बहुत से लोगों को यह सुझाव अजीब लगे, लेकिन उत्तर प्रदेश में गाजियाबाद के पास मुराद नगर के एक श्मशान घाट में जो भयंकर घटना घटी है, उसके बाद अब यह केवल आशंका भर नहीं है कि आप किसी को अंतिम विदाई देने श्मशान घाट जाएं और मौत वहीं आप पर अपना शिकंजा कस दे। मुराद नगर के बंबारोड श्मशान घाट में भी जयराम नामक एक बुजुर्ग सब्जी विक्रेता की मौत पर सामाजिक कर्तव्य के तहत कई परिचित रिश्तेदार उसके अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए गए थे।

अंत्येष्टि अपने अंतिम चरण में थी कि अचानक बारिश शुरू हो गई। वहां मौजूद कई लोग बेमौसम बारिश से बचने एक निर्माणाधीन छत के नीचे जमा हो गए। अंतिम संस्कार करा रहे पंडितजी मृतक के फूल चुनने के दिन के बारे में बता ही रहे थे कि उसी वक्त निर्माणाधीन छत का पहले प्लास्टर गिरा और फिर पूरा लैंटर ही धसक गया। दिवंगत की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करने वाले 25 लोग क्षण भर में मौत के आगोश में समा गए।

कई घायल हैं, जिनका इलाज चल रहा है। कुछ घरों में तो इस हादसे में मरने वालों को मुखाग्नि देने के लिए भी कोई पुरूष सदस्य नहीं बचा। इस अजीब लेकिन‍ दिल दहला देने वाली घटना के बाद लोगों में भारी आक्रोश है। उधर राज्य सरकार ने भवन ‍िनर्माण में भ्रष्टाचार को लेकर तीन अफसरों और ठेकेदार सहित चार पर आपराधिक मुकदमा कायम किया है। मृतकों के परिजनों को 2 2 लाख रू. के मुआवजे का ऐलान किया है। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने भी इस हादसे में मृत लोगो के प्रति संवेदना व्यक्त की है।

लेकिन जो असमय ही इस दुनिया से उठ गए, उनके परिजन नहीं समझ पा रहे हैं कि इसके लिए किसको दोष दें, भ्रष्टाचार को, भ्रष्ट तंत्र को, निष्ठुर व्यवस्था को, मनुष्य के नाते अपनी संवेदनशीलता को या फिर अपनी ही बदकिस्मती को? मुराद नगर का यह हादसा शायद अपने आप में विरलतम है। क्योंकि जो दूसरे को अंतिम‍ विदाई देने जाता है, वह खुद घर कभी न लौटे, ऐसा अपवादस्वरूप ही होता है। ज्यादातर लोग यह मानकर मृतक को कंधा या चिंता को पंचलकड़ी इसलिए समर्पित करते हैं कि उसे मोक्ष मिले। मन ही मन यह प्रार्थना भी कि मौत सबको आनी है, पर ऐसी अप्रत्याशित और अभागे तरीके से न आए।

शोक के चरम क्षणों में भी मन में यह सदविचार मनुष्य की सामाजिक प्रतिबद्धता से फलीभूत होता है। मुराद नगर के बंबारोड श्मशानघाट पर भी लोग इसी सामाजिक कर्तव्य की भावना से प्रेरित होकर जुटे थे। हमने अंतिम संस्कार के लिए जाते समय अथवा वहां से लौटकर किसी सड़क हादसे में स्वजनों, परिजनों की असमय मौत की घटनाएं तो सुनी है। लेकिन श्मशान घाट का आश्रय स्‍थल ही स्वयं यमदूत बन जाए, यह अकल्पनीय है।

इस हादसे में भी जांच होगी, दोषियों पर कुछ कार्रवाई भी हो सकती है। लेकिन अंतिम यात्रा में शामिल कई लोग हमेशा के लिए परलोक चले गए या उन्हें क्यों जाना पड़ा, इसका कोई ठोस जवाब शायद ही ‍मिलेगा । इस प्रकरण में भी मुराद नगर नगर पालिका की सीईओ , एक जूनियर इंजीनियर व ठेकेदार समेत 4 लोगों की गिरफ्‍तारी की गई है। ठेकेदार फरार बताया जाता है। आरोपियों की सम्पत्ति कुर्क करने की बात भी सरकार ने कही है।

मुराद नगर के श्मशान घाट में संभवत: हाल का ‍निर्माण स्थानीय नगर पालिका द्वारा किया जा रहा था। वहां छत तीन माह पहले ही डाली गई थी। यह निर्माण निस्संदेह इतना घटिया होगा कि पहली हल्की बारिश में ही वह ढह गई और अपने साथ 25 जानें भी ले गई। यकीनन मुराद नगर का हादसा केवल दैवी प्रकोप नहीं है। यह कोई अप्रत्याशित घटना भी नहीं है।

यह शुद्ध रूप से मानवीय अपराध है, क्योंकि निर्माणाधीन भवन में नितांत घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया और छत भरभराकर गिर पड़ी। अगर निर्माण में रेत के साथ पर्याप्त अनुपात में सीमेंट भी होती तो शायद यह हादसा न होता। यह हादसा उस निष्ठुर और स्वार्थी सोच का परिणाम है, जिसमें पैसे खाने के खेल के आगे इंसानी जान की कोई कीमत नहीं है। ऐे‍सी सोच जो खुद को किसी भी जवाब देही से परे मानती है। अभी यह साफ नहीं है कि मरने वालों में नगर पालिका के जिम्मेदार अफसरों और ठेकेदारों का भी कोई नाते रिश्तेदार है या नहीं।

पर इतना तय है कि भ्रष्टाचार अंधा होने के साथ-साथ दुष्ट भी होता है। उसके लिए मंगल भवन और शोक सदन में कोई फर्क नहीं है। जिसकी नींव ही इंसानी लाशों और मानवता की कराह पर टिकी होती है। वो यह सोचना भी नहीं चाहते कि इसी श्मशान घाट पर उनको भी आना है। भ्रष्टाचार से कमाई एक- एक पाई यहीं छोड़ कर जाना है। मुराद नगर हादसे ने उन यमदूतों को भी लजा दिया है, जो अपना काम पूरी निर्ममता से करते हैं।

इसे समझने के लिए तीक्ष्ण बुद्धि की जरूरत नहीं है कि मुराद नगर श्मशान घाट की कमीशन खोरी में भी ऊपर तक हिस्सेदारी होगी। उसके लिए हरी झंडी कहीं और मिल रही होगी। वहां जो घटिया निर्माण हो रहा था, उसकी कागजों में हकीकत कुछ और होगी। भ्रष्ट तंत्र की विशेषता यह होती है कि कोरोना संक्रमण की तरह खुद कभी नहीं सोचता कि वह भी भ्रष्टाचार में कभी फंस सकता है। वह मानकर चलता है कि बंदरबांट का पीपीई‍ ‍िकट उसे किसी भी दंड से बचा लेगा।

मुराद नगर मामले में भी आगे क्या होता है, यह देखने की बात है। क्योंकि श्मशानघाट के लेंटर तले अगर बड़े लोगों के हाथ भी दबे मिले तो 25 लोगों की असमय मौत पर स्यापे के अलावा शायद ही कुछ हो। इस पूरे मामले को बहुत गंभीरता से लेने की जरूरत है। इस देश में कुल कितने श्मशानघाट हैं, इसका कोई एकजाई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। फिर भी 2011 की जनगणना को आधार मानें तो देश में 6 लाख 64 हजार से अधिक गांव और करीब 8 हजार शहर/ कस्बे हैं।

औसतन हर गांव में एक और हर शहर में चार श्मशान घाट भी मानें तो इनकी संख्या करीब 7 लाख के लगभग होती हैं। इनका कोई व्यापक सर्वे हुआ हो, इसकी भी जानकारी नहीं है। गांवों के अधिकांश श्मशान घाटों पर एकाध शेड के अलावा कुछ नहीं होता। लेकिन शहरी व कस्बे के श्मशान घाटों के सौंदर्यीकरण और उन्हे सुविधा सम्पन्न बनाने के दृष्टि से शोक सभा हाॅल, शवदहन के लिए शेड व ईंधन सामग्री रखने के लिए भी भवन बनाए जाने लगे हैं।

कई जगह ये निर्माण कार्य श्मशान घाट प्रबंधन समितियां या फिर धर्मार्थ संस्थाएं करवाती हैं तो अनेक स्थानों पर यह दायित्व नगरीय निकाय या पंचायतों का होता है। मुराद नगर हादसे का सबसे बड़ा सबक तो यही है कि अब हमे अपने श्मशान घाटों का सुरक्षा ऑडिट भी कराना जरूरी है और यह ऑडिट सरकारी न होकर किसी तीसरी विश्वसनीय एजेंसी के जरिए कराना चाहिए। कम से कम इतना भरोसा तो बना रहे कि अंतिम विदाई देने के बाद व्यक्ति ‘शुद्धि’ के लिए ही सही, सुरक्षित घर तो लौट सके। श्मशान घाट मृतकों की अंत्येष्टि का स्थान ही रहें, जीवितों की समाधि का नहीं।

वरिष्ठ संपादक

अजय बोकिल

‘सुबह सवेरे’

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