अपराधियों माफियाओं के लिए खुल गया समाजवादी पार्टी का दरवाजा अब आया अखिलेश के नैतिक इम्तिहान का वक्त
अब अखिलेश यादव के नैतिकता की कसौटी पर खड़े होने का सही वक्त आया है, जब समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने धड़ल्ले से अपराधियों को टिकट बांटना शुरू कर दिया है. अपराधियों माफियाओं को सपा में शामिल करने या उन्हें टिकट देने के मसले पर ही शिवपाल-अखिलेश का झगड़ा सतह पर आया था.
तब अखिलेश ही समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी थे, लेकिन माफिया सरगना मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल के सपा में विलय के मसले पर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने माफिया के पक्ष में खड़े होना पसंद किया.
उसके बाद समाजवादी पार्टी की प्राथमिकताएं खुल गईं. अखिलेश सपा के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिए गए और शिवपाल यादव ने प्रदेश अध्यक्ष बनते ही कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय करा दिया और अपराधियों और दागी चरित्र के लोगों को टिकट देना शुरू कर दिया. विचित्र यह है कि जिन लोगों को टिकट दिए जाने का पार्टी ने पहले ऐलान कर रखा था, उनका नाम भी काट-काट कर अपराधियों को उपकृत किया जा रहा है.
सपा के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने माफिया सरगना मुख्तार अंसारी के भाई सिगबतुल्लाह अंसारी के साथ-साथ कुख्यात माफिया सरगना अतीक अहमद को भी पार्टी का प्रत्याशी घोषित कर दिया. आपको याद ही होगा कि एक सार्वजनिक सभा में अखिलेश के नजदीक आने की कोशिश करने पर अखिलेश ने अतीक अहमद को धक्का देकर खुद से दूर कर दिया था.
अब आप वह दृश्य भी याद कर लें, जब शिवपाल यादव ने सार्वजनिक मंचों से यह घोषणा की थी और कसमें खाई थीं कि समाजवादी पार्टी अपराधी तत्वों को किसी भी स्थिति में टिकट नहीं देगी. लेकिन अपराधी-माफियाओं को गले लगाते वक्त शिवपाल ने अपनी ही कही बातों से मुंह फेर लिया. शिवपाल यादव को उनकी ही कही बातें याद कराते चलें. अधिक दिन नहीं हुए.
सितम्बर के पहले हफ्ते में शिवपाल ने सार्वजनिक मंच से कहा था कि समाजवादी पार्टी दागी नेताओं से दूरी बनाकर रहेगी. पार्टी इस बार आपराधिक चरित्र वाले किसी भी नेता को कतई टिकट नहीं देगी. इसके पहले भी शिवपाल ने पूर्वांचल में एक सभा में सार्वजनिक मंच से कहा था कि आगामी विधानसभा चुनाव में सपा अपराधियों को टिकट नहीं देगी.
शिवपाल ने यह भी कहा कि इसके लिए सपा ने शपथ ले रखी है. जिस सभा में शिवपाल ने यह बात कही थी, उस मंच पर वरिष्ठ सपा नेता ओमप्रकाश सिंह समेत कई मंत्री और नेता मौजूद थे. फिर लखनऊ में भी एक मीडिया कार्यक्रम में शिवपाल बोले कि हम गुंडों को टिकट नहीं देंगे. शिवपाल यादव ने कहा था, ‘मैं कसम खाता हूं कि सपा अपराधियों को टिकट नहीं देगी.’
बहरहाल, सपा ने उन पुरानी (तीन-चार महीने पहले की) बातों को भुलाते हुए अपराधियों को न्यौतना शुरू कर दिया है. सपा के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने पिछले दिनों जिन 23 प्रत्याशियों के नाम की घोषणा की, उसमें दागियों के कई नाम हैं.
इनमें कुख्यात माफिया सरगना व बसपा नेता राजू पाल हत्याकांड का मुख्य आरोपी अतीक अहमद भी शामिल है, जिसे सपा ने कानपुर कैंट से प्रत्याशी बनाया है. जबकि अतीक इलाहाबाद का रहने वाला है. दूसरा नाम माफिया सरगना मुख्तार अंसारी के बड़े भाई सिबगतुल्लाह अंसारी का है, जिसे मोहम्मदाबाद से सपा प्रत्याशी बनाया गया है.
समाजवादी पार्टी ने बसपा के राष्ट्रीय महासचिव नसीमुद्दीन सिद्दीकी के भाई हसीमुद्दीन सिद्दीकी को बांदा से उम्मीदवार बनाया है. पूर्व मंत्री राजकिशोर के भाई बृजकिशोर उर्फ डिंपल को रुदौली से टिकट दिया गया है. शिवपाल ने बड़ी बुद्धिमानी से आजम खान के बेटे को टिकट देकर उन्हें भी चुप करा दिया. आजम के बेटे अब्दुला आजम खां को रामपुर के स्वार विधानसभा सीट से प्रत्याशी बनाया गया है.
इस नए टिकट बंटवारे ने अखिलेश यादव के सामने चुनौती डाल दी है. अब अखिलेश को यह तय करना है कि वे नैतिकता के द्वंद्व में किस पाले में खड़े हैं. अब का स्टैंड यह साबित करेगा कि अखिलेश वाकई नैतिक हैं या अब तक का किया हुआ सारा कुछ महज ढोंग था.
शिवपाल ने चरथावल से पूर्व घोषित प्रत्याशी मुकेश कुमार का टिकट काट कर अब्दुल्ला राणा, तिलहर से पूर्व घोषित प्रत्याशी अनवर अली का टिकट काट कर कादिर अली, कानपुर कैंट से पूर्व घोषित प्रत्याशी हाजी परवेज का टिकट काट कर माफिया अतीक अहमद, बांदा से पूर्व घोषित प्रत्याशी कमल सिंह मौर्या का टिकट काट कर हसीमुद्दीन सिद्दीकी (बसपा नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी के भाई), मंझनपुर से पूर्व घोषित प्रत्याशी हेमंत कुमार टुन्नू का टिकट काट कर शिवमोहन धोबी, रुदौली से पूर्व घोषित प्रत्याशी अनूप पांडे का टिकट काट कर बृजकिशोर सिंह और रुद्रपुर से पूर्व घोषित प्रत्याशी प्रदीप यादव का टिकट काट कर अनुग्रह नारायण सिंह को प्रत्याशी बना दिया.
इसी लिस्ट में बड़ौत से विजय कुमार चौधरी, बुढ़ाना से कंवर हसन, मुजफफ्फरनगर से गौरव स्वरूप, स्वार से अब्दुल्ला आजम (आजम के बेटे), चमरऊवा से नसीर अहमद, बिलासपुर से बीना भारद्वाज, दादरी से रवीन्द्र भाटी, संडीला से अब्दुल मन्नान, अमापुर से वीरेन्द्र सोलंकी, मीरगंज से शराफत यार खां, बरेली शहर से राजेश अग्रवाल, खागा से ओम प्रकाश गिहार, बारा से अजय भारती, बरहज से गेना लाल यादव और मोहम्मदाबाद से सिबगतुल्लाह अंसारी (मुख्तार के भाई) को सपा प्रत्याशी बनाने की घोषणा हुई है. इसी साल मार्च महीने में समाजवादी पार्टी ने 2017 विधानसभा चुनाव के लिए अपने 143 प्रत्याशियों की बाकायदा घोषणा की थी और लिस्ट भी जारी की थी.
उस लिस्ट को भी हम छाप रहे हैं, ताकि आपके समक्ष यह स्पष्ट रहे कि सपा के नेता आखिर कितनी बार अपनी बातों और घोषणाओं से मुंह मोड़ते हैं. खबर लिखे जाने तक शिवपाल ने एक और घोषित प्रत्याशी को किनारे लगा कर दूसरे को प्रत्याशी घोषित कर दिया. शामली जिले के थानाभवन विधानसभा सीट से शेर सिंह राणा का नाम घोषित था, लेकिन अब वहां से किरनपाल कश्यप प्रत्याशी बना दिए गए हैं.
अपनी बात और अपनी लिस्ट में काट-छांट करने या बदलने वाले शिवपाल यादव मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद जैसे माफिया सरगनाओं का साथ देने की अपनी प्रतिबद्धता पर कायम रहते हैं.
आपको याद ही होगा कि जिस मीडियाई सभा में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा था कि कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय किसी भी कीमत पर नहीं होगा, उसी सभा में सपा के वरिष्ठ नेता शिवपाल यादव ने कहा था कि कौमी एकता दल का सपा में विलय जरूर होगा. फिर उन्होंने इस पर यह तर्क पेश किया था कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव यह तय कर चुके हैं और उनका निर्णय सबों को मानना ही पड़ेगा. और ऐसा ही हुआ. लेकिन अब तो ऐसा और वैसा दोनों ही हो रहा है.
अब केवल मुख्तार अंसारी तक बात सीमित नहीं रही. अब तो अपराधी तत्व सपाई बैनर के नीचे खुला खेल खेलने के लिए उद्धत दिख रहे हैं. मुख्तार अंसारी के भाई को मोहम्मदाबाद से टिकट दे दिया गया है. आगे-आगे देखिए मुख्तार के और कितने रिश्तेदार मैदान में उतरते हैं. मुख्तार का बेटा अब्बास अंसारी भी पहले से लाइन में खड़ा है.
हालांकि अब्बास के अपेक्षाकृत कम उम्र का होने की बात कह कर इस चर्चा पर धूल डालने की कोशिशें भी साथ-साथ हो रही हैं. मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल के पूर्वांचल में केवल दो ही विधायक हैं, लेकिन सपा में उसके विलय का तर्क देने वाले शिवपाल यादव बार-बार यही कहते रहे कि कौमी एकता दल का पूर्वी उत्तर प्रदेश के मुस्लिम मतदाताओं पर खासा प्रभाव है.
दरअसल, यह प्रभाव मुख्तार अंसारी की माफियागीरी का है, जिसे शिवपाल कौमी एकता दल के कंधे पर डालकर पेशबंदी कर रहे थे. जमीनी असलियत यही है कि कौमी एकता दल के मात्र दो विधायक हैं, जबकि पूर्वी उत्तर प्रदेश के आजमगढ़, मऊ, बलिया और गाजीपुर में 38 में से 32 सीटों पर इस वक्त समाजवादी पार्टी का कब्जा है. तीन सीटों पर बसपा और एक पर भाजपा का कब्जा है.
आधिकारिक तथ्य है कि उत्तर प्रदेश की मौजूदा विधानसभा के 403 विधायकों में से 47 प्रतिशत विधायकों पर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं. इसमें सपा का हाथ सबसे ऊपर है, जिसके 224 विधायकों में से 111 विधायक दागी हैं. बसपा के 29 विधायक दागी हैं, तो भाजपा के 25 विधायक. कांग्रेस के 13 विधायक दागी हैं.
वर्ष 2007 में विधानसभा के 403 सदस्यों में से 140 पर यानि 35 प्रतिशत के खिलाफ आपराधिक मुकदमे दर्ज थे. वर्ष 2012 में यह संख्या काफी बढ़ गई. अब 2017 में इसके और बढ़ने की आशंका है. मौजूदा विधानसभा के 403 विधायकों में से 189 विधायक दागी हैं.
इनमें से 98 (24 फीसदी) विधायकों पर हत्या, अपहरण और बलात्कार जैसे गंभीर अपराध के मामले दर्ज हैं. सपा के मित्रसेन यादव पर तो हत्या के तीन दर्जन मामले थे. हालांकि अब वे दिवंगत हो चुके हैं. राजनीति में अपराधियों को टिकट देने की शुरुआत कांग्रेस ने की थी. उसके बाद तो अपराधियों माफियाओं का चुनाव लड़ना और जीत कर लोकसभा व विधानसभा में पहुंचना चलन बन गया. उत्तर प्रदेश में इससे अपराधमय राजनीति का वर्चस्व कायम हो गया.
सपा हो या बसपा, भाजपा हो या कांग्रेस, आपराधिक पृष्ठभूमि के नेताओं को सबने मान दिया. चुनाव सुधारों की तमाम कवायदों और तकरीरों के बावजूद अपराधियों को चुनाव मैदान से बाहर रख पाने में हमारा सिस्टम फेल साबित हो चुका है. बिहार सीमा से सटे पूर्वी उत्तर प्रदेश के सैयदराजा से लेकर दिल्ली की सीमा से सटे गाजियाबाद तक हत्या, अपहरण, फिरौती के साथ-साथ आम आदमी के खिलाफ बड़े-बड़े अपराधों में शामिल अपराधी विधायक बनते या बनवाते रहे हैं.
पूर्वांचल में हरिशंकर तिवारी से लेकर मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद, बृजेश सिंह, मुन्ना बजरंगी, धनंजय सिंह और पश्चिमांचल में महेंद्र सिंह भाटी से लेकर डीपी यादव जैसे परस्पर विरोधी आपराधिक विरासत की परंपरा उत्तर प्रदेश की राजनीति में स्थापित होती चली गई.
राजनीतिक पार्टियों ने अपने फायदे के लिए माफियाओं का इस्तेमाल किया और बाद में माफियाओं ने अपने फायदे के लिए राजनीतिक पार्टियों का इस्तेमाल शुरू कर दिया. अब दोनों आपस में इतने घुलमिल चुके हैं कि पहचानना मुश्किल हो गया है कि कौन नेता है और कौन माफिया.
जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आता जा रहा है, वैसे-वैसे नैतिकता की बातें भी दूर होती जा रही हैं. सारे चुनावों में ऐसा ही होता है. राजनीतिक दल जोड़-तोड़ में सारे सिद्धांत ताक पर रख देते हैं. तालमेल, गठबंधन और टिकट बंटवारे में फिर वही सारी चोंचलेबाजियां होगी, जो पिछले चुनावों में होती आई हैं. फिर थैलीशाहों, दलालों और अपराधियों को टिकट दिए जाएंगे. उसकी पृष्ठभूमि तैयार हो रही है.
मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद जैसे लोगों के लिए सपा पृष्ठभूमि तैयार कर चुकी है, तो धनंजय सिंह जैसों के लिए बसपा जमीन तैयार कर रही है. ऐसा ही हाल अन्य दलों का भी है. जो कुख्यात माफिया किसी पार्टी के साथ नहीं हैं, वे भी खुद या अपनी पत्नी को चुनाव लड़ाने की तैयारी कर रहे हैं. कई कुख्यात माफिया सरगना जेल से ही चुनाव की बागडोर संभालेंगे. वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में जौनपुर भी माफियाओं का खास आखेट स्थल बनने वाला है.
कई नामी माफियाओं के जौनपुर की विभिन्न विधानसभा सीटों से चुनावी मैदान में उतरने की चर्चा है. जेल में बंद माफिया सरगना बृजेश सिंह अपनी पत्नी अन्नपूर्णा सिंह को जौनपुर की जफराबाद सीट से भाजपा के टिकट से चुनाव लड़ाने की जुगत में लगे हुए हैं. माफिया सरगना मुख्तार अंसारी भी जौनपुर की सदर विधानसभा सीट पर नजर गड़ाए हैं.
संभावना है कि मुख्तार सपा के टिकट से वहां से चुनाव लड़ें. मुख्तार अंसारी अपनी पुरानी सीट मऊ को अपने बेटे अब्बास अंसारी के लिए छोड़ना चाहते हैं. उन्हें एक सुरक्षित मुस्लिम बहुल सीट की तलाश थी, जो उन्हें जौनपुर के सदर विधानसभा सीट में दिख रही है. सदर सीट पर अभी कांग्रेस के नदीम जावेद विधायक हैं.
इलाहाबाद के पूर्व सांसद माफिया सरगना अतीक अहमद को कानपुर कैंट का टिकट देकर सपा ने इलाहाबाद की उनकी पुरानी सीट से अतीक अहमद के भाई अशरफ अहमद के लिए रास्ता साफ कर दिया है.
अब लोगों को अशरफ अहमद के नाम की घोषणा का इंतजार है. माफिया डॉन मुन्ना बजरंगी की पत्नी सीमा सिंह को मड़ियाहूं से बसपा ने पहले ही अपना प्रत्याशी घोषित कर रखा है. मुन्ना बजरंगी के साले पुष्पजीत सिंह की कुछ ही दिनों पहले लखनऊ में हत्या कर दी गई थी.
पुष्पजीत सिंह ही अपनी बहन सीमा सिंह की जौनपुर से चुनाव लड़ने की तैयारियां देख रहे थे. पूर्व सांसद और चर्चित माफिया सरगना धनंजय सिंह खुद जौनपुर की मल्हनी सीट से बसपा के टिकट से चुनाव लड़ने जा रहे हैं. बसपा धनंजय सिंह और मुन्ना बजरंगी की पत्नी को टिकट दे कर ठाकुर मतों को प्रभावित कर रही है.
बसपा नेता मायावती की इलाहाबाद रैली में मंच पर धनंजय सिंह की मौजूदगी ने भी ठोस संकेत दिए थे. मायावती की मौजूदगी में ही धनंजय सिंह का स्वागत भी हुआ और उनके फिर से बसपा में शामिल होने का ऐलान भी मंच पर ही किया गया था. मंच संचालक इंद्रजीत सिंह सरोज जब यह ऐलान कर रहे थे, उस दौरान मायावती भी मंच पर मौजूद थीं.
बिना मायावती की सहमति के बसपा में ऐसी घोषणा हो ही नहीं सकती. पूर्वांचल और खास कर जौनपुर में धनंजय सिंह की सवर्ण व राजपूत मतदाताओं पर अच्छी पकड़ है, इसे देखते हुए मायावती ने धनंजय सिंह को अपने साथ शामिल किया है.
बसपा से निष्कासित होने के बावजूद धनंजय सिंह ने किसी दूसरी पार्टी की तरफ रुख नहीं किया और बसपा के टिकट पर ही चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की थी. आखिरकार मायावती ने उस पर अपनी मुहर लगा दी.
वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने धनंजय सिंह और उनकी पत्नी जागृति सिंह को टिकट नहीं दिया था. धनंजय की पत्नी ने मल्हनी विधानसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा था. 2014 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा ने धनंजय को टिकट नहीं दिया. धनंजय निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जौनपुर से चुनाव लड़े, लेकिन हार गए थे.
ऐसे समय में जब स्वामी प्रसाद मौर्य, आरके चौधरी और बृजेश पाठक जैसे नेता पार्टी छोड़ गए और भाजपा नेता दयाशंकर सिंह प्रकरण की वजह से बसपा को राजपूतों की नाराजगी झेलने पड़ी, धनंजय सिंह को साथ लेकर बसपा ने पूर्वांचल के राजपूतों को मरहम लगाने का काम किया है.
राजनीतिक समीक्षक भी यह मानते हैं कि जहां दबंगों और माफियाओं को चुनाव लड़ाने की सारी पार्टियों में होड़ चल रही है, अगर बसपा ने भी धनंजय सिंह, उनकी पत्नी जागृति सिंह और मुन्ना बजरंगी की पत्नी सीमा सिंह को टिकट दे दिया तो राजपूत मतदाताओं का बड़ा हिस्सा बसपा के साथ निश्चित तौर पर जुड़ जाएगा.
इसे भांपते हुए ही सपा नेता व राज्यसभा सांसद अमर सिंह ने कहना शुरू कर दिया था कि मुलायम परिवार पर ठाकुर बहुओं का कब्ज़ा है. अमर सिंह के इस बयान को प्रदेश की राजनीति में राजपूत वोट बैंक को साधने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा था.
अगर याद करें, कानपुर की एक सभा में अमर सिंह ने मुलायम परिवार की बहुओं के राजपूत होने की बात कहते हुए खुद के भी राजपूत होने की बात कही थी. राजपूत समुदाय का रुख देखते हुए भाजपा भी बृजेश की पत्नी अन्नपूर्णा को टिकट देने पर विचार कर रही है. उल्लेखनीय है कि माफिया सरगना बृजेश सिंह ने हाल ही में विधान परिषद चुनाव में जीत दर्ज की.
बृजेश जेल से ही निर्दलीय प्रत्याशी के बतौर चुनाव लड़े और 1984 मतों से जीत गए. उन्होंने समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी मीना सिंह को हराया. राजनीतिक गलियारे के धुरंधरों का कहना है कि भाजपा ने बृजेश सिंह को परोक्ष समर्थन दिया था और अपना प्रत्याशी नहीं उतारा था. वाराणसी के एमएलसी सीट पर पिछले लगभग डेढ़ दशक से बृजेश सिंह के परिवार का कब्जा रहा है. बृजेश के बड़े भाई उदयनाथ सिंह उर्फ चुलबुल सिंह दो बार और बृजेश की पत्नी अन्नपूर्णा सिंह भी एक बार एमएलसी रह चुकी हैं.
अमनमणि के टिकट पर भी शिवपाल हैं अड़े
कवयित्री मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में आजीवन कारावास की सजा काट रहे कुख्यात माफिया सरगना अमरमणि त्रिपाठी के बेटे अमनमणि त्रिपाठी को टिकट देने का मसला भी फंसा हुआ है. पत्नी की हत्या के आरोप में अमनमणि सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किए जा चुके हैं. अमनमणि के नाम पर विवाद खड़ा होने के बावजूद शिवपाल उसे टिकट देने के अपने पूर्व के फैसले पर अड़े हैं.
सपा के सूत्र बताते हैं कि शिवपाल ने अमरमणि त्रिपाठी को आश्वस्त कर रखा है कि नौतनवां सीट से उनके बेटे अमनमणि ही चुनाव लड़ेंगे. शिवपाल ने विवादास्पद अमनमणि के अलावा कांग्रेस के बागी विधायक मुकेश श्रीवास्तव को भी बहराइच जिले की पयागपुर सीट से सपा उम्मीदवार घोषित कर रखा है. मुकेश एनआरएचएम घोटाले में भी अभियुक्त रहे हैं.
उस दरम्यान भी शिवपाल ने पूर्व घोषित 14 प्रत्याशियों के नाम काट कर नए प्रत्याशी जोड़े थे. उस लिस्ट के मुताबिक सुभाष राय को अम्बेडकरनगर जिले की जलालपुर सीट से, मोहम्मद इरशाद को सहारनपुर की नकुड़ सीट से, संजय यादव को सोनभद्र की ओबरा सीट से, उषा वर्मा को हरदोई की सांडी सीट से, आगरा की खरागढ़ सीट से घोषित प्रत्याशी विनोद कुमार सिकरवार की जगह पक्षालिका सिंह और ललितपुर सीट से घोषित प्रत्याशी ज्योति लोधी की जगह चंद्रभूषण सिंह बुंदेला उर्फ गुड्डू राजू को प्रत्याशी बनाया गया.
ऐसी तो और कितनी लिस्ट जारी होगी, बदलेगी
समाजवादी पार्टी ने 2016 के 25 मार्च को अपने 143 प्रत्याशियों की लिस्ट घोषित की थी. वह लिस्ट भी शिवपाल यादव के हाथों ही जारी हुई थी. लेकिन वही शिवपाल अपनी बात और लिस्ट दोनों ही बेसाख्ता काट रहे हैं. उस लिस्ट में भी बस्ती के कप्तानगंज से राम कृष्ण किंकर सिंह और गोरखपुर के चिल्लूपार से राजेंद्र सिंह पहलवान जैसे कई दागी प्रत्याशियों के नाम शुमार थे.
उन 143 उम्मीदवारों की सूची में बेहट से उमर अली खान, सहारनपुर नगर से संजय गर्ग, सहारनपुर देहात से अब्दुल वाहिद, रामपुर मनिहारन सुरक्षित से विमला राकेश, गंगोह से रुद्रसेन चौधरी, थाना भवन से किरनपाल कश्यप, शामली से मनीष कुमार चौहान, चरथावल से मुकेश कुमार चौधरी, पुरकाजी सुरक्षित से उमा किरन, खतौली से श्यामलाल बच्ची सैनी, मुगलसराय (चंदौली) से बाबूलाल यादव, नजीबाबाद से अबरार आलम अंसारी, बढ़ापुर से शेख सुलेमान, नहटौर सुरक्षित से मुन्ना लाल प्रेमी, चांदपुर से शेरबाज पठान, नूरपुर से नईमुल हसन, कांठ से अनीसुर्रहमान, सरधना से अतुल प्रधान, मेरठ कैंट से सरदार परविन्दर सिंह, मेरठ शहर से रफीक अंसारी, मेरठ दक्षिण से हाजी आदिल चौधरी, छपरौली से हाजी तराबुद्दीन, बड़ौत से चौधरी साहब सिंह, बागपत से डॉ. कुलदीप उज्ज्वल, लोनी से ईश्वर मावी, मुरादनगर से दिशांत त्यागी, साहिबाबाद से राशिद मलिक, गाजियाबाद से डॉ. सागर शर्मा, मोदी नगर से राम आसरे शर्मा, हापुड़ सुरक्षित से तेजपाल सिंह, नोएडा से अशोक कुमार चौहान, दादरी से विक्रम सिंह भाटी, सिकंदराबाद से अब्दुल रब, बुलंदशहर से मोहम्मद मुस्तकीम अल्वी, अनूप शहर से हिमायत अली, खुर्जा सुरक्षित से सुनीता चौहान, खैर सुरक्षित से प्रशांत कुमार बाल्मिकी, बरौली से सुभाष बाबू लोधी, इगलास सुरक्षित से कन्हैया लाल दिवाकर, हाथरस सुरक्षित से राम नारायण काके, सिकंदराराऊ से यशपाल सिंह चौहान, छाता से लोक मणि कांत जादौन, मांट से जगदीश नोहवार, गोवर्धन से किशोर सिंह, एतमादपुर से डॉ. प्रेम सिंह बघेल, आगरा ग्रामीण से हेमलता दिवाकर, फतेहपुर सीकरी से राजकुमार चाहर, खैरागढ़ से विनोद कुमार सिकरवार, फतेहाबाद से डॉ. राजेन्द्र सिंह, आगरा कैंट सुरक्षित से चंद्रसेन टपलू, टूंडला सुरक्षित से महराज सिंह धनगर, फीरोजाबाद से शमशाद अहमद बाबा, अमापुर से वीरेन्द्र सिंह सोलंकी, बिल्सी से उदयवीर सिंह शाक्य, दातागंज से अवनीश यादव, बिथरी चैनपुर से वीरपाल सिंह यादव, बरेली शहर से शेर अली जाफरी आल्वी, बरेली कैंट से हाजी इस्लाम बाबू, आंवला से महिपाल सिंह यादव, बीसलपुर से नीरज गंगवार, जलालाबाद से शरदवीर सिंह, तिलहर से अनवर अली उर्फ जकीउर्रहमान, शाहजहांपुर से तनवीर अहमद खां, पलिया से अनीता यादव, धौरहरा से यशपाल चौधरी, मोहम्मदी से डॉ. आरए उस्मानी, हरगांव सुरक्षित से मनोज कुमार राजवंशी, लहरपुर से अनिल कुमार वर्मा, सवाइजपुर से पद्मराग सिंह यादव पम्मू, बिलग्राम मल्लावां से सुभाष पाल, मोहान सुरक्षित से भगवती प्रसाद, उन्नाव से मनीषा दीपक, लखनऊ पूर्वी से डॉ. श्वेता सिंह, तिलोई से मयंकेश्वर सिंह, रायबरेली सदर से आरपी यादव, जगदीशपुर सुरक्षित से विजय कुमार पासी, फर्रुखाबाद से विजय सिंह, सिकंदरा से महेन्द्र कटियार, गोविंदनगर से सुनील शुक्ला, आर्यनगर से रीता बहादुर सिंह, किदवईनगर से ओम प्रकाश मिश्रा, कानपुर कैंट से हाजी परवेज अंसारी, महराजपुर से अरुणा तोमर, माधौगढ़ से लाखन सिंह कुशवाहा, कालपी से चौधरी विष्णुपाल सिंह उर्फ नन्नू राजा, ललितपुर से ज्योति लोधी, महरौनी सुरक्षित से रमेश कुमार खटीक, राठ सुरक्षित से अम्बेश कुमारी, महोबा से सिद्धगोपाल साहू, तिंदवारी से दीपा सिंह गौर, नरैनी सुरक्षित से भरत लाल दिवाकर, बांदा से देवराज गुप्ता, मानिकपुर से निर्भय सिंह पटेल, बिंदकी से समरजीत सिंह, फतेहपुर से चंद्रप्रकाश लोधी, अयाहशाह से दलजीत निषाद, हुसैनगंज से मोहम्मद शफीर, खागा सुरक्षित से ओमप्रकाश गिहार, विश्वनाथगंज से संजय पाण्डेय, मंझनपुर सुरक्षित से हेमंत कुमार टुन्नू, चायल से चंद्रबली सिंह पटेल, करछना से उज्ज्वल रमण सिंह, इलाहाबाद पश्चिम से ज्योति यादव, कोरांव से रामदेव निडर कोल, रुदौली से अब्बास अली जैदी, महसी से राजेश त्रिपाठी, कैसरगंज से रामतेज यादव, कटरा बाजार से बैजनाथ दुबे, बांसी से लालजी यादव, डुमरियागंज से कमाल यूसुफ, कप्तानगंज से राना कृष्ण किंकर सिंह, रुधौली से अनूप पांडेय, खलीलाबाद से सुबोध चंद्र यादव, पनियारा से कृष्णभान सिंह सैंथवार, कैम्पियरगंज से चिंता यादव, गोरखपुर सदर से संजय सिंह, सहजनवां से यशपाल सिंह रावत, खजनी सुरक्षित से जोखू पासवान, चौरीचौरा से केशव यादव, बांसगांव से संजय पहलवान, चिल्लूपार से राजेन्द्र सिंह पहलवान, खड्डा से नथुनी कुशवाहा, पडरौना से बिजेन्द्र पाल सिंह यादव, तमकुही राज से डॉ. पीके राय, फाजिलनगर से विश्वनाथ सिंह, रुद्रपुर से प्रदीप यादव, मुबारकपुर से रामदर्शन यादव, मधुबन से राजेन्द्र मिश्रा, मऊ से अल्ताफ अंसारी, रसड़ा से सनातन पांडेय, फेफना से अंबिका चौधरी, जौनपुर से जावेद सिद्दीकी, मुंगरा बादशाहपुर से ज्वाला प्रसाद यादव, मोहम्दाबाद से राजेश कुशवाहा, सकलडीहा से प्रभु नारायण सिंह यादव, पिंड्रा से डॉ. रामबालक सिंह पटेल, अजगरा सुरक्षित से लालजी सोनकर, शिवपुर से अरविंद कुमार मौर्य, वाराणसी उत्तरी से हाजी अब्दुल समद अंसारी, वाराणसी दक्षिण सेअशफाक अहमद डब्लू औरवाराणसी कैंट सेरीबू श्रीवास्तव के नाम शामिल थे.