toiletसीताम़ढी जिले के बेलसंड अनुमंडल क्षेत्र में जब स्वच्छता अभियान की चर्चा शुरू हुई, तब झोप़िडयों में रहने वाले ग्रामीणों को भी लगा था कि अब सचमुच अच्छे दिन आने वाले हैं. सरकारी प्रोत्साहन राशि से घर-घर शौचालय निर्माण की चर्चा मात्र से ही ऐसे परिवारों के लोग खुश हो गए थे, जिनके घर की महिलाओं व बच्चियों को शौच के लिए शाम ढलने का इंतजार करना पड़ता था.

निर्धारित कार्यक्रम के तहत जब गांव-गांव में शौचालय निर्माण की कवायद शुरू हुई, तो लोगों ने शुरुआती दिनों में इसे अतिआवश्यक मानकर कार्य को संपन्न कराना मुनासिब समझा. कई जगह तो शाम ढलते ही गांव की स़डकों से महिलाओं को खदे़डा जाने लगा. हर ओर एक अजीब स्थिति बनती चली गयी. यह भी कहा गया कि जो भी स़डक किनारे खुले में शौच करते पक़डे जाएंगे, उन्हें दंडित किया जाएगा. नतीजतन सभी तबके के लोगों ने शौचालय निर्माण की दिशा में आगे ब़ढना शुरू किया.

प्रशासनिक स्तर पर बताया गया कि शौचालय निर्माण कराने वालों को बाद में सरकार की तरफ से 12 हजार रुपये का भुगतान किया जाएगा. फिर क्या था, गांव-गांव में ईंट गिरने लगे. बालू व सिमेंट का व्यवसाय भी जोर पक़डने लगा. गरीब व मध्यमवर्गीय परिवार के लोग किसी प्रकार कर्ज लेकर शैचालय निर्माण कराने लगे. बहुत ऐसे भी परिवार हैं, जो प्रयास के बाद भी निर्माण कराने में असमर्थ रहे.

इसे प्रशासनिक शिथिलता कहें, लोगों की आर्थिक परेशानी या जागरुकता का अभाव, बेलसंड को खुले में शौच से मुक्त अनुमंडल कहना एक बेमानी है. बेलसंड अनुमंडल के परसौनी प्रखंड अंतर्गत देमा पंचायत के मुशहरी गांव में वार्ड संख्या 1 में तकरीबन तीन दर्जन परिवार ऐसे हैं, जो शौचालय का निर्माण नहीं करा सके हैं.

इस बाबत बातचीत में लोगों ने बताया कि आर्थिक परेशानी ही शौचालय निर्माण की सबसे बड़ी बाधा है. सरकार की तरफ से मिलने वाली राशि, निर्माण के बाद कब तक मिलेगी कहा नही जा सकता. बुधई पासवान, राजकुमार पासवान, किशुन पासवान, रामयश पासवान व संजय पासवान जैसे कई ग्रामीणों को शौचालय निर्माण के बाद भी अब तक राशि का भुगतान नहीं किया जा सका है.

ये सभी लोग परेशान हैं, क्योंकि जिन महाजनों से कर्ज लेकर इन्होंने शौचालय का निर्माण कराया था, वे अब पैसों के लिए इनपर दबाव डालने लगे हैं. अपने शौचालय की टंकी का ढक्कन बनवा रही राधिका देवी का कहना था कि क्या करें, हाकिम लोग बार-बार आकर डरा रहे हैं कि अब बाहर खुले में नही जाना है. ऐसी स्थिति में किसी प्रकार से कर्ज लेकर शौचालय बनवा रहे हैं.

हरगेन पासवान ने अपने निर्मित शौचालय को दिखाते हुए कहा कि पैसों के अभाव में किवा़ड नही लगवा सके हैं. गांव के विष्णुदेव पासवान, शिवनाथ पासवान, रामचंद्र पासवान, रामबली पासवान, लालबहादूर पासवान, गोपाल पासवान, दरेश पासवान, छकौ़डी पासवान, काशी पासवान, सीताराम पासवान, शिवदयाल पासवान, रेबन पासवान, मुखलाल पासवान, लालबाबू पासवान, मेघू पासवान, अजय पासवान व विजय पासवान समेत दर्जनों परिवार अब तक शौचालय का निर्माण नहीं करा सके हैं. इधर लोहासी पंचायत के वार्ड संख्या 12 निवासी रामचंद्र राय, राम सेवक राय, अकलू ठाकुर, मीना देवी, शत्रुघ्न राय, रामवती देवी, बैद्यनाथ राय व कपिल राय समेत अन्य का कहना था कि शौचालय निर्माण के लिए प्रशासनिक स्तर पर सख्ती के कारण किसी प्रकार निर्माण तो करा लिया है. परंतु अब तक राशि का भुगतान नहीं किया गया है.

बेलसंड को खुले में शौच से मुक्त अनुमंडल की घोषणा पर भाजपा के पूर्व विधान पार्षद बैद्यनाथ प्रसाद ने साफ शब्दों में कहा कि जब तक व्यवहारिक रूप में लक्ष्य पूरा नही किया जा सकता तब तक हम इसे पूर्ण नही कह सकते.

जिला पदाधिकारी ने अवश्य ही हर संभव और बेहतर प्रयास किया है, लेकिन कुछ स्थानों पर लोगों ने खानापूर्ति किया है. इन्होंने सीएम के पूर्ण स्वच्छ अनुमंडल की घोषणा को राज्य की विधि व्यवस्था व शराबबंदी की घोषणा के समान बताया. कहा कि जमीनी मुआयना के बाद सबकुछ साफ हो सकता है.

हालांकि मुख्यमंत्री की घोषणा के तकरीबन डे़ढ माह बाद से अनुमंडल क्षेत्र में राशि वितरण की कवायद शुरू की गई है. सीताम़ढी के जिला पदाधिकारी राजीव रौशन का कहना है कि वार्ड सदस्य व मुखिया ओडीएफ पंचायत की घोषणा करते हैं.

प्रत्येक पंचायत के मुखिया व वार्ड सदस्यों द्वारा आश्वस्त किए जाने के बाद ही जिला प्रशासन द्वारा राशि दी जा रही है. अगर किसी पंचायत के प्रतिनिधियों ने जिला प्रशासन को भ्रमित करने का कार्य किया हो, तो जांचोपरांत वैसे पंचायत प्रतिनिधियों के विरूद्ध कार्रवाई की जाएगी.

डीएम ने बताया, परसौनी खिरौधर पंचायत को 2 करा़ेड 61 लाख व लोहासी को 1 करो़ड 71 लाख का भुगतान किया जा चुका है. इसके अलावा नानपुर व ददरी पंचायत को भी राशि दी जा चुकी है. शेष पंचायतों के मुखिया व वार्ड सदस्यों द्वारा कार्य समाप्ति की घोषणा के बाद राशि का भुगतान कर दिया जाएगा.

इससे पहले बेलसंड अनुमंडल पदाधिकारी सुधीर कुमार ने 21 दिसंबर 2016 को क्षेत्र में शेष बचे घरों के सवाल पर साफ शब्दों में कहा था कि जिन्होंने शौचालय नही बनाए हैं, उन्हे राशि नही दी जाएगी.

अब जो लोग खुले में शौच करते पाए जाएंगे, उन्हे पंचायत स्तर पर दंडित किया जाएगा. एसडीओ ने बताया कि राशि दिए जाने से पहले तीन स्तर पर जांच के लिए शिक्षकों को लगाया गया है. हर शिक्षक करीब एक दर्जन परिवारों के शौचालय निमार्ण की जांच कर रिपोर्ट देंगे. जिन लोगों ने शौचालय निमार्ण का कार्य पूरा नहीं कराया है, या जिन्होंने बना लिए हैं, लेकिन उपयोग नहीं कर रहे हैं या जिनका पूर्व से शौचालय बना है, ऐसे लोगों को राशि से वंचित होना प़डेगा.

अब सवाल उठता है कि अगर किसी गांव में 500 घर हैं, जहां 50 घर के लोगों ने शौचालय नही बनाया, तो इन्हें केवल सरकारी राशि से वंचित कर देना ही समाधान है? क्या ऐसे परिवारों की पहचान कर उन्हें शौचालय निर्माण के लिए प्रेरित नही करना चाहिए? आर्थिक रूप से परेशान लोगों के लिए अग्रिम राशि की व्यवस्था कर उन्हें प्रोत्साहित नही करना चाहिए?

क्या पंचायत स्तर पर दंडित किए जाने की बात से सामाजिक विद्वेष नहीं ब़ढेगा? मतलब साफ है कि प्रशासनिक महकमों का मकसद केवल और केवल खुद की वाहवाही भर है. प्रशासन एक तीर से दो शिकार वाली कहावत को चरितार्थ करने में लगा है. एक ओर सरकार से वाहवाही लूटी जा रही है, तो दूसरी ओर अनुमंडल क्षेत्र के गांवों में शौचालय निमार्ण को स्वच्छता के प्रतीक चिन्ह से जोड़कर देखा जा रहा है.

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