क्या मान लिया जाए कि एक आदमी (शासक) की अति महत्वाकांक्षा ने चौतरफा लोगों को हतप्रभ किया हुआ है। कहीं जुल्म की इंतेहा है और कहीं मौजूदा सत्ता की प्राथमिक पाठशाला यानि आरएसएस में भीतर ही भीतर न समझ आने वाला घमासान अपने स्तर पर है। कभी लगता है ये सत्ता आरएसएस के इशारों पर है तो कभी ऐसा भी जान पड़ता है कि आरएसएस एक आदमी की उंगलियों पर स्वयं को झिला रही है। सब मजबूरियों का खेल है। लेकिन इन सबसे इतर एक तथ्य यह भी है कि जब किसी एक व्यक्ति के लिए पूरा देश दांव पर लगा दिया जाए तो उसके परिणाम कितने विध्वंसकारी हो सकते हैं, इसे पूरी दुनिया देख रही है। शासक जब यह समझने लग जाए कि वोट की राजनीति ही सर्वोपरि है तो समझ लीजिए ‘गोबर दिमाग’ सत्ता पर चौतरफा छाने लगे हैं।
हर सत्ता का अपना चरित्र होता है। मौजूदा सत्ता ने अपने जिस चरित्र को गढ़ा है वह जितना बौखलाहट भरा, हास्यास्पद और भीतर से खूंखार है उन सबका ‘काकटेल’ हमारी नजरों के सामने है। कल ही एक ऐसा आयोजन हुआ है जो खबरों के घेरे में है। इतिहास के मशहूर ‘चौरा चौरी कांड’ के शताब्दी समारोह का आयोजन सत्ता द्वारा किया गया। सवाल अपने दिमाग में भी था और रात होते होते वरिष्ठ पत्रकार आलोक जोशी के दिमाग में भी कौंधा कि आखिर यह आयोजन क्यों और किसलिए। और ऐसे वक्त में ही क्यों। उन्होंने इस पर एक चर्चा (लाइव) आयोजित की। इससे आप सत्ता के चरित्र को आसानी से समझ सकते हैं।
‘चौरा चौरी’ की घटना के पीछे जो कथा रही हो पर एक तथ्य यह भी है कि इसमें जिस कदर हिंसा हुई उससे आहत होकर महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया। इस अर्थ में कल की चर्चा के दौरान एक पैनलिस्ट ने बहुत सही कहा कि यह गांधी को नीचे गिराने की ‘अदृश्य साजिश’ है। किसान और किसानों का बलिदान तो एक बहाना है। आज दिल्ली के बार्डर पर हम जो कुछ देख रहे हैं उसमें सत्ताधीशों की घबराहट से जन्मी बौखलाहट है। और यहां भी परोक्ष रूप से साम दाम दंड भेद का खेल चालू है। शताब्दी समारोह आयोजन इसी का नतीजा है।
जब सत्ता के ऐसे खेल होते हैं तो उसके निहितार्थ भी कुछ निकल कर आते हैं। हम नहीं जानते थे कि यह आंदोलन ‘गोदी’ समझे जाने वाले मीडिया से इस कदर खार खाएगा और बरक्स इसके एनडीटीवी की दर्शक संख्या में इस कदर इज़ाफ़ा हो जाएगा। यह सत्य है। यही समय का खेल है। इसी से चेतना का स्तर बढ़ता है और वह बढ़ रहा है। कहा यह भी जा रहा है कि आम चुनाव का समय आते आते ‘नरेटिव’ फिर बदल दिया जाएगा। लेकिन हमें लगता है इस बार शायद ऐसा न हो। जिस प्रकार पंजाब के सिखों की समझ बनी है उसने तो हम सब को हतप्रभ करके रख दिया है। तो यह समझ कि फिर से ‘नरेटिव’ बदल दिया जाएगा, लगता नहीं।
कल ‘लाउड इंडिया टीवी’ पर अभय कुमार दुबे से संतोष भारतीय की बातचीत सुनिए। अभय जी की अपनी स्पष्ट सोच और स्पष्ट आकलन होता है। इसीलिए उन्हें सुनना अच्छा लगता है। उसी तरह जैसे संतोष भारतीय साफगोई के साथ अपने विचार रखते हैं। वह वैचारिक विश्लेषण तो होता ही है जानकारीपूर्ण भी होता है। उनसे हमें पता चला कि देश के कई हिस्सों के युवाओं में किसान आंदोलन को लेकर कितनी खलबली है। उनका मानना है और अभय जी का भी मानना है कि यदि युवा और छात्र इस आंदोलन में कूद पड़े तो सरकार के लिए बहुत मुश्किल हो जाएगा। संतोष भारतीय को एक बुद्धिजीवी मिले जिन्होंने ‘आपदा में अवसर’ का ज्ञान बताया – समझाया। उन श्रीमान बुद्धिजीवी का नाम तो संतोष जी ने नहीं जाहिर किया पर बताया कि ‘आपदा में अवसर’ का मतलब सीधा सीधा अंबानी और अडानी से जुड़ता है।
लाकडाऊन के पीरियड में जब देश का मजदूर त्राहि त्राहि कर रहा था और हमारी अर्थव्यवस्था लगातार नीचे गिरती जा रही थी तब हमारे ये उद्योगपति दिन दुगनी रात चौगुनी (मुद्रा की) तरक्की कर रहे थे। इस अवसर का असली अर्थ यही है। ‘सत्य हिंदी’ पर कभी कभी कुछ विषयों पर चर्चाएं बड़ी जानदार होती हैं। हमारी शिकायत उनके पैनल में ले देकर दो चार चेहरों के विषय में ही थी। और जिस समय हमारा घोर विरोध था उस समय बड़ा मुद्दा यह था कि देश का एक बड़ा वर्ग इन सबसे अछूता है। तब ये चर्चाएं कोफ्त पैदा करती थीं। लेकिन किसान आंदोलन और एनडीटीवी के फैलते दायरे को देख कर संशय मिट रहा है। कितना मिटेगा यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन यह कहना वाजिब है कि ‘सत्य हिंदी’ ने जो जगह बनायी है वह काबिलेतारीफ है। इस वेबसाइट के हर कार्यक्रम में कहा जाता है कि हमें आर्थिक मदद कीजिए।
हम भी अपने मित्रों को कहेंगे कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में इस वेबसाइट को सब्सक्राइब करें। मार्कण्डेय काटजू महात्मा गांधी को अंग्रेजों का एजेंट मानते हैं। उनका नजरिया न केवल स्तब्ध कर देने वाला है बल्कि यह भी साबित करता है कि हर विद्वान के दिमाग के कई तले खाली भी रह जाते हैं। उन्होंने ‘सत्य हिंदी’ पर विजय विद्रोही को एक इंटरव्यू देते हुए यह सब बातें कहीं। पहले भी वे गांधी और सुभाष पर अनर्गल बोलते रहे हैं।
नीलू व्यास ने सुप्रीम कोर्ट के जाने माने जज जस्टिस लोकुर से बहुत उपयोगी बात की। यह यूट्यूब पर उपलब्ध है।जरूर देखें। लोकुर साहब की चिंताएं जितनी वाजिब हैं सुझाव भी उतने ही उम्दा हैं।आरफा खानम शेरवानी ने पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी से बात की। अंसारी साहब डरे डरे परेशान परेशान से शुरू में नजर आए। हमें तो लग रहा था कि पूरा इंटरव्यू भी देंगे या नहीं। बीच में तो यहां तक हिल गये कि अब बात का बतंगड बनाने से क्या फायदा। उनकी मजबूरियां समझी जा सकती हैं। स्वाभाविक भी है।
आज टीवी से ज्यादा सोशल मीडिया उपयोगी हो चला है। हमारा तो सुझाव है मित्रों, कि टीवी को चलता कीजिए या टीवी को यूट्यूब से जोड़ कर सिर्फ और सिर्फ आज की चर्चित हो रही वेबसाईट्स को ही देखिए।रवीश कुमार का शो तो हर हालत में देखिए। दिमाग को राहत मिलेगी और तसल्ली का कवच भी मिलेगा।जितना ज्यादा से ज्यादा हो सके इस संदेश को दूर दूर तक पहुंचाएंगे तो इस सत्ता की असलियत लोगों तक पहुंचेगी और इससे वितृष्णा होगी। अगर ऐसे विध्वंसकारी लोग शासन में आते हैं तो उनके प्रति वितृष्णा पैदा किया जाना गलत नहीं है।
बसंत पांडे