samajwadi-partyआखिरकार कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय हो ही गया. इस विलय में नैतिकता भी विलीन हो गई. कुख्यात माफिया सरगना मुख्तार अंसारी और उसके भाइयों की पार्टी कौमी एकता दल के सपा में विलय को लेकर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का विरोध सुर्खियों में रहा है. इस मसले पर अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच ऐसी तनातनी बढ़ी कि समाजवादी पार्टी बिखराव के मुहाने पर आ गई. विडंबना यह है कि सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने भी नैतिकता के स्टैंड पर कायम अपने बेटे अखिलेश का साथ नहीं दिया. मुलायम ने भी यह साबित किया कि राजनीति की प्राथमिकताओं में नैतिकता कहीं नहीं ठहरती. छह अक्टूबर को कौमी एकता दल के सपा में विलय का प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने औपचारिक ऐलान किया, लेकिन यह अंदाजा चार अक्टूबर से ही लगने लगा था, जब शिवपाल ने कुख्यात अमरमणि त्रिपाठी के बेटे अमनमणि त्रिपाठी को विधानसभा चुनाव का टिकट देने की घोषणा की थी. उसी दिन जब अखिलेश ने कहा कि उन्होंने अपने सारे अधिकार छोड़ दिए हैं और उनके हाथ में तुरुप का पत्ता है, जिसे वे ऐन समय पर फेकेंगे, तो परिपक्व नेताओं ने कहा कि मुख्तार अंसारी का पार्टी में आना और पार्टी का टूटना तय हो गया है. शिवपाल ने जो 81 सदस्यीय प्रदेश कार्यकारिणी बनाई है उससे भी यही संकेत दिया है, क्योंकि कार्यकारिणी में अखिलेश यादव भी नहीं हैं और उनकी टीम के सदस्यों को भी शामिल नहीं किया गया है.

बहरहाल, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की नाराजगी को ताक पर रखते हुए माफिया सरगना मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल के समाजवादी पार्टी में विलय का छह अक्टूबर को ऐलान कर दिया गया.सपा के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने मीडिया को बताया कि नेताजी मुलायम सिंह यादव की अनुमति के बाद कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय हो चुका है. शिवपाल ने यह भी जोड़ा कि अखिलेश यादव की भी इसमें सहमति थी. जबकि अखिलेश की तरफ से सहमति का कोई बयान जारी नहीं हुआ है. इस मसले पर उनकी नाराजगी तो उसी समय सार्वजनिक हो गई थी, जब उन्होंने बलराम यादव को कैबिनेट से बर्खास्त कर दिया था. अखिलेश यादव ने तब साफ-साफ कहा था कि वे पार्टी में किसी दागी चेहरे का प्रवेश बर्दाश्त नहीं करेंगे. अखिलेश की इस नाराजगी के बाद मुलायम सिंह यादव ने 28 जून को लखनऊ में संसदीय बोर्ड की बैठक बुला कर कौमी एकता दल के विलय के फैसले को निरस्त कर दिया था. तभी बलराम यादव की दोबारा कैबिनेट में वापसी हो सकी थी.

शिवपाल के मुताबिक समाजवादी पार्टी में कौमी एकता दल का विलय पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के सीधे निर्देश से हुआ है. उनके फैसले के बाद कौमी एकता दल का सपा में बाकायदा और औपचारिक तौर पर विलय हो चुका है. पिछली बार भी शिवपाल यादव ने यही कहा था कि नेताजी के निर्देश पर कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय हुआ है.

अब बदली हुई स्थितियों में समाजवादी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश को प्रतीक्षा है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पास ऐसा कौन सा तुरुप का पत्ता है, जिसे वे ऐन मौके पर फेकेंगे. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का बयान भी यह बताता है कि सपा के अंदर का विवाद कितना गहरा गया है. अखिलेश शिवपाल की भिड़ंत अब इस मोड़ पर आ चुकी है कि पार्टी को दो भागों में बांटने वाली विभाजन रेखा स्पष्ट तौर पर दिखने लगी है. टिकट के बंटवारे पर नए प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल की मनमानी देखते हुए मुख्यमंत्री यह बोल चुके  कि उन्होंने अपने अधिकार छोड़ दिए हैं, लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि तुरुप का पत्ता उनके पास है, जो समय आने पर फेंका जाएगा. अब लोगों का ध्यान अखिलेश के तुरुप के पत्ते पर लगा हुआ है और इसे लेकर तमाम कयासबाजियां चल रही हैं.

बहुचर्चित मधुमिता हत्याकांड में सपत्नीक आजीवन कारावास की सजा काट रहे सपा नेता अमरमणि त्रिपाठी के बेटे अमनमणि त्रिपाठी को विधानसभा चुनाव का टिकट देकर शिवपाल ने एक बार फिर अखिलेश की नाराजगी को उकसाया. शिवपाल ने एनआरएचएम घोटाले के आरोपी कांग्रेस विधायक मुकेश श्रीवास्तव को भी टिकट दे दिया है. अमनमणि पर उसकी पत्नी सारा की हत्या का आरोप है, जिसकी सीबीआई जांच चल रही है. अमनमणि को टिकट दिए जाने के बारे में पूछने पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं है. सपा ने अमरमणि त्रिपाठी के बेटे अमनमणि को नौतनवा विधानसभा से टिकट दिया है. अमरमणि त्रिपाठी चार बार विधायक रह चुके हैं. अखिलेश यादव से जब पूछा गया कि जिसके खिलाफ उन्होंने सीबीआई जांच की सिफारिश की थी, समाजवादी पार्टी ने उसी को टिकट कैसे दे दिया? अखिलेश ने कहा कि उन्होंने टिकट बंटवारे के सभी अधिकार छोड़ दिए हैं. सवालों की बौछार पर अखिलेश ने पत्रकारों से ही पूछा, आप क्या चाहते हैं, मैं ईमानदार उत्तर दूं या नेताओं वाला जवाब दूं? अखिलेश बोले, ‘टिकट बंटवारा पार्टी के अंदर की बात है. हमारी राय आप जानते हैं. मैं अपनी कुछ आदतें बदल ही नहीं सकता. मुझे जानकारी नहीं है.’ टिकट बंटवारे पर जब उनसे पूछा गया कि टिकट बंटवारे में क्या उनकी बिल्कुल नहीं चल रही है, तो अखिलेश ने ताश के खेल का जिक्र करते हुए कहा कि अंत में जीत उसी की होती है जिसके पास तुरुप का इक्का होता है. अखिलेश ने चुनौती उछालने के अंदाज में कहा, विधानसभा चुनाव में अभी समय शेष है, देखिए आखिर में क्या होता है.

अखिलेश-शिवपाल का तनावपूर्ण रिश्ता तब संगठनात्मक शक्ल ले गया, जब सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने शिवपाल का पक्ष लेना शुरू कर दिया. कौमी एकता दल के सपा में विलय के विवाद से शुरू हुआ यह प्रकरण अखिलेश के सपा अध्यक्ष पद से निष्कासन, शिवपाल के महत्वपूर्ण मंत्रिमंडलीय विभाग की कटौती और गायत्री प्रजापति जैसे भ्रष्ट मंत्रियों की बर्खास्तगी और मुख्य सचिव दीपक सिंघल की रुख्सती के मुकाम तक आ पहुंचा. मुलायम के सीधे हस्तक्षेप से बर्खास्त मंत्रियों की वापसी तो हो गई लेकिन अखिलेश की सपा अध्यक्ष की कुर्सी वापस नहीं मिली और शिवपाल से छीने गए महत्वपूर्ण विभाग वापस नहीं मिले. अब मामला टिकट बंटवारे की मनमानी और अखिलेश के तुरुप के पत्ते के खुलने की प्रतीक्षा पर आकर टिक गया है.

अखिलेश का यह कहना कि उन्होंने टिकट वितरण पर अपना सुझाव देना छोड़ दिया है. काफी कुछ संकेत दे रहा है. नए सचिवालय के उद्घाटन के मौके पर जब वे मीडिया से मुखातिब थे तो वे बुझे-बुझे से थे और उनके चेहरे पर तनाव दिख रहा था. अखिलेश ने कहा कि किसे टिकट दिया जाए या किसे पार्टी में शामिल कराया जाए, इस बारे में उनके क्या विचार हैं, यह सबको मालूम है. अखिलेश ने फिर कहा कि ताश के खेल में अंततः तुरुप का इक्का ही जीतता है. देखिए, आगे-आगे होता क्या है.

शिवपाल ने बना डाली अपनी टीम, अखिलेश बाहर

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव को देखते हुए नए प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने अपनी नई टीम गठित कर डाली. शिंवपाल यादव ने अपने 81 खास सिपहसालारों की टीम घोषित की है. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके समर्थक इस टीम में शामिल नहीं हैं. सपा की प्रदेश कार्यकारिणी साफ तौर पर शिवपाल-टीम है, जिसमें ओमप्रकाश सिंह, किरनपाल सिंह, रघुनंदन सिंह काका, उदय राज यादव, श्रीपति सिंह समेत कई खास लोग शामिल हैं. शिवपाल ने कहा कि प्रदेश कार्यकारिणी भी अखिलेश से सलाह लेकर बनाई गई है. शिवपाल की टीम में ओमप्रकाश सिंह को सपा का प्रदेश महामंत्री बनाया गया है. किरनपाल सिंह को सपा का प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया गया है. राजकुमार मिश्र को कोषाध्यक्ष बनाया गया है. रघुनंदन सिंह काका, विधायक उदयराज यादव, श्रीपति सिंह, बख्तावर सिंह, अनूप गुप्ता, एसएन सिंह, सत्येंद्र उपाध्याय, राजेश यादव, पीएन चौहान, संतोष द्विवेदी, विद्यावती राजभर, श्यामलाल पाल, रामदुलार राजभर, सुरेश शुक्ला, अशोक पटेल, प्रेम प्रकाश वर्मा, संत सिंह सेरसा, राहुल कौशिक, देवेंद्र सिंह, रंजना सिंह, पारुल दीक्षित और दीपक मिश्र को सचिव बनाया गया है. सदस्यों की फेहरिस्त में अंबिका चौधरी, नारद राय, राजेंद्र चौधरी, एसआरएस यादव, धनंजय उपाध्याय, उज्जवल रमण सिंह समेत अन्य नेता शामिल हैं. इस लिस्ट में मुलायमवादी बुद्धिजीवी डॉ. अशोक वाजपेयी का नाम शामिल नहीं है. प

सपा का समानान्तर मुख्यालय! संकेत अच्छे नहीं हैं

समाजवादी पार्टी का एक समानान्तर मुख्यालय भी तैयार है, जिसमें मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके समर्थकों का कुनबा बैठ रहा है. दो धारा साफ-साफ बहती दिख रही है. विक्रमादित्य मार्ग स्थित समाजवादी पार्टी का मुख्यालय अब शिवपाल और उनके समर्थकों के कब्जे में है तो बंदरियाबाग स्थित जनेश्‍वर मिश्र ट्रस्ट अखिलेश और उनके समर्थकों का मुख्यालय बन गया है. पार्टी के ही लोग इन दो दफ्तरों को समाजवादी पार्टी का दो समानान्तर मुख्यालय बता रहे हैं. जिस तरह मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को संगठनात्मक तौर पर कमजोर करने की प्रक्रिया चल रही है और जिस तरह अखिलेश के निराशा भरे बयान आ रहे हैं, उससे समाजवादी पार्टी के भविष्य को लेकर अच्छे संकेत नहीं हैं. अखिलेश ने विक्रमादित्य मार्ग स्थित पार्टी मुख्यालय जाना छोड़ दिया है. अब वे जनेश्‍वर मिश्र ट्रस्ट को अपने संगठनात्मक कार्यकलापों के लिए दफ्तर बना रहे हैं. सपा का प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद शिवपाल सिंह यादव ने अखिलेश समर्थक नेताओं को पार्टी के दफ्तर से बाहर का रास्ता दिखा दिया है. पार्टी दफ्तर में उनके बैठने के कमरों को भी खाली करा लिया गया. इस तरह का व्यवहार देखते हुए ही अखिलेश यादव ने जनेश्‍वर मिश्र ट्रस्ट को अपना नया दफ्तर बनाने का फैसला लिया. लखनऊ में सात नंबर बंदरियाबाग वाला बंगला अब अखिलेश यादव का नया चुनावी दफ्तर है. इसी दफ्तर से जनेश्‍वर मिश्र ट्रस्ट का भी संचालन हो रहा है. अखिलेश यादव ही ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं. राजेंद्र चौधरी जनेश्‍वर मिश्र ट्रस्ट के उपाध्यक्ष हैं, जिन्हें शिवपाल ने अपनी कार्यकारिणी में सदस्य की हैसियत दी है. चौधरी ने भी पार्टी मुख्यालय जाना बंद कर दिया है. पार्टी के नेता कहते हैं कि अखिलेश के साथ-साथ वे सारे नेता भी ट्रस्ट को ही अपना केंद्र बना रहे हैं, जिन्हें शिवपाल ने पार्टी से निष्कासित कर दिया है. अखिलेश के इन साथियों में सुनील यादव, संजय लाठर, आनंद भदौरिया, नईमुल हसन, अतुल प्रधान, मोहम्मद एबाद, बृजेश यादव, गौरव दुबे, दिग्विजय सिंह, सौरभ यादव वगैरह शामिल हैं. पार्टी के ही युवा नेता ट्रस्ट के दफ्तर को पार्टी का समानान्तर मुख्यालय भी बताने लगे हैं. पार्टी में मचे घमासान के बीच बड़े नेता व राष्ट्रीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव अखिलेश का खुला साथ दे रहे हैं. सांसद धमेंद्र यादव, अक्षय यादव और तेज प्रताप यादव भी अखिलेश के साथ खड़े हैं.

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