उर्दू और अदब को सहेजने वाले एक विभाग मप्र उर्दू अकादमी का 44 बरस का वजूद एक अफसर की ज़िद और उसके व्यक्तिगत इरादों ने खत्म करने की कगार पर खड़ा कर दिया है।अकैडमी को एक परिषद या प्रभाग के रूप में आकार देने की फाइलें पिछले कई दिनों से वल्लभ भवन में दौड़ रही थीं, जिनको अंतिम रूप दे दिया गया है। इसके विधिवत आदेश जल्दी ही जारी होने वाले हैं। इस आदेश के बाद मप्र उर्दू अकैडमी पूरे हिन्दुस्तान की पहली अकादमी कहलाएगी, जिसका वजूद किसी एक छोटी शाखा के तौर पर जाना जाएगा।
जानकारी के मुताबिक करीब 44 बरस पहले वर्ष 1976 में मप्र उर्दू अकैडमी वजूद में आई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने उर्दू भाषा के विकास और इससे जुड़े लोगों की भलाई के लिए देशभर में उर्दू अकादमियों का गठन किया था। इसी दौरान मप्र को भी एक अकादमी नसीब हुई थी। शुरूआती दौर में शिक्षा विभाग के अधीन काम करने वाली इस अकैडमी को अल्पसंख्यक और संस्कृति विभाग सहेजते रहे हैं। संस्कृति विभाग के अधीन भेजते हुए इस बात की दलील दी गई थी कि यहां मौजूद बड़े बजट के साथ यहां की गतिविधियों को संचालित करना आसान होगा।
लेकिन इस दौरान इस बात को कहीं दबाए रखा गया था कि अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के अधीन रहते हुए भी इसके लिए जरूरी बजट की न तो कोई कमी थी और न ही विभाग के ऊपर कोई अतिरिक्त प्रभार था। उर्दू अकैडमी की व्यवस्थाओं के लिए एक अलग बजट मौजूद रहता था, जिससे यहां की व्यवस्थाओं और जरूरतों को पूरा किया जाता था। संस्कृति विभाग के अधीन जाने के बाद अकादमी के खाके में बदलाव की शुरूआत हुई और हद यहां आकर खत्म हुआ कि अब यह विभाग की एक छोटी के एक शाखा के रूप में अपनी पहचान बनाने पर मजबूर होने वाली है।
यह हो रहा बदलाव
सूत्रों का कहना है कि पिछले कई दिनों से वल्लभ भवन में दौड़ रही फाईल पर अनुमतियों, सहमतियों और मंजूरियों की अंतिम मोहर लग चुकी है। चंद दिनों में आने वाले फैसले में इस बात के आदेश जारी होने वाले हैं कि अब उर्दू अकैडमी संस्कृति विभाग का एक छोटा प्रभाग होगी। जिसकी व्यवस्था संभालने के लिए किसी अध्यक्ष और सचिव की जरूरत नहीं होगी। बल्कि यह काम महज एक डायरेक्टर के जिम्मे होगा।
इसलिए हुई कूटरचना
सूत्रों का कहना है कि मप्र उर्दू अकादमी में लंबे समय तक सेवाएं देने वाली एक शिक्षिका को कुछ समय पहले यहां से विस्थापित कर दिया गया था। तब से अब तक यहां की व्यवस्था प्रभारी सचिवों के जिम्मे चल रही थी। बताया जा रहा है कि लंबे समय तक शिक्षण काम से दूर रहते हुए अफसरी का चस्का पाल चुकीं इन शिक्षिका को ऐनकेन प्रकारेण अकादमी में वापसी करना थी। इसके लिए भी कई वजह हैं, जिनकी खातिर यह शिक्षिका अकादमी में बने रहना चाहती हैं। सूत्रों का कहना है इन्हीं के प्रयासों और लंबी मशक्कत से उर्दू अकादमी को नया रूप मिलने वाला है।
खान अशु, भोपाल