प्रदूषण एक समस्या है, कई सारी बीमारियों का कारण है. इस बात से किसी को इंकार नहीं हो सकता. देश की राजधानी दिल्ली आजकल प्रदूषण की चपेट में है और अदालत तक को हस्तक्षेप करते हुए कहना पड़ा कि दिल्ली गैस चेंबर बन गई है. अदालत को दिल्ली सरकार से यह पूछना पड़ा कि आ़िखर वह इस समस्या के समाधान के लिए क्या कर रही है? इसके बाद जाकर सरकार की नींद खुली और उसने क़दम उठाने शुरू किए.
अपने पहले क़दम के रूप में दिल्ली सरकार ने ऑड-इवेन फॉर्मूला लागू किया, जिसके तहत ऑड नंबर वाली गाड़ियां ऑड तारीख और इवेन नंबर वाली गाड़ियां इवेन तारीख को चलाई गई. यह प्रयोग स़िर्फ 15 दिनों के लिए हुआ. शुरुआती रिपोर्ट के मुताबिक, इस फॉर्मूले का जो सबसे मुख्य असर हुआ, वह यह कि सड़कों पर यातायात यानी ट्रैफिक की हालत सुधर गई. जहां तक प्रदूषण घटने की बात थी, उसमें कोई खास बदलाव नहीं दिखा. ज़ाहिर है, इससे एक बात सा़फ हुई कि दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने के और भी कारण हैं, स़िर्फ कारें इसके लिए अकेले ज़िम्मेदार नहीं हैं. ऐसे में, दिल्ली सरकार को डीजल गाड़ियों, ट्रकों एवं निर्माण गतिविधियों से होने वाले प्रदूषण पर भी विशेष ध्यान देना होगा.
दिल्ली सरकार के ऑड-इवेन फॉर्मूले का समर्थन भारत के मुख्य न्यायाधीश ने भी किया. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया टीएस ठाकुर ने भी जस्टिस एके सीकरी के साथ कार पूल की और अपने दफ्तर पहुंचे. इस फॉर्मूले की अग्नि परीक्षा चार जनवरी यानी सोमवार को थी. एक जनवरी को लागू हुए इस फॉर्मूले का असली टेस्ट चार जनवरी को होना था.
चार जनवरी को कुल 22.8 लाख लोगों ने मेट्रो से सफर किया, यह संख्या पिछले सप्ताह के सोमवार के म़ुकाबले क़रीब दो लाख ज़्यादा थी. मेट्रो से यात्रा करने वाले लोगों का मानना था कि इस फॉर्मूले की वजह से मेट्रो पर अतिरिक्त भार बढ़ा. मेट्रो के फेरे तो बढ़े, लेकिन उसकी गति थोड़ी कम हुई. इसी दिन यानी चार जनवरी को नियम का उल्लंघन करने वाली 1,200 से ज़्यादा गाड़ियों के चालान काटे गए. दिल्ली सरकार ने कहा कि ऑड-इवन फॉर्मूला आगे जारी रखने के लिए 15 दिनों के परिणाम का अध्ययन किया जाएगा.
इसके बाद ही कोई निर्णय लिया जाएगा. सरकार का कहना है कि दिल्ली में आने वाले ट्रकों से काफी प्रदूषण होता है, इसलिए वह 15 दिनों के बाद एनसीआर के लिए प्लान बनाने को कहेगी. ज़ाहिर है, इस फॉर्मूले को आगे भी जारी रखने के लिए यह ज़रूरी है कि सरकार पहले सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को मजबूत बनाए. इसके लिए डीटीसी बसों की संख्या ज़रूरत के हिसाब से बढ़ानी होगी. आटो चालकों की मनमानी भी दिल्ली की परिवहन व्यवस्था के लिए एक समस्या है. आम तौर पर आटो चालक मीटर से चलने में आनाकानी करते हैं, जिसके लिए सरकार को सख्त क़दम उठाने होंगे.
ठंड के मौसम में लागू हुआ ऑड-इवन फॉर्मूला पूरी तरह से कारगर तो साबित नहीं हुआ, लेकिन शहर में यातायात यानी ट्रैफिक की समस्या से जूझते लोगों को थोड़ी राहत ज़रूर मिली. दिल्ली शहर की आबोहवा में ज़्यादा फर्क़ नहीं महसूस किया गया. मसलन, अगर चार जनवरी का उदाहरण लें, तो यह पाया गया कि हवा में कुछ प्रदूषकों की मात्रा सुरक्षित सीमा से आठ से दस गुना तक ज़्यादा रही. हालांकि, इसके पीछे प्रमुख रूप से वायुमंडलीय कारकों का योगदान बताया गया.
सिस्टम ऑफ एयर क्वॉलिटी एंड वेदर फॉरकास्टिंग एंड रिसर्च (एसएएफएआर) द्वारा प्रत्येक घंटे के आधार पर दिए जाने वाले अपडेट में चार जनवरी को पीएम 2.5 और पीएम 10 का स्तर सुबह के बाद से बढ़ता दिखाई दिया. आनंद विहार एवं आरके पुरम स्थित दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के निगरानी स्टेशनों में चार जनवरी को इसी दौरान पीएम 2.5 की मात्रा क्रमश: 563 और 590 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर दर्ज की गई.
वहीं पीएम 10 की मात्रा क्रमश: 901 और 694 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर दर्ज की गई. द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टेरी) ने अपने विश्लेषण में दिल्ली के चार अलग-अलग स्थानों, जैसे मंदिर मार्ग, आरके पुरम, पंजाबी बाग एवं आनंद विहार पर 24 घंटे की औसतन मात्रा सुरक्षित मानकों से कई गुना अधिक पाई.
कहा जा रहा है कि ऑड-इवेन फॉर्मूले के असर का तत्काल आकलन संभव नहीं है.
परिवहन मंत्री गोपाल राय ने ऑड-इवन के बावजूद प्रदूषण का स्तर न घटने के बारे में कहा कि प्रदूषण मापक मीटर ग़लत स्थानों पर लगाए गए हैं. अब ऐसे दावे-प्रतिदावे तो अपनी जगह हैं, लेकिन प्रदूषण जैसी जानलेवा समस्या से निपटने की दिशा में शुरू हुआ यह प्रयास सराहनीय है. दिल्ली सरकार ने प्रदूषण नियंत्रण के लिए एक दिन छोड़कर ऑड-इवेन नंबर वाली गाड़ियां सड़क पर उतारने की योजना जब शुरू की, तो इसका विरोध भी हुआ. लोगों ने इसे बिना सोची समझी रणनीति बताया.
वैसे, दिल्ली सरकार ने प्रदूषण से निपटने के लिए कुछ और गंभीर क़दम उठाने की बात भी कही है. मसलन, बिजली संयंत्र बंद करना, वैक्यूम क्लीनर से सड़कों की सफाई, ट्रकों की आवाजाही पर रोक और कुछ सड़कों पर पार्किंग पर प्रतिबंध. लेकिन, ज़रूरत इस बात की है कि आज दिल्ली और शेष भारत को स्वच्छ हवा से जुड़े एक समग्र क़ानून पर विचार करना चाहिए. ग़ौरतलब है कि दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 13 शहर भारत में हैं. दिल्ली शेष देश के लिए एक संदेश होनी चाहिए.
इन पर भी हो विचार
दिल्ली में प्रदूषित हवा की मुख्य वजह है, डीजल का धुआं, इमारतों के निर्माण से उठने वाली धूल-गर्द, ईंट भट्ठे और शहर के चारों ओर जलाई जाने वाली फसलें. दिल्ली की मौजूदा 85 लाख गाड़ियों में हर दिन 1,400 नई गाड़ियां जुड़ रही हैं और यही प्रदूषण का मुख्य स्रोत है. 2012 के एक अध्ययन में फेफड़े से संबंधित बीमारियों से पीड़ित बच्चों की एक बड़ी संख्या की ओर इशारा किया गया था. हर साल सर्दियों में विभिन्न अस्पतालों के इमरजेंसी वार्ड में सांस की तकलीफ़ से जुड़े मरीज बड़ी संख्या में दाखिला लेते हैं.
शहर की हवा साफ़ रखने के लिए सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में सुधार, मेट्रो स्टेशनों के आसपास यातायात कम करने और दूरदराज के इलाकों से स्टेशनों को जोड़ने की ज़रूरत है. गाड़ियों पर कंजेशन टैक्स लगाने और पार्किंग महंगी करने से कार की लत कम की जा सकती है. डीजल पर सब्सिडी कम करना या डीजल गाड़ियों पर भारी टैक्स लगाना भी इस कार्य में मदद कर सकता है.
डीजल कार है बड़ी वजह नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने सरकारी विभागों से कहा है कि वे डीजल गाड़ियां न खरीदें. इसके अलावा एनजीटी के निर्देश में कहा गया है कि दिल्ली में डीजल से चलने वाली किसी नई गाड़ी का रजिस्ट्रेशन न किया जाए. दिल्ली में डीजल गाड़ियों के लिए भारत स्टेज-4 के जो मानक बने हैं, उनके मुताबिक उन्हें क़ानूनी तौर पर पेट्रोल गाड़ियों के मुक़ाबले तीन गुना ज़्यादा नाइट्रोजन ऑक्साइड और पांच से सात गुना ज़्यादा पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5) उत्सर्जित करने की छूट हासिल है.
एक डीजल गाड़ी पांच से सात पेट्रोल गाड़ियों के बराबर प्रदूषण फैलाती है. डीजल से पैदा होने वाली गैसें और सिगरेट का धुआं एक ही श्रेणी में शामिल हैं और इनसे फेफड़े का कैंसर होता है.
दुनिया के देशों में ऑड-इवन फॉर्मूला
ऐसा नहीं है कि यह फॉर्मूला भारत में ही पहली बार लगाया गया. इससे पहले दुनिया के कई देशों में इसे आजमाया जा चुका है. कहीं पर यह सफल हुआ, तो कहीं पर असफल. चीन में भी यह फॉर्मूला अपनाया जा चुका है. बीजिंग में ऑड-इवन फॉर्मूला 2008 में अपनाया गया था, जब वहां ओलंपिक खेल आयोजित होने थे. इस फॉर्मूले के साथ ही बीजिंग में नई गाड़ियों की बिक्री पर भी रोक लगाई गई थी. इससे प्रदूषण के स्तर में कमी देखने को मिली. फिलहाल, बीजिंग में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था और मजबूत बनाने की कोशिश की जा रही है.
फ्रांस की राजधानी पेरिस में यह फॉर्मूला 2014 और 2015 में लागू किया गया था. दोनों बार प्रदूषण का स्तर कम हुआ था. फॉर्मूले के नियम का उल्लंघन करने वालों पर 22 यूरो का जुर्माना भी लगाया गया. इसके अलावा वाहनों की गति सीमा 20 किलोमीटर प्रति घंटा कर दी गई थी. ऑड-इवन फॉर्मूला मेक्सिको की राजधानी मेक्सिको सिटी में कामयाब नहीं हुआ. ऑड-इवन फॉर्मूला मेक्सिको सिटी में सबसे पहले 1984 में लागू किया गया, जो 1993 तक चला. इसका पालन न करने वालों पर दो हज़ार रुपये से लेकर चार हज़ार रुपये तक का जुर्माना लगाया गया.
योजना लागू करने के तुरंत बाद प्रदूषण में 11 प्रतिशत की कमी आई, लेकिन लोगों ने ऑड-इवन दोनों रजिस्ट्रेशन नंबर की कारें खरीदनी शुरू कर दीं, जिससे सड़कों पर कारों की संख्या और भी बढ़ गई और प्रदूषण के स्तर में 13 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो गई. हालत इतनी खराब हो गई कि संयुक्त राष्ट्र ने मेक्सिको सिटी को 1992 में दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर घोषित कर दिया. अंतत: ऑड-इवन फॉर्मूला रद्द करना पड़ा. दक्षिण अमेरिकी देश कोलंबिया की राजधानी बोगोटा में व्यस्ततम समय में शहर के अंदर कारों के प्रवेश पर हफ्ते में दो दिन पूरी तरह से पाबंदी लगा दी गई.
मेक्सिको में ऑड-ईवन दोनों नंबरों की कारें खरीदने के चलते इस फॉर्मूले की विफलता को देखते हुए बोगोटा प्रशासन ने ऑड-इवन के तयशुदा दिनों को बारी-बारी से बदलना शुरू कर दिया, लेकिन उसके बावजूद यह फॉर्मूला नाकाम हो गया. हुआ यह कि वाहन चालकों ने व्यस्ततम समय में लगी पाबंदी देखते हुए पीक ऑवर्स के पहले और बाद में गाड़ियां शहर में लानी शुरू कर दीं, जिसके चलते शहर की सड़कों पर जाम लगना शुरू हो गया. 2003 में पहली बार सेंट्रल लंदन में वाहनों के प्रवेश पर पांच पाउंड भीड़ शुल्क लागू किया गया, जो अब तक जारी है.