कोसी नदी की बाढ़ और इस इलाके में हो रही है लगातार बारिश से परेशान पीड़ित परिवारों को कहीं उससे अधिक परेशान उनकी सुध लेने वाले नेता कर रहे हैं. बाढ़ की शुरुआत होते ही नेता खाली हाथ नाव पर सवार होकर बाढ़ पीड़ितों की सुध लेने के लिए निकल जाते हैं. न सरकारी व्यवस्था और न कोई सरकारी पहल. नेता केवल एक दूसरे पर आरोप लगाते हैं और लोगों को खुश करने के लिए झूठे आश्वासन देते हैं. कोसी के बाढ़ पीड़ितों की शायद यही किस्मत है. पीड़ित परिवार संघर्ष कर अपने जीवन को बचाने की जद्दोजहद कर रहे हैं और सरकारी सहायता के नाम पर उनको कुछ भी नहीं मिल रहा है जो मिल भी रहा है, वह संतोषजनक नहीं है. इस इलाके में राजनीतिक दलों के नेता आते हैं और बाढ़ पीड़ितों को केवल कोरे आश्वासन देकर चले जाते हैं. ताकि अखबारों में उनके बयान प्रकाशित हो जाएं. बाढ़ की मार सहरसा जिले के सिमरी बख्तियारपुर , सलखुआ, नवहट्टा एवं सुपौल जिले के निर्मली व मरौना प्रखंड के लोगों को अधिक झेलनी पड़ रही है. इसी प्रकार मधुबनी जिले के आलमनगर प्रखंड क्षेत्र के विभिन्न गांवों में बाढ़ ने कहर मचा रखा है. शासन और प्रशासन की नींद टूटी तो बाढ़ पीढ़ितों को कुछ राहत जरूर मिली, लेकिन वो भी नाकाफी है. बाढ़ पाड़ितों के आंसू केवल सियासी फायदे के लिए पोछे जा रहे हैं. बाढ़ प्रभावित क्षेत्र नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं पत्रकारों के लिए केवल सेल्फी स्पॉट बन कर रह गए हैं. उनके बयान और अंदाज केवल बनावटी दिखते हैं. बाढ़ से प्रभावित एवं कटाव के शिकार परिवारों का हाल यह है कि उनके मकान पानी में समा गए हैं. बाढ़ पीड़ित किससे सहायता और राहत मांगें, क्योंकि उनकी सुनने वाला कोई नहीं है. सराकारी सहायता की बात करें, तो पहले अंचल अधिकारी आते और प्रभावित परिवारों को चिंहित कर चले जाते थे. उसके बाद पीड़ित परिवारों की सूची बनती थी और उनको राहत सामग्री मिल जाती थी. लेकिन अब एक बार सूची बनेगी और उसके बाद सूची का सत्यापन होगा, तब कहीं जाकर राहत सामग्री मिलेगी. कुछ अधिकारियों ने बाढ़ पीड़ित क्षेत्रों का दौरा कर पड़ताल की थी. अगर उस अनुपात में राहत दी जाती, तो बाढ़ पीड़ितों का दर्द कुछ कम हो जाता. महिषी के विधायक एवं बिहार सरकार में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री डॉ. अब्दुल गफुर ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया. उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भी प्रभावित क्षेत्रों के कुछ स्थानों का दौरा किया. भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने भी अररिया व सुपौल के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया. सिमरी बख्तियारपुर के विधायक दिनेश चन्द्र यादव भी पीछे नहीं रहे. मधेपुरा के सांसद ने भी अपने समर्थकों के साथ सहरसा व मधेपुरा दोनों जगहों के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का भ्रमण किया, लेकिन क्या हुआ? बाढ़ पीड़ितों को किसी ने एक पैकेट बिस्कुट तक नहीं दिया. पता नहीं नेता पीड़ितों की मदद करने आते हैं या सेल्फी लेने? क्योंकि उनकी तस्वीरें देखकर तो यही लगता है कि वो केवल तस्वीरें खींचवाने आए थे. खैर, बाढ़, कटाव एवं विस्थापन कोसी वासियों की किस्मत में शामिल है. बाढ़ पीड़ितों की स्थिति देखकर एक गीत की एक पंक्ति याद आती है अब कौन सुनेगा तेरी आह, नदिया धीरे बहो.
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