MPमध्यप्रदेश की राजनीति जातिनिरपेक्ष रही है. यहां की सियासत में यूपी, बिहार की तरह न तो जातियों का दबदबा है और न ही जाति के आधार पर राजनीतिक एकजुटता दिखाई पड़ती है. लेकिन इन दिनों प्रदेश की राजनीति में ओबीसी के नाम पर उबाल देखने को मिल रहा है. भाजपा चौथी बार सत्ता में आने के लिए शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में ओबीसी कार्ड खेलने जा रही है. वहीं कांग्रेस में अरुण यादव को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद से उनका और उनके समर्थकों का असंतोष अभी भी कायम है.

पिछले दिनों कमलनाथ द्वारा राहुल गांधी को लिखी गई एक चिट्‌ठी लीक होने के बाद से दोनों पार्टियों में पिछड़ी जातियों के सम्मान के नाम पर रस्साकशी का एक नया दौर शुरू हो गया है, जिसके केंद्र में अरुण यादव हैं. दरअसल, कमलनाथ ने यह चिट्‌ठी 26 जून को खरगौन जिले के कसरावत में अरुण यादव के पिता और कांग्रेस के दिग्गज ओबीसी नेता स्वर्गीय सुभाष यादव की बरसी पर आयोजित कार्यक्रम में राहुल गांधी को आमंत्रित करने के लिए लिखी थी.

इस चिट्‌ठी में उन्होंने इस बात को इंगित किया था कि चुनाव की दृष्टि से निमाड़-मालवा क्षेत्र काफी अहम स्थान रखता है. इस क्षेत्र से आने वाले स्व. सुभाष यादव मध्यप्रदेश केे बड़े ओबीसी नेता रहे हैं. उनकी बरसी के कार्यक्रम में भारी संख्या में ओबीसी वर्ग के लोगों के शामिल होने का अनुमान है. चिट्‌ठी लीक होने के बाद भाजपा ने कांग्रेस पर पिछड़े वर्ग का अपमान करने और उनके साथ भेदभाव करने का आरोप लगाया.

भाजपा की तरफ से कहा जा रहा है कि कमलनाथ स्वर्गीय सुभाष यादव को केवल वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करना चाहते हैं और उनकी बरसी का आयोजन सियासी फायदे के लिए ही किया जा रहा है. चिट्‌ठी लीक होने के बाद एक वीडियो भी सामने आया, जिसमें अरुण यादव किसी से कमलनाथ की चिट्‌ठी को सार्वजनिक करने को लेकर बात करते हुए दिखाई पड़ रहे हैं. हालांकि इसके बाद अरुण यादव ने इस पूरे मामले में सफाई देते हुए कहा कि ‘कांग्रेस की एकजुटता से भयभीत भाजपा हताश-कुंठाग्रस्त होकर तिलमिला रही है. कल तक मैं भाजपा की आंखों की किरकिरी था, अब आंखों का तारा क्यों बन गया. श्री कमलनाथ जी पार्टी के मुखिया ही नहीं, मेरे परिवार के अभिभावक भी हैं और मेरे ही आग्रह पर उन्होंने राहुल गांधी को यह पत्र लिखा था.’

अचानक और बिना विश्वास में लिए ही प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाए जाने के बाद से ही अरुण यादव की नाराजगी सामने आ रही है. पद से हटाए जाने के तुरंत बाद उन्होंने घोषणा कर दी थी कि अब वे कोई भी चुनाव नहीं लड़ेंगे और संगठन में काम करते रहेंगे. कमलनाथ के पदभार ग्रहण करते समय भी उनकी नाराजगी खुले तौर पर सामने आई थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘मैं किसान का बेटा हूं, फसल के बारे में जानता हूं कि वो कैसे तैयार होती है. अब चूंकि फसल तैयार है, इसलिए काटने के लिए सभी मंच पर हैं.’ प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाए जाने के बाद अभी तक उन्हें पार्टी में कोई सम्मानजक भूमिका नहीं मिल सकी है. पिछले दिनों प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ दारा आगामी चुनाव को ध्यान में रखते हुए जिन समितियों का गठन किया गया है, उनमें भी अरुण यादव को छोड़ कर लगभग सभी प्रमुख नेताओं को जिम्मेदारी दी गई है.

हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उन्हें अपनी अध्यक्षता वाली चुनाव प्रचार समिति का सदस्य बना लिया है, लेकिन अरुण यादव के कद को देखते हुए यह नाकाफी है. अरुण यादव न केवल मध्यप्रदेश में कांग्रेस के सबसे बड़े ओबीसी चेहरा हैं, बल्कि वे स्वर्गीय सुभाष यादव का विरासत भी संभाले हैं. अगर आगे भी उनकी यह नाराजगी लम्बे समय तक खीची, तो फिर कुछ ही महीनों बाद होने वाले चुनाव में कांग्रेस को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. भाजपा जो पहले भी कांग्रेसी क्षत्रपों की आपसी गुटबाजी का फायदा उठाती रही है, इस बार भी अरुण यादव की नाराजगी को भुनाना चाहती है. अरुण यादव के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद तो भाजपा नेता प्रभात झा ने उन्हें भाजपा में आने का ऑफर तक दे दिया था.

उन्होंने कहा था कि उनका दिवंगत सुभाष यादव से अच्छा संबंध रहा है, अरुण यादव उनके छोटे भाई जैसे हैं और अगर वे पार्टी में आना चाहें, तो भाजपा उनका स्वागत करेगी. इसपर अरुण यादव ने जवाब दिया था कि मेरे और मेरे परिवार के रग-रग में कांग्रेस का ही खून प्रवाहित होता है. लिहाज़ा खून से राजनीतिक व्यापार करने वाली पार्टी और उसकी विचारधारा के किसी भी आमंत्रण की मुझे आवश्यकता नही है.’ लेकिन इसके साथ अरुण यादव लगातार कांग्रेस पार्टी को भी यह एहसास दिलाना नहीं भूल रह हैं कि पार्टी के लिए उन्हें नजरअंदाज करना घातक साबित हो सकता है. बीते 20 मई को अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा द्वारा भोपाल में यादव महाकुंभ का आयोजन किया गया था, जिसमें अरुण यादव के साथ सीएम शिवराज सिंह चौहान, बाबूलाल गौर शामिल हुए थे, लेकिन इसमें कमलनाथ या कांग्रेस के किसी अन्य वरिष्ठ नेता को आमंत्रित नहीं किया गया था.

इस दौरान महासभा के प्रदेश अध्यक्ष जगदीश यादव ने मंच से कहा कि यादव समाज तो अरुण यादव को प्रदेश के भावी सीएम के रूप में देख रहा था, लेकिन साढ़े चार साल के संघर्ष के बाद जब चुनाव का समय आया, तो कांग्रेस ने उन्हे प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटा दिया. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, अरुण यादव के पिता स्व. सुभाष यादव को भी ऐसे ही हटाया गया था. इस मौके पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की टिप्पणी भी काफी अहम थी, जिसमें उन्होंने कहा कि यादव समाज बहुत ही स्वाभिमानी समाज है, यह समाज किसी के टुकड़ों पर नहीं पलता, बल्कि अपने पुरुषार्थ से लगातार आगे बढ़ रहा है.

भाजपा हर तरह से कांग्रेस को पिछड़ा विरोधी साबित करने की कोशिश में है. कांग्रेस द्वारा कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष और ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव अभियान समिति की कमान दिए जाने के बाद प्रभात झा ने कहा था कि कांग्रेस अब उद्योगपति एवं महलों की पार्टी हो गई है. उसका प्रदेश की गरीब जनता एवं किसानों से कोई वास्ता नहीं है. अपने भोपाल दौरे के दौरान अमित शाह ने पिछड़ा वर्ग आयोग को लेकर दिग्विजय सिंह पर निशाना साधा था. उन्होंने दिग्विजय सिंह को पिछड़ा विरोधी बताते हुए कहा था कि उनके कारण ही पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने संबंधी संविधान संशोधन विधेयक राज्यसभा में पारित नहीं हो सका था. इधर शिवराज सिंह की सरकार पिछड़ा वर्ग के लिए ओबीसी महाकुंभ कर रही है.

छह संभागीय मुख्यालयों, बुंदेलखंड में सागर, मध्य क्षेत्र में हरदा, मालवा में इंदौर, महाकौशल में जबलपुर, चंबल में ग्वालियर और विंध्य अंचल के शहडोल में ओबीसी महाकुंभ का आयोजन होना है. इसके लिए भाजपा ओबीसी मोर्चा के साथ-साथ जिलों के कलेक्टरों को भी आयोजन के लिए भीड़ जुटाने की जिम्मेदारी दी गई है. हालांकि यह आयोजन सरकार की योजनाओं के बारे में जानकारी देने के नाम पर किया जा रहा है. कांग्रेस ने इसपर आपत्ति जताते हुए इसे सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग बताया है. गौरतलब है कि 6 मई को सागर में पहले ओबीसी महाकुंभ का आयोजन हो चुका है, जिसमें खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश सरकार के करीब सात मंत्री शामिल हुए थे.

हालांकि भाजपा के इन चुनावी प्रयासों से इतर, हकीकत यही है कि शिवराज सिंह चौहान खुद पिछड़े वर्ग से होने के बावजूद हमेशा से ही पदोन्नति में आरक्षण के खिलाफ रहे हैं और अब यही बात उनके खिलाफ जा सकती है. मध्यप्रदेश की सत्ता में दिग्विजय सिंह के पराभाव के बाद से ही यहां ओबीसी वर्ग के नेताओं का वर्चस्व रहा है. दिग्विजय सिंह के बाद से प्रदेश में तीन मुख्यमंत्री हो चुके हैं, उमा भारती, बाबूलाल गौर और शिवराजसिंह चौहान तीनों ही भाजपाई हैं और संयोग से तीनों ही पिछड़ा वर्ग से हैं.

वर्तमान में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद ओबीसी वर्ग से हैं. नए प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह भी इसी वर्ग से आते हैं. कांग्रेस में 2011 से 2018 के बीच प्रदेश की कमान आदिवासी और पिछड़े वर्ग के नेताओं के हाथ में थी. अरुण यादव से पहले कांतिलाल भूरिया प्रदेश अध्यक्ष थे, लेकिन अब तस्वीर बदल चुकी है. अब पार्टी में कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया का वर्चस्व हो गया है. मध्यप्रदेश में करीब 52 प्रतिशत ओबीसी आबादी है और अगर यह वर्ग एक खास पैटर्न में वोटिंग करे, तो यहां ओबीसी फैक्टर निर्णायक साबित हो सकता है. इसलिए दोनों ही पार्टियां इन्हें साधना चाहती हैं.

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