपा नहीं खोया और कभी अनुशासन से नहीं डिगे. उसी मर्यादा से उन्होंने नैतिकता का स्टैंड भी जनता के  समक्ष साफ किया. माफिया सरगना मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल के सपा में विलय से लेकर अपराधियों और दागियों को टिकट देने तक के मसले पर अखिलेश ने विरोध जताया. पार्टी नेतृत्व ने उनकी बात अनसुनी कर दी, लेकिन जनता ने इसे अपने मन में दर्ज कर लिया.

आम सपाइयों से भी बात करें तो पलड़ा अखिलेश की तरफ का ही भारी दिखता है. आम सपाइयों का भी मानना है कि अखिलेश के विशाल होते कद से अगरधत्तों को तकलीफ हो रही है. जब अखिलेश ने सफलतापूर्वक सरकार चला कर दिखा दिया तो फिर उनके पर क्यों नोंचे जा रहे हैं? क्या अखिलेश को अपना करियर बनाने का हक नहीं है? अखिलेश पर जब कोई दाग नहीं है, पार्टी की अच्छी छवि बनी है और जनता के बीच उन्हीं का चेहरा स्वीकार्य है, तो फिर उन्हें किनारे लगाने की साजिश क्यों हो रही है? एक सपाई ने झटके से यह सवाल सामने रखा, तो वहां मौजूद कई पत्रकारों को भी शिवपाल और उनके खास समर्थकों के चेहरे से उन सवालों के जवाब मिलने शुरू हो गए थे. अखिलेश समर्थक और यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री राजेंद्र चौधरी कहते हैं कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की लोकप्रियता का ग्राफ दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है.

राजनीति के मौजूदा दौर में अखिलेश जैसे बेदाग, विनम्र और संवेदनशील व्यक्तित्व की सर्वथा कमी है. इसीलिए जनता का उनके प्रति बेमिसाल भरोसा है. वे जहां भी जाते हैं, उन्हें देखने-सुनने वालों की भीड़ जमा हो जाती है. जनता विकास चाहती है. विकास की गारंटी अखिलेश यादव ही हो सकते हैं. राजेंद्र चौधरी ने यह कह कर पूरे माहौल का स्पष्टीकरण दे दिया कि अखिलेश यादव ने अब तक कहीं भी अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया. प्रदेश की जनता को बहुत अरसे बाद साफ-सुथरी राजनीति के दर्शन हुए हैं, मूल्य बदले हैं, जनता इसे खोना नहीं चाहती. अखिलेश यादव ने बहुत मेहनत से राजनीति के शून्य को भरा है. चौधरी यह भी बोल गए कि अखिलेश ही डॉ. राम मनोहर लोहिया की वैचारिक विरासत का नेतृत्व कर रहे हैं. अखिलेश के कारण ही माफियाओं से मुक्त राजनीति का आग्रह बना है और नैतिकता के पक्ष को बल मिला है.

जॉर्डिंग कहीं अमर सिंह के प्लान्टेड तो नहीं!

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव राजनीति को आधुनिक पेशेवर तकनीक के जरिए भी साधने की कोशिश कर रहे हैं. अखिलेश को उम्मीद है कि युवाओं का समर्थन हासिल कर वे राजनीति की ऊंचाइयां हासिल कर सकते हैं. इसी इरादे से अखिलेश ने मशहूर राजनीतिक रणनीतिकार स्टीव जॉर्डिंग की सेवाएं लेने का निर्णय लिया. जॉर्डिंग हावर्ड यूनिवर्सिटी में पब्लिक पॉलिसी विभाग के प्राफेसर हैं. वे हिलेरी क्लिटंन के चुनाव प्रचार का मैनेजमेंट भी संभाल रहे हैं. जॉर्डिंग,अखिलेश की साफ़ और विकासवादी छवि को लेकर गांवों और कस्बों में धूम मचाएंगे. हालांकि समाजवादी पार्टी का कहना है कि स्टीव जॉर्डिंग की सेवाएं लेने का फैसला पार्टी का है. एक नेता ने यह भी आशंका जाहिर की कि स्टीव जॉर्डिंग अमर सिंह के करीबी हैं और कहीं उन्हें अमर सिंह ने ही तो प्लान्ट नहीं किया है! ऐसे में वे अमर सिंह और शिवपाल के ही इशारे पर अधिक काम करेंगे. अमर सिंह, बिल क्लिटंन और हिलेरी क्लिटंन के करीबी हैं और क्लिटंन फाउंडेशन को चंदा देने-दिलाने के विवादास्पद प्रसंग में भी नाम कमा चुके हैं.

बहरहाल, अमेरिका में हिलेरी क्लिटंन के चुनाव अभियान प्रबंधक व राजनीतिक सलाहकार स्टीव जॉर्डिंग को सपा सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के प्रचार अभियान को नए सिरे से डिजाइन कराना है. जॉर्डिंग की सलाह पर ही फिल्म अभिनेत्री विद्या बालन को अम्बैसेडर बनाकर समाजवादी पेंशन योजना के प्रचार का बड़ा अभियान शुरू किया गया. स्टीव की टीम जमीनी स्तर पर चुनाव प्रबंधन का खाका तैयार कर रही है. लेकिन भारी कलह के कारण विभाजन के मुहाने पर खड़ी समाजवादी पार्टी के लिए जॉर्डिंग क्या जुगाड़ कर पाएंगे, इस पर संशय है.

रामगोपाल क्यों गए थे चुनाव आयोग!

पूरे कलह प्रसंग में अखिलेश का साथ देने वाले सपा के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव के चुनाव आयोग पहुंचने से पार्टी के विभाजन के कयास पुख्ता होने लगे हैं. रामगोपाल ने चुनाव आयोग जाने की वजह नहीं बताई है, लेकिन इस बारे में चर्चाओं ने तेज गति पकड़ ली. पार्टी के ही लोगों का कहना है कि समाजवादी पार्टी पर आधिकारिक दावे के मसले पर रामगोपाल ने चुनाव आयोग के अधिकारियों से बातचीत की. चर्चा के केंद्र में पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह है, जिस पर दावेदारी का मसला संभवतः शीघ्र ही खड़ा होगा. नई पार्टी बनाने और सिंबल साइकिल की जगह मोटर-साइकिल रखने के मसले पर भी विचार हुआ.

मोटर-साइकिल युवाओं के आकर्षण की आधुनिक पहचान चिन्ह है. अखिलेश समर्थक तो इस सिम्बल को लेकर नारे भी गढ़ने लगे, शिवपाल नहीं अखिलेश चाहिए, साइकिल नहीं मोटर-साइकिल चाहिए.

पार्टी के रसातल में जाने की चिंता नंदा को भी

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष किरणमय नंदा हालांकि पार्टी में मुख्यधारा के नेता नहीं माने जाते और आम तौर पर मीडिया से मुखातिब भी नहीं होते, लेकिन पिछले दिनों लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुलायम-शिवपाल प्रेरित संवाद दोहराने के बावजूद समाजवादी पार्टी की बदहाली का दु:ख उनके चेहरे से झलक रहा था. नंदा कई बार कुछ बेबाकी से बोल भी गए, फिर बात संभाली. उन्होंने जब यह कहा कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ही समाजवादी पार्टी का चुनावी चेहरा होंगे तो इससे संबंधित एक सवाल पर बोल गए कि मुख्यमंत्री को टिकट वितरण का अधिकार मिलना ही चाहिए, तभी पार्टी बेहतर तरीके से काम कर पाएगी.

नंदा ने यह भी कहा कि पार्टी से बर्खास्त किए गए युवा नेताओं की वापसी जरूर होनी चाहिए. नंदा बार-बार यह बोल रहे थे कि वे समाजवाद पार्टी को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की हैसियत से बोल रहे हैं. उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनाव नजदीक है और समाजवादी पार्टी को पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ना होगा. चुनाव में युवाओं की जरूरत है, इसलिए उनकी वापसी होनी चाहिए. चुनाव का वक्त है, लिहाजा इस वक्त एकता की सबसे ज्यादा जरूरत है. पार्टी नेतृत्व को इस बारे में जरूर फैसला लेना चाहिए. इस पर एक सपा नेता ने कटाक्ष किया कि नंदा ऐसे ही बोलते रहे तो जल्दी ही वे भी पार्टी से बाहर होंगे.

संकट से उबारेगा महागठबंधन

विभाजन के मुहाने पर खड़ी समाजवादी पार्टी को संकट से उबारने के लिए फिर से महागठबंधन में शामिल होने की जद्दोजहद हो रही है. मुलायम ने महागठबंधन में फिर से शामिल होने की पहल शुरू कर दी है. जनता दल (यूनाइटेड) के राष्ट्रीय अध्यक्ष व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और वरिष्ठ नेता शरद यादव के अलावा राष्ट्रीय लोकदल के प्रमुख चौधरी अजित सिंह व कई अन्य नेताओं से संपर्क किया गया है. मुलायम ने डॉ. लोहिया और चौधरी चरण सिंह के समर्थकों को एक मंच पर आने का आह्वान दोहराया है. उन्होंने शिवपाल के जरिए सभी पुराने साथियों को समाजवादी पार्टी के रजत जयंती समारोह में शामिल होने के लिए न्यौता भेजा है. आपको याद ही होगा कि बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मुलायम ने ही पहल करके नीतीश कुमार, लालू प्रसाद, एचडी देवगौड़ा, अजित सिंह समेत सभी समाजवादियों को इकट्ठा कर महागठबंधन की शक्ल तक पहुंचाया था.

मुलायम सिंह यादव को ही इसका सर्वमान्य नेता भी चुना गया था, लेकिन आखिरी दौर में मुलायम ने महागठबंधन से नाता तोड़ लिया. तब भी यह बात उठी थी कि रामगोपाल के दबाव में सपा, महागठबंधन से अलग हुई. अब तो समाजवादी परिवार के झगड़े में भी यह बात उजागर की जा रही है कि रामगोपाल के कहने पर ही मुलायम ने महागठबंधन से रिश्ता तोड़ लिया था. अब रामगोपाल को ठिकाने लगा कर समाजवादी पार्टी महागठबंधन में शामिल होकर अपनी गलतियां सुधारने में लगी हुई है. हालांकि मुश्किल के समय सपा के पास यही विकल्प बचा है. इस बारे में सपा के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने कहा कि वह एक ऐसा गठबंधन बनाना चाहते हैं, जिससे साम्प्रदायिक ताकतों को हराया जा सके. इसमें लोहियावादी, चरण सिंह वादी और गांधीवादी शामिल हों और ऐसे लोगों को साथ लेकर हम दोबारा सरकार बनाएं. शिवपाल, मुलायम का ही पुराना डायलॉग दोहरा रहे थे.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here