साथियो हम आज 73 वा प्रजासत्ताक दिवस मना रहे है ! सच मुच हमारा प्रजासत्ताक सुरक्षित है ? गत आठ साल से भी ज्यादा समय से हमारा प्रजासत्ताक संकट के दौर से गुजर रहा है वर्तमान सरकार के प्रथम बार मई 2014 मे कार्यभार संभालने के दुसरे दिंनसे प्रजासत्ताककी कसौटी की घडी शुरु हो गई है ! जो थमनेका नाम नही ले रही है !
सबसे पहले योजना आयोगको निति (अनिती)आयोग घोषित किया गया ! उसके पस्चात UGC पर गाज गिरी JNU जो हमारे देश में सबसे बड़ी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की हिमायत करनेकी परंपरा वाली जगहको ! देशद्रोहका अड्डा बताकर, टुकड़े – टुकड़े गैंग और अन्य गालीबकना के काम शुरु कर दिया ! कोर्ट ने खुद यह सब झूठ था यह कहा है ! लेकीन कूछ विशेष बच्चोको लक्ष करके उनके बदनामीकी मुहिम चलाई गई है !
उसी तरह से हैदराबाद की सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी के दलित युवा रोहित वेमुलाको जानसे हाथ धोना पड़ा ! उसितरह जे एन यू बायोटेक्नॉलॉजी विषयके छात्र नजीब माही छात्रावास से आजभी गायब है ! I IT Chennai के अंम्बेडकर स्टडी सर्कल को बैन करने वाली घटना हमारे सविंधान ने दी हुई अभिव्यक्तिकी स्वतंत्रता परका हमला है ! मिडिया संस्थाओं पर कब्जा करने की बात अलग है ! जो आज गोदी मिडिया के नाम से जाना जाता है !
फिर UGC, NCERT ICSR, ICSR, ICHR IIT,IIM तथा पुणेकी फिल्म इंस्टिट्यूट तथा देशकी सभि महत्वपूर्ण संस्थाओ मे नियोजित तरीके से संघ के एक से एकदम दकियनूसी तथा गैरअकादमिक लोगोको इन सस्थाओ के प्रमुख पदोपर बैठानेकी शुरुआत करके गैर अकादमीक काम करने की कोशिश कर रहे हैं ! फिर वह रविंद्रनाथ टागौर द्वारा सव्वा सौ साल पहले शुरूआत की गई विश्वभारती हो या देश की अन्य सेंट्रल यूनिवर्सिटी हो ! सभी जगहों पर एक से बढ़कर एक संघी लोगों को व्हाइस चांसलर या प्रमुख पदाधिकारी बनाकर भेजा गया है ! और यह लोग संघ के तय अजेंडे के अनुसार !
सिलाबस बादलनेसे लेकर जाति धर्म के आधार पर काम कर रहे हैं ! और उसी जाति व्यवस्था के खिलाफ पूरी जिंदगी खपाने वाले आम्बेडकर के बडे से बडे स्मारकोकी घोषणाओं की भरमार कराकर ऊस विषयसे ध्यान हटाकर बाटो और राज करो निती के साथ सांप्रदायिकता और जातीयवादी आधार पर विद्वेष फैला रहे हैं !
उसि तरह सायंस कांग्रेस जैसे जगहोमे जाकर गणपति यह हमारे देश का सबसे पुराना प्ल्सटिक सर्जरी की मिसाल है बतना ! तो भाई इतनाही था तो गणपति का अपना मुह क्यो नही लगवाएं ? एक हाथी के बच्चेकी जान क्यो लेनी पड़ती है ? वैसेही गायके गोबरसे लेकर पेशाबमे क्या क्या तत्व है ? इसका माहिमामण्डन यह हो गई अकादमिक बाते !
अब हमारे प्रजातंत्र के चार खंबे संसद,अभिव्यक्तिकी आजादी, न्यायपालिका और कार्यपालिका इन चारो खंबोको देखनेसे लगता है कि ! चारो के चारो चरमरा रहे हैं ! पहला क्रम से शुरु करते हैं ! भारतीय संसदीय इतिहास में पहली बार संसदका कार्यकाल सबसे कम कर दिया गया हैं ! इसके अलावा सत्ताधारी दल की दादागीरी मे ही पूरी कारवाई होती है ! कार्यपालक संस्थाओ को तो वर्तमान सरकार ने ईडी सीबीआई एन आई ए राॅ के इशारोपर नचाते जा रहे हैं ! सी बी आई का उदहारण तो अभि जारी है ! क्योंकि पांच राज्यों में चुनाव के दौरान ही विरोधी दलों के नेताओं के घरों पर रेड डालने का काम शुरू है !
न्यायपलिकाका क्या कहना भारतीय न्यायिक व्यवस्था में पहली बार चार सिटींग जजेस अपने सरकारी आवास पर पत्रपरिषदमे सारकार की न्ययालय के रोजके कामकाज में दखलंदाजी करने की बात करे है ! 72 साल पहले से हमारा प्रजातंत्र शुरु है ! हमने 1975 में आपातकाल का समय देखा है ! लेकीन इस तरह अघोषित आपातकाल और अघोषित सेंसरशिप ! आज पुनः देखने को मिल रही है !
1975 मे बकायदा घोषित कर दिया गया था ! अभि तो खुलकर वह भी संघ परिवारके गुंडे आयेदिन जो नंगा नाच कर रहे हैं ! वह आपात्काल को भी मात दे रहे हैं ! क्योकी कॉंग्रेस कोइ केडरबेस पार्टी नही हैं ! इसलिये सरकारी नौकरी करने वाले लोगों की मदद से आपात्काल लागू करने की कोशिश हुई ! यहा तो संघ के गुंडे हर जगह मौजूद है ! इसलिये यह हिटलर-मुसोलिनी की तर्जपर फासिस्ट तरीकेसे चला रहे हैं ! चवथा मुद्दा अभिव्यक्तिकी आजादीका ! आज बिरले ही अखबार या चैनल है ! जो स्वतंत्र रूप से काम कर पा रहे हैं ! कई वरिष्ठ पत्रकार कहते रहते है ! की सरकारके बारेमें थोडा भी आलोचना या टिका टिप्पणियाँ वाला लिखा या टी वी पर कूछ दीया तो ! सीधा पी एम हाऊस या ऑफ़िस से फोन आ जाता है !
पुरे देश में एक भय का माहोल जो बन गया है ! अगर हमारे प्रजातंत्र को बचाना है ! तो तुरंत आपसी मतभेदों को भूलकर इस स्तिथि को बदलने के लिए मिलकर प्रयास करना चाहिए ! कमसे कम जिन मुद्दों के उपर सहमति हो सकती है ! उनपर सबने मिलकर एकजुट होकर फासिवादी ताकतोको पराजित करनेके लिये ईकठ्ठा होना चाहिये !
अन्यथा डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी के आजही के दिन लेकिन 73 साल पहले के भाषण जो उन्होंने संविधान सभा में संविधान सौपने के समय 26 जनवरी 1950 के दिन दिया था ! “26 जनवरी 1950 के दिन भारत प्रजासत्ताक की शुरुआत करने जा रहा है ! लेकिन हमारे स्वतंत्रता का क्या ? भारत अपने स्वतंत्रता को अक्षुण्ण बनाये रखेगा या फिर से गवा देगा ? यह शंका पुन:-पुन: मेरे मन में आने की वजह, हम इसके पहले भी आजाद रहे है ! लेकिन हमने अपने देश की स्वतंत्रता गंवाई है ! और उसके कारण हमारे अपने ही बंधुओं की गद्दारी के कारण हमारी स्वतंत्रता गंवाई है ! इस बात को सोचकर मैं बेचैन हो जाता हूँ ! मुहंमद बीन कासीमने सिंध के उपर हमला किया था तो सिंध के राजा के सेनापति ने मोहम्मद बीन कासीमसे पैसे लेकर, दहार राजा के तरफसे लढने के बजाए मोहम्मद बीन कासीमका साथ दिया ! उसी तरह से पृथ्वीराज चव्हाण के खिलाफ लड़ाई करने के लिए मुहम्मद घोरी को पृथ्वीराज चव्हाण के खिलाफ लड़ाई करने के लिए आमंत्रित किया ! वह जयचंद राठौर ही था ! और अपने तथा सोळंकी राजा को मुहम्मद घोरी के साथ देने के लिए वादा किया ! जब छत्रपति शिवाजी महाराज मुघलो के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे ! तो उस समय कितने मराठा सरदार और जहागिरदार और राजपूत राजे लोक मुघलो की तरफ से लड रहे थे ! जब अंग्रेज शिखो के राज्य को नष्ट करने की कोशिश की है तब अन्य शिख सेनापति हाथों पर हाथ धरे बैठे रहे हैं ! और शिखो के राज्य को बचाने के लिये कुछ प्रयास नही किया है ! 1857 के युद्ध में शिख तटस्थ रहे हैं और ग्वालियर के महाराज ने अंग्रेजो का साथ दिया है ! इसलिए मेरा दिल काप जाता है कि इसमें और एक बात का समावेश हो गया है कि जातीय और धार्मिक आधार पर जो राजनीतिक शक्तियों का उदय हुआ है और उनके कारण देश का बटवारा भी हुआ है ! और मेरे मन में काफी उथल-पुथल शुरू हो गई है कि इस तरह की सांप्रदायिक शक्तियों का बोलबाला बढते रहा और देश दोयम दर्जे का हो जाता है तो फिर से हमारे देश की स्वतंत्रता खत्म होने की संभावना है और दोबारा वापस नहीं मिलेगी ! इस लिए हमें सभी को मुस्तैद होकर ध्यान देने की आवश्यकता है ! यह बात आज से 72 साल पहले डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी ने संविधान सभा के आखिरी भाषण में कहीं थी ! जो आज की परिस्थितियों में हुबहू लागू है ! इसलिए सीर्फ प्रजासत्ताक दिन या आजादी के पचहत्तर साल जैसे कर्मकाण्ड करने से आजादी या गणराज्य की रक्षा नही होगी ! उसके लिए सांप्रदायिक शक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए सभी साथियों को मिलकर प्रयास करना चाहिये !
डॉ सुरेश खैरनार 26, जनवरी 2022, नागपुर