महोदय आप सत्ताधारी बनने के बाद क्या सिर्फ और सिर्फ लोगों के भावनाओं के साथ खेलकर राजनीति करने के अलावा! देश के असली सवालों का सामना करने की इच्छा शक्ति का कभी परिचय देंगे ?
लगता है आपके पास जनता के असली सवालों का सामना करने की इच्छा शक्ति का अभाव है ! इसलिए आज साडे सात साल से सिर्फ शहरों से लेकर अन्य जगहों के नाम बदलने की राजनीति हा शत-प्रतिशत राजनीति ! तथाकथित गोदी मिडिया की मदद लेकर नाम बदलने से लेकर किसी सिनेमा वालों की बेहूदा बातों को बार-बार दोहराने का क्या मतलब है?
नईं पीढी को महात्मा गाँधी जी से लेकर देश की आजादी के लिये लाखों लोगों ने सालो-साल जेल जाने और भगत सिंह से लेकर शिरिष कुमार तक के समस्त क्रांतिकारी शहीदों का अपमान करने की यह करतूत क्या आपको बहुत अच्छी लग रही है ? लोग देख रहे हैं ! और समझ भी रहे हैं ! और उचित समय पर इसका जवाब भी देंगे ! क्योंकि किसी के मुँह से गोडसे का महिमामंडित करने का प्रयास और अब तो देश की आजादी के पचहत्तर साल का जश्न मनाने की जगह इस तरह की बेहूदा बातों को आप कैसे बर्दाश्त कर रहे हैं ? आप देश के सबसे प्रमुख पद पर बैठे हो और आपके सामने यह फुहडपन बदस्तूर जारी है !
और थोड़ा किसिनेभी सरकार की गलत नीतियों की आलोचना करने की ! या त्रिपुरा या उलगढी जाने की कोशिश करने वाले या, उसपर कोई टिप्पणी करने वालों पर तुरंत सेडिशन अक्ट के अंतर्गत कारवाई कर रहे हैं ! इस तरह की तानाशाही हरकतों के कारण सरकार को आंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी आब्रू की भी चिंता नहीं है ! आंतरराष्ट्रीय अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मानक में आज भारत का क्या स्थान है ?
सवाल नाम बदलने की राजनीति का है ! भोपाल के हबीबगंज स्टेशन का नाम खुद प्रधानमंत्री ने आकर बदलने का कार्यक्रम किया है ! और आदिवासी राणी के नाम को देते हुए, आदिवासी अस्मिता की जोर-शोर से चर्चा की है ! और संपूर्ण तथाकथित गोदी मिडिया में इसी बात की चर्चा चल रही है ! लेकिन भारत के संविधान के अंतर्गत आदिवासीयोको सुरक्षा हेतु दिए पांचवी और छठवी अनुसूची को गैर संविधानिक बोल कर उसके अंतर्गत आदिवासीयोको दिए अधिकार खत्म कर रहे हैं ! जिस कारण आदिवासी का अस्तित्व ही खत्म होने की संभावना है ! तो जब आदिवासी ही नहीं बचेगा ! तो उनके राजा-रानीयोके नाम देकर उन्हें भ्रम में डालकर , कारपोरेट घरानों को संपूर्ण आदिवासी क्षेत्र तथाकथित खनन तथा अन्य नैसर्गिक संसाधन सोपने का काम बदस्तूर जारी है ! तो इन नामांतरो का क्या मतलब है ? इसकी चर्चा क्यों नहीं हो रही है ?
ताजा-ताजा महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिलेकी सूरजगढ पहाडीपर लोह खनिज संपदा प्रायवेट कंपनी को सौंपा गया है ! और आधीसेभी ज्यादा पहाड को नष्ट कर दिया गया है ! और हजारों आदिवासीयोके विरोध को अनदेखा कर के यह कारनामा करने वाले लोग ! आदिवासी राणी के नाम पर स्टेशन करके आदिवासीयोको झुनझुना पकडानेकी बात है ! हजारों की संख्या में आयें दिन तथाकथित विकास परियोजनाओके कारण आदिवासी विस्थापन के शिकार किए जा रहे हैं ! और उनकी राजा-रानीयोके नाम देकर पहले की सरकारोंने आदिवासीयोके लिए कुछ नहीं किया बोल रहे हैं ! हमें किसी भी सरकार का पक्ष लेने का कोई कारण नहीं है ! लेकिन आपकी पार्टी गुजरात में पच्चीस साल से भी ज्यादा समय से राज कर रही है ! और आप खुद उसके प्रमुख पद पर आधीसेभी ज्यादा समय बैठे थे ! क्या आप बतायेंगे कि आपने अपने मुख्यमंत्री के पंद्रह साल में डांग-अहवा और वर्तमान नर्मदा जिलेके आदिवासीयोको विस्थापन के शिकार करने के अलावा क्या दिया ? उल्टा उन्हें आदिवासी की जगह वनवासी और शबरी कुंभ मेले जैसे भावनाओं को भड़काने वाले मुद्दे देकर भ्रम में डालने के अलावा क्या दिया ? आज भी वह दर-दर भटक रहे हैं ! और आप उनकी अस्मिता की बात कर रहे हैं ! जबकि आदिवासी ही नहीं बचेगा तो क्या खाक अस्मिता को लेकर क्या होगा ?
आज भारत के आदिवासीयो का अनुपात हमारी जनसंख्या में सिर्फ साडेआठ से नौ प्रतिशत है ! और विकास के नाम पर हो रही योजनाओके कारण विस्थापन के शिकार पचहत्तर प्रतिशत है ! मोटा-मोटी देश के कुल आदिवासी आबादी अगर दस करोड़ है ! तो सात करोड़ से भी अधिक आदिवासी विस्थापन के शिकार है ! और आप कह रहे हैं कि, पहले की सरकारों ने आदिवासीयोके लिए कुछ नहीं किया तो ! आप नामांतरो की जगह सिर्फ आदिवासीयोको विस्थापन के शिकार करने का काम बंद कर दो ! और भारत के संविधान निर्माताओं ने आदिवासीयोके लिए किया हुआ विशेष प्रावधान पांचवी और छठवी अनुसूची को यथावत बनाएं रखिये, और उसके अनुसार आदिवासीयोके जल जंगल और जमीन को उनके इजाजत के बगैर हाँथ मत लगाओ ! तो सचमुच आपकी आदिवासीयोके प्रति सच्ची प्रतिबद्धता सिद्ध होगी !
उल्टा आप ही की पार्टी की पिछली सरकार छत्तीसगढ में थी ! तो पांचवी और छठवी अनुसूची की अनदेखी कर के समस्त अबूझमाड़ का जंगल आपके सबसे प्रिय अदानी समूह को कोयला निकालने के लिए देने का काम किया है ! और आप भाईयों और बहनों देखिए हम आदिवासीयोके अस्मिता के लिए क्या कर रहे हैं ? जैसी बात कर रहे हैं ! आपके हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी !
आपने आदिवासियों के हजारों साल से बसाहट वाले, जंगलों को बचाने की जगह उन्हें नष्ट करने का काम किया है ! और विश्व के तपमान को लेकर अभी-अभी, इंग्लैंड में संपन्न हुआ ग्लासगो संमेलन में इसिलिए ,आदिवासीयोके संबंधित कानून की जगह हस्ताक्षर करने की जगह से मुकरने वाले आदिवासी समुदाय के लिए पिछले सरकारोंने क्या किया है यह पुछ रहे हैं ?
और यह बात आप एक महिने पहले की घटना आंतरराष्ट्रीय स्तर पर करने के बावजूद, आदिवासीयोके खिलाफ करके पिछ्ली सरकारों को कोसने की आपकी हिम्मत को क्या कहेंगे ? शायद आप खुद को छोड़ कर समस्त विश्व के लोगों को मुर्ख समझकर चल रहे हैं ! आदिवासियों के जंगलों को बचाने की जगह उन्हें नष्ट करने वाले के मुँह आदिवासीयोके अस्मिता की बात शोभा नहीं देती है ! हमारे मराठी संत शिरोमणि तुकाराम महाराज का एक अभंग है! सत्य असत्याशी मन केले ग्वाही, चित्ती असु द्दावे समाधान ! (हमारे अपने ही मनमें सत्य और असत्यके साथ अपने आप ही तय करें और चित्त में समाधान पाईये ) वैसे तो आपको मराठी भाषा उम्र के सतरा साल के थे ! तब से संघ स्वयंसेवक होने के नाते आती है ! वह बात अलग है ! तो भी मैंने अपने समझ से अनुवाद दिया है !
किसानों से लेकर मजदूर आदिवासी, दलितों की समस्याओं को सुलझाने की जगह राणी के नाम देकर ! डॉ बाबा साहब अंबेडकर का स्मारक या भारत के इतिहास का सबसे बड़ा किसानों का आंदोलन आप ही के गृह राज्य गुजरात के बारडोली सत्याग्रह से बैरिस्टर वल्लभ भाई पटेल को सरदार की उपाधि आजसे सौ साल पहले के इतिहास प्रसिद्ध किसानों के आंदोलन के कारण मिलीं है ! और हजारों करोड़ रुपये का खर्चा करके उसी जगह पर जहाँ के किसान आज भी दर दर की ठोकरे खा रहे हैं ! उनका स्मारक बनवाकर लाखो किसानो को उजाड़नेका काम सरदार पटेल का अपमान करना है !
आज भारत के किसी भी आंदोलन के इतिहास में एक साल की उम्र का आंदोलन शायद ही कोई होगा ! जो आज राजधानी के चारों ओर से घेर कर जारी है ! और आज सरदार पटेल जीवित होते तो उन्होंने इन किसानों के आंदोलन का नेतृत्व किया होता ! लेकिन आपको लगता है कि ! भारत की समस्त जनता मूर्ख है ! और नाम बदलकर बडे-बडे स्मारक बनवाकर ,लोगों को भावनात्मक रूप से बरगलाकर ,कॉर्पोरेट घरानोकी तिजोरियां भरने का काम, आपके कंट्रोल के गोदी मिडिया की मदद से कर लोगे, तो यह गलतफहमी है ! क्योंकि लोगों को एक बार मूर्ख बनाया जा सकता है लेकिन बार-बार नहीं ?
जिस तरह से देश का किसान जाग उठा है ! वैसा ही दलित और आदिवासी राणी-राजाओं के नाम देने की राजनीतिक चाल से सचेत हो चुके हैं ! और आने वाले समय में आपको जल्द ही पता चल जाएगा कि ,भावनाओं को भड़काने वाले मुद्दे देकर, भ्रम में डालने के हथकंडे सौ साल पहले जर्मनी तथा इटली में किए गए हैं ! और आज वहां उन तानाशाहो के नाम तक लेने की मनाही है ! और यही हमारे देश में भी हो रहा है ! भले आप स्टेशनों के जगह भारत देश का भी नाम बदलने की राजनीति करते रहों ! लेकिन लोग इसका हिसाब-किताब जरूर करेंगे इतना पक्का ! हालाँकि आपका इतिहास सबसे बदनामी वाला सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति काही होने के कारण उसकी, कुछ शुरूआत आपके दल द्वारा महाराष्ट्र में नांदेड, मालेगाँव और अमरावती में शुरू कीं गई है ! लेकिन वह भी अब घिसे-पिटे तरीके लोगों की समझ में आ गए हैं ! इसलिए लोगों की असली समस्याओके उपर कुछ सार्थक करने की सद्भावना आपके मनमें पैदा हो यही प्रार्थना कर के मै मेरा खुला पत्र समाप्त करता हूँ !