सभी जानते हैं कि अब चुनाव लडना मोटी रकम के बिना संभव नहीं है. हर पार्टी और नेता चुनावों में जमकर पैसा बहाते हैं लेकिन इस मामले में भाजपा ने तो सारी पार्टियों को काफी पीछे छोड दिया है. मप्र, छत्तीसगढ में भाजपा चुनावों में हजारों करोड रूपए खर्च कर रही है. लिहाजा हर किसी की जुबान पर ये बात है कि भ्रष्टाचार करके इतना पैसा कमाया है तो अब बहा रहे हैं. बात करते हैं डॉ.रमन सिहं की, जो बतौर मुख्यमंत्री तीन कार्यकाल बिता चुके हैं.
अब भले ही साफ-सुथरी और लोकप्रिय नेता की है, लेकिन इनके बेटे का नाम पनामा पेपर्स मामले में आने के बाद यह तो साफ हो गया कि भ्रष्टाचार की आग की लपटें इनके परिवार को भी छू रही हैं. (गौरतलब है कि राहुल गांधी ने हाल ही में गलती से पनामा पेपर्स से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के बेटे का नाम जोड़ दिया था, जिसके कारण इनपर मानहानी का दावा भी हुआ). मध्य प्रदेश के सीएम की पत्नी की तरह डॉ. रमन सिंह की पत्नी सामाजिक तौर पर ज्यादा सक्रिय तो नहीं हैं, लेकिन अपने-अपने बंगले से फाइलों की स्पीड पर पूरा नियंत्रण रखने में दोनों एक-दूसरे की टक्कर की हैं.
छत्तीसगढ़ में चाहे तबादले हों या फिर पैसों के लेन-देन से हैंडल होने वाले अन्य मामले, सभी सीएम की पत्नी की देख-रेख में ही संपन्न होते हैं. इसे लेकर भाजपा से लेकर कांग्रेस तक के नेता और सरकारी कर्मचारी भी कई तरह के किस्से सुनाते मिल जाएंगे. कुल मिलाकर बात यह है कि 15 सालों में जो पैसा जमकर कमाया गया, वो इस चुनाव में धूल की तरह इड़ाया जा रहा है. एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि इस बार छत्तीसगढ़ में चुनावों में जिस तरह पैसा बंट रहा है, इसे देखकर यह भी नहीं कहा जा सकता कि पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है, क्योंकि पानी तो कीमती है. इसलिए यही कहना सही होगा कि पैसा धूल की तरह इड़ाया जा रहा है.
भाजपा के ही वरिष्ठ नेताओं की मानें, तो भाजपा के लिए यह चुनाव कम से कम 1000 करोड़ रुपए का है, वहीं मध्य प्रदेश में 3000 करोड़ रुपए का है. जाहिर है, अजीत जोगी को अपनी पार्टी बनाने और इससे भाजपा को फायदा दिलवाने के लिए भी मोटी रकम खर्च की गई है. चूंकि जोगी की डिमांड बड़ी थी, इसलिए यह मामला दिल्ली से निपटाया गया. कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि जोगी को भाजपा ने करीब 100 करोड़ रुपए दिए हैं. इधर जोगी इतने कलाकार निकले कि इन्होंने अपने इम्मीदवारों को भी पैसे देने से साफ मना कर दिया. इनके परिवार के चारों सदस्य चुनावी मैदान में हैं, तो इन्हें भी पैसे की दरकार तो होगी ही.
अब दूसरी बड़ी पार्टी कांग्रेस के चुनावी फंड की बात करते हैं. कुछ ही महीने पहले कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता मंच से अपना दुखड़ा रोते नजर आए कि जनता हमें वोट और नोट दोनों ही दे. अब पार्टी में जो नेता अपनी जेब से पैसा लगाकर चुनाव लड़ने को तैयार थे, इनमें से कई की भूपेश बघेल से पटी नहीं. लिहाजा या तो इन्हें टिकट ही नहीं मिली या फिर वे दूसरी पार्टी में चले गए. अब कांग्रेस के कम्युनिकेशन सेल के चेयरमैन शैलेश नितिन त्रिवेदी फंड की कमी पर पर्दा डालने के लिए कह रहे हैं कि हमारे पास फंड की कमी होना इस बात का सुबूत है कि कांग्रेस ईमानदार पार्टी है. अब यदि कांग्रेस के नेता इतने ही ईमानदार हैं, तो फिर भाजपा से पैसे क्यों ले रहे हैं, इस बात पर पार्टी को मंथन करना चाहिए.