भोपाल। लॉक डाउन और कफ्र्यू के बीच के सैद्धांतिक अंतर को न समझ पाने का नतीजा है पुलिस का क्रूर और दमनपूर्ण व्यवहार। नियमों का पालन कराने की जा रही ज्यादतियों पर पुलिस को बार-बार बैक फुट पर आना पड़ रहा है, लेकिन गलती करने वालों को सजा न मिलने का असर ये है कि गलतियां नए रूप लेकर दोबारा सामने आ रही हैं।
मामला एक : काजी कैंप
रात्रिकालीन कफ्र्यू के दौरान देर रात चल रही चाय दुकान को बंद कराने पहुंचे पुलिसकर्मियों ने दुकान संचालक के परिवार की महिलाओं की बेरहमी से पिटाई कर दी। इस दौरान दुकान और घर के अंदर भारी तोडफ़ोड़ भी की गई। कफ्र्यू के दौरान दुकान खोले रखने वाले दुकानदार पर कार्यवाही तक मामला मुनासिब था, लेकिन इस दौरान महिलाओं के साथ मारपीट का मामला तूल पकड़ गया। विधायक आरिफ अकील से लेकर विभिन्न आयोगों तक ने इस मामले पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। नतीजा यह हुआ कि पुलिस जहां पहले पीडि़त महिलाओं के खिलाफ भी मामला बनाने की तैयारी में थी, वहीं उसे कदम पीछे सरका कर अपनी करनी पर अफसोस जाहिर करना पड़ गया। मामले के दोषी पुलिसकर्मियों पर किसी तरह की कार्यवाही करने की बजाए पुलिस प्रशासन ने इस कहानी को आगे बढ़ाया कि दुकान बंद कराने गए पुलिसकर्मियों पर महिलाओं ने हमला किया था, जिससे वे घायल हो गए। इसी बात को लेकर पुलिस ने यह कार्यवाही की है। लेकिन इस बीच इस बात को दरकिनार कर दिया गया कि महिलाओं पर कार्यवाही करने और उनसे मारपीट करने का अधिकार पुरुष पुलिसकर्मियों को किसने दिया। इस कार्यवाही के लिए महिला पुलिस को क्यों नहीं बुलाया गया? हालांकि बाद में मामले की जांच एक महिला पुलिस अधिकारी को सौंपकर मामले को रफादफा कर दिया गया है।
मामला दो : कोलार
अपनी माता का कोविड टेस्ट कराने जा रहे एक युवक को पुलिस ने चैकिंग के दौरान कोलार थाना क्षेत्र के अनुपम तिराहे पर रोक लिया। इस दौरान युवक के साथ आतंकियों तरह व्यवहार करते हुए उसके साथ मारपीट की गई और जबरिया डायल-100 में बैठाकर उसे थाने ले जाया गया, उसके खिलाफ धारा 188 की कार्यवाही करने की तैयारी भी की गई। इस पूरी कार्यवाही के दौरान युवक की बीमार माता पुलिस के हाथ-पैर जोड़ती रही, मिन्नतें करती रही और अपने बेटे को छोड़ देने की गुहार पुलिस से लगाती रही। सोशल मीडिया पर मामले का वीडियो वायरल हो जाने के बाद पुलिस को अपनी गलती का अहसास हुआ। उसने शाम होने से पहले अपने अधिकृत प्रेसनोट में इस बात को स्वीकार किया कि बैरिकेटिंग के दौरान युवक को रोका गया था। लेकिन उसके द्वारा पुलिस से बदसुलूकी करने पर उसे थाने ले जाया गया था। पुलिस ने किसी भी कार्यवाही के किए जाने से भी इंकार करने की घोषणा अपने प्रेसनोट में कर दी।
मामला तीन : भानपुर ब्रिज
अपनी बीवी के जेवर गिरवी रखकर बीमारों की सेवा करने के लिए निकले ऑटो चालक को छोला पुलिस ने भानपुर ब्रिज के पास रोका। इस दौरान ऑटो चालक जावेद अपने ऑटो में बनाए गए ऑक्सीजनयुक्त एम्बूलेंस से किसी मरीज को मदद पहुंचाने जा रहा था। पुलिस कार्यवाही में हुई देरी का नतीजा यह हुआ कि जावेद को मदद के लिए बुलाने वाले मरीज की जान चली गई। इस मामले को लेकर थाना प्रभारी द्वारा पहले यह दलील दी जा रही थी कि आटो चालक के पास इमरजेंसी सेवा के लिए कोई दस्तावेज नहीं था और उसके आटो पर भी इस तरह का कोई पास चस्पा नहीं था, जिसके चलते उसपर कार्यवाही की गई। पिछले कई दिनों से ऑटो एम्बूलेंस के जरिये लोगों को मदद पहुंचा रहे जावेद के साथ हुई इस पुलिस कार्यवाही की खबरें सोशल मीडिया पर लहराईं तो शाम को छोला थाना ने जावेद पर किसी तरह की कार्यवाही न किए जाने का ऐलान कर दिया। अपने अधिकृत प्रेसनोट में उसने स्पष्ट किया कि ऑटो चालक को थाने ले जाया गया था, लेकिन बाद में उसे बिना कार्यवाही के ही छोड़ दिया गया है। यह पूरा मामला होने के बाद डीआईजी इरशाद वली और कलेक्टर अविनाश लावनिया ने जावेद को विशेष के लिए अधिकार पत्र भी जारी कर दिया है।
इसलिए हो रही गल्तियां
कोरोना काल की शुरूआत के दौर में पहली बार लॉक डाउन शब्द चर्चाओं में आया। इस दौरान लगाई जाने वाली पाबंदियां कमोबेश कफ्र्यू जैसी ही हैं। व्यवस्था संभालने के लिए पुलिस को जिम्मेदारी दी गई। इसी के चलते पुलिसकर्मियों ने कफ्र्यू और लॉक डाउन के अंतर को ठीक से अध्ययन नहीं किया। शुरूआती दौर में उन्होंने लोगों के साथ कफ्र्यू जैसा व्यवहार ही किया और उनके साथ बदसुलूकी के साथ मारपीट करने में भी कोताही नहीं की। लेकिन इस तरह के मामले लगातार बढऩे लगे तो विरोध के स्वर उठे और मामले मानवाधिकार आयोग जैसी संस्थाओं तक जाने लगे। जिसके बाद पुलिस ने अपने व्यवहार को शिथिल करते हुए मारपीट के हालात से खुद को पीछे करना शुरू कर दिया है। इसके बाद भी कई मामले ऐसे होते जा रहे हैं, जिनसे न सिर्फ पुलिस की छवि खराब हुई है, बल्कि लोगों का पुलिस के प्रति रोष भी बढऩे लगा है।
कार्यवाही से यू-टर्न, दोषियों पर कार्यवाही नहीं
इधर राजधानी भोपाल में हुए कुछ मामलों में पुलिस ने अपनी गलती स्वीकार करते हुए कार्यवाही से यू-टर्न ले लिया है लेकिन इन गल्तियों के लिए दोषी पुलिसकर्मियों पर किसी तरह की विभागीय कार्यवाही नहीं की गई है। इंदौर में एक ऑटो चालक के साथ मारपीट के आरोपी पुलिसकर्मियों को जिस तरह लाइन अटैच कर दंडित किया गया था, वैसी कार्यवाही राजधानी में किसी पर न हो पाना भी यहां पुलिसकर्मियों द्वारा पहले गलती करने और बाद में सॉरी कह देने जैसे हालात बने हुए हैं।
इस मामले डीआईजी इरशाद वली का कहना है कि पुलिस सतत काम का प्रेशर है। कोरोना कफ्र्यू की पाबंदियों को लोग तोड़ रहे हैं, कार्यवाही किए जाने पर कहानी को अलग तरह से पेश कर अपना पक्ष रखने लगे हैं। इसके बाद भी जहां इस बात का अहसास हुआ कि पुलिस से गलती हुई है, उसके सुधार की कोशिश की गई है। कुछ गंभीर मामलों में गलती करने वाले पुलिसकर्मियों को दंडित भी किया गया है।