12 घंटे चली पर्यावरण संसद में केन बेतवा लिंक, बकस्वाहा जंगल, शैल चित्र से संविधान प्रस्ताव पारित किये
मेधा पाटकर, जादव पाऐंग, प्रशांत भूषण, राजेन्द्र सिंह, डॉ सुनीलम सहित कई पर्यावरण कार्यकर्ता हुए शामिल
भोपाल। देश के सामाजिक, राजनीतिक और पर्यावरण कार्यकर्ताओं का मानना है कि बकस्वाहा जंगल और केन-बेतवा नदी लिंक परियोजना को लेकर केंद्र और राज्य सरकारें पर्यावरण और बुंदेलखंड के प्रति गंभीर नहीं हैं। उन्हें न ही पर्यावरण की समझ है और न रुचि। ये विचार बुंदेलखंड के बकस्वाहा जंगल और केन-बेतवा नदी गठजोड़ परियोजना के मुद्दे पर गांधी भवन में आयोजित पर्यावरण संसद में सामने आए। एक दिवसीय संसद में देश के अनेक पर्यावरणविद और विशेषज्ञ खुद उपस्थित हुए या वर्चुअल रूप से इस संसद में शामिल हुए।
देश की मशहूर पर्यावरण पैरोकार और नर्मदा बचाओ आंदोलन की कार्यकर्ता मेधा पाटेकर ने कहा कि केन-बेतवा और नर्मदा प्रोजेक्ट जैसी परियोजनाओं का परिणाम काफी नुकसानदेह साबित होता है। उन्होंने कहा कि 1986 में बना पर्यावरण सुरक्षा कानून सर्वांगीण है। आज भावना दूसरी है।
सुप्रीम कोर्ट के मशहूर अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने अपने वर्चुअल संबोधन में कहा कि सरकार में पर्यावरण के प्रति न कोई समझ है और न रुचि। बिना जन सुनवाई के ऐसी योजनाएं लागू कर दीं जाती हैं। कई नियम बदल दिए गए हैं।
भारत के जल पुरुष के रूप में मशहूर राजेन्द्र सिंह राणा ने कहा कि सरकार पर्यावरण मंत्रालय खत्म करना चाहती है। नदी जोड़ने की परियोजनाओं को विशेषज्ञों ने घातक परिणाम वाला बताया है।
सुबह 9 से रात 9 बजे तक चली इस 12 घंटे की संसद में परिचय सत्र, पर्यावरण विचार एवं प्रस्ताव सत्र, ऑनलाइन सत्र, राजनीतिक सत्र, हरित संकल्प सत्र के माध्यम से 130 पर्यावरणविद और विशेषज्ञों ने अपनी बात रखी। इन सभी को पर्यावरण सांसद की उपाधि दी गयी। पर्यावरण संसद (Environment Parliament) राजनीतिक संसद की तरह ही चली, जहाँ पर्यावरण सांसदों ने बाकायदा किसी विषय पर अपना प्रस्ताव सभापति मंडल के सामने रखे। इसके बाद, उक्त प्रस्ताव पर सभी सांसदों की वोटिंग हुई और प्रस्ताव पास किए गए। प्रस्ताव पर आगामी कार्ययोजना भी तैयार की गई। इस दौरान एक स्मारिका का भी विमोचन किया गया।
पर्यावरण संस का आयोजन अमित भटनागर के नेतृत्व और शारद कुमरे के मार्गदर्शन में जन विकास संगठन, पर्यावरण बचाओ अभियान और बकस्वाहा जंगल बचाओ अभियान के बैनर तले किया गया। सभापति मंडल में देश की मशहूर पर्यावरण पैरोकार और नर्मदा बचाओ आंदोलन की कार्यकर्ता मेधा पाटेकर, भारत के वन पुरुष के रूप में मशहूर पद्मश्री पुरस्कार विजेता जादव मोलाई पाऐंग, समाजवादी नेता किसान नेता पूर्व विधायक डॉ सुनीलम, पद्म पद्मश्री पुरस्कार विजेता बाबूलाल दहिया, पर्यावरण कार्यकर्ता सुभाष पांडे मंच पर आसीन रहे।
सर्वसम्मति से पास हुए प्रस्ताव
सामाजिक कार्यकर्ता अमित भटनागर ने कहा कि इस परियोजना पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित सेंट्रल एंपावर्ड कमिटी के सुझाव को पास करने का प्रस्ताव रखा। अमित भटनागर ने प्रस्ताव से संबंधित अनेक दस्तावेज पेश करते हुए कहा कि सभापति महोदय उक्त परियोजना बहुत ही विनाशकारी परियोजना है, जिसमें बड़ी संख्या में वन, वन्य जीव और लोगों का जीवन प्रभावित हो रहा है।
पर्यावरण सांसद शरद सिंह कुमरे ने बकस्वाहा के अत्यंत समृद्ध जंगलों को महज कुछ हीरो के लिए उजाड़ने के प्रोजेक्ट को रद्द करने का प्रस्ताव रखा।
छतरपुर से संसद में शामिल हुए पर्यावरण सांसद बहादुर आदिवासी ने छतरपुर जिले में मिले शैल चित्र बुंदेलखंड में मौजूद पाषाण कालीन सभ्यता को संरक्षित कर इसे राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने भविष्य धरोहर घोषित किए जाने की आवश्यक कार्यवाही का प्रस्ताव सदन में रखा।
गुना से संसद में शामिल हुए पर्यावरण सांसद पुष्पराग शर्मा ने एनजीटी को शक्ति प्रदान करने व जिला स्तर पर गठन करने का प्रस्ताव सदन में रखा।
छिंदवाड़ा से आई पर्यावरण सांसद एडवोकेट आराधना भार्गव ने प्रदूषण बोर्ड को शक्ति प्रदान करने का प्रस्ताव सदन में रखा।
सदन में ई. आई. ए. पर्यावरण कानून को और सशक्त करने का प्रस्ताव भी रखा गया। उक्त सभी प्रस्ताव पर मौजूद 130 पर्यावरण सांसदों ने अपनी सहमति व्यक्त करते हुए सर्वसम्मति से सभी प्रस्तावों को पारित किया।
राजनीतिक सत्र में सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को उक्त पर्यावरण के मुद्दों पर अपनी बात रखने के लिए बुलाया गया था। इसमें सत्ताधारी पार्टी भाजपा का कोई प्रतिनिधि शामिल नहीं हुआ, जिस कारण प्रतिनिधि भारतीय जनता पार्टी की चिट चिपके हुए कुर्सी खाली पड़ी रही। कांग्रेस की ओर से पूर्व मंत्री व भोपाल दक्षिण पश्चिम विधानसभा के विधायक पीसी शर्मा शामिल हुए। आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पंकज सिंह, राष्ट्रीय गोंडवाना पार्टी से मोनिका मनमोहन शाह भट्टी, समाजवादी पार्टी के यश भारतीय, सपाक्स पार्टी के बक्सी सहित सभी राजनीतिक दल के प्रतिनिधियों ने पर्यावरण की क्षति को रोकने के लिए मजबूत कानून बनाए जाने व बक्सवाहा के जंगल और केन-बेतवा लिंक प्रभावित जंगलों को कटने से बचाने के साथ ही शैल चित्रों को विश्व धरोहर घोषित किए जाने की मांग का समर्थन किया। राजनीतिज्ञों का कहना था कि वे अपने स्तर से भी इन मुद्दों को उठाएंगे।
अंतिम सत्र में पर्यावरण के विनाश को रोकने व पास किये गए प्रस्तावों पर आगामी रणनीति व कार्य योजना बनाई गई। पर्यावरण को बचाने के संकल्प भी लिया गया।
पर्यावरण संसद को कई विश्वविख्यात वरिष्ठ पर्यावरणविदों ने संबोधित किया। बकस्वाहा जंगल के साथ शैलचित्रों पर भी विशेष रूप से चर्चा की।
केन-बेतवा लिंक नहीं बनने देना चाहिए
राजस्थान के अलवर के मैग्सेसे अर्वाडेड और जल पुरुष राजेंद्र सिंह राणा ने कहा कि केन-बेतवा लिंक को हमें बिल्कुल नहीं बनने देना चाहिए। बकस्वाहा आदि जंगलों में जो शैल चित्र हैं ये हमारी विरासत/हेरिटेज हैं। इनको सुरक्षित रखने के लिए हम सबको एक होकर आगे बढ़ने की जरूरत है।
सदनों में मुद्दा उठवाएं, कोर्ट अभी न जाएं
बकस्वाहा और केन-बेतवा लिंक में इतनी संख्या में पेड़ कट रहे कि लोगों को यह बताना होगा कि इसका इंपेक्ट क्या होगा। कुछ करोड़ रुपया मिल जाएगा तो क्या भला होगा। इन मुद्दों को संसद और विधान सभाओं में उठवाएं। चर्चा कराएं। कोर्ट में अभी न जाएं, बल्कि कोर्ट को पत्र भेजें।
-महेश भाई पंडया, पर्यावरण कार्यकर्ता, अहमदाबाद (गुजरात)।
पैसे के लिए पर्यावरण को हानि पहुंचाना दुखद
आरटीआई एक्टिविस्ट शैलेष गांधी ने कहा कि हमें कोई परवाह नहीं है कि ऑक्सीजन का क्या होगा। अगली पीढ़ियों की हम परवाह नहीं कर रहे। यह दुखद है। पैसे के नाम पर पर्यावरण को हानि पहुंचाकर हम कहीं नहीं पहुंचेंगे। जब विशेषज्ञ इन परियोजनाओं का विरोध कर रहे हैं तो उनकी बात सुनना चाहिए और चर्चा होनी चाहिए। पर्यावरण को जो नुकसान पहुंचेगा उसे हम ठीक नहीं कर पाएंगे। न वापस जा पाएंगे।
शैल चित्र पूरे विश्व की संपदा
मुंबई के मितुल प्रदीप ने कहा कि हम सो रहे हैं। नहीं जागे तो मनुष्य जाति का अंत सुनिश्चित है। जंगल के शैल चित्र सिर्फ हमारे देश के ही नहीं बल्कि पूरे विश्व और मानव जाति की संपदा हैं। हमें गर्व होना चाहिए कि 30-40 हजार वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों ने ये शैल चित्र बनाए थे।
जल विकास अभिकरण खुद भ्रमित
प्यासे बुंदेलखंड की प्यास केन-बेतवा लिंक कभी नहीं बुझा पाएगी। ये निश्चित है। राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण खुद इस योजना को लेकर भ्रमित है। उनके पास 15 से 18 वर्ष पुराने अभिलेख हैं। उन्हीं के अध्ययन आधार पर ये परियोजना बनाई गई है। हम इसका विरोध करते हैं।
-अमित भटनागर, सामाजिक कार्यकर्ता
आशीष ने विशेषज्ञों को बताई जमीनी हकीकत
पर्यावरण संसद में चित्रकूटधाम मंडल से आरटीआई एक्टिविस्ट और पर्यावरण कार्यकर्ता आशीष सागर दीक्षित शामिल हुए। उन्होंने बकस्वाहा जंगल और केन बेतवा लिंक परियोजना स्थलों पर अपने किए गए भ्रमण और वहां की वास्तविक स्थितियों से पर्यावरणविदों को अवगत कराया।
कार्यक्रम में डॉ रचना डेविड, जीतेन्द्र शर्मा, चंदन यादव, गौरी शंकर यादव, तुलसी आदिवासी, भगवानदास गोंड, देवेंद्र आदिवासी, राहुल अहिरवार, प्रीति खरे, वरुण, कलावती, दिव्या शर्मा, राजनंदिनी सिंह आदि का विशेष सहयोग रहा।