इतिहास का पहिया लगता है एक बार फिर मंडल और कमंडल के चक्र में आकर रुकने वाला है और राजनीति का यह चक्र कांग्रेस के लिए अच्छे दिन के आगाज का संकेत हो सकता है. सुप्रीम कोट के फैसले के बाद देश भर में जिस तरह से इसे पलटने के लिए प्रदर्शन हुए, उससे एनडीए खासकर भाजपा के होश उड़े हुए हैं. उनकी जमी जमाई पूंजी के बर्बाद होने का खतरा सिर पर आ गया है. नतीजा यह हुआ कि नरेंद्र मोदी सरकार हरकत में आई और संसद के माध्यम से एक्ट में संशोधन कर यह जताने का प्रयास किया कि केंद्र सरकार दलितों के मुद्दे पर कितनी संवेदनशील है.
भले ही सुप्रीम कोर्ट ने कुछ भी कहा हो, उसकी परवाह सरकार ने नहीं की. भाजपा ने साफ कर दिया कि विपक्ष उन पर जो दलित विरोधी होने का आरोप लगा रहा है, वह बिल्कुल गलत है और इसका प्रमाण एससी एसटी एक्ट मामले में दलितों को दे दिया गया है. नरेंद्र मोदी की सरकार ने इस मामले में जितनी तेजी दिखाई है, उससे न केवल भाजपा के समर्थक बल्कि पार्टी के कई सवर्ण विधायक और सांसद सकते में हैं कि वे अपने इलाके में वोटरों को क्या जबाव दें. बिहार सहित देश भर से जो फीडबैक भाजपा और केंद्र सरकार को मिला, उसने उनके होश उड़ाने का काम किया है.
कांग्रेस के लिए उम्मीद की किरण!
लेकिन क्रिया के बदले प्रतिक्रिया भी होनी थी और वह होनी शुरू हो गई. अब देश भर में गरीब अगड़ों को आरक्षण और एससी एसटी एक्ट में हुए संशोधन को वापस लेने की मांग सवर्ण समाज ने शुरू कर दी है. छह सितंबर के भारत बंद ने साफ कर दिया है कि यह आग जल्दी बुझने वाली नहीं है. पटना में भाजपा और जदयू दफ्तरों के बाहर जिस तरह से हंगामा हुआ वह आने वाली राजनीति की एक छोटी सी तस्वीर भर है. इधर भाजपा और जदयू कार्यालयों के बाहर हंगामा हो रहा था, वहीं कांग्रेस कार्यालय सदाकत आश्रम में उम्मीदों की एक किरण फूट रही थी.
सवर्ण वोटरों पर अपने एकाधिकार को वापस पाने की लंबी प्रतीक्षा की घड़ी के खत्म होने का आभास कांग्रेस को होने लगा है. पार्टी को लगने लगा है कि अगड़ी जाति के लोग भाजपा से लगातार नाराज हो रहे हैं. खासकर भाजपा का बेइंतहा दलित प्रेम सवर्णों को रास नहीं आ रहा है. कांग्रेस को यह भी फीडबैक है कि सवर्ण लोग अब भाजपा को सबक सिखाने की भी बात करने लगे हैं. कुछ नोटा का जिक्र कर रहे हैं तो कुछ नए विकल्प की बात कर रहे हैं. कांग्रेस को इन्हीं फीडबैकों से संजीवनी मिल रही है. बिहार कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को लग रहा है कि मंडल आंदोलन के बाद कांग्रेस ने जो खोया है उसे अब पाया जा सकता है.
भाजपा का अतिदलित मोह पार्टी का रास्ता साफ कर रहा है. अगड़ी जातियों के वोटरों को लग रहा है कि भाजपा ने उन्हें ठगने का काम किया है. वह एससी एसटी एक्ट में तो आनन फानन में संशोधन करा देती है लेकिन गरीब सवर्णों को आरक्षण देने की बात नहीं करती. अगर संविधान में ही संशोधन होना है तो संशोधन कर के गरीब सवर्णों को आरक्षण दे दिया जाए. जो लोग इसका विरोध करेंगे, अगड़ी जातियां उनसे हिसाब कर लेगी. लेकिन भाजपा को तो पहल करनी चाहिए. अगड़ी जातियों को गुस्सा इस बात से भी है कि वे वोट भाजपा को देते हैं पर भाजपा उनको ठेंगे पर रखती है. भाजपा यह मान कर चलती है कि अगड़ी जाति वाले लालू के साथ जा नहीं सकते, ऐसे में उन्हें हर हाल में भाजपा के साथ ही रहना होगा.
लेकिन कांग्रेस अब उन्हें विकल्प देने की पहल कर रही है. कांग्रेस प्रवक्ता और राहुल गांधी के करीबी सूरजेवाला के ब्राह्मण को लेकर दिए बयान को एक बानगी बताई जा रही है. सूबे में कांग्रेस की विधायक भावना झा कहती हैं कि आरक्षण का विरोध कहां है, हम तो बात गरीब सवर्णों को आरक्षण देने की करते हैं. भावना झा कहती हैं कि मैं ऐसे सैकड़ों अगड़ी जाति के परिवारों को जानती हूं जिनकी आर्थिक हालत बहुत ही खराब है. अपने बच्चों को पढ़ाने केलिए उनके पास पैसा नहीं है. ऐसे में प्रतिस्पर्धा के दौर में वे बच्चे पीछे छूटते जा रहे हैं. उनका कसूर केवल इतना ही है कि उन्होंने अगड़ी जाति के घर जन्म लिया. भावना झा कहती हैं कि यह बहुत ही गंभीर मसला है और इस पर जल्द से जल्द ध्यान देने की जरूरत है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता समीर सिंह कहते हैं कि कुछ लोगों के लिए सबका साथ सबका विकास महज एक नारा है पर कांग्रेस के लिए यह एक नीति वाक्य है. समाज का हर तबका फले-फूले, यही तो कांग्रेस की नीति है. समीर सिंह कहते हैं कि भाजपा के लोग समाज में गलत संदेश देकर समाज को अगड़ी और पिछड़ी जातियों में बांटना चाहते हैं. यह देश सभी का है, इसमें किसी एक बिरादरी या फिर धर्म का अधिकार नहीं है. कांग्रेस चाहती है कि समाज में शांति रहे और सभी को विकास के रास्ते पर चलने का अवसर मिले, चाहे वे अगड़े हों या पिछड़े. यह सरकार की जिम्मेदारी है कि जरूरत के हिसाब से लोगों की जिम्मेदारी को वह समझे.
कांग्रेस की कोर टीम
सूत्र बताते हैं कि बदले हुए हालात में बिहार कांग्रेस में एक कोर टीम का गठन हुआ है, जो लगातार अगड़ी जातियों के संगठनों और महत्वपूर्ण लोगों के संपर्क में है. अगड़ी जातियों को कैसे उचित सम्मान मिले और कदम से कदम मिलाकर यह समाज कांग्रेस के साथ चले, इसे लेकर कई दौर की बैठकें हो चुकी हैं. भाजपा से नाराज अगड़ी जातियों के लोगों को कांग्रेस अपने पुराने इतिहास को दिखा रही है कि कैसे कांग्रेस के शासन में उनको मान-सम्मान मिलता रहा है और भाजपा ने केवल उन्हें ठगने का काम किया है. बताया जा रहा है कि कांग्रेस की यह मुहिम धीरे-धीरे रंग ला रही है. एनडीए के बहुत सारे अगड़ी जातियों के बड़े नेता भी अब कांग्रेस को एक विकल्प के तौर पर देखने लगे हैं. लोकसभा चुनावों में अगर एनडीए के खेमे में उन्हें निराशा हाथ लगती है तो वे कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं. अगड़ी जाति के कुछ नेताओं को अगर झिझक है तो वह राजद को लेकर है कि अपने क्षेत्र में वे वोटर को कैसे समझाऐंगे. लेकिन भाजपा के ताजा रुख से कांग्रेसियों का हौसला बढ़ा है.
भाजपा से मोहभंग
भाजपा के प्रति जिस तरह से अगड़ी जातियों का मोह भंग हो रहा है उससे आने वाले दिनों में कांग्रेस को नेताओं को अपने पाले में करने के लिए खास मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी. कांग्रेस साफ कह रही है कि उनके मान-सम्मान की रक्षा की पूरी गारंटी पार्टी लेती है, इसलिए राजद को लेकर कोई झिझक मत रखिए. इधर भाजपा को भी इस खतरे का अहसास तेजी से हो रहा है. ताजा चुनौती से कैसे निपटा जाए, इसे लेकर अनेक फोरम पर चर्चा जारी है. भाजपा विधायक मिथिलेश तिवारी कहते हैं कि मैं गरीब सवर्णों को आरक्षण देने के मुद्दे पर अपनी कोई व्यक्तिगत राय नहीं दे सकता हूं.
पार्टी फोरम पर इससे जुड़े तमाम मुद्दों पर चर्चा चल रही है और जल्द ही आपको हमारी पार्टी लाइन का पता चल जाएगा. दरअसल, भाजपा इस पूरे मामले में बहुत ही सावधानी से कदम रख रही है. उसके लिए एक तरफ कुंआ तो दूसरी तरफ खाई वाली स्थिति है. पार्टी को पता है कि एक गलती का उसे भारी खामियाजा उठाना पड़ सकता है. इसलिए कोई भी बात बहुत सोच समझकर करने की जरूरत है. फिलहाल तो नजर कांग्रेस पर है कि कैसे पार्टी इस नए मौके का लाभ उठाकर अपने पुराने वोट बैंक को एक बार फिर अपने साथ जोड़ती है क्योंकि सभी कह रहे हैं कि इससे अच्छा मौका अब कांग्रेस के पास आने वाला नहीं है.
ग़रीब सवर्णों को आरक्षण: क्या जदयू को सवर्ण आयोग याद है?
नीतीश कुमार अब अगड़ी जाति को लुभाने के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की बात कर रहे हैं, यानी आर्थिक आधार पर अगड़ी जाति के गरीबों को भी आरक्षण देने की बात कर रहे हैं. लेकिन, अभी तक संवैधानिक तौर पर गरीबी को आधार बनाकर सरकारी नौकरियों में आरक्षण नहीं दिया जा सकता है. आरक्षण का संवैधानिक आधार आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ापन है. गौरतलब है कि 1991 में नरसिंह राव की सरकार ने उच्च जातियों के गरीब परिवार के नौजवानों को आर्थिक आधार पर सरकारी नौकरियों में दस प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया था, लेकिन 1992 में उच्चतम न्यायालय ने उस आरक्षण व्यवस्था को संवैधानिक आधार पर अमान्य कर दिया था. 2010 में भी जदयू-भाजपा की सरकार ने सत्ता में आने के बाद, सवर्ण आयोग के गठन की घोषणा की थी.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक अवकाश प्राप्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में आयोग का गठन हुआ था. जेडीयू और बीजेपी दोनों दलों के लोग इस आयोग के सदस्य थे. 2011 से 2016 तक इस आयोग ने काम किया. विपक्ष के मुताबिक, उस आयोग पर लगभग बारह करोड़ रुपए खर्च हुए. लेकिन आज तक उस आयोग की रिपोर्ट पर क्या हुआ, किसी को कोई जानकारी नहीं है. ऐसे में, नीतीश कुमार द्वारा एक बार फिर सवर्ण गरीबों को आरक्षण देने की मांग करना एक सतही राजनीति से अलग कुछ नहीं दिखता है.