साथियों आज भारत में स्री शिक्षा की शुरुआत करने वाली सावित्रीबाई फुले की 190 वी जयंती पर विनम्र अभिवादन ! लेकिन पुणे के पेशवा ओकी विलक्षण विषमता मुलक व्यवस्था के माहौल में जन्म लेने वाली सावित्रीबाई और उनके जीवन साथी जो 1827 मे पैदा हुऐ ज्योतिबा यह स्री, शूद्र और पिछड़े वर्ग के लोगों को तथाकथित हिंदू कठमुल्लापन के कारण और विशेष रूप से मनुस्मृति जैसे कालबाह्य ग्रंथ की आडमे जो शोषणकारी व्यवस्था जारी थी उसके खिलाफ आशिया खंड में ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले के साथ जद्दो-जहद कर रहे थे और लगभग उसी समय यूरोप में औद्योगिक क्रांति के बाद जो शोषणकारी व्यवस्था जारी थी उसे लेकर कार्ल मार्क्स और उनके सहयोगी फ्रेडरिक एंजेल्स जद्दो-जहद कर रहे थे !
सावित्री के साथ ज्योतिबा का ब्याह हुआ उस समय सावित्रीबाई अशिक्षित थी ! यह देखकर ज्योतिबा ने सबसे पहले उन्हें खुद पढानेका काम किया है और ! उसके पस्चात सावित्रीबाई फुले के साथ फातिमा शेख नाम की ज्योतिबा के मुस्लिम मित्र उस्मान शेख की बहन फातिमा के साथ प्रथमं पाठशाला पुणे जैसे सनातनी योके गढमे शुरू किया है ! वह 1 जनवरी 1848 की बात है ! जबकि उसीके आसपास कार्ल मार्क्स की ऐतिहासिक किताब कम्युनिस्ट मॅनिफॅस्टो का लेखन हुआ था !
पुणे के सनातनी ब्राम्हण सावित्रीबाई फुले जब घर से पाठशाला जाती थी तो यही लोग उनके उपर किचड, गोबर तथा कंकडोकी बौछार करते थे ! इसलिये वह अपने साथ थैलेमे अलग साडी लेकर जाति थी ताकि पाठशाला के लडकियों को पढाई शुरू करने के पहले गंदगी से लदी हुई साडी को बदलने के बाद पढाई शुरू करती थी ! उनके सहनशीलता और महिला शिक्षा का काम करने की लगन के कारण ही यह संभव है !
यह बात सोचकर मेरे शरीर पर रौंगटे खड़े हो रहे हैं ! और सावित्रीबाई की हिम्मत और महिला शिक्षा का काम करने की लगन से मै अभिभूत हो जाता हूँ ! और वह भी आजसे दो सौ साल पहले के समय पैदा हुए इन महान हस्तियों के कारण ! आज भारत में स्री शिक्षा का वर्तमान स्वरूप प्रदान करने के लिए इन्होंने कितना बडा योगदान दिया है वह स्मरण करने का आज दिन है ! 190 वी जयंती !
सावित्रीबाई फुले ने 1848 के एक जनवरी याने वह खुद सत्रह साल की तरुणी थी ! तब भारत की पहली महिला पाठशाला को शुरू करने का एतिहासिक काम किया है !
शादी के बाद हर लडकी का अपना सपना होता है कि मेरे बच्चे और मेरा संसार सुख चैन से जीने की ललक एक स्वाभाविक बात है ! लेकिन ज्योतिबा के सामाजिक काम मे कंधे से कंधा मिला कर स्त्री शिक्षा के अलावा विधवाओं के लिए आश्रम, ऊनके केस नहीं काटे जाने चाहिए इसलिए नाईयोंकि हड़ताल और कुछ विधवाओं के बच्चे थे तो उनके लालन पालन का काम उसमें से ही एक विधवा के बेटे को उन्होंने गोद लिया था और उसे डॉक्टर की पढाई करने के बाद प्लेग की बिमारी पुणे में फैली 1897 तो उसके मदद से प्लेगग्रस्त लोगों के इलाज का काम! उन्होंने जो काम किया है और ज्योतिबा का 1890 मे निधन होने के बाद भी सावित्रीबाई ने उनके अधुरे काम को पूरा करने के लिए विशेष रूप से अपने आप को खपाकर पहली महिला पाठशाला, पहली अछूतों के लिए 1851 याने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 के भी दस साल पहले की बात है कि एक तरफ पेशवा खुद उस युद्ध में शामिल होने की तैयारियों मे व्यस्त थे !
लेकिन सामाजिक स्तर पर की गुलामी से आजादी दिलाने के लिए एक लडाई उन्ही पेशवाओ की राजधानी पुणे में ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले के साथ जद्दो-जहद कर रहे थे !
अभी हम गत एक साल से एकदम नई बिमारी! कोरोनामे सोशल डिस्टेंसिग शब्द लगातार सुन रहे हैं ! और बिल्कुल आजसे सव्वासौ साल पहले 1897 मे प्लेग नाम की बिमारी पुणे में फैली हुई थी!और सावित्रीबाई ने अपने डॉक्टर पुत्र को विशेष रूप से उस बिमारी मे काम करने के लिए फौज से छुट्टी लेकर बुला लिया था ! और वर्तमान हडपसर के पास दवाखाने की शुरुआत करते हुए प्लेग के मरीजों की सेवा शुरू की थी ! और उसी बीमारी से ग्रस्त एक दलित लडके को अपनी पीठ पर लादकर सावित्रीबाई अपने बेटे के दवाखानेमे लेकर आई थी ! और उसके बाद वह भी उसी बीमारी से ग्रस्त होकर 10 मार्च 1897 के दिन इस दुनिया को विदा करने वाली सावित्रीबाई फुले हम पीठ पर अपने बेटे को लादकर लक्ष्मी बाई राणी के इतिहास से भलीभांति परिचित हैं ! लेकिन एक प्लेग पीडित दलित बच्चोको अपने पिठपर लादकर प्लेग की युद्ध जैसी स्थिति में खुद ही उस बिमारी की शिकार होती है और हमे उनके शहादत को नहीं भूलना चाहिए !
और यही बात डॉ बाबा साहेब अंबेडकर जी को भी हम लोग नहीं समझ पाते कि पहले राजनीतिक आजादी हालांकी यह विवाद अंग्रेजी शासन के समय चरम सीमा पर जारी था ! लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और आगरकर और सबसे बडी बात महात्मा ज्योंतिबा फूलेके बीच में यह विवाद सामाजिक आजादी !
क्योंकि मराठी में एक कहावत है कि जावे त्याच्या वंशा तेव्हा कळे ! मतलब आप खुद जबतक उस जाति संप्रदाय में पैदा नहीं होते तबतक आप उसके दुःख, दर्द, कष्टों और पीडा को नहीं समझ सकते ! उदाहरण के लिए विशेष रूप से महिला, दलित हो या आदिवासी और अब अल्प संख्यक समुदाय के लोगों को भी इसमें शामिल करना होगा !
और यह बात बिल्कुल सही है कि सबसे बड़ी आबादी जाति व्यवस्था के कारण भारत की गुलामी और धर्मांतरण का रहस्य छिपा हुआ है ! शक, हूँण,कूषणोसे लेकर मंगोलिया से आये मोगल हो या अफगानिस्तान के, इराणके लोगों से लेकर सत्रहवीं शताब्दी में आये पोर्तूगिज, डच,फ्रेंच और अंग्रेजी हुकूमत के लिए काफी हदतक हमारी जाति व्यवस्था भी जिम्मेदार है !
क्योंकि वर्तमान समय में जो भी कुछ सत्ताधारी सामान्य लोगों के हिस्से में आते थे उनकी जुल्मी हुकूमत के कारण वह लोग उस राज्य के प्रति कभी भी अपने वफादार होने की संभावना नहीं के बराबर होती है ! और आने वाले नये आक्रमक के बाद शायद हमें कुछ राहत मिलेगी इस आशा में बहुजन समाज के लोग उदासीन रहे होंगे!और तथाकथित हिंदू कठमुल्लापन और मनुस्मृति के अनुसार क्षत्रियों के अलावा और जाति के लोगों को शस्त्र धारण करने की मनाहीभी थी! जैसे अध्ययन की भी मनाही थी जैसे मंदिर में प्रवेश करने की मनाही थी और पदपदपर जो अपमानित किया जाता था कमर पर झाडू बांध कर चलना छातीपर मटका बांधने जैसी घृणास्पद प्रथाओं और बेतहाशा मेहनत करवाने के बाद भी उन्हें पेट भर खाना भी नसीब नहीं होता था ! आज भी बहुत बदल गया है ऐसा नहीं लेकिन यह दो तिनसौ और उसके भी पहले की स्थिति है जिसमें सतत गैरबराबरी चलते आ रही है ! और सामाजिक अन्याय भी !
तो वह समाज भला उस समय चल रही राजव्यवस्था के विरुद्ध ना हो तो आश्चर्य की बात होगी और इसिलिए भारत के उपर हजारों सालों से जो आक्रमणकारी कुछ लोगों द्वारा राज्य किया जाने का सिलसिला लगातार जारी है !
वजह हमारी जाति व्यवस्था भी जिम्मेदार है ! क्योंकि अपमानित समाज अपने खुद के अस्तित्व की लडाई में ही उलझ कर रहे हैं ! और राजाओं की आपसी लडाई में बहुजन समाज के लोग बिल्कुल चुप या उदासीन रहे होंगे !
इसलिए भारत गौरव की कविताएं, कहानियाँ सुनने, पढने के लिए तो बहुत ही अच्छा लगता है लेकिन यह सब भरे पेटके सवर्ण-भद्र समाज के लोगों तक हमारे देश के दलित, आदिवासी, महिलाऐ और अब कुछ समय से चल रहे धार्मिक आधार पर सांप्रदायिकध्रुवीकरण के कारण अल्प संख्यक समुदाय के लोगों को भी इसमें शामिल करना होगा !
और यह बात हमारे देश के सभी क्षेत्रों में समय समय पर पैदा हुए सामाजिक क्रांति के लिए विशेष रूप से ज्योतिबा-सावित्रीबाई, डॉ बाबा साहेब अंबेडकर जी को भी हम लोग नहीं समझ पाते कि 1857 का प्रथम संग्राम के समय ज्योतिबा गिनकर 30 साल के उम्र के थे ! और सावित्रीबाई 27 साल की ! लेकिन उनके लिए विशेष रूप से पुणे के सनातनी पेशवाओकी विलक्षण विषमता मुलक व्यवस्था के खिलाफ लडाई करना ज्यादा महत्वपूर्ण बात थी ! और वही बात डॉ बाबा साहेब अंबेडकर जी को भी हम लोगों मेंसे कुछ लोगों को लगता है कि वह स्वयं स्वतंत्रता आंदोलन के लिए क्या काम किये हैं ? उन्होंने अंग्रेजी राज के लिए लडाई करने वाले महार रेजिमेंट द्वारा की गई भीमा कोरेगाव की लडाई के जीतने का 1 जनवरी 1818 की लडाई अंग्रेजोंके और पेशवा के खिलाफ हुआ युद्ध ! का विजय दिवस मनाने की शुरुआत की है !
अस्पृशता की गुलामी से आजादी दिलाने के लिए उन्होंने अपने जीवन का बेहतरीन समय दिया है ! चाहते तो खुद इतने उच्च कोटि की शिक्षा के बाद कोई भी बडी नौकरी या पदोपर जाकर सुख का जीवन जी सकते थे लेकिन उनके 66 साल के जीवन में के शुरू के पढाई के लिए व्यतीत पच्चीस साल का समय छोड़ कर बचे हुए चालीस साल की रातदिन के मेहनत से आज कुछ हद तक हा सिर्फ कुछ हदतक! क्योंकि आज भी हाथरस, बलरामपुर, उन्नावकि घटनाओं को देखकर लगता नहीं कि महात्मा ज्योतिबा-सावित्रीबाई और उनके पस्चात डॉ बाबा साहेब अंबेडकर ज्योतिबा का निधन के 28 ननवंबर 1889 और 14अप्रैल 1890 के दिन बाबा साहेब अंबेडकर पैदा हुए !
चंद दिनों के भीतर बाबासाहब अंबेडकर का इस दुनिया में आगमन हुआ है ! और वह लडाई अभी भी बहुत बाकी है आज भी भारत में हर सात मिनट में एक महिला अत्यचार की शिकार होती है और उसमें भी दलितों की महिला को लेकर ज्यादा अत्याचार हो रहे हैं !
इसलिए सावित्रीबाई के 190 वी जयंती के बहाने महिलाओ पर हो रहे अत्याचार आज भी लडकी का जन्म हुआ तो मातम भरी खामोशी उस परिवार मे दिखती है और वह पैदा होने के बाद उसके खाने पीने से लेकर पढाई तक भेदभाव घर के अंदर ही हो रहा है और वह जबतक बदस्तूर जारी है तब तक सही मायने मे सावित्रीबाई फुले के साथ फातिमा शेख और रूकिया बेगम शेखावत ने शुरू किया हुआ महिला सक्षम का काम बहुत बहुत बाकी है आज के दिन यही नये संकल्प लें कि कमसेकम हम अपने खुद के घर में लडका-लडकी मे किसी भी तरह के भेदभाव से मुक्त होकर दोनों को एक जैसे ही फलने-फूलने के लिए विशेष रूप से अच्छा सहयोग करेंगे !
डॉ सुरेश खैरनार 3 जनवरी 2021 ,नागपुर